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पाठ 4—'अपना हिन्दुस्तान कहाँ है' कक्षा 6 हिन्दी प्रमुख पद्यांशों का संदर्भ व प्रसंग सहित व्याख्या, सम्पूर्ण अभ्यास (प्रश्नोत्तर) व व्याकरण

संपूर्ण पाठ परिचय

केंद्रीय भाव— विश्वगुरु के पद पर आसीन रहे भारत ने अपने नैतिक मूल्यों के बल पर ही विश्व में अपनी अद्वितीय पहचान बनाई थी।वर्तमान में हम अपनी यह पहचान खोते जा रहे हैं। वैश्वीकरण के दौर में सुख-सुविधाओं में तो वृद्धि हुई है किन्तु हमारे सांस्कृतिक मूल्य, संस्कार, चिन्तन, सेवाभाव तथा आत्मीय संतोष जैसे तत्व कम होते जा रहे हैं। कवि ने इस कविता में इसी चिन्ता को व्यक्त किया है।

कविता– 'अपना हिन्दुस्तान कहाँ है'

भूमण्डलीकरण के युग में अब अपनी पहचान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?
भूमण्डलीकरण के मद में हम सब कैसे झूम रहे हैं?
टी.वी. टेलीफोनों से ही सारी दुनिया घूम रहे हैं।
साक्षरता का आन्दोलन है, चिन्तन का विस्तार कहाँ है?
जन-जन में जो फैल रही उस शिक्षा में संस्कार कहाँ है?
बड़ी-बड़ी खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में, अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

महानगर में गगन चूमते ऊँचे-ऊँचे भवन खड़े हैं।
बड़े-बड़े भवनों में झाँके तो टूटे परिवार पड़े हैं।
टी.वी. टेलीफोन बज रहे पर आपस में बात बन्द है,
अबकी कविता लगती जैसे परिवारों का भंग छन्द है।
जन्म-जन्म के बन्धन वाला बोलो दैव-विधान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?
यंत्रों की ताकत के भीतर , मंत्रों का मृदु घोष कहाँ है?
धन से कोष भरे हैं लेकिन फिर भी वह संतोष कहाँ है?
राजनीति की कूट-चाल में जन-सेवा का भाव कहाँ है?
राम-राज में जरा बताओ केवट की वह नाव कहाँ है?

कितने ही अपहरण हो रहे किन्तु कहो हनुमान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?
कविकुल गुरु की सृजन शक्ति का वह पावन संस्कार कहाँ है?
फूहड़ गीतों में खोया जो वह मधुरस शृंगार कहाँ है?
मन को जो आन्दोलित कर दे, कविता की वह धार कहाँ है?
भोजराज की कविता वाला वह वैभव विस्तार कहाँ है?
तुलसी, सूर, निराला, दिनकर औ रहीम, रसखान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

कवि परिचय

दयालसिंह पंवार — इनका जन्म 1 अगस्त सन् 1947 को हुआ। प्रज्ञाचक्षु (नेत्रहीन) होते हुए भी इन्होंने उच्च अध्ययन किया तथा स्कूल, कालेज की अनेक भाषण प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत हुए। संस्कृत अकादमी द्वारा भी अलंकृत हुए। आप वर्तमान में राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली में व्याख्याता हैं।

शब्दार्थ

सकल = समस्त, सब।
साक्षरता = सामान्य स्तर तक पढ़ना लिखना।
भंग = टूटने का भाव।
कूट-चाल = कपट भरी चाल।
अपहरण = हर लेना।
पावन = पवित्र।
वैभव = सम्पन्नता।
केवट = नाव चलाने वाला।

टिप्पणी—

भूमण्डलीकरण— सम्पूर्ण धरती पर रहने वाले लोगों का एक भाव । आवागमन के साधन बढ़ने से धरती पर रहने वाले लोग परस्पर निकट आ गए हैं। शिक्षा, संस्कृति, व्यापार आदि सभी का एक दूसरे देशों पर प्रभाव पड़ने लगा है। संचार के साधनों ने सारी दुनिया को एक कर दिया है।

सम्पूर्ण पद्यांशो की व्याख्या

पद्यांश 1— भूमण्डलीकरण के युग में अब अपनी पहचान हैं, कहाँ है
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है
भूमण्डलीकरण के मद में हम सब कैसे झूम रहे हैं?
टी.वी. टेलीफोनों से ही सारी दुनिया घूम रहे हैं।
साक्षरता का आन्दोलन है, चिन्तन का विस्तार कहाँ गया
जन-जन में जो फैल रही, उस शिक्षा में संस्कार कहाँ हैं?
बड़ी-बड़ी खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में, अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

शब्दार्थ—
भूमण्डलीकरण = समस्त धरती पर रहने वाले लोगों का एक भाव।
सकल = समस्त, सब।
विश्व = संसार।
मद = घमण्ड, नशा।
साक्षरता = सामान्य स्तर तक पढ़ना और लिखना।
चिन्तन = सोच, विचारशीलता।

सन्दर्भ— प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'भाषा - भारती' के 'अपना हिन्दुस्तान कहाँ है' नामक पाठ से अवतरित है। इसके रचयिता 'दयाल सिंह पवार' हैं।

प्रसंग— इस पद्यांश में बताया है कि हम अपनी संस्कृति को इस भूमण्डलीकरण के कारण भुला चुके हैं।

व्याख्या— कवि कहता है कि आज हम भूमण्डलीकरण के इस युग में अपने हिन्दुस्तान की अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं। हमारी संस्कारों की संस्कृति से होने वाली पहचान समाप्त हो रही है, उसे भुला दिया है। इस युग में अब यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने हिन्दुस्तान की खोज करें कि उसका सारे विश्व में अस्तित्व है भी अथवा नहीं। हम सभी भूमण्डलीकरण के मद (नशे) में मतवाले हो गए हैं। टी. वी. और टेलीफोन पर ही सारी दुनिया की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं यह जानकारी अपूर्ण है और अवास्तविक है सामान्य स्तर तक शिक्षा का प्रसार करने का आंदोलन चलाया हुआ है परंतु उसे शिक्षा प्रसार में विस्तृत चिंतन नहीं है इस शिक्षा में संकीर्णता है सभी लोगों को दी जाने वाली इस शिक्षा से शिक्षार्थियों को संस्कारवान नहीं बनाया जा रहा है संस्कार विहीन शिक्षा लोगों का कल्याण नहीं कर सकती सारे विश्व में बड़ी-बड़ी खोजें की जा रही है लेकिन लगता है अपना हिंदुस्तान तो कहीं खो गया है उसका विश्व गुरुत्व चला गया है इसलिए अब हम सब अपने हिंदुस्तान को इस विश्व में खोज निकाले।

पद्यांश 2— महानगर में गगन चूमते ऊँचे-ऊँचे भवन खड़े हैं।
बड़े-बड़े भवनों में झाँकें तो टूटे परिवार पड़े हैं।
टी.वी. टेलीफोन बज रहे पर आपस में बात बन्द है;
अबकी कविता लगती जैसे परिवारों का भंग छन्द है।
जन्म-जन्म के बन्धन वाला बोलो दैव-विधान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

शब्दार्थ—
महानगर = बड़े-बड़े शहर।
गगन चूमते = आकाश को छूने वाले (बहुत ऊँचे-ऊँचे)।
भवन = मकान।
झाँकें = देखें (ध्यान से देखें तो)।
टूटे = अलग-अलग।
बात बन्द है = बातचीत नहीं होती।
भंग = टूटा हुआ।
दैव-विधान देवताओं द्वारा बनाया नियम।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— कवि ने बताया है कि आज हिन्दुस्तान की पारिवारिक समरसता टूट गई है।

व्याख्या— बड़े-बड़े शहरों में आकाश को छूने वाले बहुत ऊँचे-ऊँचे भवनों (घरों) का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन इन भवनों में ध्यान से झाँक कर देखें तो पता चलता है कि इनमें रहने वाले परिवार बिखर गये हैं, वे अलग-अलग रह रहे हैं। सम्मिलित परिवारों का रूप समाप्त हो गया है। टी. वी. और टेलीफोनों पर ही बातचीत कर ली जाती है, लेकिन परिवार के सदस्य परस्पर बातचीत नहीं करते। आज के कवियों द्वारा रचित कविताओं में बिखरे परिवारों के टूटे पड़ते है। भारत की संस्कृति सरीखे बुद्धिमान छन्द दीख देवताओं द्वारा विकसित की गई है परन्तु उस संस्कृति के देवी- विधानों (नियमों) का पालन नहीं हो रहा। जन्म-जन्मान्तर के है। अतः कवि आ बन्धनों का विधान, लगता है, समाप्त कर दिया गया। अतः आज आवश्यकता है, इस बात की कि हम इस विश्व में अपने खोए हुए. बिखरे हुए हिन्दुस्तान को खोजें।

पद्यांश 3— यंत्रों की ताकत के भीतर, मंत्रों का मृदु घोष कहाँ है?
धन के कोच भरे हैं लेकिन फिर भी वह सन्तोष कहाँ है?
राजनीति की कूट चाल में जन सेवा का भाव कहाँ है?
रामराज में जरा बताओ केवट की वह नाव कहाँ है?
कितने ही अपहरण हो रहे किन्तु कहो हनुमान कहाँ है?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

शब्दार्थ—
यंत्र = औजार।
ताकत = शक्ति।
मृदु = कोमल।
घोष = ध्वनि।
कोष = खजाने।
कूट = कुटिल।
केवट = नाविक।
अपहरण = बलपूर्वक चुराना।

संदर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— कवि कहता है कि हमारे वेद मंत्रों की कोमल ध्वनि लुप्त हो गयी है। विविध यंत्रों का आविष्कार करके मानव जाति को भयभीत बनाया जा रहा है।

व्याख्या— कवि अपनी वाणी से लोगों का आहवान करता है कि आज विनाशकारी अनेक यंत्रों का आविष्कार किया जा रहा है। लेकिन इन यंत्रों में वैदिक मंत्रों की सी कोमल ध्वनि नहीं है। वेद मंत्रों की मृदु ध्वनि (घोष) में जनकल्याण का सन्देश गूँजता था। आज लोगों के पास अकूत सम्पत्ति है। उनके खजाने भरे पड़े हैं लेकिन इन धनपतियों में सन्तोष नहीं है। वे अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। राजनेताओं ने आज की राजनीति को कूटनीति में बदल दिया है जिसकी कुचाल से स्वार्थ पूरा करने में वे लगे हुए हैं। इन राजनेताओं में जन सेवा का भाव नहीं है। आजादी के बाद रामराज की स्थापना का सपना टूट चुका है। रामराज का केवट नाव चलाकर स्वधर्म का पालन करने वाला, पता नहीं कहाँ छिप गया है। समता और एकता विलुप्त हो चुकी है। समाज में अनेक रहीम और रस कुकृत्य हो रहे हैं। अपहरण से मर्यादाओं को कुचला जा रहा है। जब मर्यादाओं की रक्षा आवश्यक है। इसके लिए हनुमान सरीखे बुद्धिमान विवेको बलवान् की जरूरत है। परन्तु वे कहाँ के देवी- हैं. प्रत्येक हिन्दुस्तानी में उसी विवेक और बल की आवश्यकता है। अतः कवि आह्वान करता है कि इस सारे संसार में अपने गौरवपूर्ण हिन्दुस्तान की खोज करें।

पद्यांश 4— कवि कुल गुरु की सृजन शक्ति का वह पावन संस्कार कहाँ है?
फूहड़ गीतों में खोया जो वह मधुरस शृंगार कहाँ है?
मन को जो आन्दोलित करक दे, कविता की वह धार कहाँ है?
भोजराज की कविता वाला वह वैभव विस्तार कहाँ है?
तुलसी, सूर, निराला, दिनकर और रहीम, रसखान कहाँ हैं?
आओ खोजें सकल विश्व में अपना हिन्दुस्तान कहाँ है?

शब्दार्थ— सृजन शक्ति = रचना कौशल।
पावन = पवित्र।
संस्कार = ठीक तरह से किसी भी कार्य को करने का तरीका (शैली)।
फूहड़ = असभ्यता से भरे, घृणा पैदा करने वाले।
मधुरस = मिठास से भरा।
आन्दोलित = हलचल मचा देने वाला।
भोजराज = राजा भोज जिन्होंने काव्य साहित्य के विकास के लिए, उसकी अभिवृद्धि के लिए कवियों को प्रोत्साहित किया था।

संदर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— भारतीय साहित्यिक धरोहर की रक्षा करने और उसके विकास के लिए कवि ने अपनी ओजस्वी वाणी में सभी जनों का आह्वान किया है।

व्याख्या— आज कविकुल गुरु कालिदास की सी काव्य रचना करने की शक्ति पैदा करने के पवित्र संस्कार कहाँ छिप गए हैं। मिठास भरा श्रृंगार रस तो आज के फूहड़ गीतों में खो गया है। मन में उत्साह भर देने वाली कविता की धारा ही कहीं विलुप्त हो गयी है। साथ ही, राजा भोज जैसे साहित्य प्रेमी भी नहीं दीखते जिन्होंने कविता के साहित्यिक विकास को विस्तार दिया था। आज तुलसीदास, सूरदास, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' बाद और रामधारी सिंह 'दिनकर' जैसे महान कवि भी जन्म नहीं ले रहे जिन्होंने जन-जन में परस्पर आदर्श प्रेम, समता, महानता और राष्ट्रीय एकता के भाव लोगों में भरने के लिए काव्य रचना की। अनेक रहीम और रसखान जैसे आदर्श एवं जनकवियों का सर्वत्र अभाव (कमी) दीख रहा है। आज वास्तव में, ऐसे अपने हिंदुस्तान की विश्व भर में खोज करनी है कि वह अब कहाॅं है।

अभ्यास

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) हम सब मद में झूम रहे हैं—
(i) सत्याग्रह के।
(ii) आन्दोलन के।
(iii) भूमण्डलीकरण के।
(iv) व्यवसायीकरण के।
उत्तर-(iii) भूमण्डलीकरण के

(ख) धन के कोष भरे होने पर भी नहीं है—
(i) लालच
(ii) सन्तोष
(iii) दया
(iv) शृंगार
उत्तर (ii) सन्तोष।

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) जनसेवा का भावकहाँ है?
(ख) साक्षरता का आंदोलन है, चिन्तन आंदोलन का विस्तार नहीं है।
(ग) टी. वी. टेलीफोन बज रहे पर आपस में बात बन्द है।
(घ) आओ, खोजें सकल विश्व में अपना हिंदुस्तान कहाँ है?

प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए—
(क) हम सारी दुनिया किन साधनों से घूम रहे हैं?
उत्तर— हम सारी दुनिया टी. वी. और टेलीफोन से ही घूम रहे हैं।

(ख) साक्षरता से आशय क्या है?
उत्तर— साक्षरता से यह आशय है कि सभी जन सामान्यस्तर तक पढ़ना-लिखना सीख जाएँ।

(ग) भूमण्डलीकरण का परिवारों पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर— भूमण्डलीकरण का परिवारों पर यह प्रभाव पड़ा है कि वे बिखर गये हैं। पारिवारिक समरसता समाप्त हो गई है। आपसी सम्बन्ध टूट चुके हैं। परिवार के सदस्य एक-दूसरे से बातचीत तक नहीं करते। उनमें आपसी सम्बन्ध समाप्त हो चुके हैं।

(घ) 'मन को जो आन्दोलित कर दे' कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर— मन के भावों को बदल देने वाली काव्य धारा मिट चुकी है। मन में देश प्रेम, समता, एकता, मर्यादा पालन, अन्यायकी समाप्ति, न्याय की प्राप्ति के लिए जन-जन में हलचल पैदा करने के लिए काव्य रचना करना क्यों रुक गया है।

(ङ) "धन से कोष भरे हैं लेकिन फिर भी संतोष कहाँ हैं ?" का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— लोगों में धन एकत्र करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। उनके खजाने में धन भरा पड़ा है फिर भी वे उचित-अनुचित साधनों से धन एकत्र करने में जुटे हैं। देश, समाज एवं जन की उन्हें चिन्ता नहीं है। वे धन लोलुप बन चुके हैं।

(च) 'अपना हिन्दुस्तान कहाँ है ?' कवि का संकेत किस ओर है?
उत्तर— हिन्दुस्तानी धन कमाने की चेष्टा से देश छोड़कर विदेशों में बस गये हैं। वे अपनी ऊर्जा और ज्ञान का उपयोग विदेशों में कर रहे हैं जिससे वे देश सम्पन्न हो रहे हैं। उन देशों की संस्कृति और सभ्यता उन लोगों पर प्रभाव डाल रही है। वे अपने देश, अपने समाज, अपनी संस्कृति-सभ्यता को भूल चुके हैं। यही इस पंक्ति का आशय है।

(छ) कविता में उल्लेखित कवियों के नाम लिखिए—
उत्तर— कविकुल गुरु कालिदास, राजा भोज, सूरदास, तुलसीदास, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', रामधारी सिंह 'दिनकर', रहीम और रसखान आदि कवियों के नाम का उल्लेख है।

भाषा की बात—

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण कीजिए तथा लिखिए—
भूमंडलीकरण, साक्षरता, यंत्र, अपहरण, प्रतिभा, आंदोलित, श्रृंगार।
उत्तर— विद्यार्थीगण अपनी कक्षा में अपने अध्यापक महोदय की सहायता से उच्चारण करें और लगातार अभ्यास कर सावधानी से लिखें।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों की सही वर्तनी लिखिए—
हीन्दूस्तान, दुनियाँ, परीवार, प्रदु, सन्तोश।
उत्तर—हिन्दुस्तान, दुनिया, परिवार, मृदु, सन्तोष।

प्रश्न 3 निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
संस्कार, आन्दोलन, वैभव, राजनीति, शिक्षा।
उत्तर—(1) संस्कार— भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कार बताए गए हैं।
(2) आन्दोलन— सामाजिक परिवर्तन के लिए जन- आन्दोलन अनिवार्य है।
(3) वैभव — भारतीय लोग भौतिक वैभव प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेशों को पलायन करते जा रहे हैं।
(4) राजनीति — आज देश की राजनीति सही दिशा से भटक गई है।
(5) शिक्षा — शिक्षा का उद्देश्य विस्तृत होना चाहिए।

प्रश्न 4. इस कविता से योजक चिह्न वाले शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर— ऊँचे-ऊँचे, जन-जन, बड़ी-बड़ी, बड़े-बड़े, जन्म-जन्म, दैव-विधान, जन-सेवा, राम-राज।

प्रश्न 5. 'खोज' विदेशी शब्द है जो दूसरी भाषा से लिया गया है। ऐसे शब्द आगत शब्द कहलाते हैं। निम्नलिखित शब्दों में से आगत शब्द छाँटकर लिखिए—
विश्व, ताकत, जरा, सकल, फूहड़, वैभव, टी.वी., टेलीफोन।
उत्तर— निम्नलिखित 'आगत' शब्द हैं—
ताकत, जरा, फूहड़, टी.वी., टेलीफोन।

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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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