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पाठ 25 'छत्तीसगढ़ी लोकगीत' पुरानी बालभारती पुस्तक कक्षा ३ || Old Class 3rd BALBHARTI book -Chhatisgadi Lokgeet


पाठ 25 'छत्तीसगढ़ी लोकगीत' पुरानी बालभारती पुस्तक कक्षा ३ || Old Class 3rd BALBHARTI book -Chhatisgadi Lokgeet

उप शीर्षक:
पुराने समय में कक्षा 3 में चलने वाली हिन्दी विषय की 'बालभारती' पाठ्यपुस्तक के अंतिम पाठ पाठ 25 'छत्तीसगढ़ी लोकगीत' दिया गया है।

लगभग 80-90 के दशक में मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम की पुस्तकें चलती थी, जिसमें हिन्दी विषय के लिए 'बालभारती' नाम से कक्षा 1 से 5 तक पुस्तकों से अध्यापन कराया जाता था। पुराने समय में जो पाठ, कविताएँ इत्यादि दिये होते थे, वे आज भी हमारे मानस पटल पर जिन्दा हैं। यदा-कदा जब भी कोई पाठ या कविता सुनने या पढ़ने को हमें मिल जाती है तो पुराने विद्यार्थी जीवन की यादें ताजा हो आती हैं।
आइए इसी तरह यहाँ पर कक्षा 3 में चलने वाली हिन्दी विषय की 'बालभारती' पाठ्यपुस्तक के अंतिम पाठ पाठ 25 'छत्तीसगढ़ी लोकगीत' दिया गया है, जिसमें पाठ के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी लोकगीत भी पढ़ने का अवसर मिलेगा। सबसे पहले पाठ को देखें।

पाठ 25 छत्तीसगढ़ी लोकगीत

बच्चों, पिछली कक्षाओं में तुम बुंदेलखण्डी और मालवी लोकगीत पढ़ चुके हो। अब एक छत्तीसगढ़ी लोकगीत पढ़ो। तुम्हें मालूम होगा कि अपने प्रदेश का दक्षिण पूर्व भाग छत्तीसगढ़ कहलाता है। रायगढ़, सरगुजा, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग और बस्तर जिले छत्तीसगढ़ में आते हैं। किसी समय यहाँ छत्तीसगढ़ (राज्य) रहा होगा। इसी कारण इसका नाम छत्तीसगढ़ पड़ा।

छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। राम, कृष्ण, बाल्मीकि, अशोक, नागार्जुन - इन सबका संबंध छत्तीसगढ़ से रहा है।

छत्तीसगढ़ के जन-साधारण की बोली छत्तीसगढ़ी है। छत्तीसगढ़ी बोली में बड़ा समृद्ध लोक-साहित्य बिखरा पड़ा है। उसका उदाहरण प्रस्तुत लोकगीत द्वारा दिया जा रहा है -

लोकगीत

उठे घटा बादर कारी उठे घटा बादर कारी
बूँदन बरसय पिचकारी
कहँवा उनोवब रे कारी बदरिया
कहवन बरसय पिचकारी
चहुँ मुड़ा उनोवय मोर कारी बदरिया
भूवने में बरसय पिचकारी
काकर भिंजय हरा रंग जामा
काकर भिंज गय रंग साड़ी
कान्हा के भींजे हरा रंग जामा
राधा के भींज गय रंग साड़ी
कहँवा सुखोवय हरा रंग जामा
कहँवा सुखोवय रंग साड़ी
पहरे सुखोय हरा रंग जामा
डोंगरी सुखोवय रंग साड़ी

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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
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