An effort to spread Information about acadamics

Blog / Content Details

विषयवस्तु विवरण



हिन्दी नाटक का विकास || Development of Hind Play

हिन्दी नाटक -

नाटक एक ऐसी अभिनय परक विधा है जिसमें सम्पूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहल पूर्ण वर्णन होता है। यह एक दृश्य काव्य है। इसका आनन्द अभिनय देखकर लिया जाता है। उन्नीसवी शताब्दी तक लिखे गए हिन्दी नाटकों के दो रूप इस समय मिलते हैं साहित्य और रंग मंचीय आज उन सब नाटकों का मंचन हो रहा है जिन्हें साहित्यिक कहकर मंच से अलग किया गया था।।

हिन्दी में रंगमंचीय नाटकों का आरंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के साथ हिन्दी नाट्य साहित्य की परम्परा आरंभ हो गई जो अब तक चली आ रही है। हिन्दी नाटक साहित्य का काल विभाजन विद्वानों ने अनेक प्रकार से किया है, लेकिन सर्वमान्य रूप से निम्नलिखित विभाजन को स्वीकार किया गया है।
भारतेन्दु काल - 1837 – 1904 ई. तक।
संधि काल – 1904 – 1915 ई. तक।
प्रसाद युग – 1915 – 1933 ई. तक।
वर्तमान युग – 1933 से आज तक।

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिंदी गद्य साहित्य की विधाएँ
2. हिंदी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
3. हिन्दी साहित्य का इतिहास चार काल
4. काव्य के प्रकार
5. कवि परिचय हिन्दी साहित्य

भारतेन्दु युग (1837 – 1904 ई. तक)

इस युग के नाटककारों में भारतेन्दु का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। भारतेन्दु ने देशप्रेंम एवं समाज सुधार की भावना से प्रेरित होकर प्रभावशाली नाटक लिखे। इस काल में नाटकों की रचना का मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ जनमानस को जाग्रत करना और उसमें आत्मविश्वास भरना था। इस युग के अन्य प्रमुख नाटककार हैं- बालकृष्ण भट्ट, लाला श्रीनिवास दास, राधाचरण गोस्वामी, राधाकृष्ण दास, किशोरी लाल गोस्वामी आदि।।

संधिकाल (1904 – 1915 ई. तक)

इस युग में भारतेन्दु काल की धाराएँ बहती भी रही और नवीन धाराओं का उदय भी हुआ। बदरीनाथ भट्ट प्राचीन परम्परा के प्रमुख थे। जयशंकर प्रसाद का आविर्भाव हो गया था। 'करुणालय' इसी संधि कालमें लिखा गया। बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत नाटकों के हिन्दी अनुवाद भी हुए।।

प्रसाद युग (1915 – 1933 ई. तक)

इसे हिन्दी नाटक साहित्य का विकास युग कहा जाता है। प्रसाद का हिन्दी नाटक साहित्य को सुदृढ़ बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है। उनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक है तथा नाट्य विधान सर्वथा नूतन है। प्रसाद युग के नाटकों में समकालीन परिवेश का चित्रण किया गया है। तकनीकि दृष्टि से इस काल के नाटक और अधिक विकसित हुए। इस काल के नाटकों में ऐतिहासिक नाटकों की अधिकता रही। इतिहास और कल्पना के समन्वय से वर्तमान को नवीन दिशा प्रदान की गई। इस युग के प्रमुख नाटककार हैं– दुर्गादत्त पांडे, वियोगी हरि, कौशिक, मिश्र बंधु सुदर्शन, गोविन्द वल्लभ पंत, पांडेय बेचन शर्मा उग्र, सेठ गोविन्द दास, जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद, लक्ष्मी नारायण मिश्र, ब्रजनंदन सहाय आदि।।

वर्तमान युग (1933 से आज तक)

इसे प्रसादोत्तर युग भी कहते हैं। इस युग में समस्याओं से संबंधित नाटक लिखे गए है। मध्यम वर्गीय दाम्पत्य जीवन की समस्याओं का चित्रण किया गया। नए व पुराने जीवन मूल्यों के बीच संतुलन बनाये रखने का प्रयास करते हुए जीवन में विश्वास एवं आस्था बनाये रखने वाले नाटकों का भी सृजन किया गया।।

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी के लेखकोंका परिचय
2. हिंदी भाषा के उपन्यास सम्राट - मुंशी प्रेमचंद

स्वतंत्रता के पश्चात् देश में सांस्कृतिक और कलात्मक नवजागरण तथा पुनरुत्थान की लहर आई, उसमें रंगमंच का भी नवोन्मेष हुआ और उसके व्यापक प्रसार के साथ-साथ नाटक साहित्य की भी पहले से अधिक माँग और रचना हुई। नाट्य प्रदर्शन की विविध कलाओं का विकास हुआ। गीत नाट्य, रेडियो रूपक, प्रहसन आदि भी लिखे जाने लगे। रंगशालाएँ बन और दर्शक-समाज अधिक संगठित हुआ। इस युग के प्रमुख नाटककार हैं- सेठ गोविंद दास, चतुरसेन शास्त्री, किशोरी दास वाजपेयी, गोविंद वल्लभ पंत, हरिकृष्ण प्रेमी, जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद आदि इस युग में ऐतिहासिक, प्रेंम प्रधान, पौराणिक आदि धाराएँ प्रमुख रहीं प्रचलित धाराओं के अतिरिक्त भाव नाट्य और गीति नाट्य भी हिन्दी में मिलते हैं। यह प्रसाद और परवर्ती लेखकों की नई देन है।।

नाटक के प्रमुख तत्व–

नाटक के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं।
1. कथावस्तु
2. पात्र एवं चरित्र चित्रण
3. संवाद या कथोपकथन
4. भाषा-शैली
5. देशकाल एवं वातावरण (संकलन -त्रय)
6. उद्देश्य
7. अभिनेयता।

प्रमुख नाटककार एवं उनके द्वारा लिखे गए नाटक

1. भारतेंदु हरिश्चन्द्र– वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, प्रेंम जोगिनी, विद्या सुन्दर।
2. लाला श्रीनिवासदास– श्री प्रहलाद चरित्र, संयोगिता स्वयंबर।
3. जयशंकर प्रसाद– स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
4. लक्ष्मी नारायण मिश्र– संन्यासी, मुक्ति का रहस्य, सिन्दूर की होली।
5. विष्णु प्रभाकर– डॉक्टर, युगे युगे क्रान्ति, टूटते परिवेश।
6. जगदीशचन्द्र माथुर– कोणार्क, शारदीया, पहला राजा।
7. मोहन राकेश– आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे-अधूरे।
8. उपेन्द्रनाथ अश्क– स्वर्ग की झलक, छठा बेटा, उड़ान।
9. उदयशंकर भट्ट– मुक्ति पथ, दाहर, नया समाज।

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पद्य पाठों को भी पढ़े।
1. पाठ 1 वर दे ! कविता का भावार्थ
2. पाठ 1 वर दे ! अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
3. उपमा अलंकार एवं उसके अंग
4. पाठ 6 'भक्ति के पद पदों का भावार्थ एवं अभ्यास
5. पाठ 12 'गिरधर की कुण्डलियाँ' पदों के अर्थ एवं अभ्यास

आशा है, उपरोक्त जानकारी परीक्षार्थियों / विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
infosrf.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com


Watch related information below
(संबंधित जानकारी नीचे देखें।)



Download the above referenced information
(उपरोक्त सन्दर्भित जानकारी को डाउनलोड करें।)
Click here to downlod

  • Share on :

Comments

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like

अनुतान क्या है? अनुतान के उदाहरण एवं प्रकार || हिन्दी भाषा में इसकी महत्ता || Hindi Bhasha and Anutan

अनुतान के प्रयोग से शब्दों या वाक्यों के भिन्न-भिन्न अर्थों की अनुभूति होती है। भाषा में अनुतान क्या होता है? अनुतान के उदाहरण, प्रकार एवं इसकी महत्ता की जानकारी पढ़े।

Read more



'अ' और 'आ' वर्णों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य एवं इनकी विशेषताएँ

अ और आ दोनों स्वर वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ है अर्थात ये दोनों वर्ण कण्ठ्य वर्ण हैं। इनकी विस्तार पूर्वक जानकारी नीचे दी गई है।

Read more

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (परिचय) : बौद्धकालीन भारत में विश्वविद्यालय― तक्षशिला, नालंदा, श्री धन्यकटक, ओदंतपुरी विक्रमशिला

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबंध : बौद्धकालीन भारत में विश्वविद्यालय― तक्षशिला, नालंदा, श्री धन्यकटक, ओदंतपुरी विक्रमशिला।

Read more

Follow us

Catagories

subscribe