पाठ 6—'विजय गान 'कक्षा 6 हिन्दी प्रमुख पद्यांशों का संदर्भ व प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर व व्याकरण || Vijay Gaan- Natvar lal Snehi
संपूर्ण कविता (पाठ) परिचय
केन्द्रीय भाव— प्रस्तुत कविता में कवि ने युवाओं को विजय पथ पर चलने का आह्वान किया है। मानव जीवन महासंग्राम है। इसमें अनेक बाधाएँ आती हैं। इन बाधाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए मनुष्य को बड़ी सावधानी के साथ साहसपूर्वक चलने की आवश्यकता है। यह कार्य तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। त्याग, तपस्या और दृढ़ संकल्प के बल पर मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
सम्हल सम्हल कर चलो वीरवर, तलवारों की धारों पर।
इधर-उधर हैं खाई कुएँ, ऊपर है सूना अम्बर!
बरस रहीं बाधाएँ पथ में,
उमड़ उमड़ कर धारों से।
वीर, सिन्धु के पार उतरते,
प्राणों की पतवारों से।
टकराने दो सिन्धु-हिमाचल, सूर्य चन्द्र, अवनी- अम्बर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर, तलवारों की धारों पर।।
पापों से सन्तप्त धरा का,
पाप को गर्मी में जलने दो।
घुमड़-घुमड़ कर नभ मंडल को
नित अंगार उगलने दो।
जल जाएगा पाश पुराना,परवशता अंचल जर्जर।
सम्हल- सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर।।
छूने पाए मोह न तुमको,
बनो तपस्वी! लौह हृदय।
काल स्वयं डर जाय देखकर,
ध्रुव से भी ध्रुवतर निश्चय।
हो अगस्त्य, क्या कठिन सुखाना,बाधा का दुर्दम सागर।
सम्हल- सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर।।
कवि परिचय
नटवरलाल 'स्नेही'— इनका जन्म 4 जुलाई 1917 को रतलाम (म.प्र.) में हुआ था। इन्होंने ग्वालियर से साहित्य विशारद की उपाधि प्राप्त की। इसी दौरान ये गाॅंधीवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और इन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। इनका नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रथम सूची में प्रकाशित हुआ। इन्होंने 100 से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन किया। लगभग पाँच हजार कविताओं के अतिरिक्त इनकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई है जिनमें निबन्ध कहानी संग्रह, खण्डकाव्य व महाकाव्य सम्मिलित हैं।'गाॅंधी मानस' इनकी पुरस्कृत रचना है।
शब्दार्थ
सन्तप्त = दुःखी।
धरा = पृथ्वी
पाश = बन्धन
परवशता = गुलामी
जर्जर = जीर्ण
अगस्त्य = एक ऋषि का नाम जिन्होंने अंजलि में भर-भरकर समुद्र को पीकर सुखा दिया था।
टिप्पणी— तलवार की धार पर चलना एक मुहावरा है जिसका अर्थ है बहुत मुश्किल वा चुनौतीपूर्ण कार्य करना।
संपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
पद्यांश (1)— सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर, तलवारों की धारों पर!
इधर-उधर हैं खाई -कुएँ, ऊपर है सूना अम्बर!
बरस रहीं बाधाएँ पथ में,
उमड़ उमड़ कर धारों से।
वीर, सिन्धु के पार उतरते,
प्राणों की पतवारों से।
टकराने दो सिन्धु-हिमाचल,सूर्य-चन्द्र,अवनी- अम्बर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर,तलवारों की धारों पर।।
शब्दार्थ—
सम्हल-सम्हल कर = सावधानीपूर्वक।
वीरवर = श्रेष्ठवीर
अम्बर = आकाश
बाधाएँ = रुकावटें
पथ = मार्ग
सिन्धु = समुद्र
अवनी = धरती
सन्दर्भ— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक 'भाषा-भारती' की 'विजय गान' नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता नटवरलाल 'स्नेही' हैं।
प्रसंग— कवि ने कठिनाइयों में भी सावधानीपूर्वक अपने जीवन रूपी मार्ग पर लगातार चलते रहने का आह्वान किया है।जाना चाहिए। जीवन का मार्ग कठिनाइयों की, खाइयों और कुआँ (रुकावटों) से बाधित है। ऊपर आकाश सूना है। तुम्हारे मार्ग में रुकावटों की वर्षा हो रही हैं। ये बाधाएँ वर्षा की जलधारा के समान झड़ी लगाए उमड़ रही हैं। (परन्तु तुम्हें घबराना नहीं क संज्ञा, चाहिए क्योंकि तुम वीर हो और) वीर तो अपने प्राणों की पतवार से (प्राणों की बाजी लगा करके) विपत्तियों के सागर को पार कर जाते हैं। चाहे, समुद्र और हिमालय, सूर्य और चन्द्रमा तथा धरती और आकाश आपस में क्यों न टकरा जाएँ, तुम्हें तो हे श्रेष्ठ वीरो! सावधानी से तलवारों की धार पर भी अपने मार्ग पर आगे ही आगे बढ़ते जाना है।
पद्यांश (2)— पापों से संतप्त धरा का पाप,
ताप में जलने दो
घुमड़-घुमड़ कर नभ मंडल को
नित अंगार उगलने दो।
जल जाएगा पाश पुराना, परवशता अंचल जर्जर।
सम्हल- सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर॥
शब्दार्थ—संतप्त = कष्ट पाती हुई।
ताप = ऊष्मा, गर्मी।
परवशता = गुलामी
अंचल = आंचल।
जर्जर : = पाश जीर्ण क्षीर्ण, पुराना और फटा हुआ।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— इस पद्यांश में सारी धरती से पुरानापन तथा गुलामी के पुराने अंचल को जलाकर भस्म कर देने के लिए आह्वान किया गया है।
व्याख्या― कवि कहता है कि यह धरती अनेक तरह से किए गए पापों से संताप के कष्ट पा रही है। इसे पाप की ता (आग) से जलने दो। सारा आकाश मण्डल भी बार-बा उमड़-घुमड़ कर अंगारे उगलने लग जाय जिससे पुरानी गुलाम का झीना सा जर्जर जाल जलकर समाप्त हो जाए। इसलिए हे श्रेष्ठ वीरो ! तुम सावधानीपूर्वक तलवारों की चार पर चलते चलो (जीवन की अनेक बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ते चलो।
पद्यांश (3) छूने पाए मोह न तुमको,
बनो तपस्वी! लौह हृदय।
काल स्वयं डर जाय देखकर,
ध्रुव से भी ध्रुवतर निश्चय।
हो अगस्त्य, क्या कठिन सुखाना बाधा का दुर्दम सागर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर॥
शब्दार्थ— लौह हृदय = लोहे से बने पक्के हृदय वाले।
ध्रुव = अटल।
निश्चय = इरादा।
अगस्त्य = एक ऋषि का नाम जिन्होंने अपनी अंजलि से सारे समुद्र को पीकर सुखा दिया था।
बाधा = रुकावट।
दुर्दम = जिसे वश में करना बहुत ही कठिन होता है।
सागर = समुद्र
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— कवि भारत के वीरों को पक्के इरादे से भयभीत न होकर बाधाओं पर विजय प्राप्त करने का आह्वान करता है।
व्याख्या— हे वीरो ! तुम्हें किसी भी तरह का मोह भी छू न सके, इसके लिए तुम्हें एक तपस्वी बन जाना चाहिए।तुम्हें लोहे के हृदय वाला हो जाना चाहिए जिससे काल भी भयभीत हो उठे। तुम्हें अत्यन्त पक्के इरादों वाला हो जाना चाहिए। हे वीरवरो! तुम्हें अगस्त्य ऋषि के समान बन जाना चाहिए जिससे बाधाओं के दुर्दमनीय (कठिनाई से वश में किए जाने वाला) सागर को भी वश में करना तुम्हारे लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं होगा। अतः हे श्रेष्ठ वीरो! तुम्हें सम्हल कर तलवार की धार पर चलना है (चुनौतीपूर्ण कार्य करना है।)
अभ्यास
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) पथ में बरस रही हैं—
(i) चिंगारियाँ
(iii) शक्तियाँ
(iv) बिजलियाँ।
उत्तर (ii) बाधाएँ
(ख) धरा संतप्त हो रही है―
(i) पुण्य से
(ii) दया से
(iii) दान से
उत्तर—(iv) पाप से
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) वीरों को तलवारों की धारों पर चलना पड़ता है।
(ख) नभ मण्डल को नित अंगार उगलने दो।
(ग) दृढ़ निश्चय से काल स्वयं डर जाता है।
(घ) दुर्गम सागर सुखाने के लिए तुम अगस्तय हो।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्य में लिखिए—
(क) वीरों के पथ में क्या बरस रही हैं?
उत्तर— वीरों के पथ में बाधाएँ बरस रही हैं।
(ख) अंगार उगलने के लिए किससे कहा गया है?
उत्तर— अंगार उगलने के लिए नभ मण्डल से कहा गया है।
(ग) कवि किससे,किसको टकरा देना चाहता है?
उत्तर— कवि समुद्र को हिमालय से,सूर्य को चन्द्रमा से, धरती को आकाश से टकरा देना चाहता है।
(घ) कवि तपस्वी बनने के लिए क्यों कह रहा है?
उत्तर— कवि कह रहा है कि तुम(वीर पुरुष) तपस्वी बन जाओ जिससे तुम्हारे ऊपर माया-मोह का प्रभाव न पड़ सके।
(ङ) 'प्राणों की पतवार'से कवि का क्या आशय है?
उत्तर— प्राणों की पतवार से कवि का आशय है कि हे वीरो! तुम अपने अन्दर प्राण शक्ति (ऊर्जा) इतनी पैदा कर लो कि तुम्हें बाधाओं के सागर को पार करने में किसी तरह का डर न लगे।
(च) वीरों से काल कब डरने लगता है?
उत्तर— पक्के इरादे वाले वीरों से काल डरने लगता है।
(छ) 'विजय गान' कविता का सार लिखिए।
उत्तर— कवि का आशय है कि श्रेष्ठ वीरों को विजय के मार्ग पर बाधाओं की चुनौती को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। मनुष्य जीवन एक महासंग्राम है। इसमें अनेक तरह की रुकावटें आती हैं। जीवन की इन रुकावटों पर जीत पाने के लिए साहसपूर्वक सावधानी से आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए। तलवार की धार पर चलने के समान दुर्गम जीवन पथ पर चलने के लिए त्याग, तपस्या और पक्के संकल्प की जरूरत होती है। प्राण-शक्ति के सहारे मनुष्य को जीवन के समुद्र को पार करने में सफलता प्राप्त हो सकती है।
भाषा की बात
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए—
प्राण, संतृप्त, ध्रुव, अगस्तय।
उत्तर— कक्षा में अपने अध्यापक महोदय की सहायता से उच्चारण करना सीखे और लगातार अभ्यास कीजिए
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों की सही वर्तनी कीजिए—
बीरबर, निशचय, तलवर, अगार।
उत्तर— वीरवर, निश्चय, तलवार, अंगार।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए— प्रश्न 4. कविता की पहली पंक्ति में 'सम्हल-सम्हल' का प्रयोग हुआ है। ऐसे अन्य पदों को छाँटिए जिनमें एक ही शब्द का दो बार प्रयोग हुआ हो। प्रश्न 5. इस कविता की जिन पंक्तियों में वर्णों की आवृत्ति हुई है,उन्हें छाँटकर लिखिए। प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों में उचित उपसर्ग व प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए— प्रश्न 7. पर्यायवाची शब्द लिखिए। कक्षा 6 हिन्दी के इन 👇 पाठों को भी पढ़े। मॉडल प्रश्न पत्र कक्षा 6 सत्र 2022-23 (हल सहित) एटग्रेड अभ्यासिका कक्षा 6 हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, विज्ञान, सा. विज्ञान के पाठों को पढ़ें। इन 👇 इतिहास के प्रकरणों के बारे में भी जानें। संस्कृत कक्षा 6 के इन 👇 पाठों को भी पढ़िए। I hope the above information will be useful and important.
हिमाचल— जाड़े के दिनों में हिमाचल
बर्फ से ढक जाता है।
मंडल— आकाश मंडल से भीषण आग बरस रही है।
अंबर— अम्बर में काले बादल छाए हुए हैं।
हृदय— उदार हृदय व्यक्तियों का सम्मान किया जाता है।
उत्तर— सम्हल-सम्हल, उमड़-उमड़, घुमड़-घुमड़।
उत्तर— 'अवनी-अम्बर' में 'अ' : वर्ण की।
'पाप-ताप' में 'प' वर्ण की
ध्रुव से ध्रुवतर, में 'ध्रु' एवं व वर्ण की।
ज्ञान, सफल
उत्तर— अज्ञानता और असफलता।
सूर्य, चन्द्रमा, सिन्धु, अग्नि, अम्बर।
उत्तर—(1) सूर्य = भानु, भास्कर, सूरज, दिवाकर, दिनकर, आदित्य
(2) चन्द्रमा = चन्द्र, शशि, रजनीकर, शीतकर, सुधांशु, सुधाकर, राकापति।
(3) सिन्धु = समुद्र, सागर, जल, क्षीर, नीर।
(4) अग्नि = अग्नि, वैश्वानर, अनल, पावक, हुताशन।
(5) अम्बर = आकाश, क्षितिज, अन्तरिक्ष, गगन, व्योम।
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1. [1] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
2. [2] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
3. [3] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
4. [4] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
5. [5] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
6. [1] मॉडल प्रश्नपत्र विषय सामाजिक विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
7. [2] मॉडल प्रश्नपत्र विषय सामाजिक विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
8. मॉडल प्रश्नपत्र विषय गणित (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
9. मॉडल प्रश्नपत्र विषय संस्कृत (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
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2. विज्ञान - पाठ 2 'सूक्ष्मजीव - मित्र एवं शत्रु' एटग्रेड अभ्यासिका के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
3. विज्ञान - पाठ 3 'तन्तु से वस्त्र तक' एटग्रेड अभ्यासिका के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
4. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 06 || सामाजिक विज्ञान || हमारे अतीत | अध्याय 01 और 02
5. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 06 || सामाजिक विज्ञान | ग्लोब और मानचित्र
1. इतिहास जानने के स्रोत कक्षा 6 इतिहास
2. आदिमानव का इतिहास कक्षा 6 अध्याय 2
3. हड़प्पा सभ्यता कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान
1. प्रथमः पाठः शब्द परिचय (कक्षा 6वीं) संस्कृत
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3. द्वितीयः पाठः 'कर्तृक्रियासम्बन्धः' संस्कृत कक्षा - 6
4. तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः
5. तृतीयः पाठः सर्वनामशब्दाः (स्त्रीलिंङ्गम्) (भाग-1 ) हिन्दी अनुवाद व अभ्यास
6. तृतीयः पाठः नपुंसलिङ्गम् (संस्कृत कक्षा-6)
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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