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Grammar (व्याकरण) - वर्ण क्या है? वर्णों की संख्या- हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में। What is Varna? Number of characters- in Hindi Sanskrit and English.

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वर्ण क्या है? मूल रूप में वर्ण वे चिह्न होते हैं जो, हमारे मुख से निकली ध्वनियों के लिखित रूप हैं। किसी भी भाषा के लेखन के लिए यह चिह्नों (वर्णों) का प्रयोग किया जाता है, उनके समूह को वर्णमाला कहते हैं। मुख से उच्चारित ध्वनि संकेतों को जब लिपिबद्ध किया जाता है तो वे वर्णों का रूप धारण कर लेते हैं।

वर्णों की संख्या:-

(1) हिन्दी में :- हिंदी भाषा में वर्णों की संख्या 52 है।

(2) संस्कृत में :- संस्कृत भाषा में वर्णों की संख्या 50 है।

(3) अंग्रेजी में :- अंग्रेजी में वर्णों की संख्या 26 है।

वर्णों का वर्गीकरण :-

हिंदी ध्वनियों का वर्गीकरण

उच्चारण स्थान और उच्चारण की रीति की दृष्टि से किया जाता है। इसी तरह संस्कृत एवं अंग्रेजी में भी वर्णों के भेद निम्नानुसार हैं।

हिंदी/ संस्कृत/ अंग्रेजी वर्णों के प्रकार में :-

(1) स्वर (2)व्यंजन

(1) स्वर :- "स्वर उन वर्णों को कहते हैं जिनका उच्चारण बिना अवरोध या बिना विघ्न (बाधा) के होता है।" उमेश चंद्र शुक्ल

स्वरों के उच्चारण में किसी दूसरे वर्ण की सहायता नहीं ली जाती बल्कि यह व्यंजन वर्णों के उच्चारण में सहायक होते हैं। संस्कृत में कहा जाए तो - "स्वयं राजन्ते इति स्वराः।"

(जो वर्ण स्वयं उच्चारित हो, उन्हें स्वर या (संस्कृत में) 'अच' कहा जाता है।

स्वरों की संख्या :- हिंदी में स्वरों की संख्या 11, संस्कृत में स्वरों की संख्या 13, एवं अंग्रेजी में स्वरों की संख्या 5 है।

हिंदी के स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ,ऋ, ए,ऐ, ओ, औ।

संस्कृत के स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऋ, ऋ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ।

अंग्रेजी के स्वर :- a, e, i, o, u.

स्वरों का वर्गीकरण (स्वरों के प्रकार):-

हिंदी व संस्कृत भाषा के स्वरूप को उनकी उच्चारण अवधि इसे की मात्रा काल कहा जाता है के आधार पर वर्गीकरण इस प्रकार कर सकते हैं।

( टीप:-अंग्रेजी के स्वरों का निम्नानुसार कोई वर्गीकरण नहीं होता है।)

हिंदी के स्वर :- हिंदी में स्वरों के तीन प्रकार हैं।

(1) हृस्व स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में अल्प समय (एक मात्रा काल) लगता है। जैसे - अ,इ, उ, ऋ

(2) दीर्घ स्वर:- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में अपेक्षाकृत अधिक समय (दो मात्रा काल) लगता है। जैसे आ, ई, ऊ

(3) संयुक्त स्वर:- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में अधिक समय (दो मात्रा काल का समय) लगता है किंतु दूसरों के संयुक्त करने से बनते हो, संयुक्त स्वर कहलाते हैं। जैसे- ए (अ+इ), ऐ (अ+ए), ओ (अ+उ), ओ (अ+उ), औ (अ+ओ)

टीप:- उमेश चंद्र शुक्ल ने दीर्घ एवं संयुक्त स्वरों को दीर्घ स्वर ही माना है।)

संस्कृत में स्वर :- संस्कृत में स्वरों के तीन प्रकार हैं।

(1) हृस्व स्वर :- एक मात्रा काल वाले स्वर हृस्व स्वर कहलाते हैं। जैसे अ, इ, उ, ऋ,लृ।

(2) दीर्घ स्वर :- दो मात्रा काल वाले स्वर दीर्घ स्वर कहलाते हैं। जैसे - आ, ई, ऊ, ऋ।

(3) मिश्र या संयुक्त स्वर:- जो स्वर दो या अधिक स्वरों के संयोग से निर्मित होते हैं, मिश्र या संयुक्त स्वर कहलाते हैं। जैसे - ए, ऐ, ओ, औ ।

टीप:- (क) संस्कृत में एक अन्य प्रकार का स्वर माना जाता है जिसमें 3 मात्रा काल का समय उच्चारण में लगता है जिसे 'प्लुत' स्वर कहा जाता है। जैसे 'ओ३म' । मात्रा काल हेतु संकेत ३ या s मुख्य स्वर के बाद लगा देते हैं।

(ख) संस्कृत व हिंदी दोनों भाषाओं के स्वर जब व्यंजन के साथ संयुक्त होकर आते हैं तो इनका स्वरूप बदल जाता है, जिसे मात्रा कहा जाता है।

(ग)अंग्रेजी में a, e, i, o, u स्वयं मात्रा (ध्वनि) का कार्य करती हैं एवं w एवं y किसी शब्द के अंत में आने पर स्वर का कार्य करते हैं।

स्वरों की विशेषताएं :-

(1) स्वरों का स्वतंत्र अकेले उच्चारण किया जा सकता है।

(2) स्वरों के उच्चारण में स्पर्श या घर्ष पर नहीं होता है।

(3) स्वरों का उच्चारण सरलता से किया जा सकता है।

(4) स्वर अधिक समय तक सुनाई देते हैं।

(5)सभी स्वर्ण नांद है।

(6) सभी स्वर आक्षरिक हैं अर्थात इनका क्षरण या छोड़कर अलग-अलग उच्चारित नहीं किया जा सकता।

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R. F. Tembhre
(Teacher)
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