पाठ 7—हम बीमार ही क्यों हो? 6th हिन्दी (भाषा भारती) प्रमुख गद्यांशों का संदर्भ व प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर व व्याकरण || path 7 ham bimar hi kyo ho?
केन्द्रीय भाव— प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि बीमारी का उपचार कराने से है बीमार हो न होना स्वस्थ रहने के सामान्य नियम इस पाठ में बताए गए हैं। शरीर पाँच 1 सयों से मिलकर बना है आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी लेखक ने संतुलित आहार, प्रातः भ्रमण, व्यायाम आदि को स्वास्थ्य के लिये हितकारी बताया है। इन उपायों से हम अपने जीवन में स्वस्थ रह सकते हैं। संतुलित आहार के लाभ एवं संयमित जीवन जीने की प्रेरणा इस पाठ से प्राप्त होती है।
पाठ 7— 'हम बीमार ही क्यों हो?
एक कहावत है,'बीमारी का निदान कराने के बजाय बीमार न पड़ना ही बुद्धिमत्ता है। हमारा शरीर पाँच भौतिक तत्वों- आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मिलकर बना है। इन तत्वों की सन्तुलित मात्रा शरीर को स्वस्थ रखती है। इसके अभाव में शरीर अस्वस्थ हो जाता है अर्थात, पाँचों तत्व हमारे शरीर के लिए पाँच प्रकार के भोजन हैं। इनमें से किसी एक या दो तत्वों की हमारे शरीर में कमी हो जाने से वह रोगी हो जाता है। उस समय हम इन्हीं तत्वों का बुद्धिमतापूर्वक उपयोग करके आरोग्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
प्राचीन युग में इन पाँचों तत्वों को निर्दोष बनाए रखने के लिए अथक प्रयास किए जाते थे। उस युग में स्वच्छ और निर्मल आकाश में शुद्ध वायु श्वास लेने के लिए मिलती थी। नदियों का पवित्र जल प्राणों को शक्ति प्रदान करता था। सूर्य के प्रकाश का श्रद्धा और भक्ति के साथ उपयोग किया जाता था। धरती माता के द्वारा प्रदत्त अमृत तुल्य अन्न, फल और पेय पदार्थों से मनुष्य स्वस्थ, सबल और सतेज रहता था लेकिन आज उन्हीं पाँच तत्वों को प्रदूषित करने के लिए विश्व में एक होड़-सी लगी हुई है। वन उपवनों को नष्ट करके शहर बसाए जा रहे हैं, जो वायु को दूषित कर रहे हैं। आए दिन अणु बमों के परीक्षण होते हैं। फलस्वरूप ऋतुएँ अपने समय पर नहीं आतीं और हम महामारी से हमेशा ग्रस्त रहते हैं। जल अशुद्धि का यह हाल है कि गंगा-यमुना जैसी पवित्र सरिताओं में नगरों का नारकीय मल और कल-कारखानों का कूड़ा-कचरा सतत बहता रहता है, और इन्हीं नदियों का जल नलों द्वारा हमें प्राप्त होता है। पृथ्वी पर फैले खेतों में रासायनिक खाद का मनमाना प्रयोग कर उनकी उर्वरा शक्ति को नष्ट किया जा रहा है। आज हमें जीवन के आधारभूत इन पाँच तत्वों से वास्तविक लाभ नहीं मिल रहा है। उस युग और इस युग की जीवन पद्धति में अन्तर हो गया है। फिर भी प्रकृति का एक नियम है। वह जीवन की सुरक्षा हर स्थिति में करती है। इस विषम परिस्थिति में भी हम तत्वों का सदुपयोग करके स्वस्थ रह सकते हैं।
आकाश तत्व, पाँच तत्वों में सबसे अधिक उपयोगी एवं प्रथम तत्व है।महात्मा गांधी के आकाश तत्व को ‘आरोग्य-सम्राट' की संज्ञा दी है। आकाश जैसे हमारे आसपास ऊपर-नीचे है, वैसे ही हमारे भीतर भी है। चमड़ी के एक-एक छिद्र में आकाश है। इस को, इस खाली जगह को हमें भरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यदि हम अपना दैनिक आहार, जितना चाहिए उतना ही लें तो शरीर में स्फूर्ति रहेगी, हल्कापन रहेगा। उपवास इस त की प्राप्ति का एक मुख्य साधन है। उपवास के अतिरिक्त आकाश तत्व की प्राप्ति संयम् सदाचार, गाढ़ी नींद, विश्राम और प्रसन्नता से भी होती है।
वायु दूसरा आवश्यक तत्व है।एक मिनट भी हमें वायु न मिले तो हम घबरा उठते हैं। प्रतिदिन हम जितना भोजन करते हैं और जल पीते हैं, उससे लगभग सात गुनी वायु ग्रहण करते हैं। नाक और मुँह से ही नहीं, हम अपनी त्वचा के असंख्य छिद्रों से भी साँस लेते हैं। शुद्ध वायु में टहलने और व्यायाम करने से हमें इस तत्व की प्राप्ति आसानी से हो सकती है।
टहलने के लिए बस्ती से दूर कोई ऐसा साफ-सुथरा पथ चुनना चाहिए जो प्रकृति साम्राज्य से होकर गुजरता हो। टहलने के अतिरिक्त आसन, प्राणायाम, तैराकी एवं अन्य कसरतों के माध्यम से हम अपने शरीर को वायु तत्व प्रदान कर सकते हैं।
अग्नि तीसरा उपयोगी तत्व है। शास्त्रों में सूर्य और अग्नि को देवता मानकर उनकी पूजा-अर्चना का विधान है। सूर्य केवल प्रकाश और ताप ही नहीं देता है, बल्कि वह बुद्धि औ लम्बी उम्र भी प्रदान करता है। सूर्य के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत ही क्यों, रोम, यूनान, मिश्र-सभी जगह सूर्य को देवता माना गया है।
अग्नि तत्व के अभाव में शरीर निर्जीव हो जाता है। इस तत्व की कमी से गरिय मंदाग्नि, बुढ़ापा आदि का उपद्रव होता है। इस तत्व की शरीर में अधिकता होने से आँख जी आदि लाल हो जाते हैं, मिजाज गर्म और क्रोधी हो जाता है।
सूर्य का सही लाभ लेने के लिए स्वास्थ्य-विशेषज्ञ सूर्य निकलने से पहले उठने को अच् मानते हैं, नंगे सिर एवं नंगे पाँव वायु सेवन के लिए खुले मैदान में निकल जाने की सलाह है हैं। प्रातःकालीन किरणें त्वचा द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती हैं और अन्दर पहुँचकर विद्या 'डी' की वृद्धि करती हैं। 'सूर्य नमस्कार' करने से शरीर में अधिक मात्रा में लाल रक्त क उत्पन्न होते हैं और हमारी जीवन शक्ति बढ़ती है।
जल चौथा तत्व है। जल को जीवन और अमृत भी कहते हैं। स्पष्ट है कि जल जीवन लिए कितना आवश्यक है। वस्तुतः जन प्राणियों का है। हमारे शरीर के बर्तन के 100 भागों में 70 भाग केवल जल है। हमारे दाँत जो शरीर के अन्दर सबसे ठोस और कठोर अंग गि जाते हैं, 4 प्रतिशत जल धारण करते हैं।
जल भोजन का बड़ा आवश्यक अंग होता है। जल के योग से ही खून हमारे सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवयवों का पोषण करता है। जल ही त्वचा से पसीने के रूप में, फेफड़ों से वाष्प के रूप में और पेट से मल-मूत्र के रूप में शरीर की गंदगी को बाहर निकालता है।
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व शैया त्यागते ही पानी पीने से शरीर पूर्ण रूप से विकार रहित हो जाता है। उप पान का जल पेट में जाकर पचता नहीं। उसका काम आंतड़ियों आदि भीतरी अवयवों को धोकर साफ करना, उन्हें शक्ति देना तथा मल को शरीर से बाहर निकालना है। भोजन के एक घण्टे पूर्व तथा दो घण्टे बाद पानी पीना अच्छी आदत है। भोजन करते समय जहाँ तक हो सके, पानी नहीं पीना या कम पीना चाहिए। इससे भोजन की पाचन क्रिया में सुविधा रहती है। ठण्डे जल से स्नान करके भी हम जल तत्व की पूर्ति कर सकते हैं।
पाँचवाँ और अन्तिम तत्व पृथ्वी है। पृथ्वी हमारी माँ है, क्योंकि वह हमें जन्म देती है, धारण करती है, हमारा पालन पोषण करती है और अन्त में अपनी गोद में विश्राम देती है। मछली जल के बिना नहीं रह सकती क्योंकि वह जलचर है। पक्षी आकाश के बिना नहीं रह सकते क्योंकि वे नभचर हैं। हम थलचर हैं। हम भला पृथ्वी के बिना कैसे रह सकते हैं? जो कुछ हम खाते-पीते हैं या आहार के रूप में लेते हैं, वे सभी वस्तुएँ हमें पृथ्वी से ही प्राप्त होती हैं। सन्तुलित प्राकृतिक आहार जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। दूध, फल, अंकुरित अन्न, हरी सब्जियाँ, शहद आदि वस्तुएं भोजन में समुचित मात्रा में होंगी तो पृथ्वी तत्व संतुलित बना रहेगा।
भोजन के विषय में एक सामान्य नियम यह है कि उसमें एक हिस्सा गेहूँ, दाल, घी-तेल आदि एवं चार हिस्सा दूध, फल, हरी सब्जियाँ आदि होना चाहिए। व्यक्ति अपनी उम्र, स्थिति और आदत के हिसाब से इनका चयन करे और स्वस्थ रहे नंगे पैरों घूमना, धरती पर सोना, मिट्टी से स्नान करना आदि पृथ्वी तत्व को प्राप्त करने की अन्य क्रियाएँ हैं। भौतिक शरीर को पाँच भौतिक तत्वों से ही स्वस्थ रखा जा सकता है। ये पाँच तत्व आपके आसपास ही हैं।क्या अब भी आप रोगी रहना पसंद करेंगे?
शब्दार्थ
नारकीय = नरक जैसा।
मिजाज = प्रकृति, स्वभाव।
अवयव = अंग, अंश, भाग।
सरिता = नदी।
सूक्ष्मातिसूक्ष्म = छोटे से छोटा।
परीक्षापयोगी गद्यांश
गद्यांश (1)― टहलने के लिए बस्ती से दूर कोई ऐसा साफ-सुथरा पथ चुनना चाहिए जो प्रकृति के साम्राज्य से होकर गुजरता हो । टहलने के अतिरिक्त आसन, प्राणायाम, तैराकी एवं अन्य कसरतों के माध्यम से हम अपने शरीर को वायु तत्व प्रदान कर सकते हैं।
सन्दर्भ—प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 'हम बीमार ही क्यों हों? नामक पाठ से ली गई हैं। इस पाठ के लेखक डॉ.आनन्द हैं।
प्रसंग― लेखक टहलने और व्यायाम करने की सलाह देता है,जिससे हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं।
व्याख्या― अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए टहलना आवश्यक है लेकिन हमें घूमने-फिरने के लिए ऐसे स्थान को चुनना चाहिए, जो स्वच्छ हो। हमें ऐसे मार्ग से टहलने निकलना चाहिए जहाँ किसी तरह की गन्दगी न हो, साथ ही प्राकृतिक रूप से खुला और स्वच्छ वातावरण हो। चारों ओर कुदरत की सुन्दरता और सफाई हो । टहलने के अलावा हमें प्रतिदिन प्राणायाम, तैरना तथा दूसरी तरह की कसरतें भी खुले प्राकृतिक परिवेश में करनी चाहिए। इससे हमें खुली शुद्ध वायु प्राप्त होती है और हमारा शरीर इस तरह स्वस्थ बना रह सकता है।
गद्यांश (2)— सूर्य केवल प्रकाश और ताप ही नहीं देता है, बल्कि वह बुद्धि और लम्बी उम्र भी प्रदान करता है। सूर्य के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत ही क्यों,रोम,यूनान,मिस्र सभी जगह सूर्य को देवता माना गया है।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग —लेखक का मानना है कि सूर्य से केवल उजाला ही नहीं हमें बुद्धि तथा लंबी उम्र भी मिलती है
व्याख्या— लेखक का मत है कि सूर्य से हमें प्रतिदिन उजाला और गर्मी मिलती है। इसके अतिरिक्त सूर्य हमें बुद्धि और दीर्घ आयु भी प्रदान करता है। यदि सूर्य न होता, तो निश्चय ही पृथ्वी पर जीवन असम्भव होता। सूर्य को देवता रूप में हम पूजते हैं। भारत में ही नहीं, रोम में, यूनान में तथा मिस्र आदि देशों में सूर्य को देवता माना जाता है। उसे जीवन देने वाला देवता कहा जाता है।
गद्यांश (3)— हम भला पृथ्वी के बिना कैसे रह सकते हैं ? जो कुछ हम खाते-पीते हैं या आहार के रूप में लेते हैं, वे सभी वस्तुएँ हमें पृथ्वी से ही प्राप्त होती हैं। सन्तुलित प्राकृतिक आहार जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। दूध, फल, अंकुरित अन्न, हरी सब्जियाँ, मक्खन, शहद आदि वस्तुएँ भोजन में समुचित मात्रा में होंगी तो पृथ्वी तत्व सन्तुलित बना रहेगा।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह। प्रसंग— पृथ्वी का महत्व बतलाते हुए लेखक बता देना चाहता है कि पृथ्वी ने हमें प्राकृतिक रूप से वे सभी वस्तुएँ प्रदान की हैं जिनसे हम अपने शरीर को पूर्ण स्वस्थ रख सकते हैं।
व्याख्या— धरती के बिना हमारा जीवन सम्भव नहीं है। पृथ्वी ही हमें वह सब देती है, जिसका उपयोग हम अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए करते हैं। खाने-पीने के लिए जो हम आहार रूप में ग्रहण करते हैं, वह सब पृथ्वी द्वारा दिया जाता है। जीवन का सबसे बड़ा वरदान आहार है जिसमें कुदरत का सन्तुलन समाया हुआ है। हम जो भी अन्न रूप में, हरी सब्जियों के रूप में, मक्खन एवं शहद के रूप में प्राप्त करते हैं, उन सभी का उपयोग भोजन के रूप में उचित मात्रा में करते हैं, वह पृथ्वी माता का वरदान है। इन सभी के रूप में उन सभी की उचित मात्रा को ग्रहण करते रहने से हम स्वस्थ बने रहेंगे। यह सब सन्तुलित और कुदरती रूप में भोग किया जाना चाहिए। ये सभी पदार्थ पृथ्वी तत्व हैं क्योंकि ये सभी पृथ्वी से मिलते हैं।केवल उजाला ही नहीं, हमें बुद्धि तथा लम्बी उम्र भी मिलती है
पाठ का अभ्यास
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) हमारा शरीर तत्वों से मिलकर बना है—
(i) एक
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच
उत्तर— (iv) पाँच
(ख) चमड़ी के एक-एक छिद्र में है—
(i) आकाश
(ii) पाताल
(iii) जल
(iv) वायु
उत्तर—(i)आकाश
(ग) हम जितना भोजन करते हैं, जल पीते हैं, उसकी तुलना में वायु ग्रहण करते हैं—
(i) चार गुना
(ii) पाँच गुना
(iii) सात गुना
(iv) छह गुना
उत्तर—(iii) सात गुना
(घ) सूर्य नमस्कार करने से शरीर में अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं—
(i) लाल रक्त कण
(ii) श्वेत रक्त कण
(iii) सूक्ष्म अवयव
(iv) क्षार पदार्थ।
उत्तर— (i) लाल रक्त कण
प्रश्न 2. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) हमारे शरीर के वजन के 100 भागों में 70 भाग में केवल जल है।
(ख) भोजन के एक घण्टे पूर्व तथा दो घण्टे बाद पानी पीना अच्छी आदत है।
(ग) सूर्य केवल प्रकाश और ताप ही नहीं देता बल्कि बुद्धिऔर लम्बी उम्र भी प्रदान करता है।
प्रश्न 3. एक या दो वाक्यों में उत्तर दीजिए—
(क) पाँच तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर— पाँच तत्व हैं- (i) आकाश, (ii) वायु, (iii) अग्नि,
(iv) जल, एवं (v) पृथ्वी।
(ख)'आरोग्य सम्राट्' किस तत्व को कहा गया है?
उत्तर—आकाश तत्व को 'आरोग्य सम्राट्' कहा गया है।
(ग) हमें कैसा भोजन करना चाहिए?
उत्तर— हमें सन्तुलित, प्राकृतिक आहार लेना चाहिए जिसमें गेहूँ, दाल, घी, तेल आदि का एक हिस्सा एवं चार हिस्सा दूध,फल और हरी सब्जियाँ लेना आवश्यक है।
(घ) स्वस्थ रहने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर— स्वस्थ रहने के लिए हमें-आकाश, वायु, अग्नि,जल और पृथ्वी तत्वों की सन्तुलित मात्रा शरीर में रखनी चाहिए। सन्तुलित प्राकृतिक आहार लिया जाना चाहिए। इस तरह रोग पास नहीं आयेगा।
प्रश्न 4. तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) जल को जीवन कहा गया है। क्यों?
उत्तर― जल को जीवन और अमृत भी कहते हैं। जीवन केलिए जल तत्व अत्यन्त आवश्यक है। यह वास्तव में प्राणियों काप्राण है। शरीर के वजन के 100 भागों में 70 भाग केवल जल हैअल के योग से शरीर के छोटे से छोटे अंगों का पोषण होता है। जल ही पसीने के रूप में, फेफड़ों से वाष्प के रूप में और पेट से मल-मूत्र के रूप में शरीर की गन्दगी को बाहर निकालता है। जल से पाचन क्रिया ठीक रहती है। इस प्रकार
(ख) सन्तुलित आहार किसे कहते हैं?यह क्यों आवश्यक है?
उत्तर— शरीर के स्वस्थ रखने के लिए हमें सन्तुलित आहार लेना चाहिए। सन्तुलित आहार में एक हिस्सा गेहूँ, दाल, घी, तेल आदि होना चाहिए और इसके अतिरिक्त चार हिस्सा दूध, फल, हरी सब्जियाँ आदि का होना अनिवार्य है। साथ ही उस आहार में प्राकृतिक रूप से सन्तुलन बना रहना चाहिए। सन्तुलित आहार में पृथ्वी तत्व का सामंजस्य अनिवार्य है। भोजन में शामिल सभी वस्तुएँ जो खाने और पीने योग्य हैं, वे सभी पृथ्वी तत्व से संयुक्त - घण्टे होती हैं। इस तरह सन्तुलित आहार के उपयोग से आरोग्य लाभ प्राप्त हो सकता है।
(ग) "सूर्य के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती" सिद्ध कीजिए।
उत्तर— सूर्य से हमें प्रकाश और ताप मिलता है। इससे हमें बुद्धि और लम्बी आयु का वरदान भी मिलता है। सूर्य की प्रातः कालीन किरणों से हमें विटामिन 'डी' मिलता है जिससे लाल रक्त कण उत्पन्न होते हैं, जिससे हमारी जीवन शक्ति बढ़ती है। सूर्य से प्राप्त गर्मी से पृथ्वी तत्व-अन्न, फल, जल, सब्जियाँ अग्नि, आदि की प्राप्ति होती है, जिससे हमारा जीवन विकसित होता है। सूर्य को देवता के रूप में हम पूजते हैं। सूर्य से जीवन संरक्षित होता है। सूर्य जीवन का देवता है। रोम, यूनान, मिस्र आदि देशों में सूर्य को देवता माना जाता है।
(घ) पृथ्वी को माँ क्यों कहा गया है।
उत्तर— पृथ्वी हमारी माँ है। हम पृथ्वी पर ही जन्म लेते हैं, वह हमें धारण करती है। उससे उत्पन्न तत्वों-अन्न, जल, दूध, फल, हरी सब्जियाँ, मक्खन, शहद आदि से हमारा पोषण होता है। हमें सन्तुलित आहार मिलता है। पृथ्वी के बिना हमारा अस्तित्व नहीं है। सन्तुलित और प्राकृतिक आहार पृथ्वी की देन है, अतः पृथ्वी हमारी माँ है। पृथ्वी ही जन्म देने वाली, पोषण करने वाली और अन्त में अपनी ही गोद में विश्राम देने वाली है, अतः 'माता पृथ्वी पुत्रोऽहं पृथिव्या:' सत्य है।
प्रश्न 5. सोचिए और बताइए
(क) पृथ्वी पर जल की मात्रा बिल्कुल कम हो जाए तो क्या होगा?
उत्तर— जल वह तत्व है जिसकी कमी से प्राणियों का जीवन असम्भव हो जाएगा। जल अमृत है। जल ही प्राण है। हमारे शरीर जल है। के वजन के 100 भागों में 70 भाग केवल जल है। जल हमारे भोजन का अनिवार्य तत्व है। इसके सहयोग से खून शरीर के अतिसूक्ष्म अवयवों का पोषण करता है। जल ही शरीर की गन्दगी बाहर फेंक निकालता है। शरीर का निरोग बने रहना शुद्ध जल की प्राप्ति से सम्भव है।
(ख) आपको सब्जियाँ न मिलें तो सन्तुलित आहार की पूर्ति कैसे करोगे?
उत्तर— सब्जियों के न मिलने पर सन्तुलित आहार की पूर्ति में फल, दूध और जल की मात्रा बढ़ा देंगे। साथ ही सूर्योदय से पहले खुले मैदान में स्वच्छ वायु सेवन के लिए निकलेंगे जिससे अन्य आवश्यक विटामिनों की पूर्ति हो सके।
(ग) शरीर में जल की मात्रा कम हो जाए तो इसकी पूर्ति हेतु आप क्या करेंगे?
उत्तर— शरीर में जल की मात्रा कम हो जाने पर इसकी पूर्ति के लिए ठण्डे जल से स्नान करेंगे। रसदार फलों और सब्जियों का उपयोग बढ़ा देंगे। इस तरह धीरे-धीरे जल की मात्रा की कमी पूरी हो सकती है।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न 6. (क) यदि आपको पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य ग्रह पर जाना पड़े तो आप अपने साथ क्या-क्या ले जाना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर — अन्य ग्रह पर जाने की स्थिति में अपने साथ वे सभी वस्तुएँ ले जाना चाहेंगे जिनसे हमें जल, वायु तथा खाद्य वस्तुएँ आदि जिनसे हमारे जीवन को बनाए रखने में सहायता मिल सके।
(ख) यदि पाँच भौतिक तत्वों में से आपको कोई दो तत्व लेने को कहा जाए तो आप कौन-से दो तत्वों का चयन करेंगे और क्यों?
उत्तर— पाँच तत्वों में से हम जल और पृथ्वी तत्व को लेना चाहेंगे,क्योंकि पृथ्वी तत्व से अन्न, फल, दूध एवं सब्जियाँ अपने आप ही प्राप्त हो जायेंगी। जीवन की प्रक्रिया चल सकेगी तथा जल तत्व उसे सहारा देगा
भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए—
सन्तुलित, बुद्धिमत्ता, निर्दोष, स्वास्थ्य, प्रदत्त।
उत्तर— अपने अध्यापक महोदय की सहायता से अपनी कक्षा में शुद्ध उच्चारण कीजिए और अभ्यास कीजिए।
प्रश्न 2. निम्नलिखित की वर्तनी शुद्ध कीजिए—
सूरक्षा, वायूमडंल, सासं, निमर्ल, भक्ती।
उत्तर— सुरक्षा,वायुमंडल,सांस,निर्मल,भक्ति।
प्रश्न 3. उदाहरण के अनुसार प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए—
उदाहरण— बनना + आवट = बनावट
लिखना + आवट = लिखावट
सजना + आवट = सजावट
लिखना + आई = लिखाई
दिखना + आई =दिखाई
सिलना + आई=सिलाई
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए—
(1) आकाश (2) सूर्य (3) पृथ्वी (4) अग्नि (5) नदी।
उत्तर—(1) आकाश = नभ, व्योम, आसमान, शून्य।
(2) सूर्य = सूरज, भानू, भास्कर, रवि।
(3) पृथ्वी = धरती, वसन्धुरा, वसुधा, भूमि।
(4) अग्नि = आग, अनल, ज्वाला, पावक।
(5) नदी = सरिता, तटिनी, तरंगिणी, नद।
प्रश्न 5 विलोम शब्दों की सही जोड़ी बनाइए-
(1) लाभ —————— (क) अशुद्ध
(ii) स्वस्थ —————– (ख) विषम
(iii) शुद्ध——————– (ग) नीचे
(iv) सम ——————– (घ) अप्रसन्न
(v) ऊपर——————– (ङ) हानि
(vi) प्रसन् —————― (च) अस्वस्थ
उत्तर— (1) लाभ ————— हानि
(ii) स्वस्थ ————— अस्वस्थ
(iii) शुद्ध ————— अशुद्ध
(iv) सम ————— विषम
(v) ऊपर ————— नीचे
(vi) प्रसन्न ————— अप्रसन्न
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
(1) प्राचीन (2) भोजन (3) संयम (4) सदाचार (5) पवित्र।
उत्तर— (1) प्राचीन— भारतीय सभ्यता बहुत
प्राचीन है।
(2) भोजन— भोजन में सभी अनिवार्य तत्व होने चाहिए।
(3) संयम— संयमपूर्ण जीवन सुखमय होता है।
(4) सदाचार— सदाचार से शरीर स्वस्थ रहता है।
(5) पवित्र— गंगा का जल पवित्र होता है।
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
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