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हिंदी गद्य साहित्य की प्रमुख विधाएँ ― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी | hindi sahitya ki gadya vidhaye ― Essay, Drama, Ekanki, Novel, Story

हिंदी गद्य की प्रमुख विधायें― निबंध, नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी

निबंध- निबंध वह गद्य रचना है, जिसमें सीमित आकार में किसी विषय का प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, संगति व संबद्धता के साथ किया जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने स्पष्ट किया है― आधुनिक लक्षणों के अनुसार निबंध उसी को कहना चाहिए जिसमें व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्तिगत विशेषता है। उन्होंने लिखा है, "यदि गद्य काव्य या लेखकों की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।"
बाबू गुलाब राय के अनुसार, "निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीव तथा आवश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।"

निबंध के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं―
1. वर्णनात्मक निबंध
2. विचार मूलक निबंध
3. भावात्मक या ललित निबंध
4. कथात्मक निबंध

"निबंध को गद्य की कसौटी कहा गया है।" इस कथन का तात्पर्य है कि, पद्य की तुलना में गद्य रचना संपन्न करना दुष्कर कार्य है, क्योंकि अगर आठ पंक्तियों वाली कविता में यदि एक पंक्ति भी भावपूर्ण लिख जाती है तो कवि प्रशंसा का भागी होता है, परंतु गद्य के संदर्भ में ऐसा नहीं देखा जाता। गद्यकार को एक-एक वाक्य सुव्यवस्थित एवं सोच-विचारकर लिखना होता है। उसी स्थिति में गद्यकार प्रशंसनीय है। गद्य में निबंध लेखन बहुत ही दुष्कर कार्य है। निबंध को सुरुचिपूर्ण, आकर्षक एवं व्यवस्थित होना चाहिए। इसी हेतु निबंध की कसौटी कहा गया है।

हिंदी साहित्य के प्रमुख निबंधकार एवं उनके द्वारा रचित निबंध निम्न लिखित हैं-
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र- सूर्योदय, कश्मीर कुसुम
2. बाबू गुलाबराय- ठलुआ क्लब
3. हजारी प्रसाद द्विवेदी- अशोक के फूल, विचार और वितर्क
4. महावीर प्रसाद द्विवेदी- कविता, क्रोध, प्रतिभा

हिंदी साहित्य के विकास को निम्न वर्गों में विभाजित किया गया है―
1. भारतेंदु युग (सन् 1850 से 1900 तक)
2. द्विवेदी युग (सन् 1900 से 1920 तक)
3. शुक्ल युग (सन् 1920 से 1940 तक)
4. शुक्लोत्तर युग (सन् 1940 से आज तक)

निबंध की प्रमुख शैलियाँ निम्न लिखित हैं-
1. समास शैली
2. भावात्मक शैली
3. व्यंग्यप्रधान शैली

भारतेंदु युग― भारतेंदु युग हिंदी गद्य का शैसव काल है। भारतेंदु, आधुनिक काल के जन्मदाता हैं। उनके युग को 'भारतेंदु युग' के नाम से संबोधित किया जाता है। निबंध साहित्य का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र के समय से होता है। उस समय की पत्र-पत्रिकाओं में निबंध का प्रारंभिक रूप देखा जा सकता है। इस युग में अधिकांश निबंध छोटे-छोटे लिखे गए हैं। जैसे- आँख, भौंह, बातचीत आदि। समाज-सुधार और देश-भक्ति का भाव इस समय के निबंधों की प्रधान विशेषता रही है।

भारतेंदु युगीन निबंधों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. समाज सुधार की भावना
2. राष्ट्रीयता व देशप्रेम
3. अंध-विश्वासों और रूढ़ियों पर प्रहार
4. व्यंग्यात्मक भाषा-शैली

भारतेंदु युग की प्रमुख निबंधकार एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं―
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र― ईश्वर बड़ा विलक्षण है, एक अद्भुत अपूर्व स्वप्न
2. बालकृष्ण भट्ट- चंद्रोदय, बढ़ती उमर, बातचीत
3. प्रताप नारायण मिश्र- परीक्षा, वृद्ध, दाँत, पेट
4. बाल मुकुंद गुप्त- शिवशंभु का चिट्ठा

इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
1. मित्र को पत्र कैसे लिखें?
2. परिचय का पत्र लेखन
3. पिता को पत्र कैसे लिखें?
4. माताजी को पत्र कैसे लिखें? पत्र का प्रारूप
5. प्रधानपाठक को छुट्टी के लिए आवेदन पत्र

द्विवेदी युग― इस युग के सबसे प्रभावशाली लेखक और संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। द्विवेदी जी ने 'सरस्वती पत्रिका' के संपादन का भार संभाला। आचार्य द्विवेदी ने दो प्रकार के निबंध लिखे- मनोरंजक और विचारात्मक।

द्विवेदी युगीन निबंधों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं―
1. विषय वस्तु की गंभीरता
2. समाज सुधार
3. परिमार्जित भाषा
4. हास्य व्यंगात्मक शैली

द्विवेदी युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं―
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी- साहित्य की महत्ता, विचार वीथी।
2. सरदार पूर्णसिंह- कन्यादान, मजदूरी और प्रेंम।
3. श्यामसुंदर दास- समाज और साहित्य, भारतीय साहित्य की विशेषताएँ।
4. चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी'- कछुआ धर्म, मारेसि मोहि कुठाँव।

शुक्ल युग― रामचंद्र शुक्ल इस युग के प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्होंने दो प्रकार के निबंध लिखे हैं- भाव एवं मनोविकारों से संबंधित और आलोचनात्मक। यह काल निबंध का 'स्वर्ण काल' कहलाता है।

शुक्ल युग के निबंधों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं―
1. गंभीर, विचारात्मक एवं उदात्त भाव प्रधान निबंध
2. विषय प्रधान निबंध
3. प्रौढ़ एवं गंभीर शैली
4. मनोविकारात्मक निबंध
5. विषय वस्तु में पर्याप्त विविधता

शुक्ल युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल- चिंतामणि भाग 1 व 2 में संग्रहित- क्रोध, उत्साह, भय, श्रद्धा-भक्ति
2. शांतिप्रिय द्विवेदी- वृन्त और विकास, कवि और काव्य
3. बाबू गुलाब राय- ठलुआ क्लब, सिद्धांत और अध्ययन
4. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी- प्रदीप पंचपात्र, मेरे प्रिय निबंध

शुक्लोत्तर युग― वर्तमान युग निबंध के विकास की चरम सीमा का युग है। इस युग में विषय वैविध्य अपेक्षाकृत अधिक दृष्टिगत होता है। इस युग के निबंध लेखक की अपनी निजी विशेषताएँ हैं।

शुक्लोत्तर युग के निबंधों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. भावात्मक एवं आत्मपरक निबंध
2. विषयवस्तु की विविधता
3. विचारात्मक, भावात्मक, समीक्षात्मक शैली

शुक्लोत्तर युग के प्रमुख निबंधकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी- अशोक के फूल, विचार और वितर्क
2. विद्यानिवास मिश्र- चितवन की छाँह, तुम चंदन हम पानी
3. नन्ददुलारे बाजपेयी- आधुनिक साहित्य, नया साहित्य
4. रामविलास शर्मा- प्रगति और परंपरा, प्रगतिशील साहित्य
5. अमृतराय- सहचिंतन

ललित निबंध― ललित निबंध आत्म अभिव्यंजक, सांस्कृतिक, पारंपरिक और लोक-विश्रुत तथ्यों और तर्कों को आत्मसात किए हुए होते हैं। अनिवार्यतः उनमें कथा का चुटीलापन, अनौपचारिक संवादों का टकापन और माटी का सोंधा बघार होता है, जो निबंधकार को सांस्कृतिक पुरुष की संज्ञा दिलाने में समर्थ है। ललित निबंध मानव मूल्यों की गाथा को गूथँने का संकल्प, परंपरा और प्रगति के साथ करता है। ललित निबंध में पद्य जैसा प्रवाह और भावात्मकता होती है।

प्रमुख ललित निबंधकार― आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, कुबेर नाथ राय, विद्यानिवास मिश्र, डॉ. रघुवीर सिंह, रामनारायण उपाध्याय आदि।

प्रमुख व्यंग्य निबंधकार― हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, ज्ञान चतुर्वेदी, रविंद्रनाथ त्यागी आदि।

नाटक― नाटक दृश्य काव्य (साहित्य) के अंतर्गत आता है, क्योंकि उसका प्रदर्शन रंगमंच पर ही हो सकता है जिसे देखकर दर्शक संपूर्णतः आनंद उठा सकते हैं। अतः नाटक एक ऐसा साहित्य रूप है जिसमें रंगमंच पर पात्रों के द्वारा किसी कथा का प्रदर्शन होता है। नाटक एक ऐसी अभिनय परक विधा है, जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहल पूर्ण वर्णन होता है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुसार― "नाटक शब्द का अर्थ है नट लोगों की क्रिया। नट कहते हैं विद्या के प्रभाव से अपने एवं किसी वस्तु के स्वरूप के फेर या स्वयं दृष्टि रोचन के अर्थ फिरना। दृश्य-काव्य की संज्ञा रूपक है। रूपकों में नाटक ही सबसे मुख्य है। इसमें रूपक मात्र को नाटक कहते हैं।"

नाटक के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं―
1. कथावस्तु
2. कथोपकथन या संवाद
3. पात्र एवं चरित्र चित्रण
4. देश काल और परिस्थिति (वातावरण)
5. शैली व शिल्प (भाषा शैली)
6. उद्देश्य
7. अभिनेता

टीप- 'जयशंकर प्रसाद' को 'नाटक सम्राट' कहा जाता है।

हिंदी साहित्य के प्रमुख नाटककार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं―
1. जयशंकर प्रसाद- ध्रुव स्वामिनी, चंद्रगुप्त
2. जगदीश चंद्र माथुर- कोणार्क, पहला राजा
3. उपेंद्र नाथ अश्क- स्वर्ग की झलक, उड़ान
4. उदय शंकर भट्ट- मुक्ति पथ, नया समाज, दाहर

एकांकी― एकांकी विधा वह दृश्य विधा है जो एक अंक पर आधारित होती है। एकांकी एक अंक का नाटक होता है। एकांकी में जीवन का खंडग्रस्य अंकित किया जाता है, जो अपने आप में पूर्ण होता है। एकांकीकार अपनी रचना द्वारा एक ही उद्देश्य को प्रतिपादित करता है।
डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, "एकांकी में एक ऐसी घटना रहती है, जिसका जिज्ञासा पूर्ण एवं कुतूहलमय नाटक शैली में चरम विकास होकर अंत होता है।"

एकांकी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. कथावस्तु
2. कथाकथन या संवाद
3. पात्र एवं चरित्र चित्रण
4. देशकाल-वातावरण
5. भाषा शैली
6. उद्देश्य
7. अभिनेता

एकांकी के प्रकार निम्नलिखित हैं- विषय की दृष्टि से एकांकी के निम्नलिखित प्रकार हैं-
1. ऐतिहासिक
2. राजनैतिक
3. सांस्कृतिक
4. सामाजिक
5. पौराणिक
शैली की दृष्टि से एकांकी के निम्नलिखित प्रकार हैं―
1. स्वप्नरूप
2. प्रहसन
3. काव्य एकांकी
4. रेडियो रूपक
5. ध्वनि रूपक
6. वृत्त रूपक

टीप- हिंदी की प्रथम एकांकी 'एक घूँट' है। इसकी रचना सन् 1930 में 'जयशंकर प्रसाद' ने की थी।

हिंदी साहित्य के प्रमुख एकांकीकार एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं-
1. जयशंकर प्रसाद- एक घूँट
2. डॉ. रामकुमार वर्मा- दीपदान, रेशमी टाई, पृथ्वीराज की आँखें
3. उपेंद्र नाथ अश्क- अधिकार का रक्षक, सूखी डाली
4. उदय शंकर भट्ट- नकली और असली, नए मेहमान

नाटक और एकांकी में अंतर निम्नलिखित है-
1. नाटक में अनेक अंक हो सकते हैं, जबकि एकांकी में एक अंक होता है।
2. नाटक में आधिकारिक के साथ सहायक और गौण कथाएँ भी होती हैं, जबकि एकांकी में एक ही कथा घटना रहती है।
3. नाटक में चरित्र का क्रमशः विकास दिखाया जाता है, जबकि एकांकी में एक सीमित चरित्र अंकित होता हुआ दिखाया जाता है।
4. नाटक में कथानक की विकास प्रक्रिया धीमी रहती है, जबकि एकांकी में कथानक आरंभ से ही चरम लक्ष्य की ओर द्रुत गति से बढ़ता है।
5. नाटक के कथानक में फैलाव और विस्तार रहता है, जबकि एकांकी के कथानक में घनत्व रहता है।

उपन्यास- उपन्यास शब्द का अर्थ है सामने रखना। उपन्यास एक ऐसी विस्तृत कथा होती है जो अपने भीतर अन्य गौण कथाओं को समेटे रहती है। उपन्यास वह वस्तु या कृति है जिसे पढ़कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है, उसी के जीवन की कथा, उसी की भाषा में कही गई है। अतः उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है।
मुंशी प्रेमचंद के अनुसार, "मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके सदस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।"

उपन्यास के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं-
अध्ययन की दृष्टि से उपन्यास के निम्न लिखित प्रकार हैं-
1. ऐतिहासिक
2. सामाजिक
3. मनोवैज्ञानिक
4. आंचलिक
5. समाजवादी
शैली की दृष्टि से उपन्यास के निम्नलिखित भेद हैं-
1. आत्मकथात्मक शैली
2. कथात्मक शैली
3. पत्र शैली
4. डायरी शैली

टीप― 'मुंशी प्रेमचंद' के 'उपन्यास सम्राट' कहा जाता है।

उपन्यास के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. कथावस्तु
2. पात्र एवं चरित्र चित्रण
3. कथोपकथन या संवाद
4. देशकाल-वातावरण
5. भाषा शैली
6. उद्देश्य

हिंदी साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मुंशी प्रेमचंद- गबन, गोदान, सेवासदन
2. हजारी प्रसाद द्विवेदी- बाणभट्ट की आत्मकथा
3. जैनेंद्र कुमार- त्यागपत्र
4. जयशंकर प्रसाद- कंकाल

हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
8. सर्वनाम और उसके प्रकार

कहानी― कहानी वह कथात्मक लघु गद्य रचना है जिसमें जीवन की किसी एक स्थिति का सरस सजीव चित्रण होता है। कहानी वास्तविक जीवन की वह काल्पनिक कथा है जो छोटी-सी होते हुए भी स्वतः पूर्ण एवं सुसंगठित होती है।
विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार,
1. "जीवन का प्रतिक्षण एक सारगर्भित कहानी है।"
2. "नदी जैसे जलस्रोत की धारा है, मनुष्य वैसे ही कहानी का प्रवाह है।"
मुंशी प्रेमचंद के अनुसार, "गल्प (कहानी) एक ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करना ही कहानीकार का प्रमुख उद्देश्य होता है।"

कहानी के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. कथानक या कथावस्तु
2. पात्र एवं चरित्र चित्रण
3. कथोपकथन या संवाद
4. देशकाल या वातावरण
5. भाषा शैली
6. उद्देश्य

कहानी की प्रमुख चार शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
1. ऐतिहासिक शैली
2. आत्मचरित शैली
3. पत्रात्मक शैली
4. डायरी शैली

कहानी के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं-
1. वातावरण प्रधान कहानी
2. भाव प्रधान कहानी
3. घटना प्रधान कहानी
4. चरित्र प्रधान कहानी

टीप- 1. 'मुंशी प्रेमचंद' को 'कहानी सम्राट' कहा जाता है।
2. हिंदी साहित्य की प्रथम कहानी 'इंदुमती' है।

हिंदी साहित्य के प्रमुख कहानीकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रेमचंद- बड़े घर की बेटी, पंचपरमेश्वर
2. विशंभर नाथ शर्मा 'कौशिक'- ताई, रक्षाबंधन
3. जयशंकर प्रसाद- छाया, पुरस्कार, गुंडा
4. किशोरी लाल गोस्वामी- इंदुमती
5. जैनेंद्र कुमार- जान्हवी, पाजेब

उपन्यास एवं कहानी में अंतर निम्नलिखित है-
1. उपन्यास का आकार बड़ा होता है, जबकि कहानी का आकार छोटा होता है।
2. उपन्यास में समस्त जीवन का अंकन होता है, जबकि कहानी में जीवन का खंड चित्रण होता है।
3. कहानी की अपेक्षा उपन्यास में अधिक पात्र होते हैं, जबकि उपन्यास के अपेक्षा कहानी में कम पात्र होते हैं।
4. उपन्यास में आधिकारिक के साथ सहायक और गौण कथाएँ भी होती हैं, जबकि कहानी में एक ही कथा घटना होती है।

इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
1. प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों हेतु 'गाय' का निबंध लेखन
2. निबंध- मेरी पाठशाला

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
2हिन्दी साहित्य का इतिहास चार काल
3. काव्य के प्रकार
4. कवि परिचय हिन्दी साहित्य

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी के लेखकों का परिचय
2. हिंदी भाषा के उपन्यास सम्राट - मुंशी प्रेमचंद
3. हिन्दी नाटक का विकास
4. हिन्दी एकांकी के विकास का इतिहास
5. हिन्दी उपन्यास का विकास
6. हिन्दी कहानी का विकास
7. केशव दास रचित गणेश वंदना का हिन्दी भावार्थ
8. बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद
9. मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास
4. बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास
5. मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. मो देखत जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई― सूरदास
2. मीराबाई– कवि परिचय
3. सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई
4. भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. कबीर संगति साधु की– कबीर दास

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
2. हिन्दी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल
3. कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास
4. आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास
2. देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'
3. शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास
4. छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. भज मन चरण कँवल अविनासी– मीराबाई

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)
2. हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)
3. हिन्दी गद्य साहित्य का विकास - भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावादी युग, छायावादोत्तर युग
4. हिन्दी गद्य साहित्य की प्रमुख एवं गौण विधाएँ
5. आलोचना गद्य साहित्य की विधा क्या है?
6. नाटक (गद्य विधा) - नाटक के तत्व, नाटक के विकास युग - भारतेंदु, प्रसाद, प्रसादोत्तर युगीन नाटक
7. एकांकी विधा क्या है? प्रमुख एकांकी कार
8. उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा - उपन्यास के तत्व एवं प्रकार, उपन्यास का इतिहास एवं प्रमुख उपन्यासकार
9. कहानी विधा - कहानी के तत्व एवं विशेषताएँ, कहानी कथन की रीतियाँ एवं इसका विकासक्रम
10. गद्य साहित्य की प्रक्रीर्ण (गौण) विधाएँ

हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी कविता का विकास - हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन, आदिकाल / वीरगाथा काल / चारण काल / रासोकाल
2. रीतिकाल (सन् 1643 से 1843 ई० तक) हिन्दी साहित्य का इतिहास
3. आधुनिक काल (सन् 1843 स अब तक) भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावादी युग, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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