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पाठ 3—'हार की जीत' कक्षा 6 हिन्दी प्रमुख गद्यांशों की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण || Har Ki Jeet Hindi 6th

केन्द्रीय भाव

प्रस्तुत कहानी में बाबा भारती द्वारा अपने श्रेष्ठ विचारों और सद्व्यवहार से डाकू खड्गसिंह के हृदय परिवर्तन का मार्मिक वर्णन किया गया है। बाबा भारती अपने घोड़े से परिवार के सदस्य की तरह प्यार करते थे। अपाहिज का वेश धारण कर डाकू खड्गसिंह कपटपूर्वक बाबा भारती का प्रिय घोड़ा छीन लेता है। बाबा भारती को लगता है। कि यदि इस घटना का पता लोगों को लग गया तो वे गरीबों पर विश्वास नहीं करेंगे। इसलिए वे खड्गसिंह से इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करने के लिए कहते हैं। बाबा भारती के विचारों से खड्गसिंह का हृदय परिवर्तन हो जाता है। वह घोड़ा वापस कर देता है। इस प्रकार बाबा भारती अपने प्रिय घोड़े को वापस पाकर हारकर भी जीत जाते हैं।———सुदर्शन

संपूर्ण पाठ परिचय

माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। उनका घोड़ा सुन्दर तथा बड़ा बलवान था। बाबा भारती उसे 'सुलतान' कहकर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देख प्रसन्न होते थे। आप गाँव से बाहर एक छोटे से मन्दिर में रहते थे और भगवान का भजन करते थे। सुलतान के बिना जीना उनके लिए बहुत ही कठिन था।

खड्गसिंह उस इलाके का कुख्यात डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुलतान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका मन उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास जा पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया।

"कहो, इधर कैसे आ गए?"
"सुलतान की चाह खींच लाई।"
"विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।"
"मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।"
"उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी।"
"कहते हैं, देखने में भी बड़ा सुन्दर है।"
"क्या कहना ! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।"
"इच्छा तो बहुत दिनों से थी, लेकिन आज आ सका।"

भारती और खड्गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमण्ड से। खड्गसिंह ने घोड़ा देखा और कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, "बाबाजी, इसकी चाल न देखी, तो क्या देखा?"

बाबाजी भी मनुष्य ही थे। अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो उठा। घोड़े को खोलकर बाहर ले गए। घोड़ा वायु-वेग से उड़ने लगा। उसकी चाल देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसन्द आ जाए, उस पर वह अपना अधिकार समझता था। जाते-जाते उसने कहा, "बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।"

बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता परन्तु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाई मिथ्या समझने लगे।

संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। सहसा एक ओर से आवाज आई, "ओ बाबा! इस कँगले की सुनते जाना।" आवाज में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष में पड़ा कराह रहा है। बोले- "क्यों, तुम्हें क्या कष्ट है?"

अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा- "बाबा, मैं दुखिया हूँ। मुझ पर दया करो, रामवाला यहाँ से तीन मील दूर है, वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।"

“वहाँ तुम्हारा कौन है?"
"दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।"
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे।

सहसा उन्हें एक झटका सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तन कर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। वह खड्गसिंह था।

बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और इसके पश्चात कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, "जरा ठहर जाओ।"
खड्गसिंह ने यह आवाज सुनकर घोड़ा रोक दिया और उसकी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूंगा।"

"परन्तु एक बात सुनते जाओ," खड्गसिंह ठहर गया। बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा, जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा- "यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा परन्तु खड्गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ, उसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।"

“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल यह घोड़ा न दूँगा।"
"अब घोड़े का नाम न लो मैं तुमसे इसके विषय में कुछ न कहूंगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।"

खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परन्तु बाबा भारती ने स्वयं उससे कहा- इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड्गसिंह ने बहुत सोचा, सिर मारा, परन्तु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दी और पूछा,"बाबा जी इसमें आपको क्या डर है?"

सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया- "लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया, तो किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे।"
यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई सम्बन्ध ही न रहा हो।

बाबा भारती चले गए, परन्तु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूंज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है। उन्हें इस घोड़े से प्रेंम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाई खिल जाता था। कहते थे इसके बिना मैं रह न सकूँगा। इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे परन्तु आज उनके मुख पर दुःख की रेखा तक न दिखाई पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं, देवता है।

रात्रि के अंधकार में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर में पहुंचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँव के कुत्ते भोंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड्गसिंह सुलतान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परन्तु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकल कर सावधानी से फाटक बन्द कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।

रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े, परन्तु फाटक पर पहुँच कर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँवों को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रुक गए।

घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और जोर से हिनहिनाया।
अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अन्दर घुसे और अपने प्यारे बोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछुड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते।
फिर वे संतोष से बोले, "अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।"

कवि परिचय

सुदर्शन— सन् 1896 ई. में पंजाब के सियालकोट नामक स्थान पर जन्मे सुदर्शन का वास्तविक नाम बदरीनाथ था। इनका साहित्यिक जीवन उर्दू से प्रारंभ हुआ था, बाद में ये हिन्दी में आए। ये हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार हैं। इनकी कहानियों के कथानक सामाजिक जीवन से लिए गए हैं। इन्होंने नाटक व उपन्यास भी लिखे हैं। इनके नाटकों में अंजना, ऑनरेरी मजिस्ट्रेट और चन्द्रगुप्त प्रमुख हैं। अपनी विशिष्ट लेखन शैली के कारण ये हिन्दी साहित्य में जाने जाते हैं।

शब्दार्थ
(पाठ के कठिन शब्दों का अर्थ )

अस्तबल = घोड़े बाँधने का स्थान।
घमण्ड = अभिमान,अहंकार।
आश्चर्य = अचम्भा।
नाई = की तरह, के समान।
मिथ्या = झूठ।
अपाहिज = विकलांग।
कुख्यात = बदनाम|

महत्वपूर्ण गद्यांशों की व्याख्या

गद्यांश (1)— माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनन्द आता है वही आनन्द बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था।

सन्दर्भ— प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 3 'हार की जीत' नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक प्रसिद्ध कहानीकार श्री सुदर्शन हैं।

प्रसंग— इसमें बाबा भारती का अपने घोड़े के प्रति अत्यधिक लगाव के विषय में बताया गया है।

व्याख्या— लेखक का कथन है कि जिस प्रकार माँ अपने पुत्र को देखकर अत्यन्त हर्षित होती है और जिस प्रकार किसान जब बड़े परिश्रम से फसल तैयार करता है और उसे खेत में फलते-फूलते देखकर बहुत ही खुशी महसूस करता है बिल्कुल इसी प्रकार की प्रसन्नता बाबा भारती को अपने घोड़े को देखकर हुआ करती थी बाबा भारती अपने घोड़े सुल्तान को पुत्र की भांति प्यार करते थे।

गद्यांश (2)— बाबाजी भी मनुष्य ही थे अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो उठा।

संदर्भ— पूर्व की तरह
प्रसंग— यहाँ पर लेखक ने बताया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी वस्तु की प्रशंसा अच्छी लगती है।

व्याख्या— बाबा भारती भले ही सन्यासी थे लेकिन थे तो मनुष्य ही अपनी चीज की तारीफ सबको अच्छी लगती है खड़क सिंह के मुख से अपने घोड़े की तारीफ सुनने की चाह उनके मन में जाग उठी।

गद्यांश (3)— इसकी रखवाली में वह कई रात सोए नहीं भजन भक्ति न कर रखवाली करते रहे परंतु आज उनके मुख पर दुःख की रेखा तक न दिखाई पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं, देवता है।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— इन पंक्तियों में लेखक ने बाबा भारती में मोह भाव के न रहने और गरीब के प्रति विश्वास न किए जाने की संभावना का वर्णन किया है।

व्याख्या— बाबा भारती अपने सुलतान नामक घोड़े रखवाली रात-दिन करते हैं। वे कई रातों से सोए नहीं, क्योंकि उन्हें डर है कि डाकू खड्गगसिंह किसी भी समय उनके घोड़े को चुरा कर ले जा सकता था। उन्होंने ईश्वर की भक्ति और ध्यान-भजन सब छोड़ दिया था। परन्तु अब जबकि सुलतान को अपाहिज के रूप में डाकू खड्ग सिंह ने छीन लिया तो बाबा भारती ने अपनी तेज आवाज में केवल इतना ही कहा कि तुम इस घटना को किसी से मत कहना, क्योंकि इसे सुनकर लोग गरीब का विश्वास करना छोड़ देंगे। यह वाक्य उस डाकू के कानों में निरन्तर गूँज रहा था। साथ ही, बाबा के चेहरे पर घोड़े को छीन लेने की घटना का कोई भी दुःख का भाव नहीं था। उन्हें तो केवल चिन्ता इस बात की थी इस घटना को सुनकर लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़ देंगे। यही विचार उन्हें बार-बार दुःखी बना रहा था खड़क सिंह इस बात का विचार करने के सोने लगा कि यह बाबा भारती शायद मनुष्य नहीं है यह तो साक्षात देवता ही है

गद्यांश (4)— अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा होगा बार-बार उसके मुंह पर थपकियाँ देते।

संदर्भ— पूर्व की तरह
प्रसंग— बाबा भारती ने अस्तबल में अपने घोड़े को देखा तो वह अचंबे में पड़ गए और उनकी गर्दन से लिपटकर रोने लगे उनका प्यार पुत्र से बिछड़े पिता जैसा था।

व्याख्या— लेखक वर्णन करता है कि घोड़े की इन्हीं नाथ सुनकर बाबा भारती को संभव हुआ और उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा वे घोड़े को देखकर दौड़े और अस्तबल में घुसे वह घोड़े की गर्दन से निपट कर बहुत देर तक रोते रहे क्योंकि वह अपने घोड़े से बहुत प्यार करते थे इस तरह उनके और घोड़े के मिलन का यह दृश्य ठीक वैसा ही था जैसे कोई पिता अपने बिछड़े पुत्र से बहुत दिन बाद मिल रहा हो बाबा भारती का अपने घोड़े के प्रति पुत्रवत प्रेम था उन्होंने प्यार पूर्वक घोड़े के मुंह को बहुत देर तक थपथपाया।

अभ्यास (प्रश्नोत्तर)

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) बाबा भारती रहते थे—
(i) कुटिया में
(ii) मन्दिर में
(iii) राजमहल में
(iv) बड़े भवन में।
उत्तर-(ii) मन्दिर में

(ख) बाबा भारती को खड्ग सिंह ने रोका―
(i) अपाहिज बनकर
(ii) वैद्य बनकर
(iii) किसान बनकर
(iv) पुजारी बनकर।
उत्तर- (i) अपाहिज बनकर।

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए―
(क) जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छबि अंकित हो जाती है।
(ख) बाबा भारती और खड्ग सिंह अस्तबल में पहुँचे।
(ग) ओ बाबा ! इस कंगले की सुनते जाना।
(घ) अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।

प्रश्न 3 एक या दो वाक्य में उत्तर दीजिए—
(क) बाबा भारती अपने घोड़े को किस नाम से पुकारते थे?
उत्तर— बाबा भारती अपने घोड़े को सुल्तान नाम से पुकारते थे।
(ख) खड़क सिंह कौन था?
उत्तर— खड़क सिंह उस इलाके का कुख्यात डाकू था।
(ग) खड़क सिंह बाबा भारती के पास क्यों गया था?
उत्तर— खड़क सिंह बाबा भारती के पास उनके घोड़े सुल्तान को देखने की चाह से गया था।
(घ) खड़क सिंह ने जाते समय बाबा भारती से क्या कहा?
उत्तर— खड़क सिंह ने जाते समय बाबा भारती से कहा कि बाबा जी मैं या घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा।
(ड़) खड़क सिंह ने अपने को किसका सौतेला भाई बताया था?
उत्तर— खड़क सिंह ने अपने को दुर्गा दत्त वेद का सौतेला भाई बताया था।

प्रश्न 4. तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) बाबा भारती की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर— बाबा भारती गाँव से बाहर एक छोटे से मन्दिर में रहते थे और भगवान का भजन करते थे अपने घोड़े सुलतान को अपने हाथ से खरहरा करते थे। वे खुद ही उसे दाना खिलाते थे। उस घोड़े के बिना उनका जीवित रहना असम्भव ही था।

(ख) "विचित्र जानवर है,देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे" यह कथन बाबा भारती ने किससे और क्यों कहा?
उत्तर— "विचित्र जानवर है, देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।" यह कथन बाबा भारती ने डाकू खड्गसिंह से कहा। बाबा भारती ने यह वाक्य इसलिए कहा कि खड्गसिंह को 'सुलतान' को देखने की चाह थी। जो भी कोई उनके घोड़े की प्रशंसा करता, वे अति प्रसन्न होते और खुशी से उसके गुणगान करने लगते।

(ग) अपाहिज ने बाबा भारती से क्या कहा?
उत्तर- अपाहिज ने बाबा भारती से कहा कि, "ओ बाबा! इस कँगले की सुनते जाना।" वह वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा था और उसने बाबा से कहा कि वह दुखिया है, वह दया का पात्र है। उसे वहाँ से तीन मील दूर 'रामवाला' तक जाना है। अतः उसे घोड़े पर चढ़ा लें। परमात्मा उनका भला करेगा।

(घ) बाबा भारती ने खड्गसिंह से घटना को किसी के सामने प्रकट न करने के लिए क्यों कहा?
उत्तर- अपाहिज बने खड्गसिंह को बाबा भारती ने अपने घोड़े पर बैठा लिया। उसने घोड़े की पीठ पर बैठते ही लगाम को झटका देकर छीन लिया और घोड़े पर तन कर बैठ गया और घोड़े को दौड़ा लिए जा रहा है। तब बाबा ने खड्गसिंह से तेज आवाज में कहा कि वह इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करे; क्योंकि इस घटना को जानकर कोई भी आदमी किसी गरीब पर विश्वास नहीं करेगा।

सोचिए और बताइए

(क) क्या खड्गसिंह द्वारा अपाहिज बनकर घोड़ा ले जाना उचित था?
उत्तर— खड्गसिंह बाबा भारती के 'सुलतान' नामक घोड़े को किसी भी तरह प्राप्त कर लेना चाहता था। वह इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। उसने अपाहिज के रूप में अपने आपको प्रदर्शित किया। बाबा भारती को उस अपाहिज पर दया आ गई और अपने घोड़े पर बैठा लिया। थोड़ी ही देर में घोड़े की लगाम को झटक कर वह घोड़े को वश में कर चल दिया। इस तरह उसका उस घोड़े को ले जाना उचित नहीं था, क्योंकि जो भी कोई इस घटना को सुनेगा, वह भी इस कृत्य को अच्छा नहीं छाँट बताएगा, क्योंकि फिर गरीब की कोई भी व्यक्ति सहायता करने के लिए तैयार नहीं होगा और इस तरह गरीबों का विश्वास खत्म हो जाएगा।

(ख) "इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।" इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— बाबा भारती ने यह शब्द कि 'अपाहिज बनकर घोड़े को छीन लेने' की इस घटना को सुनकर कोई भी गरीब का विश्वास नहीं करेगा,' यह शब्द खड्गसिंह के कानों में लगातार गूँज रहे थे। वह सोचने लगा कि बाबा कितने ऊँचे और पवित्र भावों के व्यक्ति है। इन विचारों वाला यह बाबा वास्तव में मनुष्य न होकर साक्षात देवता है। खड्गसिंह ने घोड़े को चुपचाप ले जाकर उसके अस्तबल में बाँध दिया और वहाँ से चल दिया। उस समय बाबा के विचारों से प्रभावित डाकू खड्गसिंह की आँखों में नेकी के आँसू थे। खड्गसिंह का बाबा के विचारों से हृदय परिवर्तन हो गया। वह एक भला आदमी बन गया।

प्रश्न 6. अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए—
(क) यदि बाबा भारती घोड़ा नहीं दिखाते, तो खड्गसिंह क्या करता?
उत्तर— यदि बाबा भारती घोड़ा नहीं दिखाते, तो खड्गसिंह उस घोड़े के गुणों की जानकारी स्वयं न कर सकने से, उसको न चुराता।

(ख) यदि बाबा भारती अपाहिज की आवाज सुनकर घोड़ा नहीं रोकते तो खड़गसिंह क्या कर सकता था ?
उत्तर— अपाहिज की आवाज सुनकर बाबा भारती घोड़े को नहीं रोकते, तो खड्गसिंह निश्चय ही बाबा भारती पर आक्रमण करता और घोड़े को छीन कर ले जा सकता था।

(ग) यदि बाबा भारती की जगह आप होते तो क्या करते?
(ग)उत्तर— यदि बाबा भारती की जगह मैं होता तो उस अपाहिज डाकू खड्गसिंह की वास्तविकता का पता लगाता और हर तरह घोड़े को छीन कर ले जाने से रोकने की कोशिश करता।

भाषा की बात

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण कीजिए—
कुख्यात, हृदय, प्रतिक्षण, स्वप्न, मिथ्या।
उत्तर—विद्यार्थी गण कक्षा में अपने अध्यापक की सहायता से उच्चारण करें और अभ्यास करें।

प्रश्न 2. निम्नलिखित में से सही वर्तनी वाला शब्द छाँटकर लिखिए—
बलबान, बलवान, बल्वान, वलबान।
सुल्तान, शुलतान, सुलतान, सुल्तान
नमस्कार, नमस्कार, नामश्रकार, नमस्कार।
परार्थना, प्रार्थना, प्राथर्ना प्राथना
उत्तर— बलवान, सुलतान, नमस्कार, प्रार्थना।

प्रश्न 3 निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
करुणा, अपाहिज, पवित्र,घमंड,
करुणा—रोगी की छटपटाहट परिजनों में करुणा पैदा कर रही थी।
अपाहिज— सरकार ने अपाहिजों की सहायता के लिए अनेक योजनाएँ चलायी हैं।
पवित्र— पवित्र अमरनाथ की पवित्र गुफा के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष यात्री जाते हैं।
घमण्ड— घमण्ड करने से आदमी पतित बन जाता है।

प्रश्न 4 निम्नलिखित शब्दों में से संज्ञा, सर्वनाम,विशेषण एवं क्रिया शब्दों को छाँटकर दी गई तालिका में लिखिए―
कुख्यात, पवित्र, खेत, कीर्ति, तुम्हें, प्रसन्न, उसकी, उन्हें, चिल्लाना, सुन्दर, विचित्र, हिनहिनाना, बनना, घोड़ा, बाबा भारती, खड्गसिंह, मन्दिर, उनका, उस, बोला, दिखाया।
उत्तर— संज्ञा—कीर्ति, खेत, घोड़ा, बाबा भारती, खड्गसिंह, मन्दिर।
सर्वनाम— तुम्हें, उसकी, उन्हें, उनका, उस।
विशेषण— कुख्यात, पवित्र, प्रसन्न, सुंदर, विचित्र।
क्रिया— चिल्लाना ,हिन-हिनाना, तनना, बोला, दिखाया

प्रश्न 5. निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए—
(i) जिसका अंग भंग हो गया हो—अपाहिज
(ii) घोड़ा बाँधने का स्थान—अस्तबल
(iii) जो दूसरों की प्रशंसा करता है—प्रशंसक
(iv) जो दूसरों की निन्दा करता है।—परनिंदक

प्रश्न 6. दिए गए वाक्यों में का, की, के, को (सम्बन्ध- कारक) का प्रयोग करते हुए रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) बाबा को प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता था।
(ख) उन्होंने सुलतान की ओर से मुँह मोड़ लिया।
(ग) रात्रि का तीसरा प्रहर बीत चुका था।
(घ) माँ को अपने बेटे को देखकर आनन्द आता है।
(ङ) वे इस भय को स्वप्न के भय की नाई मिथ्या समझने लगे।
(च) मन्दिर के की अन्दर कोई शब्द सुनाई न देता था।

प्रश्न 7 'इया' और 'आहट' प्रत्यय लगाकर दस नए शब्द बनाइए—
(क) इया प्रत्यय वाले शब्द—
उत्तर— (1) दु:ख + इया = दुखिया
(2) लिख + इया = लिखिया
(3) लठ + इया = लठिया
(4) लुट + इया = लुटिया
(5) खाट.+ इया = खटिया।
(ख) आहट प्रत्यय वाले शब्द—
(1) मुस्कराना + आहट = मुस्कराहट
(2) चिल्लाना + आहट = चिल्लाहट
(3) खिलखिलाना + आहट = खिलखिलाहट
(4) किलकिलाना + आहट = किलकिलाहट
(5)चिलचिलाना + आहट = चिलचिलाहट

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10. पाठ 14 'नवसंवत्सर' कक्षा 8 विषय- हिन्दी || परीक्षापयोगी गद्यांश, शब्दार्थ, प्रश्नोत्तर व व्याकरण
11. पाठ 15 महेश्वर कक्षा 8 विषय हिन्दी ― महत्वपूर्ण गद्यांश, शब्दार्थ, प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण

कक्षा 8 हिन्दी के इन 👇 पद्य पाठों को भी पढ़े।
1. पाठ 1 वर दे ! कविता का भावार्थ
2. पाठ 1 वर दे ! अभ्यास (प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण)
3. Important प्रश्न व उनके उत्तर पाठ 1 'वर दे' (हिन्दी 8th) के अर्द्धवार्षिक एवं वार्षिक परीक्षा/मूल्यांकन 2023-24
4. उपमा अलंकार एवं उसके अंग
5. पाठ 6 'भक्ति के पद पदों का भावार्थ एवं अभ्यास
6. पाठ 11 'गिरधर की कुण्डलियाँ' पदों के अर्थ एवं अभ्यास
7. पाठ- 13 "न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है।" पंक्तियों का अर्थ एवं अभ्यास
8. पाठ 16 'पथिक से' कविता की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन (व्याकरण)

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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