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पाठ 2 'कटुक वचन मत बोल' कक्षा 6 हिन्दी प्रमुख गद्यांशों की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या प्रश्नोत्तर एवं व्याकरण

केन्द्रीय भाव— प्रस्तुत पाठ में वाणी के महत्व को स्पष्ट करते हुए लेखक ने बतलाया है कि इस संसार में वाणी का वरदान केवल मनुष्य को ही मिला है। अतः मनुष्य को हमेशा विनम्र और मृदुभाषी होना चाहिए। जो विनम्र होता है, वह दीर्घायु होता है। कड़वी बात लोगों के दिलों में चुभ जाती है। उससे बड़े-बड़े अनर्थ हो जाते हैं। कटु सत्य को भी विनम्रता के साथ कहने से बात बिना ठेस लगे दूसरों तक पहुँचाई जा सकती है। यही वाक्चातुर्य है जो हमारे व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाता है। ——— रामेश्वर दयाल दुबे

सम्पूर्ण पाठ परिचय— दास प्रथा के दिनों में एक मालिक के पास अनेक गुलाम थे जिनमें एक था लुकमान। लुकमान था तो गुलाम किन्तु वह बड़ा बुद्धिमान था। उसकी प्रशंसा इधर-उधर फैलने लगी। एक दिन उसके मालिक ने उसे बुलाया और कहा, "सुनते हैं— तुम बहुत होशियार हो। मैं तुम्हारा इम्तिहान लूँगा। अगर तुम कामयाब हो गए तो तुम्हें गुलामी से छुट्टी दे दी जाएगी।"

लुकमान ने कहा, "पूछिए, क्या पूछना है"
मालिक ने कहा, "अच्छा बताओ शरीर का कौन-सा हिस्सा सबसे अच्छा है?"
लुकमान ने कहा, "जीभ"।

कारण पूछने पर लुकमान ने कहा, "अगर जीभ अच्छी है तो सब अच्छा ही अच्छा है।" मालिक ने फिर कहा, "अब शरीर का जो हिस्सा सबसे बुरा होता है, उसका नाम बताओ।"

लुकमान ने फिर कहा— "जीभ"
कारण पूछने पर लुकमान का उत्तर था, "शरीर में अगर जीभ अच्छी नहीं है तो सब बुरा ही बुरा है। जीभ के ही कारण सारी बुराई-भलाई है।"

एक बार एक जिज्ञासु चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशस के पास गया और पूछा, "यह बताइए कि सबसे दीर्घजीवी कौन होता है?"
वृद्ध कन्फ्यूशस मुस्कुराए और बोले, "जरा उठकर मेरे पास आइए; और मेरे मुँह में देखिए : जीभ है या नहीं ?"
कन्फ्यूशस ने अपना मुँह खोल दिया। उस सज्जन ने झुककर मुँह के अन्दर देखा और बोले, "जी हाँ, जीभ है।"
कन्फ्यूशंस ने फिर कहा, "अच्छा, अब देखिए कि दाँत हैं या नहीं?"
जिज्ञासु ने देखकर कहा, "दाँत तो एक भी नहीं है।"

अब कन्फ्यूशंस ने कहा, "जीभ तो दाँतों से पहले पैदा हुई थी। उसे दोनों से पहले जाना चाहिए था। ऐसा क्यों नहीं हुआ ?"
"मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है। आप ही बताइए।"

कन्फ्यूशंस बोले, जीभ कोमल है, दाँत कठोर हैं। जिसमें लचीलापन होता है जो नम्र होता है, वही अधिक समय तक जीता है, जीवन में जीतता है।"
ये दो कहानियाँ हैं किन्तु एक ही सत्य को उद्घाटित करती हैं, और यह कि जीवन में वाणी का बहुत महत्व है।"

वाणी तो सभी को मिली हुई है परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है। बोलते तो सभी हैं किन्तु क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें- इस कला को बहुत कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेंम झरता है, दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बात ने संसार में जाने कितने झगड़े पैदा किए हैं। जीभ ने दुनिया में बहुत बड़े-बड़े कहर ढाए हैं। जीभ होती तो तीन इंच की ही है, पर वह पूरे छह फुट के आदमी को मार सकती है। कहा गया है— "बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव"

संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है; और उसके दुरुपयोग से स्वर्ग भी नर्क में परिणत हो सकता है। महाभारत युद्ध वाणी के प्रयोग का ही परिणाम था। सदा से यह कहा जाता रहा है कि किसी का हृदय अपनी कटुवाणी से दुखी मत करो।

मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर।
श्रवण मार्ग होइ संचरै, वेधै सकल शरीर।।
कटुक वचन सबसे बुरा, जारि करै तन छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।"

स्व. लालबहादुर शास्त्री अपने विनम्र स्वभाव और मधुर वाणी के लिए प्रसिद्ध थे। प्रयाग में दिन उनके घर पर किसी नौकर से कोई काम बिगड़ गया। श्रीमती शास्त्री का क्रोध में एक आना स्वाभाविक था। उन्होंने नौकर को बहुत डाँटा और उसके साथ सख्ती से पेश आई। शास्त्रीजी भोजन कर रहे थे। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, "अपनी जबान क्यों खराब कर रही हो! लो, इस बात पर एक शेर सुनो"—
"कुदरत को नापसन्द है सख्ती जबान में।
इसलिए तो दी नहीं हड्डी जबान में।।"

और फिर मुस्कुराते हुए शास्त्रीजी ने आगे कहा, "जब एक शेर सुना है, तो एक दूसरा शेर भी सुनो—
"जो बात कहो, साफ हो, सुधरी हो, भली हो।
कड़वी न हो. खट्टी न हो, मिश्री की डली हो।।"

कहना न होगा, इन शेरों को सुनकर श्रीमती शास्त्री के क्रोध का पारा बहुत नीचे उतर गया था।

यह बात स्वीकार करनी पड़ेगी कि सभी बातें ऐसी नहीं हो सकतीं जो दूसरों को प्रिय ही लगे। सत्य कभी-कभी कड़वा भी होता है। कुछ अप्रिय बातें कहनी ही पड़ती हैं किन्तु ऐसे अवसर पर होना यह चाहिए कि बात भी कह दी जाए और उसमें वह कड़वाहट भी न आने पाए जो दूसरे के हृदय को विदीर्ण कर दे। जरूरी नहीं है कि जीभ की कमान से सदा वचनों के बाण ही छोड़े जाएँ। वाक्चातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।

किसी राजा ने स्वप्न देखा कि उसके सारे दाँत टूट गए हैं। ज्योतिषियों से फल पूछा गया तो एक ने कहा, "राजन, आप पर संकट आने वाला है। आपके सब संबंधी और प्रियजन आपके सामने ही एक-एक कर मर जाएंगे।"

दूसरे ज्योतिषी ने कहा, "आप अपने सारे सम्बन्धियों और प्रियजनों से अधिक काल तक संसार का सुख ऐश्वर्य भोगेंगे।"
दोनों कथनों का सत्य एक ही है किन्तु पहले ज्योतिषी को कारावास मिला और दूसरे को पुरस्कार!"

एक बार बुलबुल ने सुबह-सुबह ताजे खिले फूल से कहा, "अभिमानी फूल! इतराओ मत! इस बाग में तुम्हारे जैसे बहुत फूल खिल चुके हैं।"
फूल ने हँसकर कहा, "मैं सच्ची बात पर नाराज नहीं होता, पर एक बात है कि कोई भी अपने प्रिय से कड़वी बात नहीं कहता।"

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि यदि आपकी वाणी कठोर है,तीखी है, कर्कश है तो उसे सुधारिए, मीठी बनाइए, नहीं तो लोकप्रिय व्यक्तित्व का सपना अधूरा ही रह जाएगा।

शब्दार्थ
पाठ के कठिन शब्दों का अर्थ

गुलाम = दास।
जिज्ञासु = जानने की इच्छा रखने वाला।
दार्शनिक = दर्शनशास्त्र का ज्ञाता।
दीर्घजीवी = लम्बी उम्र वाला।
नम्र = कोमल, विनयशील।
उद्घाटित करना = प्रकट करना, सामने रखना।
प्रेम झरना = प्रेंम प्रकट होना।
कहर ढाना = किसी पर अत्याचार करना।
परिणत होना = परिवर्तित होना, बदलना।
श्रवण मार्ग होई = कानों के रास्ते से होकर।
संचरै = प्रवेश करती है।
वेध = घायल कर दे।
सकल = सम्पूर्ण।
जारि = जलाकर।
छार = राख, क्षार
सख्ती से पेश आना = कठोर व्यवहार करना
विदीर्ण करना = चीर देना।
कमान = धनुष।
कारावास = जेल

महत्वपूर्ण गद्यांशों की व्याख्या

गद्यांश (1) वाणी तो सभी को मिली हुई है परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है। बोलते तो सभी हैं किन्तु क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें- इस कला को बहुत कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है, दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बात ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किए हैं। जीभ ने दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाए हैं। जीभ होती तो तीन इंच की ही है, पर वह पूरे छह फुट के आदमी को मार सकती है।

सन्दर्भ— प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा भारती' के 'कटुक वचन मत बोल' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामेश्वर दयाल दुबे हैं।

प्रसंग— इस गद्यांश में बताया गया है कि वाणी से ही प्रेम और कटुता (दुश्मनी) पैदा होती है।

व्याख्या— लेखक का कथन है कि वाणी (जीभ) सभी को प्राप्त है परन्तु उससे बोलना तो किसी-किसी को ही आता है। बहुत कम लोग बोलना जानते हैं। वाणी का प्रयोग हर कोई ठीक से नहीं कर पाता। ऐसा देखा जाता है कि कुछ लोगों की वाणी से प्रेम झलकता है, तो किसी की बात इतनी चुभने वाली होती झगड़ा हो जाता है कड़वी बात संसार में कितने ही झगड़ा पैदा कर देती है और उसका प्रभाव बहुत ही कष्टदायक होता है बोलने में मात्र 3 इंच की की छोटी जीभ का प्रयोग करते हैं परंतु उसका प्रभाव इतना विनाशकारी होता है कि उसमें 6 फीट का लंबा मनुष्य मर जाता है।

गद्यांश (2) संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उत्तर सकता है; और उसके दुरुपयोग से स्वर्ग भी नर्क में परिणत सकता है। महाभारत युद्ध वाणी के प्रयोग का ही परिणाम था।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— इस गद्यांश में बताया गया है कि संसार में मनुष्य को वाणी (बोलने की शक्ति) प्राप्त है। इसके ही प्रयोग से इस संसार को स्वर्ग अथवा नर्क बनाया जा सकता है।

व्याख्या— लेखक का कथन है कि संसार में अनेक प्राणी । उनमें से मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे बोलने की शक्ति दी ई है। यह वास्तव में ईश्वर का ही श्रेष्ठ वरदान है। ईश्वर के इस वरदान का उचित और अनुचित प्रयोग ही इस संसार को स्वर्ग सुख में और नरक दुख में बना सकता है वाणी के अनुचित प्रयोग से ही गौरव और पांडवों के मध्य महाभारत युद्ध हुआ कटु वाणी का प्रयोग का प्रतिफल विनाशकारी युद्ध हुआ।

गद्यांश (3) सदा से यह कहा जाता रहा है कि किसी का हृदय है अपनी कटु वाणी से दुखी मत करो।
'मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर ।
श्रवण मार्ग होइ संचरै, वेधै सकल शरीर ।।
कटुक वचन सबसे बुरा, जारि करै तन छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार ॥
कुदरत को नापसन्द है सख्ती जबान में।
इसलिए तो दी नहीं हड्डी जबान में ।।
जो बात कहो, साफ हो, सुथरी हो, भली हो।
कड़वी न हो, खट्टी न हो, मिश्री की डली हो

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग—इन पंक्तियों में लेखक ने किसी कवि की उक्तियों को उदाहरण रूप में प्रस्तुत करके कहा है कि कड़वी बात कहकर किसी को भी दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए।

व्याख्या— लेखक का कथन है कि अपने कटु वचनों से किसी को भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए; क्योंकि मीठी वाणी एक औषधि है जिससे मनुष्य अपने तन और मन से स्वस्थ रहता है, जबकि कड़वा वचन तीर (वाण) के समान है जो कानों के मार्ग से प्रवेश पाकर सारे शरीर को वेध देता है। कटु वचन सबसे बुरा है जिससे सारा शरीर जलकर छार (राख) हो जाता है जबकि सज्जन की मधुर वाणी शीतल जल के समान है जो बरसकर (कहे जाने पर) सुनने वाले व्यक्ति पर अमृतधारा जैसा प्रभाव डालती है जिससे शारीरिक और मानसिक तप कष्ट समाप्त हो जाते हैं

गद्यांश (4) लाल बहादुर शास्त्री की शेर के माध्यम से मधुर वाणी की विशेषता बताते हुए लेखक कहता है की वाणी की कटुता प्रकृति को भी पसंद नहीं है तभी तो जीभ में कठोर हड्डी नहीं दी है इसलिए सदैव साफ सुथरी और मीठी बात बोलनी चाहिए बाद में कटुता खटास न हो वह तो मिस्त्री की डेली के समान मिठास युक्त हो।
सत्य कभी-कभी कड़वा भी होता है। कुछ अप्रिय बातें कहनी ही पड़ती हैं किन्तु ऐसे अवसर पर होना यह चाहिए कि बात भी कह दी जाए और उसमें वह कड़वाहट भी न आने पाए जो दूसरे के हृदय को विदीर्ण कर दे। जरूरी नहीं है कि जीभ की कमान से सदा वचनों के बाण ही छोड़े जाएँ। वाक्-चातुरी से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह
प्रसंग—इन पंक्तियों में बताया गया है कि कटु-सत्य को अपनी वाणी की चतुराई से प्रिय और मीठा बनाया जा सकता है।

व्याख्या— लेखक कहता है कि सत्य के कथन मेंइकर से कभी-कभी कटुता भी आ जाती है। देखा जाता है कि कुछ ऐसी वाणी बातें होती हैं कि वे सुनने में अप्रिय और कटु हों, परन्तु उनका कथन अति आवश्यक होता है। ऐसी दशा में हमें चाहिए कि कानों उस अप्रिय (सत्य) बात को कहते हुए कड़वाहट भी पैदा न हो तथा सुनने वाले के हृदय पर भी कोई चोट न पहुँचे। यह देखना चाहिए कि अपनी वाणी से ऐसे वचन कभी न कहें कि जिससे जो दूसरे का मन आहत हो। अपनी वाणी से चतुराई पूर्वक ऐसे वचन जैसा बोलने चाहिए जिसके द्वारा कड़वा सत्य भी मीठा और प्रिय लगे।

(ख) पाठ का अभ्यास

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) दाँत जल्दी टूट जाते हैं क्योंकि वे होते हैं—
(i) छोटे
(ii)संख्या में अधिक
(iii) कठोर
(iv) कमजोर
उत्तर— (iii) कठोर

(ख) मधुर वचन है—
(i) तीर
(ii) औषधि
(iii) नीर
(iv) क्षार।
उत्तर— (ii) औषधि।

प्रश्न 2- रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) शरीर में अगर जीभ अच्छी नहीं है तो सब बुरा-बुरा है
(ख) वाणी का वरदान मात्र मानव को मिला
(ग) वाक्-चातुर्य से कटु सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकताहै।
(घ) वाणी के दुरुपयोग से स्वर्ग भी नरक में परिणत हो जाता है।

प्रश्न (3)- एक या दो वाक्य में उत्तर दीजिए—
(क) मालिक ने लुकमान की बुद्धिमानी की परीक्षा किस प्रकार ली?
उत्तर— मालिक ने लुकमान की बुद्धिमानी की परीक्षा यह प्रश्न पूछ कर ली कि शरीर का कौन सा हिस्सा सबसे अच्छा और सबसे बुरा होता है।

(ख) जिज्ञासु ने कन्फ्यूशंस से क्या प्रश्न किया?
उत्तर— जिज्ञासु ने कन्फ्यूशंस से प्रश्न किया कि सबसे दीर्घजीवी कौन होता।

(ग) श्रीमती शास्त्री नौकर पर क्रोधित क्यों हुई?
उत्तर— श्रीमती शास्त्री नौकर पर क्रोधित इसलिए हुई क्योंकि उससे कोई काम बिगड़ गया था।

(घ) राजा ने स्वप्न में क्या देखा?
उत्तर— राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गए हैं।

(ङ) बुलबुल और फूल का संवाद लिखिए।
उत्तर― बुलबुल ने सुबह-सुबह ताजे खिले फूल से कहा— ''अभिमानी फूल! इतराओ मत! इस बाग में तुम्हारे जैसे बहुत फूल खिल चुके हैं।" इस पर फूल ने हँसकर कहा, "मैं सच्ची बात पर नाराज नहीं होता, पर एक बात है कि कोई भी अपने प्रिय से कड़वी बात नहीं कहता।"

प्रश्न (4)- तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) लुकमान ने अपने मालिक के दोनों प्रश्नों के उत्तर में 'जीभ' ही क्यों कहा?
उत्तर― लुकमान ने अपने मालिक के दोनों प्रश्नों के उत्तर में 'जीभ' ही कहा क्योंकि जीभ अच्छी है, तो सब अच्छा ही अच्छा है और अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं है तो सब बुरा ही बुरा है। जीभ के कारण ही सारी बुराई और भलाई है।

(ख) 'जो नम्र होता है, वही अधिक समय तक जीता है', एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर― जो नम्र होता है, वही अधिक समय तक जीता है; इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। जीभ दाँतों से पहले पैदा होती है और दाँत बाद में। परन्तु दाँत अपनी कठोरता के कारण पहले टूट जाते हैं (पहले चले जाते हैं) परन्तु जीभ कोमल होती है, लचीली होती है, नम्र होती है। इसलिए वह दीर्घ-जीवी है अधिक समय तक जीती है।

(ग) 'जीभ ने दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाए हैं', उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― जीभ के दुरुपयोग से समाज में नर्क तुल्य कष्टमय वातावरण पैदा हो जाता है। वाणी के प्रयोग से ही समाज में खुशहाली छा सकती है परन्तु जब उसका सही उपयोग नहीं होता तो पूरा संसार संकट में पड़ जाता है। महाभारत युद्ध भी जीभ के दुरुपयोग के कारण ही हुआ।

(घ) वाणी तो सभी को मिली हुई है परंतु बोलना किसी-किसी को ही आता है भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― सभी लोगों को 'बोध' (वाणी) मिली हुई है। वे इसके उपयोग को ठीक तरह नहीं जानते। वे बोलने की कला के नकार नहीं है। कोई बात प्रेम की वर्षा करती है, तो किसी के द्वारा बोले गए शब्द कई झगड़ों को पैदा कर देते हैं। यहाँ तक कि इस बोध का सही उपयोग मुख-शान्ति देने वाला है तो कहीं इसके विपरीत दुःख और कलह पैदा करने वाला भी होता है। अतः बाप के सदुपयोग की कला किसी-किसी को ही प्राप्त है।

(ङ) 'कटुक वचन मत बोल', पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर― 'कटुक वचन मत बोल' पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि मनुष्यों को हमेशा विनम्र और मधुर-भाषी होना चाहिए। विनम्रता और प्रेमपूर्ण भाषा के प्रयोग से मनुष्य दीर्घ-जीवी होता से है। कड़वी बात से झगड़े-झंझट पैदा होते हैं। अतः हमें सदैव से मृदुभाषी होना चाहिए।

5. सोचिए और बताइए―
(क) 'तीन इंच की जीभ, छः फुट के आदमी को मार सकती है,कैसे?
उत्तर― मनुष्य की जीभ मात्र तीन इंच लम्बी होती है। परन्तु इससे कहे गए कटुवचन छः फुट लम्बे आदमी के तन-मन को वेध देते हैं। वह मरा हुआ सा हो सकता है। इस वाणी के दुरुपयोग से संसार में अनेक झगड़े पैदा हो जाते हैं।

(ख) किसी का हृदय कटु वाणी से दुःखी नहीं करना चाहिए, क्यों?
उत्तर― कटु वाणी से किसी भी मनुष्य को दुखी नहीं करना चाहिए, क्योंकि कटु वचन (तेज) वाण (तीर) के समान होता है। वह कानों के मार्ग से प्रवेश करके सारे शरीर को वेध डालता है। कटु वचन से सारा शरीर जलकर राख हो जाता है।

(ग) 'बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव, का क्या आशय है?
उत्तर― बातों के द्वारा ही मनुष्य असम्भव को भी सम्भव बना सकता है, यदि वह अपनी जीभ का सदुपयोग करता है। मृदुवचन और नम्रतापूर्ण आचरण से मनुष्य महत्त्वपूर्ण बन सकता है और इसके विरुद्ध आचरण से अर्थात् कटु वचन से वह अपने महत्त्व को खो देता है। बात के बोलने का ढंग उसे समाज में आदरणीय और निरादरणीय बना सकता है।

अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए―
(क)यदि लुकमान की जगह आप होते तो मालिक के प्रश्नों का क्या उत्तर देते?
उत्तर― लुकमान की जगह यदि मैं होता तो उसके प्रश्नों का उत्तर यही देता कि जीभ के कारण ही संसार में सारी भलाई और बुराई है जब से मृदु वचन बोलने पर सर्वत्र सुख की सुख होगा परंतु कटु वचन बोलने पर सर्वत्र कला और कटुताएँ ही होगी।

(ख) हमें वाणी का वरदान न मिला होता तो क्या होता?
उत्तर― मनुष्य को ईश्वर ने वाणी का वरदान दिया है जिससे वह अपने दुख सुख के भावों को अपने दूसरे साथियों से का लेता है दूसरों के भाव को सुनकर उनकी सहायता कर देता है वाणी के वरदान के न मिलने की दिशा में यह सारा जगत मुक बना होता।

भाषा की बात (भाषा अध्ययन / व्याकरण)

प्रश्न 1- निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और लिखिए—
व्यक्तित्व, विदीर्ण, प्रशंसा, वाणी, बुद्धिमान।
उत्तर― विद्यार्थीगण अपने शिक्षक की सहायता से शुद्ध उच्चारण करके अभ्यास करें और लिखें।

प्रश्न 2- निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए-
जिग्यासु, दाशर्निक, हिरदय, प्रसनशा, हंसकर।
उत्तर― जिज्ञासु, दार्शनिक, हृदय, प्रशंसा, हँसकर।

प्रश्न 3- निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए―
स्वप्न, लोकप्रिय, ऐश्वर्य, कारावास, अभिमानी।
वाक्य प्रयोग
(1) स्वप्न― युवकों को स्वप्न देखने के साथ ही यों कर्मशील भी होना चाहिए।
(2) लोकप्रिय― मृदुभाषी और नम्र व्यक्ति लोकप्रिय होता है।
(3) ऐश्वर्य― शुद्ध आचरण से व्यक्ति ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
(4) कारावास― आजादी के लिए आन्दोलन करने वाले देशभक्तों को कारावास दिया गया।
(5) अभिमानी― अभिमानी व्यक्ति कभी भी आदर नहीं पाता है।

प्रश्न 4- निम्नलिखित शब्दों में से विकारी और अविकारी शब्द छाँटकर लिखिए―
लड़की, तालाब, गाँव, ही, भी, नगर, तथा, इधर।
उत्तर―(क) विकारी शब्द— लड़की, तालाब, गाँव, नगर।
(ख) अविकारी शब्द— ही, भी, तथा, इधर।

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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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