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विषयवस्तु विवरण



पाठ 9 'पद और दोहे कक्षा' 6 हिन्दी प्रमुख पद्यांशों की संदर्भ व प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर व व्याकरण प्रश्नोत्तर व भाषा ज्ञान (व्याकरण)

केन्द्रीय भाव— इस पाठ में मीराबाई, कबीरदास व रहीम की रचनाएँ प्रस्तुत की गई हैं।मीराबाई ने अपने पद में श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण भाव को व्यक्त किया है। कबीरदास व रहीम ने अपने दोहों में गरीबों के प्रति सहानुभूति, समाजसेवा, आलस्य त्याग, सन्तोष, सच्ची मित्रता, समाज सेवा आदि सद्‌गुणों को जीवन में उतारने का सन्देश दिया है।
मीरा ने अपने पदों में श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण भाव और दाम्पत्य भाव की भक्ति को अभिव्यक्त किया है।
कबीर समाज सुधारक थे। वे चाहते थे कि समाज में भाईचारा बना रहे।अतः उन्होंने लोगों को लोभ, क्रोध, गर्व आदि बुराइयों से दूर रहकर एक दूसरे के प्रति दया तथा समत्व भाव जाग्रत करने की प्रेरणा दी है।
रहीम के दोहों में सत्संगति, गुण ग्राह्यता तथा विषम परिस्थितियों में मौन रहने का संदेश दिया।

संपूर्ण पाठ परिचय

पद (1) मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनों न कोई।।
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करे कोई।
सन्तन डिग बैठि-वैठि लोक-लाज खोई।।
चूनरी के किये टूक, ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतारि, वन-माला पोई।।
अँसुअन जल सींच-सींच, प्रेम वेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई आनन्द फल होई।।
प्रेम की मयनियों बड़े, जतन से बिलोई।
घृत-घृत सब काढ़ि लियो, छाछ पियो कोई।।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल मिरघर, तारो अब मोही।।—मीराबाई

पद (2) कबिरा कहै कमाल सौ ,दो बातें ले सीख।
कर साहब की बन्दगी, भूखे को दें भीख।।
बुरा जो देखन में चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजां आपना, मुझ सा बुरा न कोच।
कबिरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर।
जो तोको कोटा बुवै, ताहि बोव तू फूल।
लोहि फूल को फूल हैं, वाको है तिरसूल।
काल्ह करे सो आज कर, आज करे सौ अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेगो कब्ब।।—कबीर

पद (3) एके साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सीचियो, फूलै फलै अघाय।।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करें तरवारि।
रहिमन चुप है बैठिए, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहै, बनत न लगिहै बेर।
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का कारि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
कहि रहीम सम्पत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।—रहीम

पाठ के कठिन शब्दों के अर्थ

मीराबाई— छोड़ि = छोड़ दी।
कानि = इज्जत, मान-मर्यादा।
ढिग = पास।
लाज = लज्जा।
मथनियाँ = मथानी, बिलोने का उपकरण, रई।
तारो = उद्धार करो।
कबीरदास— कमाल = कबीर के पुत्र का नाम। साहब = ईश्वर।
पीर = पीड़ा , दुःख।
काफिर = धर्म विरोधी।
रहीम— अधाय = तृप्त होना।
है = होकर।
बेर = समय।
नीके = अच्छे।
भुजंग =सांप।

पद (1) मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु, आपनों न कोई।।
छोड़ि दई कुल की कानि, कहा करे कोई।
सन्तन डिग बैठि-वैठि लोक-लाज खोई।।
चूनरी के किये टूक, ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतारि, वन-माला पोई।।
अँसुअन जल सींच-सींच, प्रेम वेलि बोई।
अब तो बेलि फैल गई आनन्द फल होई।।
प्रेम की मयनियों बड़े, जतन से बिलोई।
घृत-घृत सब काढ़ि लियो, छाछ पियो कोई।।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल मिरघर, तारो अब मोही।।

शब्दार्थ

आपनों = अपना।
छाँड़ि दई = छोड़ दी।
कुल = परिवार।
कानि = इज्जत, कुल मर्यादा।
ढिंग = पास।
खोई = मिटा दी।
लाज = शर्म, लज्जा।
चूनरी = चूंदरी, चादर।
लोई= लोई नामक वस्त्र जिसे प्रायः त्यागी, साधु-सन्त ओढ़ते हैं।
बन-माला = वन के फूल और पत्तियों की माला।
पोई = पिरो कर।
प्रेम बेलि = प्रेम की लता।
होई = लग रहे हैं।
मथनियाँ = मथानी, रई।
बिलोई = दही मथने का काम किया।
जतन से = प्रयत्न से।
काढ़ि लियो = निकाल लिया।
छाछ = मट्ठा।
पियो कोई = कोई भी पीता रहे।
राजी भई = प्रसन्न हुई।
जगत देखि रोई = संसार के बन्धनों को देखकर दुःखी होने लगी।
तारो = उद्धार करो।
मोही = मेरा या मुझे।

सन्दर्भ— प्रस्तुत पद 'पद और दोहे' नामक पाठ से लिया गया है। यह पद मीराबाई की रचना है। प्रसंग— मीरा ने स्वयं को श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन कर दिया है। वह चाहती है कि उसके इष्ट भगवान कृष्ण उसका भव- सागर से उद्धार कर दें।

व्याख्या— मीराबाई कहती है कि मेरे प्रभु, तो गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले, गौ का पालन करने वाले श्रीकृष्ण हैं। उनके अतिरिक्त मेरा कोई अन्य प्रभु नहीं है। अपने सिर पर जो मोर-मुकुट धारण करते हैं, वही मेरे पति हैं। माता-पिता,धाई-बन्धु (सगे सम्बन्धी) अपने तो कोई भी नहीं है। मैंने कुल मर्यादा छोड़ दी है, मेरा कोई क्या कर सकेगा। साधु-सन्तों की संगति में बैठना शुरू कर दिया है, मैंने लोक-लाज भी खो दी है। प्रतिष्ठित घर की बहू जिस चादर को ओड़ कर चलती है, उस चादर के मैंने दो टुकड़े कर दिए है, (फाड़ दी है)। लोई पहन ली है। मोती-मूंगे धारण करना छोड़ दिया है। वन के फूलों की माला (सहज में प्राप्त फूलों की माला) पिरो कर पहनने लगी हूँ।भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में आँसू बहाते हुए, उनके प्रति प्रेम की बेलि को बोया है और लगातार सींचा है। वह बेलि अब फूलकर फैल चुकी है। उस पर अब तो आनन्द के फल लगने शुरू हो गए हैं।प्रेम की मथानी से प्रयत्नपूर्वक बिलोने पर (अमृत रूपी) सम्पूर्ण घी निकाल लिया है। शेष छाछ (मट्ठा) रह गया है, उसे कोई भी पीता रहे (संसार छोड़ा हुआ मट्ठा है-तत्वहीन पदार्थ है। जो उसे पीना चाहे वह पीता रहे।) मैं प्रभु भक्तों की संगति में आनन्दित हो रही हूँ। संसार को देखकर अत्यधिक दुःखी होती ( हूँ। मीराबाई वर्णन करती हैं कि मैं तो गिरधर लाल श्रीकृष्ण की दासी हूँ।हे प्रभो!आप मेरा उद्धार कीजिए।

(2)— कबिरा कहै कमाल सौं, दो बातें लै सीख।
कर साहब की बन्दगी, भूखे को दें भीख॥1॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजां आपना, मुझ सा बुरा न कोय॥2॥
कबिरा सोई पीर है, जो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥3॥
जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल हैं, वाको है तिरसूल।।4
काल्ह करें सो आज कर, आज करै सो अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करेंगो कब्ब॥5॥

शब्दार्थ

सीख = शिक्षा ग्रहण कर ले।
बन्दगी = प्रार्थना, भक्ति।
साहब = स्वामी, ईश्वर।
भीख = भिक्षा।
न मिलिया कोय = कोई नहीं मिला।
खोजां = ढूँढ़ने पर।
पर पीर = दूसरे की पीड़ा।
जानै = जानता है।
काफिर = विधर्मी।
बेपीर = किसी की पीड़ा को न समझने वाला।
तोको = तेरे लिए।
बुवै = बोता है।
ताहि = उसको।
तोहि = तेरे लिए।
वाको = उसके लिए।
तिरसूल = त्रिशूल(बड़े-बड़े काँटे)।
काल्ह = कल।
अब्ब = अभी-अभी, इसी समय।
परलै = प्रलय।
बहुरि = फिर।

सन्दर्भ— प्रस्तुत दोहे 'पद और दोहे' नामक पाठ से लिए गए हैं। इनकी रचना कबीरने की है।
प्रसंग— कबीर ने लोगों को सलाह दी है कि उन्हें देखना चाहिए कि समाज में कोई व्यक्ति दुःखी, भूखा या किसी भी तरह के कष्ट से पीड़ित तो नहीं है। यदि ऐसा है तो प्रत्येक को सहायता के लिए उठ खड़ा होना चाहिए।

व्याख्या—(1) कबीर अपने पुत्र कमाल को समझाते हु कहते हैं कि तुम्हें दो बातों की शिक्षा ग्रहण कर लेनी चाहिए पहली यह है कि तुम्हें ईश्वर की बन्दना करना सीख लेना चाहि और दूसरी बात यह कि भूखे व्यक्ति को भिक्षा देनी चाहिए।

(2) कबीर कहते हैं कि संसार में बुरे व्यक्ति की जाँच करने के लिए मैं निकला, तो मुझे कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं मिला परन्तु जब मैंने अपने हृदय में झाँका और देखा, तो मुझे यह बात ज्ञात हुई कि स्वयं मुझसे बढ़कर बुरा कोई अन्य व्यक्ति नहीं है।

(3) कबीर कहते हैं। जो दूसरों के कष्ट कि वही सच्चा पीर (ईश का भक्त) है। जो अच्छी तरह जानता है। जो दूसरों की पीड़ा को समझ नहीं सकता, वह निश्चय ही विधर्मी है, बेपीर है अर्था उसे किसी के भी प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं है।

(4) कबीर कहते हैं कि जो भी कोई व्यक्ति तुम्हारे लिए काँटा बोता है, अर्थात् तुम्हारे लिए किसी भी प्रकार की विपत्तिय (कष्ट) देता है, तो तुम्हें उसके बदले में फूल ही बोने चाहिए प्रतिकार में काँटे (कष्ट) नहीं बोना चाहिए, बाधाएँ नहीं डालनी चाहिए। क्योंकि अन्त में तुम्हारे लिए फूल ही फूल रहेंगे (अर्थात किसी भी तरह का कष्ट नहीं होगा)। )। उसके लिए (काँटे बोने वाले के लिए) तो बड़े-बड़े (त्रिशूल जैसे) काँटे ही पैदा होंगे।

(5) कबीर ने अपना कार्य करने की सलाह देते हुए उपदेश दिया है कि जो काम कल किया जाना है, उसे आज ही कीजिए और जो काम आज करना है, उसे अभी-अभी पूरा कीजिए क्योंकि पल (क्षण) भर में ही प्रलय (मृत्यु) हो गई, तो फिर उस काम को कब कर सकोगे।

(3) एकै साधे सब साधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलै फलै अघाय।।1॥
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि॥2॥
रहिमन चुप है बैठिए, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहें बेर॥3॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग॥4॥
कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत॥5॥

शब्दार्थ

एकै साधे = एक की साधना करने पर।
जाय = चला जाता, नष्ट हो जाता है।
सींचिबो सींचने मात्र से।
मूलहि = मूल में, जड़ में।
अघाय = पूर्ण तृप्ति तक।
बड़ेन = बड़े लोगों को।
डारि = फेंकना।
तरवारि = तलवार।
दिनन के फेर = बदले हुए समय को।
नीके = अच्छे।
बेर = देर।
प्रकृति = स्वभाव।
कुसंग = बुरी संगति।
व्यापत = समा जाना।
भुजंग = जहरीले साँप।
सम्पति = सम्पत्ति काल में।
बहु रीत = अनेक रीतियों से (किसी भी प्रकार से)।
बिपति-कसौटि = विपत्ति जैसी कसौटी पर।
कसे = कसने पर।
जे कसे = जो कस दिए जाते हैं।
ते ही = वे ही।
साँचे मीत = सच्चे मित्र।

सन्दर्भ— प्रस्तुत पंकियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 'पद और दोहे' नामक पाठ से ली गई है। ये दोहे रहीम की रचना है।
प्रसंग— इन दोहों में रहीम ने सत्संगति, गुण ग्रहण करना तथा विषम स्थिति में मौन धारण करके रहने का उपदेश किया है।

व्याख्या—(1) रहीम जी कहते हैं कि एक ईश्वर की साधना करने से सब कुछ प्राप्त करने में सफलता मिल जाती है। सब (ईश्वर और संसार) की साधना करने से सब कुछ मिट जाता है। इसलिए मूल (जड़) को सिचाई करने से वृक्ष पर फूल-फल पूर्ण सन्तुष्ट करने के लिए लगना प्रारम्भ हो जाता है।

(2) रहीम जी सलाह देते हैं कि बड़े लोगों को संगति पाकर छोटे आदमियों का अपमान कभी भी नहीं करना चाहिए। उदाहरण देते हुए कि जो काम (सिलाई आदि) छोटी सी सुई से किया जा सकता है, वही काम तलवार (बड़ी वस्तु) से नहीं किया जा सकता अर्थात् छोटे आदमी ही कभी-कभी महत्वपूर्ण होते हैं।

(3) रहीम जी कहते हैं कि दिनों के परिवर्तन से (समय के बदल जाने पर विपरीत समय पर) किसी भी कार्य को सिद्धि न हो सकने की दशा में शान्तिपूर्वक बैठ जाना चाहिए। (खराब समय में शान्ति से विचार करने लग जाना चाहिए, अधीर नहीं होना चाहिए) क्योंकि जब अच्छा समय आएगा, तो बात बनते (काम होने में) देर नहीं लगती।

(4) रहीम जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है, उसके ऊपर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। देखिए चन्दन के वृक्ष पर अनेक सर्प लिपटे रहते हैं, लेकिन उस वृक्ष पर उन सर्पों के जहर का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता। चन्दन वृक्ष शीतलता और शीलवानपन का प्रतीक है।

(5) रहीम जी कहते हैं कि सम्पत्ति काल में बहुत से लोग अनेक तरह से सगे-सम्बन्धी बनने लगते हैं। (परन्तु सच्चे मित्र सिद्ध नहीं होते)। सच्चे मित्र तो वही होते हैं जो विपत्ति रूपी कसौटी पर कसे जाने पर साथ रहते हैं। अर्थात् विपत्ति में जो साथ देते हैं, वे ही सच्चे मित्र होते हैं।

अभ्यास

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) मीरा ने आँसुओं के जल से सींचकर बोई है—
(i) प्रेम की बेल
(ii) मोती की बेल
(iii) मूंगे की बेल
(iv) फूल की बेल
उत्तर—(i) प्रेम की बेल

(ख) भूखे को भीख देने की बात कही है—
(i) रहीम ने
(ii) कबीर ने
(iii) मीरा ने
(iv) कमाल ने
उत्तर—(ii) कबीर ने

(ग) जहाँ काम आवे सुई, कहा करै—
(i) त्रिशूल
(ii) फूल
(iii) तलवारि
(iv) सम्पत्ति।
उत्तर—(iii) तलवारि।

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए —
(क) छाडि दई कुल की कानि कहा करें कोई।
(ख) घृत-घृत सब काढि लियो छाछ पियो कोई।
(ग) कर साहब की बंदगी भूखे को दै भीख।
(घ) जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए—
(क) मीराबाई ने श्रीकृष्ण की किस रूप में उपासना की है?
उत्तर— मीराबाई ने श्रीकृष्ण की पति रूप में उपासना की है।
(ख) कबीर ने किन दो बातों की सीख दी है?
उत्तर— कबीर ने साहब (ईश्वर) की वन्दना करने और भूखे को भीख (भिक्षा) देने की सीख दी है।

(ग) कल का काम आज ही क्यों कर लेना चाहिए?
उत्तर— कल का काम आज ही कर लेना चाहिए,क्योंकि क्षण भर में ही मृत्यु हो सकती है। मृत्यु हो जाने पर काम न किया हुआ ही रह जाएगा।
(घ) रहीम ने उत्तम प्रकृति का महत्व किस उदाहरण से स्पष्ट किया है?
उत्तर— रहीम ने उत्तम प्रकृति का महत्व यह उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि शीतलता देने वाले चन्दन के वृक्ष पर अनेक सर्प लिपटे रहते हैं, फिर भी उस पर साँपों के जहर का प्रभाव नहीं होता है।

(ङ) सच्चे मित्र की क्या पहचान है?
उत्तर—सच्चे मित्र की यह पहचान है कि वह अपने मित्र का साथ विपत्ति काल में भी नहीं छोड़ता। विपरीत परिस्थितियों में भी वह साथ देता है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पद्यांशों के भाव स्पष्ट कीजिए—
(क) भगत देखि राजी भई, जगत देखि रोई। दासी 'मीरा' लाल गिरधर, तारो अब मोही॥
उत्तर— मैं प्रभु भक्तों की संगति में आनन्दित हो रही हूँ। संसार को देखकर अत्यधिक दुःखी होती हूँ। मीराबाई वर्णन करती हैं कि मैं तो गिरधर लाल श्रीकृष्ण की दासी हूँ।हे प्रभो! आप मेरा उद्धार कीजिए।

(ख) कबिरा सोई पीर है, जो जानें पर पीर।
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर॥
उत्तर— कबीर कहते हैं। जो दूसरों के कष्ट कि वही सच्चा पीर (ईश का भक्त)को अच्छी तरह जानता है। जो दूसरों की पीड़ा को समझ नहीं सकता, वह निश्चय ही विधर्मी है, बेपीर है अर्थात उसे किसी के भी प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं है।

(ग) एकै साधे सब साधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलै फलै अघाय।
उत्तर— रहीम जी कहते हैं कि एक ईश्वर की साधना करने से सब कुछ प्राप्त करने में सफलता मिल जाती है। सब (ईश्वर और संसार) की साधना करने से सब कुछ मिट जाता है। इसलिए मूल (जड़) को सिचाई करने से वृक्ष पर फूल-फल पूर्ण सन्तुष्ट करने के लिए लगना प्रारम्भ हो जाता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए—
भाई, घृत, प्रकृति, संपत्ति, सर्प, व्यापत।
उत्तर— अपने अध्यापक महोदय की सहायता से शुद्ध उच्चारण करना सीखें और अभ्यास करें।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिए—
अनसुअन, भगत, जेक, तिरसुल, परलाई, अब्ब, कब्ब, विपति
उत्तर— अश्रुओं, भक्त, जिसके, त्रिशूल, प्रलय, अब, कब, विपत्ति।

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के सामने उनके पर्याय लिखे हैं। इनमें एक शब्द पर्यायवाची शब्द नहीं है,उसे चुनकर लिखिए —
(क) देवता = सुर, असुर, देव।
उत्तर—असुर
(ख) पति = प्राणनाथ, कंत, तनय।
उत्तर—तनय
(ग) अभिलाषा = लोभ, इच्छा, चाह।
उत्तर—लोभ
(घ) सज्जन = सभ्य, शिष्ट, अशिष्ट।
उत्तर—अशिस्ट
(ङ) फूल = पुष्प, कुसुम, पुरुष।
उत्तर—पुरुष

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है।प्रत्येक पंक्ति में पहचान स्पष्ट कीजिए—
(i) जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
(ii) एकै साधे सब साधै, सब साधे सब जाय।
(iii) कहि रहीम सम्पत्ति सगै बनत बहुत बहुरीत।
(iv) जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपौर।
उत्तर—(i) 'मौर-मुकुट-मेरो' शब्दों में 'म' वर्ण की बार-बार आवृति होने पर अनुप्रास अलंकार है।
(ii) 'साधे, सब, सधै, सब, साधे, सब' शब्दों में 'स' वर्ण की कई बार आवृति होने से अनुप्रास अलंकार है।
(iii) 'सम्पति, बनत, बहुत, रीत' शब्दों में 'त' वर्ण की बार-बार आवृति होने से अनुप्रास अलंकार है।
(iv) 'पर, पीर, काफिर, बेपीर' शब्दों में 'प' और 'र' वर्ष की कई बार आवृति होने से अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 5. तालिका में दिए गए शब्दों की सही जोड़ी बनाइए—
――शब्द ——――——— विलोम शब्द
(i) पण्डित——————(च) मूर्ख
(ii) देव———————(ड) दानव
(iii) प्रेम———————(क) घृणा
(iv) सुख———————(ख) दुख
(v) जल———————(घ) थल
(vi) दिन———————(ग) रात

प्रश्न 6. उपसर्ग जोड़कर नए शब्द बनाइए—
उत्तर— (i) परा + जय = पराजय
(ii) पर + भाव = प्रभाव
(iii) परा+ क्रम = पराक्रम
(iv) नि + रंजन = निरंजन
(v) नि + वेश = निवेश
(vi) नि + दान = निदान

प्रश्न 7. निम्नलिखित शब्दों में आवट और आहट प्रत्यय जोड़कर नए शब्द बनाइए—
उत्तर— (i) सजाना + आवट =सजावट
(ii) बनाना + आवट = बनावट
(iii) लिखना + आवट = लिखावट
(iv) मुस्कराना + आहट = मुस्कुराहट
(v) टकराना + आहट = टकराहट
(vi) चिल्लाना + आहट = चिल्लाहट
(vii) घबराना + आहट = घबराहट

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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पाठ 16— श्रम की महिमा सम्पूर्ण कविता एवं व्याख्या | कक्षा 6 हिन्दी विशिष्ट पद्यांशों की संदर्भ व सप्रसंग व्याख्या, प्रश्नोत्तर व भाषा अध्ययन (व्याकरण) | Path 15 Shram ki Mahima

इस भाग में पाठ 16—'श्रम की महिमा' कविता एवं कविता की व्याख्या कक्षा 6 हिन्दी विशिष्ट पद्यांशों की संदर्भ व सप्रसंग व्याख्या, प्रश्नोत्तर व भाषा अध्ययन (व्याकरण) की जानकारी दी गई है।

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