शब्द क्या है? शब्दों के प्रकार (उत्पत्ति के आधार पर) – तत्सम एवं तद्भव शब्द
एक या अधिक ध्वनियों अर्थात अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र सार्थक ध्वनि को शब्द कहते हैं। सार्थकता की दृष्टि से भाषा की मौलिक अथवा लघुतम इकाई शब्द है। शब्द तो सार्थक होता ही है अन्यथा वह शब्द नहीं कहा जाएगा। इस तरह से सार्थक ध्वनि को शब्द कहा जाता है। जहाँ कहीं अकेली ध्वनि सार्थक हो उसे अर्थ की दृष्टि से शब्द ही कहा जाता है।
उदाहरण हम, तुम, मैं, में, वह, पानी, मूर्ख आदि अर्थ प्रकट करने वाले हैं अतः यह सार्थक शब्द हैं।
टिप्पणी जब शब्द वाक्य में लिङ्ग, वचन, कारक और क्रिया के नियमों में अनुबंधित होकर प्रयुक्त होता है तब वह शब्द न रहकर पद बन जाता है। वाक्य से परे शब्द, शब्द रहता है किंतु वाक्य में प्रयुक्त होने पर वह पद कहलाता है। वाक्य पदों से मिलकर बनते हैं, शब्दों से नहीं।
वाक्य में प्रयुक्त शब्द की आकृति और रूप में परिवर्तन किया जाता है। इस परिवर्तन के सहायक शब्दांश को व्याकरण की विभक्ति कहते हैं। विभक्ति वाक्य के प्रत्येक पद में गुप्त अथवा प्रकट रूप में विद्यमान रहती है।
शब्दों के प्रकार
सामान्य रूप से देखा जाए तो शब्द दो प्रकार के होते हैं। सार्थक शब्द एवं निरर्थक शब्द भाषा की दृष्टि से निरर्थक शब्द मात्र ध्वनियाँ है और कहने मात्र के लिए शब्द है। भाषा और व्याकरण के संदर्भ में सार्थक शब्दों पर ही विचार किया जाता है। सार्थक शब्दों के प्रकारों को निम्न आधारों पर विभाजित किया गया है।
(1) उत्पत्ति के आधार पर (स्रोत के आधार पर):- उत्पत्ति (स्रोत) के आधार पर शब्दों के पाँच प्रकार हैं– तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी (विदेशज), संकर शब्द।
तत्सम शब्द परंपरा की दृष्टि से हिंदी की उत्पत्ति संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की श्रंखला आती है। इस तरह संस्कृत भाषा ही हिंदी का मूल स्रोत है।
तत्सम वे शब्द हैं जो संस्कृत से आए और बिना किसी विकार अर्थात परिवर्तन के हिंदी भाषा के अंग बन गए। तत्सम शब्द का अर्थ है ज्यों का त्यों अर्थात संस्कृत से ज्यों के त्यों लिए गए शब्द तत्सम शब्द हैं।
उदाहरण– पुस्तक, कवि, वृक्ष, मनुष्य, माता, दुग्ध, सर्प, समुद्र, नदी, सरोवर, सूर्य, चंद्र, बालक, नर, कपि, पवन आदि।
तद्भव शब्द– तद्भव शब्द वे शब्द है जो संस्कृत से उत्पन्न हैं, किंतु पाली, प्राकृत और अपभ्रंश से विकृत होते हुए हिंदी में आए हैं।
उदाहरण– सूरज, चंद्रमा, मानुष, कोयल, आग, काठ, कारज, तिसना, अंधेरा, आधा, अचरज आदि।
तत्सम एवं तद्भव शब्द सूची
तत्सम – तद्भव
अंधकार – अंधेरा
अग्नि – आग
अट्टालिका – अटारी
अर्ध – आधा
अश्रु – आँसू
आश्चर्य – अचरज
उच्च – ऊँचा
कोष्ट – कोठा
क्षीर – खीर
क्षेत्र – खेत
गृह – घर
ग्रंथि – गाँठ
ग्रहक – गाहक
घृत – घीं
दुर्बल – दुबला
धूम्र – धुँआ
नग्न – नंगा
नृत्य – नाच
पत्र – पत्ता
पक्व – पक्का
परीक्षा – परख
उज्जवल – उजाला
उत्थान – उठाना
एकत्र – इकट्ठा
कमल – कँवल
काष्ठ – काठ
कर्ण – कान
कर्म – काम
कुंभकार – कुम्हार
कार्य – काज
कुपुत्र – कपूत
कूप – कुँआ
कोकिला – कोयल
चँद्र – चाँद
चक्र – चाक
छिद्र – छेद
जिह्वा – जीभ
ज्येष्ठ – जेठ
जीर्ण – झीना
ताप – ताव
दंड – डंडा
दशम – दसवाँ
दधि – दही
दुग्ध – दूध
द्वौ – दो
बाहु – बाँह
भिक्षा – भीख
भातृ – भाई
मस्तक – माथा
रात्रि – रात
लौहकार – लोहार/लुहार
वृद्ध – बूढ़ा
विकार – बिगाड़
वधू – बहू
सत्य – सच
सूत्र – सूत
हस्त – हाथ
शलाका – सिलाई
खर्पर – खपरा/खपरैल
तिक्त – तीखा
हरिद्रा – हल्दी
गोमल – गोबर
उष्ट्र – ऊंट
पुन्य – पुन्न
वचन – बचन
पद – पैर
परिश्व – परसों
अद्य – आज
उलूक – उल्लू
धैर्य – धीरज
अंध – अंधा
अंगरक्षक – अंगरखा
अक्षी –आंख
वट – वृक्ष या बड़
अज्ञान – अजान
आश्रय – आसरा
कूप – कुँआ
हस्त – हाथ
झटिति – छठ
स्वर्णकार – सुनार
कुष्ठ – कोढ़
श्वसुर – ससुर
स्वजन – सजन
प्रहरी – पहरी
त्वरित – तुरंत
तृण – तिनका
चित्रकार – चितेरा
कपाट – किवाड़
शैया – सेज
श्रृगाल – सियार
पिप्पल – पीपल
चर्मकार – चमार
श्रृंगार – सिगार
सृष्टि – सेठ
घोटक – घोड़ा
स्वर्ण – सोना
वानर – बंदर
कोटि – करोड़
लक्ष – लाख
एकादश – ग्यारस
इष्टिका – ईंट
कदम्ब – कदम
हास्य – हास
ग्रंथि – गांठ या गठान
खट्वा – खाट
ताम्र – तांबा
पौत्री – पोती
पश्चाताप – पछतावा
द्विगुण – दोगुना या दुगुना
नव्य – नया या नव
बधिर – बहरा
चतुर्दश – चौदह
कुब्ज – कुबड़ा
निद्रा – नींद
मृत्यु – मौत
नृत्य – नाच
पुत्रवधु – बहू
मनुष्य – मानुष
स्पर्श – परस
मयूर – मोर
प्रहर – पहर
मस्तक – माथा
मातुल – मामा
वैराग्य – विराग
मुक्ता – मोती
संध्या – सांझ
मण्डूक – मेंढक
स्वामी – साईं
साक्षी – साखि
सौभाग्य – सुहाग
ह्रदय – हिय
शिक्षा – सीख
शाप – श्राप
स्मरण– सुमिरन
हस्ती – हाथी
श्रृंगार – सिंगार
नासिका – नाक
पंच – पाँच
अमृत –अमिय
अमावस्या – अमावस
आश्चर्य – अचरज
कृष्ण – कान्हा
कूप – कुआँ
आकाश – आसमान या अकास
स्तंभ – खंभा
अम्लक – आँवला
क्षण –छन
क्षेत्र – खेत
अक्षर – आखर
उपालंभ – उलाहना
गृहिणी– घरवाली
चंद्रिका – चाँदनी
छत्र – छाता
कंकण – कंगन
यत्न – जतन
काक – काग
योगी – जोगी
युग – जुग
कपोत – कबूतर
जिह्वा – जीभ
कंटक – काँटा
कृषक – किसान
यौवन – जोबन
प्रस्तर – पत्थर
पाषाण –पाहन
दंश – डंक
पक्ष – पंख
पक्षी – पंछी
तैल – तेल
स्तन – थन
स्थल – थल
दरिद्र – दारिद
बत्स – बछड़ा
वाद्य – बाजा
धरित्री – धरती
विद्युत – बिजली
धूम्र – धुआँ
वृषभ – बैल
भक्त – भगत
वाष्प – भाप
भ्रमर – भँवरा या भौरा
स्नेह – नेह
मक्षिका – मक्खी
नयन – नैन
मित्र – मीत
मर्यादा – मर्जादा
अर्द्धतत्सम शब्द :– तत्सम एवं तद्भव शब्दों के अतिरिक्त इसी से संबंधित अर्द्धतत्सम शब्द भी होते हैं।
ऐसे शब्द जो ना तो पूरी तरह से तत्सम हैं और ना तो तद्भव हैं उन्हें अर्द्धतत्सम शब्द कहते हैं।
तत्सम – अर्द्धतत्सम – तद्भव
अग्नि – अगिन – आग
अक्षर – अच्छर – आखर
वत्स – बच्छ – बच्चा
चर्ण – चूरन – चूरा या चूर
कार्य – कारज – काम या काज
ह्रदय – हिरदय – हिय
अर्पण – अरपन – अर्पित
अधर्म – अधरम – अधम
यत्न – यतन – जतन
प्रस्तर – पाथर – पत्थर
पुण्य – पुन्य – पुन्न
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