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'गिरधर की कुंडलियाँ' पदों का अर्थ एवं अभ्यास | Class 8th Hindi Path 12 Girdhar ki kundliyan

पाठ परिचय- गिरधर की इन कुंडलियों में लोक व्यवहार की अनुभवजन्य एवं उपयोगी बातें हैं। इन्हें समझकर हम अपने जीवन को सहज और बेहतर बना सकते हैं।

दौलत पाय न कीजिए, सपने में अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाँउ न रहत निदान।।
ठाँउ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही सौं कीजै।।
कह गिरधर कविराय, अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निस दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।।

शब्दार्थ- दौलत = सम्पत्ति;
पाय = प्राप्त करके;
अभिमान = घमण्ड;
ठाँउ = स्थिर;
निदान = अन्त में;
जीयत = जीवित रहते हुए;
जग = संसार;
जस = यश;
लीजै = प्राप्त कर लीजिए;
सुनाय = सुनाकर;
सौं = से;
कीजै = कीजिए;
घट = कम;
तौलत = तोलते हैं;
पाहुन = मेहमान, अतिथि;
निसिदिन चारि = चार रात-दिन की, थोड़े समय की;
सब ही के = सभी के पास।

संदर्भ- प्रस्तुत कुंडलियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ 'गिरधर की कुंडलिया' से अवतरित है। इसके रचयिता कविवर गिरधर हैं।

प्रसंग- कवि गिरधर ने इन कुण्डलियों के माध्यम से बताया है कि धन सम्पत्ति का मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो थोड़े समय की ही होती है।

व्याख्या- हमें धन-संपत्ति प्राप्त करके स्वपन में भी घमंड नहीं करना चाहिए। यह सम्पत्ति तो जल के समान चंचल है, बहुत थोड़े समय रहती है। अन्त में यह एक स्थान पर (किसी एक व्यक्ति के पास) नहीं रहती है, क्योंकि सम्पत्ति स्थिर नहीं रहती, इसलिए इस संसार में अपने जीवन काल में यश प्राप्त करो। सभी से मधुर वचन बोलिए और सभी के साथ विनयपूर्वक व्यवहार कीजिए। महाकवि गिरधर कहते हैं कि धन-सम्पत्ति सभी पास आकर उनकी परीक्षा लेती है। जो इसे प्राप्त करके कपट का व्यवहार करते हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह संपत्ति तो चार दिन रात (थोड़े समय) की मेहमान (अतिथि) है; यह सभी के पास सदा नहीं रहती है।

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पद्य पाठों को भी पढ़े।
1. पाठ 1 वर दे ! कविता का भावार्थ
2. पाठ 1 वर दे ! अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
3. उपमा अलंकार एवं उसके अंग
4. पाठ 6 'भक्ति के पद पदों का भावार्थ एवं अभ्यास

गून के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय।
जैसे कागा कोकिला, सबद सुनै सब कोय।।
सब सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।
दोऊ को रंग एक, काग सब भए अपावन।।
कह गिरधर कविराय, सुनो हो ठाकुर मन के।
बिनु गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के।।

शब्दार्थ गुन = गुण;
गाहक = ग्रहण करने वाले;
सहसहजारों; लहै = ग्रहण करते हैं;
न कोय = कोई भी नहीं;
कागाकौआकोकिला = कोयल;
सबद = वाणी, बोली;
सब कोयसभी लोग: सबै सभी को सुहावन = अच्छी लगती है;
अपावन = अपवित्र;
ठाकुर मन के = मन के स्वामी;
गुन = गुणों के, लाभकारी होने से, गुण के अच्छे के।

सन्दर्भ- पूर्वानुसार।

प्रसंग- कवि बताते हैं कि गुणकारी (लाभदायक) अथवा अच्छी वस्तु (बात) के हजारों लोग ग्राहक होते हैं।

व्याख्या- महाकवि गिरधर कहते हैं कि गुणों के (अच्छी बात के) ग्रहण करने वाले लोग तो हजारों की संख्या में होते हैं। बिना गुण की वस्तु को (जो वस्तु अच्छी नहीं है, उसे ) कोई भी नहीं लेता। जिस तरह कौआ और कोयल के शब्द को (वाणी को) तो सभी सुनते ही हैं लेकिन कोयल की वाणी सभी को अच्छी लगती है। इन दोनों-कौआ और कोयल का रंग एक-सा होता है, परन्तु सभी कौए अपवित्र हो गये। हे मन के स्वामी (मनमौजी) ! कवि गिरधर कहते हैं कि आप सभी इस एक बात को सुन लीजिए कि कोई भी व्यक्ति – बिना गुण वाली (खराब) वस्तु को ग्रहण नहीं करेगा। गुणकारी (अच्छी) वस्तु के ग्राहक तो हजारों लोग होते हैं।

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पाठों को भी पढ़ें।
1. पाठ 2 'आत्मविश्वास' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
2. मध्य प्रदेश की संगीत विरासत पाठ के प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन
3. पाठ 8 अपराजिता हिन्दी (भाषा भारती) प्रश्नोत्तर एवं भाषाअध्ययन
4. पाठ–5 'श्री मुफ़्तानन्द जी से मिलिए' अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं भाषा अध्ययन)
5. पाठ 7 'भेड़ाघाट' हिन्दी कक्षा 8 अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
6. पाठ 8 'गणितज्ञ ज्योतिषी आर्यभट्ट' हिन्दी कक्षा 8 अभ्यास (प्रश्नोत्तर और व्याकरण)
7. पाठ 10 बिरसा मुण्डा अभ्यास एवं व्याकरण
8. पाठ 11 प्राण जाए पर पेड़ न जाए अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)

बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित्त देइ।।
साही में चित्त देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोय, चित्त में खता न पावै।।
कह गिरधर कविराय, यह करू मन परतीती।
आगे को सुख समुझि, होय बीती सो बीती।।

शब्दार्थ- बीती ताहि = जो बात (घटना) समाप्त हो गई, घट गई उसे;
बिसारि दे = भुला दे;
आगे की सुधि लेइ = इसमें आगे विचार करके आचरण (व्यवहार) करना चाहिए, खोज खबर लेनी चाहिए;
जो बनि आवै = जो भी कुछ हो सके उसे;
सहज में = सरलता से, आसानी से;
ताही में = उसी में;
चित्त देइ = मन लगाना चाहिए;
बात जोई बनि आवै = जो भी बात बन सके;
दुर्जन = दुष्ट व्यक्ति;
कोय = कोई भी;
हँसे न = हँसी न ठड़ा सके;
खता = दोष या चूक;
पावै = प्राप्त होने दो;
यहै = वही;
मन परतीती = मन में विश्वास के साथ;
करू = कीजिए;
आगे को = भविष्य में (आने वाले समय में);
समुझि = समझकर;
बीती सो बीती = जो बात (घटना) बीत गई (हो गई), सो हो गई।

सन्दर्भ- पूर्वानुसार।

प्रसंग- जो बात (घटना) घट चुकी, उसके ऊपर अधिक सोच-विचार नहीं करना चाहिए, कवि को ऐसी सलाह है।

व्याख्या- जो बात हो चुकी उसे भुला देना चाहिए, हमें फिर भविष्य के बारे में सोच-विचार (खोज खबर लेनी चाहिए) करना चाहिए। जो बात (काम) आसानी से हो सके, उसमें ही अपने मन को लगाना चाहिए। जो भी बात (काम) बन सके (हो सके) तो उसे ही मन लगाकर करना चाहिए। इस तरह कोई भी दुष्ट व्यक्ति हमारी हँसी भी नहीं उड़ा सकेगा और मन में कोई भी चूक अथवा दोष भी नहीं आ सकेगा। कविवर गिरधर कहते हैं कि उस काम को मन में विश्वास के साथ कीजिए। भविष्य में होने वाले सुख की बात को समझकर उस बात को भुला दीजिए, जो बीत चुकी है, घट चुकी है।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. व्याकरण क्या है
2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
4. स्वर के प्रकार
5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
6. व्यंजनों का वर्गीकरण
7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

अभ्यास
बोध प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर-
पद 1. दौलत - सम्पत्ति;
ठाँऊस्थान, स्थिर;
पाहुनअतिथि, मेहमान;
निदान = अन्त में, कारण, उपचार;
निस= रात;
अभिमान : घमण्ड;
जस= यश;
जग संसार, दुनिया;
जियत = जीवित रहना, जीते रहना।

पद 2. गाहक = ग्राहक, ग्रहण करने वाला;
कोकिला = कोयल;
सहस = हजार;
बिनु = बिना;
लहै = प्राप्त कर सकना;
ठाकुर मन के = मन के मालिक, मन के स्वामी।

पद 3. ताहि उसको;
खता= चूक, गलती, कमी;
परतीती = विश्वास, भरोसा;
सुधि लेइ = खोज खबर लेनी चाहिए, सोच-समझकर आचरण करना चाहिए;
बिसारि दे= भुला दे।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. लिपियों की जानकारी
2. शब्द क्या है
3. रस के प्रकार और इसके अंग
4. छंद के प्रकार– मात्रिक छंद, वर्णिक छंद
5. विराम चिह्न और उनके उपयोग
6. अलंकार और इसके प्रकार

प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए-
(क) हमें दूसरे व्यक्तियों से किस प्रकार के वचन बोलना चाहिए?
उत्तर- हमें दूसरे व्यक्तियों से विनयपूर्वक मीठे वचन बोलने चाहिए।
(ख) कोयल सबको अच्छी क्यों लगती है ?
उत्तर- कोयल सबको अच्छी लगती है क्योंकि वह मिठास भरी बोली बोलती है।
(ग) धनी व्यक्ति को क्या नहीं करने को कहा है ?
उत्तर- धनी व्यक्ति को अपने धन का घमण्ड नहीं करना चाहिए।
(घ) ‘गुन के गाहक’ से क्या आशय है ?
उत्तर- गुण (अच्छी बात या लाभकारी वस्तु) के ग्रहण करने वाली सभी होते हैं। गुण रहित (खराब और अलाभकारी) वस्तु को कोई भी स्वीकार नहीं करता है।
(ङ) बीति ताहि …… कहकर कवि ने कौन सी सलाह दी है?
उत्तर- कवि ने सलाह दी है कि जो बात (घटना) घट चुकी है, उसे भुला देना ही उचित है। इससे आगे सोच-समझकर व्यवहार करना चाहिए।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. शब्द क्या है- तत्सम एवं तद्भव शब्द
2. देशज, विदेशी एवं संकर शब्द
3. रूढ़, योगरूढ़ एवं यौगिकशब्द
4. लाक्षणिक एवं व्यंग्यार्थक शब्द
5. एकार्थक शब्द किसे कहते हैं ? इनकी सूची
6. अनेकार्थी शब्द क्या होते हैं उनकी सूची
7. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (समग्र शब्द) क्या है उदाहरण
8. पर्यायवाची शब्द सूक्ष्म अन्तर एवं सूची

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) धन पाकर हमें अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर- धन पाकर हमें अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि धन तो चंचल है, कभी धन आ जाता है, तो कभी चला जाता है। सम्पत्ति किसी पर भी सदा के लिए नहीं रहती। यह तो बहते हुए जल के समान होती है जिस प्रकार जल एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता उसी तरह धन कभी भी एक व्यक्ति के पास सदा स्थिर बनकर नहीं रहता। इसे स्थिर बनाकर रखने का कोई उपचार भी नहीं है। यह धन तो चार दिन-रात का मेहमान होता है। इसलिए मीठा बोलकर, विनयपूर्वक सबके साथ व्यवहार करना चाहिए।हमें प्रेमपूर्वक सन्तुलित बात करनी चाहिए। धन पर घमण्ड करना घाटे का (हानि का) सौदा है।

(ख) कोयल और कौए की वाणी में क्या अन्तर है?
उत्तर- कोयल और कौआ दोनों ही काले रंग के पक्षी हैं। इनकी वाणी को सभी लोग सुनते हैं लेकिन कोयल की वाणी सभी को अच्छी लगती है, सुहाती है। अपनी कर्कश बोली के कारण कौए सबके द्वारा अपवित्र और त्याज्य माने गये हैं। कोयल की वाणी मीठी होने से सब लोगों द्वारा उसकी मिठास की प्रशंसा की जाती है। सभी लोग उसके ग्राहक हैं। कोयल की मधुर वाणी हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।

(ग) बीती बातों को भुलाने से क्या लाभ तथा क्या हानि है ?
उत्तर- बीती बातों को भुलाने से ही लाभ है क्योंकि भविष्य में लाभ होने की बात को ठीक तरह से सोच-समझ लेने से घटित घटना को भुला देने में ही भलाई है। घटित घटना से हमें निराश और हतोत्साहित नहीं हो जाना चाहिए। आगे के कार्य को सोच-समझकर कर, मन लगाकर करना चाहिए। फिर जो आसानी से हो सके उसे करना चाहिए। मन लगाकर काम करने से उसमें सफलता मिलती है। दुष्ट व्यक्ति भी फिर हँसी नहीं उड़ा पाते। मन में कोई चूक (कभी गलती) न होने से, मन में पक्का विश्वास करके अपने काम में जुट जाना चाहिए। इससे भविष्य में सफलता मिलती है। भविष्य में सुख प्राप्ति की आशा होती है। अतः जो घटना (बात) बीत गई (घटित हो गई) उसे भुला देने में ही लाभ है।

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार

प्रश्न 4. ‘लोक व्यवहार की बातें’ इन कुण्डलियों में हैं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
(1) किसी भी व्यक्ति को अपने धन का घमण्ड सपने में भी नहीं करना चाहिए। यह धन कभी आ जाता है तो कभी चला जाता है।
(2) हमें मीठे वचन बोलने चाहिए। मधुर व्यवहार से और विनयपूर्वक बोलने से हमें संसार में यश की प्राप्ति होती है। जो लोग घमण्ड रहित होकर, मधुर वाणी बोलकर व्यवहार नहीं करते, वे निश्चय ही घाटे का सौदा प्राप्त करते हैं।
(3) धन का घमण्ड उचित नहीं क्योंकि धन सदा किसी के पास नहीं रहता।
दृष्टव्य है–(i) दौलत पाय न कीजिए सपने में अभिमान।
(ii) मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही सौं कीजै।
(iii) पाहुन निस दिन चारि, रहत सब ही के दौलत।

(4) मधुर और मीठे बोल सभी को अच्छे लगते हैं। ‘सबद सुनै सब कोय, कोकिला सबै सुहावन।’
(5) घटित घटना को भुला देना ही लाभकारी है। भविष्य में सबका भला हो, इस भावना से उचित व्यवहार की बात को सोच समझकर बीती बात भुला देनी चाहिए। मन में किसी भी प्रकार चूक न रखते हुए मन पर पूरा विश्वास रखते हुए आगे का उचित व्यवहार अपनाना चाहिए। इसी में भलाई है, सुख है। ‘बीती ताहि बिसारे दे, आगे की सुधि लेइ।

प्रश्न 5.कुण्डलियाँ छन्द के अन्य उदाहरण छाँटकर उसकी मात्राओं की गणना कीजिए।
उत्तर- कुंडलियां छंद का उदाहरण-
s s s । । s । s । । s । । । । s । =24
साईं बैर न कीजिए गुरु, पण्डित कवि यार,
s s । । s s । s s । । s । । s । =24
बेटा बनिता, पौरिया यज्ञ करावन हार।।
s । । s । । s । s । s s s s s = 24
यज्ञ करावन हार, राज मंत्री जो होई।
s । । s s s । s । s । s । ss = 24
विप्र पड़ौसी वैद्य आपकी तपै रसोई
। । । । । । s । । । । s । । । । s s = 24
कह गिरधर कविराय जुगन सौं यह चलि आई।
। । s । । s । । । ।s । । ss ss
इन तेरह को तरह दिये, बनि आबै साईं।
लक्षण– कुण्डलियाँ के छ: चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। इस छन्द के आरम्भ में दोहा और अन्त में रोला छन्द होता है। इस छन्द की एक विशेषता यह भी है कि जो शब्द इसके आरम्भ में आता है, वही इसके अन्त में भी आता है।

प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द वर्ग पहेली से छाँटकर लिखिए दौलत, संसार, अभिमान, पाहुन।
उत्तर-
शब्द = पर्यायवाची शब्द
दौलत = सम्पदा, धन।
संसार = लोक, जग।
अभिमान = गर्व, दर्प।
पाहुन = अतिथि, मेहमान।।

इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिंदी गद्य साहित्य की विधाएँ
2. हिंदी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
3. हिन्दी साहित्य का इतिहास चार काल
4. काव्य के प्रकार
5. कवि परिचय हिन्दी साहित्य
6. हिन्दी के लेखकोंका परिचय

आशा है, उपरोक्त पाठ विद्यार्थियों के लिए ज्ञानवर्धक एवं परीक्षापयोगी होगी।
धन्यवाद।
RF Temre
infosrf.com

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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    May name is jaya koshal

    Posted on July 26, 2021 09:07PM

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    May name is jaya koshal

    Posted on July 26, 2021 09:07PM

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    Posted on July 26, 2021 09:07PM

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