'आलोचना' गद्य विधा क्या है - हिन्दी गद्य विधा का विकास || Aalochna - Hindi gadya vidha ka vikas
'आलोचना' शब्द का शाब्दिक अर्थ है "किसी वस्तु को भली प्रकार से देखना।" किसी साहित्यिक रचना को अच्छी तरह परीक्षण कर उसके गुण-दोषों को प्रकट करना हो आलोचना करना या समीक्षा करना कहलाता है। 'सैद्धांतिक आलोचना' की परम्परा संस्कृत एवं हिन्दी में बहुत पुरानी है, परन्तु आधुनिक साहित्य के विवेचन एवं मूल्यांकन के लिए 'व्यावहारिक आलोचना' की आवश्यकता पड़ी।
हिन्दी में आधुनिक पद्धति की आलोचना का आरम्भ भारतेंदु युग में बालकृष्ण भट्ट और चौधरी प्रेंमधन द्वारा लाला श्रीनिवास दास कृत 'संयोगिता स्वयंवर' नाटक की आलोचना से माना जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आलोचना के क्षेत्र में 'पुस्तक समीक्षा' का स्तर ऊँचा किया और प्राचीन कवियों की व्यवस्थित आलोचना की परिपाटी का श्रीगणेश किया। इसी समय काशी की 'नागरी प्रचारिणी' पत्रिका में दोषपूर्ण निबंध लिखे जाने लगे, जिनकी परम्परा में आगे चलकर विश्वविद्यालयों में शोध प्रबंध लिखे गए।
आलोचना साहित्य की समृद्धि के शिखर पर पहुँचने का श्रेय आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाबू श्याम सुंदरदास, लाला भगवान दीन, मिश्र बंधु, पद्मसिंह शर्मा आदि को है, परन्तु हिन्दी आलोचना के वास्तविक रूप का विकास तीसरे एवं चौथे दशकों में आचार्य पं. रामचन्द्र शुक्ल के द्वारा हुआ। 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' तथा 'तुलसी', 'सूर' एवं 'जायसी' की समीक्षात्मक भूमिकाओं द्वारा व्यावहारिक आलोचना तथा 'चितामणि' के निबंधों द्वारा सैंद्धातिक सोच को शुक्ल जी ने उच्च शास्त्रीय गरिमा प्रदान की। वस्तुतः शुक्ल जी ही आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ आलोचक हैं।
शुक्ल जी के बाद शास्त्रीय समीक्षा प्रणाली को बाबू गुलाब राय, नंद दुलारे बाजपेयी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र एवं डॉ. रामविलास शर्मा ने बढ़ाया है। समसामयिक युग के ये प्रमुख समीक्षक है। बींसवी शताब्दी के दशक में मनोविज्ञान एवं मार्क्सवाद का प्रभाव हिन्दी आलोचना पर पड़ा। इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय आदि ने मनोविज्ञान से प्रभावित एवं राम विलास शर्मा, शिवदान सिंह चौहान, नामवरसिंह आदि ने मार्क्सवाद से प्रभावित समीक्षाएँ लिखीं। विश्वविद्यालयों अंतर्गत होने वाले शोध कार्य के परिणामस्वरूप भी अनेक महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रकाश में आई हैं।
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