मोगली की जानकारी - मोगली लैण्ड, सिवनी | Information of Mowgli - Mowgli Land, Seoni
जिला- सिवनी (मध्य प्रदेश) जहाँ के हम निवासी हैं, वही सिवनी कभी एक 'जंगल बॉय' जिसे 'मोगली' के नाम से प्रसिद्धि मिली, उसी की कर्म स्थली रहा है। 'जंगल बॉय' (मोगली) के बारे में जानकारी विविध स्रोतों से प्राप्त कर इस लेख में आपके लिए संजोया है। निश्चित ही सिवनी को मोगली के कारण विश्व में एक पहचान मिली और जब भी इस जिले की ऐतिहासिक क्षेत्र में बात होती है तो मोगली का नाम सामने अवश्य आता है। नीचे मोगली से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं जानकारियाँ क्रमशः प्रस्तुत हैं।
मानव बालक भेड़ियों के झुण्ड तक कैसे पहुँचा
(How did the boy reach the flock of wolves?)
ऐसा माना जाता है कि जिला सिवनी के अमोदागढ़ क्षेत्र में कुछ बालक जंगल में गए थे और वहाँ पर किसी जानवर के हमला करने के कारण तेज तर्रार लड़के तो भाग गये किंतु एक बालक न भाग सका और वह उसी जंगल में रह गया। उस बालक की असहाय स्थिति और मासूमियत पर वहीं पास में चट्टानी गुफाओं में रहने वाले भेड़ियों के झुण्ड को दया आ गई होगी और भेड़ियों के झुण्ड ने उसे अपना लिया होगा। इस तरह वह बालक उन भेड़ियों के झुंड में रहने लगा और उन्ही की तरह सारी आदतों को अपनाकर भेड़िया बालक बन गया।
क्षेत्र में एक दूसरी कहानी भी प्रचलित है कि कोई गर्भवती महिला जंगल से गुजर रही थी और उसे वही प्रसव पीड़ा महसूस हुई। उसने एक बालक को जन्म दिया। आसपास जानवरों की हलचल को देखते हुए वह महिला घबरा गई और उस नवजात बच्चे को वहीं छोड़कर अपनी जान बचा कर भाग गई। सम्भवतः उस नवजात बच्चे को वहीं पास में रहने वाले भेड़ियों के झुण्ड ने देखा होगा और नवजात बच्चे की असहाय स्थिति को देखते हुए भेड़ियों की ममता जाग उठी होगी। उन भेड़ियों ने बच्चे को खाने की बजाय अपना लिया। इस तरह वह बालक भेड़ियों के झुण्ड में ही पैदा होने होते ही शामिल हो गया। धीरे-धीरे भेड़ियों की सारी आदतें एवं क्रियाकलाप उस बालक में आ गए और वह भेड़िया बालक बनकर उन्हीं की तरह जीवन-यापन करने लगा।
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इस तरह की और भी कई कथाएँ 'जंगल ब्वॉय' के संदर्भ में प्रचलित है कि वह कैसे भेड़ियों के झुंड तक पहुँचा। जो भी हो किंतु एक मानव बालक भेड़ियों के झुण्ड में पहुँच गया और उन्हीं के समान खानपान, आदतों को अपनाकर जंगल में रहने लगा था।
जंगल बॉय का नामकरण
(Jungle Boy Naming)-
सबसे पहले एक अंग्रेज अफसर विलियम स्लीमैन ने भेड़िया बालक का नाम 'सियार' रखा जिसका विवरण उन्होंने अपनी पुस्तक 'द रैबल्स एण्ड रिकलेक्शंस ऑफ इंडियन ऑफिशियल' में एक अध्याय 'द मैंन ईटर सियार ऑफ संतबावड़ी' में किया है। इसके बाद इसी कृति से ही रूडयार्ड किपलिंग की पुस्तक 'द जंगल बुक' विश्व प्रसिद्ध है। इस जंगल बुक की कहानी का मुख्य पात्र एक भेड़िया बालक 'जंगल बॉय' है। रूडयार्ड किपलिंग ने इस भेड़िया बालक जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है- वह भेड़ियों के साथ रहा करता था, उसकी सारी आदतें, खानपान भेड़ियों के समान ही थी को अपनी इस पुस्तक का नायक चुनते हुए उसका नामकरण 'मोगली' किया। इस तरह मोगली उनकी इस कृति 'द जंगल बुक' का एक महानायक बना। सिवनी जिले के इस मोगली को विश्व साहित्य की इस प्रसिद्ध पुस्तक 'द जंगल बुक' के जंगल का रक्षक एक महानायक के रूप में सारे संसार के लाखों पाठकों मन में जगह मिली और कार्टून फिल्म तथा मोगली पर धारावाहिक से जन जन तक पहुँचकर वह जगत प्रसिद्ध हो गया। आज भारत के मध्य प्रदेश में स्थित सिवनी 'मोगली लैण्ड' के रूप में विश्व में जाना पहचाना जाता है।
मोगली लैण्ड सिवनी
(Mowgli Land Seoni)
मोगली की जन्म एवं कर्म स्थली हमारा जिला सिवनी सतपुड़ा की उच्च भूमि पर स्थित है। यहीं पेंच नामक रिजर्व टाइगर अभ्यारण है। इसके उत्तर में नर्मदा नदी और जबलपुर जिला है। दक्षिण में महाराष्ट्र प्रान्त का नागपुर जिला, पूर्व में बालाघाट और पश्चिम में छिंदवाड़ा जिला है। सिवनी जिले में अमोदागढ़ जो कि कान्हीवाड़ा कस्बे के आगे छुई ग्राम पड़ता है और उसके आगे पूर्व दिशा में एक गाँव मोरडोंगरी है, उससे भी आगे डूंडलखेड़ा ग्राम है। उसी के पास अमोदागढ़ है। अमोदागढ़ क्षेत्र के बीच से हिर्री नदी बहती है जो आगे चलकर बैनगंगा नदी में मिल जाती है। बैनगंगा नदी सिवनी जिला से निकलकर आगे गोदावरी नदी में मिल जाती है। इस क्षेत्र के आसपास का वर्णन किया जाए तो इसके पास ही केवलारी एक तहसील है जो कि बैनगंगा नदी के तट पर स्थित है और यह कान्हीवाड़ा कस्बे से यह लगभग 18 किलोमीटर दूर है।
उस समय अमोदागढ़ क्षेत्र में विस्तृत और घने जंगल थे। यह एक पहाड़ी एवं नदी घाटी इलाका है। इस क्षेत्र में पूर्व में भेड़िया बहुतायत मात्रा में पाए जाते थे, किंतु अब इनकी संख्या यहाँ नगण्य है। इनके स्थान पर इन्हीं की प्रजाति का एक जानवर लड़ैया मिलता है। इस क्षेत्र में जंगली जानवरों के अलावा सागौन, काला शीशम, चंदन, बीजा, साज, महुआ, खमेर, तेंदू , चार, आंवला आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। कुल मिलाकर मोगली लैण्ड एक पठारी क्षेत्र है, जहाँ पर छोटी-मोटी पहाड़ियाँ और प्राकृतिक सौंदर्य के स्थल मौजूद हैं।
मोगली के अस्तित्व की कहानी
(Mowgli's survival story)
(i) विलियम स्लीमैन का संत बावड़ी आगमन
सतपुड़ा के पठार में फैला हुआ दुर्गम जंगल जिसके बीच से जबलपुर नागपुर रोड (वर्तमान नेशनल हाइवे) गुजरती है। इसी मार्ग पर एक झोपड़पट्टियों वाला आदिवासियों का गाँव संत बावड़ी स्थित है। अंग्रेजों के जमाने में जब लूटपाट और ठगी के लिए यह क्षेत्र कुख्यात था। विशेष तौर से संत बावड़ी को ठगी का केंद्र माना जाता था। अंग्रेज अफसर विलियम स्लीमैन संत बावड़ी की ठगी की घटनाओं से बेचैन थे, वे उन घटनाओं को रोकना चाहते थे। इस हेतु ही वे सन् 1831 में खुद घोड़े से 135 किलोमीटर का सफर तय करते हुए संत बावड़ी आ पहुँचे थे। 3 दिन तक रुक कर भी स्लीमैन को इस संत बावड़ी में कुछ भी हासिल नहीं हुआ। तब उन्होंने अपने लेफ्टिनेंट जॉन मूर को छोड़कर जबलपुर लौट गए थे।
(ii) संत बावड़ी ठगों का अड्डा
(Sant Baori Thug's Haunt)
संत बावड़ी को ठगों का अड्डा माना जाता था। लोग उसे ठग बावड़ी कहने लगे थे। लगभग 45 दिनों में उस गाँव से 32 व्यक्ति गायब हो चुके थे। ऐसा माना जाता था कि ठगों ने ही उन अभागों को लूटने के बाद मार डाला और उनकी लाशें गायब कर दी। जॉन मूर ने तहकीकात शुरू की, लेकिन वे उलझ कर रह गए। गायब हुए व्यक्तियों में न तो कोई मालदार आसामी था और न ही कोई दूर दराज से आया हुआ यात्री। उनमें अधिकांशतः औरतें और बच्चे ही थे। इसी बात पर जॉन मूर उलझ गए, क्योंकि अपने धार्मिक विश्वासों के चलते ठग औरतों और बच्चों की हत्या नहीं करते थे।
(iii) रहस्यमय पदचिह्न
(Mysterious footprint)
जॉन मूर को पहले शक हुआ कि यह बाघ का कारनामा है, किंतु बाद में उनका ध्यान भेड़ियों या लकड़बग्घों की तरफ गया। लेकिन संत बावड़ी में किसी अनजाने पशु के पैरों के निशान जॉन मूर को मिले। वह न तो भेड़ियों के समान थे ना ही लकड़बग्घे के पैरों के समान। वे निशान आकृति में गोल थे और उनकी लंबाई भी अपेक्षाकृत अधिक थी। ऐसे निशान सौ देढ़ सौ गज तक साफ-साफ नजर आते थे फिर एकाएक गायब हो जाते थे। गाँव वालों को पक्का यकीन हो गया था कि जरूर कोई प्रेतात्मा लोगों को गायब कर रही है। फिर एक रात 8 साल का एक बच्चा गायब हुआ। जॉन मूर ने उसी रात शिकारी कुत्तों, सिपाहियों और गाँव वालों को लेकर संत बावड़ी और उसके आसपास का इलाका छान मारा। उन्हें आसपास वे रहस्यमय पदचिह्न नजर आए। पिछले पैरों के निशान अगले चिन्हों के मुकाबले कहीं ज्यादा बड़े थे। उनके पीछे धूल की एक लकीर से चली गई थी। आगे चलकर यह निशान गायब हो गए थे।
(iv) सरपंच भीकमसाव ने देखा नर राक्षस
(Sarpanch Bhikamasaw saw a male demon)
दोपहर को जॉन मूर अपने बंगले में अफसरों के साथ बैठे थे एक बूढ़ा दाखिल हुआ वह संत बावड़ी का सरपंच भीकमसाव था। उसने बताया पिछली रात मैंने उस राक्षस को अपनी आँखों से देखा है। वह पहले आदमी जैसा था फिर देखते ही देखते कुत्ता बन गया और एकाएक गायब हो गया। जॉन मूर संजीदा हो गए उन्हें लगा कि सरपंच सही बोल रहा है। उन्होंने अर्दली अब्दुल रहमान से कहा- "बगीचे में चलो" उसी सुबह हल्की बारिश हुई थी। जॉन मूर ने अब्दुल रहमान से घुटनों और कोहनियों के बल चलने को कहा- अब्दुल ने वैसा ही किया। गीली मिट्टी पर चलने से उसके हाथ और पैरों के जो निशान बने वह उन रहस्यमय चिन्हों की तरह ही थे। जॉन मूर आँखें चमक उठी। चिह्नों को देखकर सरपंच भीकमसाव ने कहा- ऐसे ही निशान जंगल में बने पुराने शिव मंदिर के पास मैंने देखे हैं।
(v) शिव मंदिर में भेड़िया से सामना
(Encounter with wolf in Shiva temple)
सिपाहियों के साथ जॉन मूर शिव मंदिर आए। वहाँ जमीन दलदली थी और अब वह रहस्यमय निशान वहाँ काफी तादाद में नजर आए थे। कुछ और भी निशान थे जॉन मूर के मातहत सार्जेंट ऑस्टिन ने बतलाया कि वह भेड़िए के पैरों के नीचे थे। कुछ सिपाहियों ने मंदिर की टूटी हुई मेहराब की तरफ खून की बूंदे और मानव केशो का एक गुच्छा नजर आया। सिपाहियों ने जब मंदिर के अंधेरे गर्भ गृह में झाँका तो कोई गुर्राता हुआ सिपाहियों पर झपटा। वह एक भेड़िया था। जॉन मूर ने तत्काल उसे गोली मार दी। भेड़िया के मुँह में ताजा खून लगा हुआ था। भीतर गर्भ गृह में पिछली रात गायब हुए बच्चे की लाश पड़ी हुई थी। उस पर किसी आदमी के दाँतो के चिन्ह भी थे। कौन था वह राक्षस? क्या सचमुच वही जिसे सरपंच भीकमसाव ने अपनी आँखों से देखा था? लेकिन भेड़िए की उस अंधेरी गुफा में वह क्या करने आया था? ऐसे कई प्रश्न दिमाग में घूमने लगे।
(vi) भेड़िया बालक (नर राक्षस) से सामना
[Encounter with the Wolf Boy (Male Monster)]
अंततः घनी झाड़ियों में दुबका वह नर राक्षस भी सामने आ ही गया। वह एक बालक था सिपाहियों ने उसे घेर लिया था और अपने बर्छे तान कर उसे मारने वाले ही थे कि जॉन मूर चिल्लाए - "खबरदार उसे जिंदा पकड़ना है।" अपने को घिरा पाकर उस मानव भेड़िए ने पूरी ताकत के साथ सिपाहियों पर हमला किया। बड़ी मुश्किल से उस पर काबू पाया गया। आनन-फानन में उसके हाथ पैर रस्सी उसे जकड़ दिए गए।
(vii) मानव भेड़िया का व्यवहार
(Human wolf behavior)
भेड़िया बालक के शरीर से तेज बदबू आ रही थी। सिपाहियों के साथ आए कुत्ते भी उससे दूर भाग गए। उसे जॉन मूर के बंगले तक ले जाया गया। वहाँ उसकी कमर में एक मोटी सी जंजीर बाँधकर एक खंभे से बाँध दिया गया। वह अपने हाथ और पैर समेटकर कुत्तों की तरह लेट गया। उसकी सारी हरकतें भेड़ियों की तरह ही थी। रात को जब उसके पास रोशनी के लिए लैम्प जलाया गया तो अंधेरे के आदी हो चुके उस नर पशु को रोशनी पसंद नहीं आई।
(viii) विलियम स्लीमैन का आगमन
(Arrival of William Sleeman)
मानव भेड़िए के पकड़े जाने की खबर मिलते ही विलियम स्लीमैन जबलपुर से संत बावड़ी आ गए। गौर से देखने पर उन्हें महसूस हुआ कि उस मानव भेड़िये को बचपन में जरूर कोई मादा भेड़िया उसे उठाकर ले गई होगी। जहाँ भेड़ियों की संगत में उसका विकास हुआ होगा। भेड़ियों के साथ रहता हुआ वह बालक खुद भी भेड़िया ही बन गया था। स्लीमैन ने उसके बाल मुण्डवाए। वे उसे नाले पर नहलाने भी ले गए लेकिन वह पानी देखकर बिचका। चार आदमियों ने जब उसे पाने में धकेला तो तत्काल नाले के बाहर आकर खौफनाक तरीके से गुर्राने लगा। तब भेड़ियों जैसे एक विशाल कुत्ते को पानी में उतारा गया तो उसकी देखा देखी वह भी नहाने लगा। नहाने के बाद एक मादा भेड़िया की खाल जब उसके उसे दिखाई गई तो एकाएक वह उत्तेजित हो उठा। उस खाल को उलट-पुलट कर कई बार सूंधा, फिर इतनी जोर से चीखा कि लोगों के दिल दहल गए। स्लीमैन ने उस मानव भेड़िए का नाम 'सियार' रखा। बाद में 'सियार' के भीतर बुद्धि भी विकसित होने लगी। गोंड भीलों की भाषा के कुछ शब्द भी उसने सीख लिया। उस भाषा से बात करने और उसे समझने लायक भी वह बन गया। कुत्तों को भी उसने अपना दोस्त बना लिया। उसे जब गोश्त दिया जाता अपने इन कुत्ते मित्रों के लिए वह हड्डियाँ चुनकर अलग रख देता।
(ix) मानव भेड़िये को देखने दूर दराज से लोग आने लगे
(People came from far and wide to see the human wolf)
'सियार' को देखने के लिए सुदूर होशंगाबाद और नागपुर से भी लोग आने लगे। स्त्रियाँ उसकी पूजा करती, वे उसके सामने दूध और नारियल का ढेर लगा देती, लेकिन वह उस तरफ देखता भी नहीं था। बच्चों को देखते ही उसकी आदिम हिंसक प्रवृत्ति जागृत हो जाती थी।
(x) मानव भेडिए 'सियार' को मिला नया नाम 'मोगली'
(Human wolf jackal gets new name 'Mowgli')
स्लीमैन का तबादला लखनऊ हो गया। स्लीमैन 'सियार' को अपने साथ जबलपुर ले आए थे। वहीं गोंडा में स्लीमैन ने ईसाई धर्म प्रचारकों के हवाले कर दिया। जबलपुर और आसपास के अपने स्मृति खंडों को विलियम स्लीमैन ने जब अपनी कालजयी पुस्तक 'द रेबल्स एंड रिकलेक्शन्स ऑफ इन इंडियन ऑफिशियल' में संजोया तो उस मानव भेड़िए का जिक्र उन्होंने 'द मैन ईटर शेयर ऑफ संत बावड़ी' नामक शीर्षक का एक अध्याय जोड़ा। अंग्रेजी साहित्य के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रुडयार्ड किपलिंग स्लीमैन की स्मृतियाँ 1890 में मिली। भारत में जन्मे रुडयार्ड किपलिंग उन दिनों इंदौर के निकट देवास रियासत में थे। इसी 'सियार' को आधार बनाकर रुडयार्ड किपलिंग ने अपनी रचना तक 'द जंगल बुक' में विश्व विख्यात पात्र 'सियार' का नाम 'मोगली' रखकर रचना की। इस तरह से उस जंगल बॉय मोगली का अस्तित्व मानव समाज के सामने आया और उसे 'मोगली' नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्धि मिली।
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स्रोत― श्री कन्हैया लाल तिवारी की पुस्तिका- 'मोगली से जंगल की बात' (संस्मरण वनग्रन्थ) भाग 1 बसंत पंचमी 13 फरवरी 2005 सिवनी से प्रकाशित।
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