कहानी - गद्य विधा || कहानी के तत्व एवं विशेषताएँ || कहानी कथन की रीतियाँ एवं इसका विकासक्रम || Hindi Kahani Vidha
कहानी साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसका प्रारंभ इन मानव सभ्यता के प्रारंभिक विकास के साथ ही साथ मानने को बाध्य है। कहानी कथन से संबंधित है, अतः मानव ने जब कुछ कहना प्रारंभ किया होगा तभी कहानी प्रारंभ हो गई होगी। मानव स्वभावतः अपने भाव दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता है। उसकी प्रवृत्ति ने कहानी को जन्म दिया होगा। दूसरा पक्ष यह है कि मनुष्य स्वभावतः जिज्ञासु होता है। वह अधिकाधिक जानना चाहता है।
भारतवर्ष में संपूर्ण पौराणिक आख्यान साहित्य कहलाता है। इसका क्षेत्र पर्वतोमुखी रहा है अर्थात्, राजनैतिक आध्यात्मिक, आर्थिक, नीति उपदेश आदि। 'पञ्चतन्त्र', 'हितोपदेश', 'बेताल पचीसी', 'सिंहासन बत्तीसी' तथा 'भोज प्रबंध' आदि रचनायें इसका प्रबल प्रमाण हैं। जातक कथायें तो विदेशों तक में लोकप्रिय हैं।
कहानी की परिभाषा
वस्तुतः कहानी जीवन के सुन्दर एवं महत्वपूर्ण क्षणों का चित्र प्रस्तुत करती है जिसे सुनकर श्रोता अभिभूत हो उठता है। यही इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।
बाबू गुलाबराय के शब्दों में -
"छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है जिसमें प्रभावों वाली व्यक्ति केन्द्रित घटना या घटनाओं का आवश्यक परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्याशित ढंग उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो।"
कहानी के तत्व
कहानी के छ: तत्व होते हैं-
(1) कथानक
(2) पात्र या चरित्र-चित्रण
(3) कथोपकथन
(4) देशकाल और वातावरण
(5) भाषा-शैली तथा
(6) उद्देश्य
कहानी की विशेषताएँ
पं. सद्गुरु शरण अवस्थी के अनुसार -
"एक तत्व, एक संवेदना, एकार्थी प्रेरणा, एक प्रयोजन, एक स्वरूप तथा एक प्रकार की सर्वत्र मनोहरता कहानी की विशेषता है।"
सभी तत्वों के उचित समायोजन से कहानी सबल बनती है। कुतूहल कहानी की अपनी एक विशिष्ट विशेषता होती है। औत्सुक्य या कुतूहलता के सहारे पाठक आदि से अन्त तक तन्मय होकर कहानी सुनने या पढ़ने के लिए विवश हो जाता है।
कहानी के विषय की दूसरी विशेषता है, उसके कहने का ढंग या रीति।
कहानी कथन की रीतियाँ
प्रमुखतः कहानी कथन की तीन रीतियाँ हैं -
(1) वर्णनात्मक या ऐतिहासिक रीति - इस रीति का कहानीकार एक द्रष्टा की तरह कहानी कथन करता चला जाता है। उदाहरण स्वरूप प्रेमचंद जी की "बूढ़ी काकी", कौशिक की "ताई" और गुलेरी जी की "उसने कहा था" आदि प्रस्तुत की जा सकती हैं।
(2) आत्मकथात्मक रीति - इस रीति के अनुसार पाठक अथवा पात्र कथानक को स्वानुभूत अनुभव वर्णन की तरह ही प्रस्तुत करता चला जाता है। उदाहरण स्वरूप सुदर्शन जी की "कवि की स्त्री", जैनेन्द्र जी की "जान्हवी" इस कोटि की कृतियाँ हैं।
(3) पात्रों के कथन शैली के रूप में - यह वस्तुतः संवाद शैली है। पात्र आपसी वार्तालाप के माध्यम से कथानक को पूर्णता की ओर से जाते हैं। प्रसाद जी की देवदासी वही कहानी है।
कहानी का विकासक्रम
आधुनिक युग में कहानी कला ने अनेक क्षेत्रों में अनेक परिवर्तन देखे हैं अतः सम्यक अध्ययन हेतु उसके विकास को निम्न भागों में विभक्त कर सकते हैं।
1. सन् 1900 से 1910 प्रयोग काल।
2. सन् 1910 से 1986 विकास काल-पूर्वार्द्ध।
3. सन् 1937 से 1947 विकासकाल उतरार्द्ध।
4. सन् 1947 से आज तक स्वातन्त्रोतोत्तर काल।
आधुनिक कहानी का विकास सन् 1900 से माना जा सकता है। इस समयावधि में श्री चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' ने अपनी तीन कहानियाँ लिखकर आधुनिक कहानी लेखन का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी कहानियाँ हैं -
(i) 'सुखमय नवीन'
(ii) 'बुद्ध का काँटा' और
(iii) 'उसने कहा था'।
गुलेरी जी के पश्चात सर्वाधिक चर्चित नाम जयशंकर प्रसाद का है। उन्होने ऐतिहासिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि पर कहानी लेखन किया, किन्तु उनमे कवि होने के नाते गीतात्मकता का समावेश हो गया है। उनकी प्रमुख कहानियाँ हैं - 'पुरस्कार', 'आकाशदीप', 'ममता', 'मधुवा' तथा 'गुण्डा' आदि।
1916 में प्रेमचंद जी ने कहानी के क्षेत्र में पदार्पण किया जिसे इस क्षेत्र में एक महान घटना माना जाता है। उन्होंने तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखकर अपनी अभूतपूर्व लेखन क्षमता का परिचय दिया तथा जन-जीवन के मार्मिक क्षणों का प्रभावी चित्र प्रस्तुत किया।
प्रेमचन्द जी परवर्ती लेखकों में प्रमुख हैं - सुभद्रा कुमारी चौहान, रामकृष्णदास, चंडीप्रसाद हृदयेश, सुदर्शन, बेचन शर्मा 'उग्र', भगवती प्रसाद वाजपेयी, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', गोपाल राम गहमरी आदि।
आधुनिक युग में श्री जैनेन्द्र और अज्ञेय जी ने कहानी को एक नया मोड़ दिया। जैनेन्द्र जी की कहानियों में मन का सूक्ष्म विश्लेषण मिलता है तथा उनके पास की विलक्षणता जिज्ञासा वृद्धि करती जाती है। उन्होंने छोटे-छोटे किंतु चुभते हुए कथोपकथन का आयोजन किया है।
अज्ञेय जी ने कहानी के क्षेत्र में नए प्रयोग किए हैं। प्रतीकात्मकता ने उनकी कहानियों में बुद्धि पक्ष को प्रबल बना दिया है। विषय और शैली दोनों के क्षेत्र अपनी स्वतन्त्र पहचान बना लेने वाले कहानीकार श्री यशपाल हैं। उन्होंने साम्यवादी विचारधारा का विशेष रूप से पोषण किया है फिर भी उनकी कहानियाँ रोचकता से परिपूर्ण एवं प्रभावशाली हैं।
उस काल के अन्य श्रेष्ठ कहानीकार निम्नलिखित हैं - कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, रामदरश मिश्र, काशीनाथ सिंह, फणीश्वरनाथ 'रेणु', शिवानी, राजेन्द्र अवस्थी. मनहर चौहान, मालती जोशी, रमेश बतरा, रघुवीर सहाय रमेश 'बक्षी', ऊषा प्रियम्बदा, मणि मधुकर आदि।
ये सब कहानीकार लोक जीवन का चित्र प्रस्तुत करने में दक्ष हैं, जिनमें मनोभावों का विश्लेषण, कुंठा, आक्रोश, तनाव आदि का निर्भीक वर्णन प्राप्त होता है। नई कहानी में दूसरा कथनीय वैशिष्ट्य है उसकी संकेतात्मकता, प्रतीकात्मकता तथा संक्षिप्तता के साथ शैली की व्यंगात्मकता एवं चुटीलापन इनमें सेक्स और वासना का वर्णन भी खुले रूप से प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि इस प्रकार की कहानी में जीवन का समग्र स्वरूप प्राप्त होता है।
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी गद्य साहित्य की विधाएँ
2. हिन्दी गद्य साहित्य की गौण (लघु) विधाएँ
3. हिन्दी साहित्य का इतिहास चार काल
4. काव्य के प्रकार
5. कवि परिचय हिन्दी साहित्य
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिन्दी के लेखकों का परिचय
2. हिंदी भाषा के उपन्यास सम्राट - मुंशी प्रेमचंद
3. हिन्दी नाटक का विकास
4. हिन्दी एकांकी के विकास का इतिहास
5. हिन्दी उपन्यास का विकास
6. हिन्दी कहानी का विकास
7. केशव दास रचित गणेश वंदना का हिन्दी भावार्थ
8. बीती विभावरी जाग री― जयशंकर प्रसाद
9. मैया मैं नाहीं दधि खायो― सूरदास
4. बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ― केशवदास
5. मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो― सूरदास
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. मो देखत जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई― सूरदास
2. मीराबाई– कवि परिचय
3. सखी री लाज बैरन भई– मीराबाई
4. भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. कबीर संगति साधु की– कबीर दास
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. सुनि सुनि ऊधव की अकह कहानी कान– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
2. हिन्दी पद्य साहित्य का इतिहास– आधुनिक काल
3. कबीर कुसंग न कीजिये– कबीरदास
4. आए हौ सिखावन कौं जोग मथुरा तैं तोपै– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे– मैथिलीशरण गुप्त
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. जो जल बाढ़ै नाव में– कबीरदास
2. देखो मालिन, मुझे न तोड़ो– शिवमंगल सिंह 'सुमन'
3. शब्द सम्हारे बोलिये– कबीरदास
4. छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर– जगन्नाथ दास 'रत्नाकर'
5. भज मन चरण कँवल अविनासी– मीराबाई
हिन्दी साहित्य के इन प्रकरणों 👇 को भी पढ़ें।
1. हिंदी का इतिहास– भारतेन्दु युग (विशेषताएँ एवं प्रमुख कवि)
2. हिन्दी का इतिहास– द्विवेदी युग (विशेषताएँ एवं कवि)
3. हिन्दी गद्य साहित्य का विकास - भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावादी युग, छायावादोत्तर युग
4. हिन्दी गद्य साहित्य की प्रमुख एवं गौण विधाएँ
5. आलोचना गद्य साहित्य की विधा क्या है?
6. नाटक (गद्य विधा) - नाटक के तत्व, नाटक के विकास युग - भारतेंदु, प्रसाद, प्रसादोत्तर युगीन नाटक
7. एकांकी विधा क्या है? प्रमुख एकांकी कार
8. उपन्यास का अर्थ एवं परिभाषा - उपन्यास के तत्व एवं प्रकार, उपन्यास का इतिहास एवं प्रमुख उपन्यासकार
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com
Comments