केशव दास रचित– गणेश वन्दना || सरल हिन्दी भावार्थ || Ganesh Vandna (Keshvdas)
बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल,
कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुख को।
बिपति हरत हठि पद्मिनी के पात सम,
पंक ज्यों पताल पेलि पठवै कलुष को।
दूरि कै कलंक-अक भव-सीस-ससि सम,
राखत है केशोदास दास के बपुष को।
साँकरे की साँकरनि सनमुख होत तोरै,
दसमुख मुख जोवैं गजमुख-मुख को।
हिन्दी में सरल भावार्थ– इस वंदना में कठिन काव्य के प्रेत आचार्य 'केशवदास' ने गणेश जी की महिमा का बखान किया गया है। केशवदास श्री गणेश को प्रणाम करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार हाथी का बच्चा किसी भी समय कमल नाल को आसानी से तोड़ देता है, उसी प्रकार गणेश जी अपने भक्तों की भयानक विपत्तियों को किसी भी समय आसानी से दूर कर देते हैं। गणेश जी अपने भक्तों की विपत्तियों और संकटों को इस प्रकार दूर कर देते हैं, जिस प्रकार हाथी का बच्चा कमलिनी के पत्तों को आसानी से तोड़ देता है। गणेश जी अपने भक्तों के दुखों और संकटों को इस प्रकार पाताल लोक भेज देते हैं, जिस प्रकार हाथी का बच्चा आसानी से कीचड़ को मसल देता है। जिस प्रकार भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण कर उसे कलंक से मुक्त कर दिया है, ठीक उसी प्रकार गणेश जी अपने भक्तों को कलंक मुक्त कर देते हैं। वे अपने भक्तों की सदैव रक्षा करते हैं तथा उनके संकट और विपत्तियों को दूर करते देते हैं। गणेश जी अपने भक्तों के संकटों की जंजीर को सामने आकर सरलता से तोड़ देते हैं। इसलिए दशमुख अर्थात् चार मुख वाले ब्रह्मा, एक मुख वाले विष्णु और पाँच मुख वाले शिव दया भाव की दृष्टि से भगवान श्री गणेश की ओर देखते हैं।
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