Garbhavastha kal ke charan | गर्भावस्था काल की अवधियाँ
गर्भावस्था का काल लगभग 9 माह या 280 दिन का होता है। यह अवस्था बालक के गर्भधारण से उसके जन्म तक अवधि मानी जाती है। बालविकास का अध्ययन गर्भकाल से ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि शिशु के विभिन्न अंग प्रत्यंगों का निर्माण, उसके मस्तिष्क व मानसिक शक्तियों का विकास गर्भकाल में ही पूरा हो जाता है। बालक के शरीर के समस्त अंग मानव स्वरूपानुसार इसी अवस्था में निर्मित हो जाते हैं। वैसे तो गर्भावस्था काल में शिशु में विकास की गति तीव्र होती है। गर्भकाल के दौरान माता का खान-पान, उसका रहन-सहन, उसके साथ किया जाने वाला व्यवहार आने वाले शिशु पर गहरा प्रभाव डालता है। अतएव गर्भवती माता के साथ मधुर व्यवहार के साथ-साथ उसके खान-पान का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
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The period of pregnancy is around 9 months or 280 days. This stage is considered to be the period from the child's conception to her birth. The study of child development is considered to be important from the womb itself, because the formation of different organs of the infant, development of his brain and mental powers are completed in the pregnancy itself. All the parts of the child's body are produced in this state according to human form. By the way, during pregnancy, the pace of development in the baby is fast. During pregnancy, the mother's diet, her way of life, her behavior, have a profound effect on the baby. Therefore, special care should be taken of the pregnant mother along with her sweet behavior as well as her food.
गर्भावस्था को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित करते हैं। (From the point of view of study, pregnancy is divided into three parts.)
(I) डिम्बा वस्था (Ovulation)-
पिता के शुक्राणु और माता के अण्डाणु के संयोग से डिम्ब का निर्माण होता है। इसकी अवधि दो सप्ताह अर्थात 15 दिन तक रहती है। इस दरम्यान डिम्ब का आकार अंडे के समान होता है। निषेचन किया पूर्ण होने पर युग्मनज जिसे डिम्ब भी कहा जाता है वह गर्भाशय की भक्ति में फँस जाता है और इसका विकास होने लगता है। गर्भनाल के द्वारा माँ के रुधिर प्रवाह से डिम्ब अपना आहार प्राप्त करता है। यह अवस्था डिण्बावस्था कहलाती है।
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The ovum is formed by the combination of the father's sperm and the mother's ova. Its duration lasts for two weeks i.e. 15 days. Meanwhile, the size of the ovum is similar to that of an ovum. When fertilization is complete, the zygote, also called the ovum, becomes trapped in the uterine sacrum and begins to develop. The ovum receives its food from the mother's blood flow through the umbilical cord. This stage is called ovulation.
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(ii) पिण्डावस्था (Pindavastha)-
तीसरे सप्ताह से दूसरे महीने के अंत तक शिशु का आविर्भाव पिण्डावस्था में रहता है। इसी अवस्था में पिण्ड मानव आकृति धारण करने लगता है। इस अवस्था में पिण्ड में तीव्र गति से विकास होता है। जब पिण्ड की अवधि 6 सप्ताह की हो जाती है तो उसमें हृदय की धड़कने प्रारंभ हो जाती हैं। इस अवस्था में गर्भनाल का फैसला होता है और पिण्ड में स्नायुमण्डल, ज्ञानतन्तु, त्वचा, ग्रंथियाँ, केश, फेफड़े, जिगर, श्वास नली आदि का निर्माण होता है। यह अवस्था बालक के शारीरिक अंगों का उचित निर्माण हेतु अति आवश्यक है।
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From the third week to the end of the second month the baby's manifestation remains in the infertility. At this stage, the body begins to bear human shape. In this state, the body grows rapidly. When the duration of the body becomes 6 weeks, the heart starts beating in it. At this stage, the placenta is decided and the body consists of the formation of nervous system, gynecology, skin, glands, hair, lungs, liver, respiratory tract etc. This stage is very important for proper construction of the child's body parts.
(iii) भ्रुणावस्था (Embryo)-
यह अवस्था 3 माह से 9 माह तक की अवस्था होती है इस अवस्था में बालक के कोई नवीन अंगों का निर्माण नहीं होता बल्कि पिण्डावस्था में निर्मित अंगों का विकास होता है पूरे गर्भकाल की स्थिति में माता से शिशु का संबंध गर्भनाल के माध्यम से रहता है और शिशु इसी से अपना संपूर्ण आहार प्राप्त करता है। यदि माता को पर्याप्त संतुलित आहार प्रदान किया जाता है तो आने वाले शिशु को भी वे भोजन के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं व वह स्वस्थ जन्म लेता है और आगामी जीवन में भी उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास तीव्र गति से होता है। यदि गर्भकाल के दरम्यान माता कुपोषित रहती है तो उसके जन्म लेने वाला शिशु भी कुपोषित होकर विभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार हो जाता है व उसका समुचित विकास नहीं हो पाता।
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This stage is the period of 3 months to 9 months In this stage, no new organs of the baby are formed, but the organs formed in the infertile are developed throughout the entire pregnancy. In the case of a child, the relation of the mother to the child remains through the umbilical cord and from this the child receives its complete diet. If the mother is provided with a sufficiently balanced diet, then the incoming baby also gets the nutrients of those food and he takes a healthy birth and his physical and mental development takes place at a rapid pace in the coming life as well. If the mother remains malnourished during pregnancy, then the child born to it also becomes malnourished and succumbs to various diseases and does not develop properly.
गर्भावस्था की प्रमुख विशेषताएँ (Key features of pregnancy)–
बालविकास के अध्ययन हेतु गर्भावस्था में शिशु के संदर्भ में अनिवार्य जानकारी होना आवश्यक है अतः इस अवस्था की अनिवार्य विशेषताओं की जानकारी बाल विकास विज्ञान या शिक्षक या माता-पिता को होना आवश्यक है। गर्भावस्था काल की विशेषताएँ है।
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For the study of child development, it is necessary to have the necessary information regarding the infant in pregnancy, so the essential characteristics of this stage is to be known to the child development science or teacher or parents. Features of pregnancy period.
1. माता के अण्ड उत्सर्जन के पश्चात स्पर्म से मिलन पश्चात डिम्ब का निर्माण होता है।
2. डिम्ब माता के गर्भाशय में जाकर उसकी दीवारों से चिपक जाता है फिर पिण्ड के रूप में मानव आकृति ग्रहण करता है।
3. पिण्डावस्था में बालक के समस्त शारीरिक अंगों का निर्माण होता है।
4. पिण्डावस्था में अवस्था में शिशु का निर्माण तीव्र गति से होता है।
5. भ्रुणावस्था मे निर्मित शारीरिक अंगों का विकास होता है।
6. बाल का विकास का प्रथम सोपान गर्भावस्था होती है।
7. माता से ही संपूर्ण आहार बालक प्राप्त करता है।
8. इस अवस्था में माता पर पड़ने वाले प्रभावों का असर सीधे गर्भस्थ शिशु पर होता है।
9. माता की मनःस्थिति का प्रभाव आने वाले बालक की मानसिकता पर भी पड़ता है।
10. गर्भावस्था काल माता की उचित देखभाल का समय होता है, इस समय समस्त टीके, स्वास्थ्य जाँच एवं स्वच्छता का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
11. इस अवस्था में होने वाले परिवर्तन मुख्यतः शारीरिक ही होते हैं।
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1. The ovum is formed after meeting the sperm after the mother's ova emission.
2. The ovum goes into the mother's uterus and sticks to its walls, then takes the human form in the form of a body.
3. All the body parts of a child are formed in a young age.
4. In infancy, the baby is formed at a rapid rate.
5. Body parts produced in the abscess state develop.
6. First step of pregnancy is the development of hair.
7. The child receives the entire food from the mother.
8. In this state, the effects on the mother directly affect the fetus.
9. Mother's mental state also affects the mentality of the child to come.
10. Pregnancy period is the time of proper care of mother, at this time all vaccines, health check and hygiene needs to be taken care of.
11. Changes in this state are primarily physical.
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गर्भावस्था के अध्ययन का महत्व (Importance of pregnancy study)–
बालविकास में गर्भकाल का अध्ययन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की अन्य अवस्थाओं का। गर्भकाल में चूँकि बालक का शारीरिक निर्माण होता है उसकी मानसिक ग्रंथियों का निर्माण होता है। इस अवस्था में बालक के निर्माण संबंधि आवस्यक जानकारियाँ प्राप्त करके समुचित व्यवस्था की जाती है जिससे जन्म के पश्चात शारीरिक मानसिक विकास के साथ-साथ सामाजिक, संवेगात्मक, भाषाई विकास अच्छी तरह से कर सके। इस काल में माता का सीधा संबंध शिशु से रहता है अतः शिशु पर माता की मनःस्थिति, उसका व्यवहार, उसका खानपान, आदतें, आसपास का परिवेश का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है अतः बाल विकास की दृष्टि से इस अवस्था का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
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Studying pregnancy in child development is as important as other stages. Since the child is physically formed in the womb, its mental glands are formed. In this stage, proper arrangements are made after obtaining the necessary information related to the construction of the child, so that after the birth, physical mental development as well as social, emotional, linguistic development can be done well. During this period, the mother has a direct relationship with the baby, so a clear influence of the mother's mood, her behavior, her diet, habits, the surrounding environment is seen on the baby, so the study of this stage becomes very important from the point of view of child development.
आशा है, शिक्षक चयन परीक्षाओं की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों के लिए यह लेख काफी उपयोगी साबित होगा। अधिक जानकारी के लिए नीचे दिए गए वीडियो को अवश्य देखें।
धन्यवाद।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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