किशोरावस्था का स्वरूप || Form of adolescence || Kishoravastha ka swaroop || CTET and TET Exam
किशोरावस्था में शरीर में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं। विशेषकर उनकी मानसिक शक्तियों का सर्वोत्तम और अधिकतम विकास हो।
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किशोरावस्था में शरीर में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन होते हैं। विशेषकर उनकी मानसिक शक्तियों का सर्वोत्तम और अधिकतम विकास हो।
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बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र के अंतर्गत किशोरावस्था एवं किशोरावस्था की विशेषताओं के बारे में जानना आवश्यक है।
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Childhood begins after infancy. वास्तव में मानव जीवन का वह स्वर्णिम समय है जिसमें उसका सर्वागीण विकास होता है।
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बालक के जन्म के पश्चात 5 वर्ष की अवस्था शैशवकाल होती है। बालक की इस अवस्था को “बालक का निर्माण काल” माना जाता है।
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गर्भावस्था काल लगभग 9 माह या 280 दिन का होता है। यह अवस्था बालक के गर्भधारण से उसके जन्म तक अवधि मानी जाती है।
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विकास या मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं का वर्गीकरण- परम्परागत एवं आधुनिक विचारधारा के आधार पर किया गया है।
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वृद्धि, विवृद्धि या अभिवृद्धि तीनों समानार्थक शब्द है। जिसका अर्थ शारीरिक शिराओं, अवयवों एवं विभिन्न संस्थानों में बढ़ाव को प्राप्त करने से होता है एवं उनके आकार और परिमाण में परिवर्तन होने से है। शरीर में बढ़ाव होने से शरीर के आंतरिक एवं बाह्य अंगों के विकास से है। Growth, growth or growth are all three synonyms. Which means attaining physical veins, components and elongation in different institutions and changes in their size and magnitude. The increase in the body is due to the development of internal and external organs of the body.
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(1) आकार में परिवर्तन (Change in the Size):–
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■■ उद्योतन का अर्थ (Meaning of Udyotan) :-
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(1) बालक के जन्म से पूर्व एवं जन्म के बाद से परिपक्व होने तक बालक में होने वाले परिवर्तनों की प्रकृति क्या है?
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