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विषयवस्तु विवरण



पाठ 8—'संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास' कक्षा 6 हिन्दी प्रमुख गद्यांशों का संदर्भ व प्रसंग सहित व्याख्या, प्रश्नोत्तर व व्याकरण || sangeet shiromani swami haridas

केन्द्रीय भाव—प्रस्तुत एकांकी में लेखक ने भारतीय कला, साहित्य व संस्कृति के प्रति सम्राट अकबर के उदार दृष्टिकोण को दर्शाया है। भारत की समृद्ध गुरु-शिष्य परंपरा की एक झाँकी इस एकांकी के माध्यम से प्रस्तुत की गई है।

संपूर्ण पाठ परिचय
पात्र परिचय

स्वामी हरिदास : संत-वेश, कंधे पर गुदड़ी, हाथ में करुवा, आयु लगभग 65 वर्ष।
सम्राट अकबर: दूसरे दृश्य में सम्राट की और तीसरे में सेवक की पोशाक धारण करते हैं। आयु लगभग 50 वर्ष।
तानसेन : अकबर के नवरत्नों में से एक।संगीत सम्राट, दरबारी पोशाक, आयु लगभग 30 वर्ष।
अल्लादीन : स्वामी हरिदास का एक शिष्य, आयु लगभग 20 वर्ष, कुर्ता, तहमद और टोपी पहने हुए।
मोहन : स्वामी हरिदास का एक शिष्य, आयु लगभग 20 वर्ष, कुर्ता, धोती और टोपी पहने तथा कंधे पर गमछा डाले हुए।
रूपा : स्वामी हरिदास की एक शिष्या, सामान्य ब्रज-वेश में, आयु लगभग 30 वर्ष।

पहला दृश्य

समय : (प्रभात का समय, वृंदावन में निधिवन आश्रम का एक कोना, तख्त पर स्वामी हरिदास विराजमान हैं। पास में करुवा रखा है। समीप ही नीचे आसन पर तानसेन बैठे हैं। दोनों में बातें हो रही हैं।)
स्वामी हरिदास : तानसेन ! आज बहुत उदास लग रहे हो।तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ है। क्या बात है? कुशल तो है!
तानसेन : गुरुदेव, आप तो अंतर्यामी हैं। सम्राट अकबर मुझसे दीपक राग सुनना चाहते हैं। आज रात को ही उन्होंने दीपक राग सुनने की इच्छा प्रकट की है।
स्वामी हरिदास : तो इसमें भय कैसा? दीपक राग तो तुम्हें आता है। सुना देना। चिंता की क्या बात है!

तानसेन : दीपक राग तो मुझे आता है,गुरुदेव ; आपने ही मल्हार की छत्र-छाया में मुझ इस राग का अभ्यास कराया है।अगर मल्हार का प्रबंध किए बिना दीपक राग सुनाया तो में स्वयं भस्म हो जाऊँगा।
स्वामी हरिदास: अपने सम्राट से कह देते कि यह प्राण-लेवा राग है।
तानसेन : मैंने कहा था गुरुदेव! इस राग से गायक के तन में गर्मी बहुत बढ़ जाती है। लेकिन वे अपनी राजहठ पर अड़े हैं। आदेश दे दिया है।
स्वामी हरिदास : तानसेन! राजमहल का सम्मान और नवरत्नों में स्थान मिल जाना हमेशा सुखकारी नहीं होता। कभी-कभी वह संकट भी खड़ा कर देता है। जब तुमने दरबारी जीवन का आनंद लिया है तो प्राण-घातक कष्ट भी झेलो।

तानसेन : गुरुदेव! यह मात्र कष्ट या संकट नहीं, सीधा मृत्यु को निमंत्रण है। आप मेरी मृत्यु की कामना करेंगे?
स्वामी हरिदास : मैं तुम्हारे यशस्वी होने की कामना करता हूँ। मृत्यु तो विधाता का लेख है। वह अवश्यंभावी है फिर भी दरबारी जीवन की सत्य-कथा तो समझ ही गए हो? राजा, जोगी, अग्नि और जल की प्रीति उलटी होती है। इनसे बचकर रहना ही हितकर है।
तानसेन : अच्छी तरह समझ गया गुरुदेव ! अब अपने शिष्य के प्राण बचा लीजिए।
स्वामी हरिदास : अच्छा, चिंता मत करो। (अपने शिष्य को आवाज देते हैं।)मोहन!ओ मोहन!
(मोहन आता है।)

मोहन : आज्ञा, गुरुदेव !
स्वामी हरिदास : भैया, रूपा को तो बुला ला। कहना, स्वामीजी ने तुरन्त मिलने को कहा है।
मोहन : जो आज्ञा, गुरुदेव !
तानसेन: गुरुदेव, यह रूपा कौन है?
स्वामी हरिदास : मेरी शिष्या है—तुम्हारी गुरु-बहिन! बड़ी निपुण गायिका है। तुम्हारे अच्छे भाग्य हैं कि आज वह आश्रम में ही है। वह मेघमल्हार गाकर तुम्हारे प्राणों की रक्षा कर सकती है।.... लो,आ गई रूपा।
(रूपा आती है। स्वामीजी का चरण स्पर्श करती है और आसन पर बैठ जाती है।)

स्वामी हरिदास : रूपा यह तानसेन है तुम्हारे गुरु भाई सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक हैं संगीत के सम्राट माने जाते हैं।
(रूपा तानसेन को प्रणाम करती है तानसेन भी प्रणाम करता है)
स्वामी हरिदास : तानसेन ! यह है रूपा संगीत पर इसकी अद्भुत पकड़ है इससे सहायता की याचना करो
तानसेन : बहिन रूपा, मुझे आज रात सम्राट अकबर के दरबार में दीपक राग सुनाना है क्या तुम मेरी मदद करोगी।?
रूपा: मै आपकी क्या सहायता कर सकती हूँ?
तानसेन : जब दीपक राग मेरे शरीर में आग पैदा करने लगे तब तुम्हें मेघ मल्हार गाकर मेरी प्राण रक्षा करना है।

रूपा: मै किसी राजदरबार में कभी नहीं गाती। में प्रभु-चरणों की दासी हूँ, और आश्रम की गायिका है। राजदरबार में संगीत...नहीं.....नहीं, मै तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती।
तानसेन: क्या बहिन को भाई पर तरस नहीं आता? क्या भाई के प्राणों की रक्षा बहिन नहीं करेगी।
रूपा : भाई की रक्षा में तो बहिन प्राण-न्यौछावर कर देगी, लेकिन राजदरबार में संगीत के स्वर नहीं छेड़ेगी।
स्वामीहरिदास : बेटी रूपा तुम्हारा गायन किसी सम्राट के दरबार में सम्राट को सुनाने के लिए नहीं होगा। यह तो प्रभु-चरणों में ही होगा। तुम तो दीपक राग को सिद्धि पर मेघमल्हार गाओगी और अपने गुरु भाई की जान बचाओगी।

रूपा: आपका आदेश सिर-आँखों पर गुरुदेव लेकिन चाचा अल्लादीन और भैया मोहन मेरे साथ चलेंगे। चाचा को सारंगी और मोहन के मृदंग के बिना राग सिद्ध नहीं होगा। में तानसेन भैया की मेहमान बनूँगी।
तानसेन : (रूपा को हाथ जोड़कर अभिवादन करता है)अवश्य बहिन ।
(अलादीन, मोहन, रूपा और तानसेन गुरु का चरण स्पर्श करते हैं।) स्वामी हरिदास : यशस्वी होओ। चिरंजीवी होओ! पूर्णकाम होओ! (तीनों जाते हैं।)

दूसरा दृश्य

स्थान: सम्राट अकबर का राजमहल।
समय: रात का पहला प्रहर।
(कमरे में बड़े-बड़े दीप-स्तंभों का प्रकाश है। सम्राट अकबर और तानसेन बैठे बात कर रहे हैं।)
अकबर: तानसेन ! तुम सचमुच संगीत-सम्राट हो। कल के तुम्हारे दीपक राग को और रूपा के मेघमल्हार को हम जीवन भर याद रखेंगे लेकिन, हमने तुमसे दीपक राग सुनने की तमन्ना इसलिए की थी कि तुम्हारे गुरु हरिदास से मेघमल्हार सुनने को मिलेगा।
तानसेन: जहाँपनाह! गुरुजी राजमहल में संगीत कभी नहीं सुना सकते। उनका संगीत तो सोलहों कला के अवतार ब्रज-बिहारी श्री कृष्ण को समर्पित है।
अकबर: तानसेन ! तुम सच कहते हो! तुम्हारे उस्ताद स्वामी हरिदास ने राजमहल में आने से साफ इन्कार कर दिया। मैंने तुमसे दीपक राग सुनाने की फरमाईश इसीलिए की थी कि स्वामीजी का मेघमल्हार सुनने का मौका मिलेगा पर, बीच में रूपा के आ जाने से हम आपके गुरु से मेघमल्हार सुनने से वंचित रह गए। अब तो तुम्हारे गुरु की गायकी सुनने का मन है लेकिन, हमारी बदकिस्मती है कि हमारी प्रार्थना उन्होंने स्वीकार नहीं की।

तानसेन : जहाँपनाह, मैंने पहले ही अर्ज किया था कि वे यह प्रार्थना कभी स्वीकार नहीं करेंगे। आप ही नहीं माने।
अकबर : हम हिंदुस्तान के बादशाह हैं, हम समझते थे कि हिंदुस्तान में हमारी बात कोई नहीं नहीं टालेगा? लेकिन, संगीत का बादशाह हमसे कहीं बड़ा है- बहुत बड़ा। क्या करें, संगीत ने हमें दीवाना बना दिया है।
तानसेन : जहाँपनाह, संगीत ही क्या, आपको तो इस देश की प्रत्येक कला से स्नेह और लगन है।
अकबर : तानसेन! यह हमारी खुशकिस्मती है कि हम इस मुल्क के बादशाह हैं जिसका दुनिया में कोई जबाव नहीं। हम इस मुल्क की कला को, इसके संगीत को, इसकी मीठी-मीठी बोलियों को, इसकी पुरानी किताबों में छिपे ज्ञान को- सबको समझना चाहते हैं।
तानसेन : यह जहाँपनाह का बड़प्पन है जो मेरे प्यारे देश की कला की और वेद-उपनिषदों में छिपे ज्ञान की कद्र करते हैं।
अकबर: लेकिन तानसेन! हिन्दुस्तान का बदनसीब बादशाह स्वामी हरिदास का संगीत नहीं सुन पाएगा तो उसके मन की मन में ही रह जाएगी।

तानसेन: जहाँपनाह, निराश न हों। स्वामी हरिदास के संगीत को सुनने का आपको मौका अवश्य मिलेगा।
अकबर : मौका मिलेगा? कब? जब हम अल्ला मियाँ को प्यारे हो जाएँगे?
तानसेन: (कानों को हाथ लगाकर) ऐसा मत कहिए जहाँपनाह! आप हजार साल तक जीवित रहें। कल प्रातः ही उनके आश्रम पर संगीत सुनने का मौका मिलेगा। यदि आप सम्राट के वेश में चलेंगे तो यह अवसर हाथ से निकल जाएगा।
अकबर: तानसेन, तुम जानते ही हो, हमें हिन्दुस्तान और यहाँ के संगीत से कितना लगाव है। हम उनका संगीत सुनने किसी भी लिबास में जा सकते हैं। (तानसेन अकबर के कान में कुछ कहता है और अकबर स्वीकार कर लेता है। थोड़ी देर खामोश इशारों में बात होती है। ठीक है, हमें मंजूर है। सुबह पहुँचने का इंतजाम अभी कर दो।
तानसेन: जो हुक्म जहाँपनाह!
(संगीत की धुन और घोड़ों के टापों की आवाज सुनाई देती है।)

तीसरा दृश्य

समय : (प्रभात बेला। मंच पर थोड़ा प्रकाश।पक्षियों का कलरव।नेपथ्य में भैरवी की स्वर लहरियाँ।)
स्थान: वृंदावन में निधिवन आश्रम का एक कोना।
(बीच में तख्त और इधर-उधर आसन बिछे हैं। आसनों पर बैठे शिष्य स्वामी हरिदास की प्रतीक्षा में है। तभी तानसेन का प्रवेश होता है। वह आगे आसन पर बैठ जाता है। अकबर नौकर के लिबास में बहुत पीछे आसन पर बैठ जाता है। स्वामी हरिदास कंधे पर गुदड़ी डाले और हाथ में करुवा लिए प्रवेश करते हैं। सभी शिष्य और उपस्थित लोग खड़े हो जाते हैं। स्वामीजी तख्त पर आसन ग्रहण करते हैं। पास ही करुवा रखकर हाथ के इशारे से सबको बैठने तानसेन उनके चरण छूता है।
स्वामी हरिदास : यशस्वी हो तानसेन तुम कब आए?
तानसेन : गुरुदेव! अभी पहुँचा हूँ। आपके दर्शन की इच्छा खींच लाई।
स्वामी हरिदास: घर-परिवार में सब कुशल-मंगल है?
तानसेन :गुरुदेव की कृपा है, सब कुशल मंगल है।

स्वामी हरिदास : तुम्हारा दीपक राग तो खूब जमा। रूपा ने बताया था।
तानसेन: गुरुदेव, रूपा ने तो सचमुच कमाल कर दिया। आपकी कृपा से लाज भी रह गई और प्राण भी बच गए।
स्वामी हरिदास : ब्रज-बिहारी सबका रक्षक है, लाज हो या प्राण, सब उसी के हाथों में है। वहा पीछे कौन बैठा है?
तानसेन : गुरुदेव, वह मेरा सेवक है।
स्वामी हरिदास: अच्छा, तुम्हारी गायकी की प्रशंसा आश्रम में बैठा ही सुनता रहता हूँ।बहुत प्रसन्नता होती है। तुमने कई नई राग-रागिनियों की रचना भी की है।
तानसेन: गुरुदेव! वह तो आपका ही आशीर्वाद है। उसमें मेरी मौलिकता कम, आपकी छाया अधिक है। मैंने तो केवल थोड़ा-सा विस्तार ही करने का साहस किया है।

स्वामी हरिदास : तानसेन, तुम गुरु-भक्ति में बह जाते हो। अपनी रचना पर मेरा प्रभाव बताते हो। 'मियाँ मल्हार' और 'मियाँ की तोड़ी' में नए स्वर नहीं लगाए हैं तुमने? क्या ये भी मेरी कृतियाँ हैं?
तानसेन : नहीं गुरुदेव, मैं सच कहता हूँ। कृतियाँ तो आपकी ही हैं। मैंने तो समरस स्वरों का केवल थोड़ा-सा विस्तार ही किया है।
स्वामी हरिदास : चलो, विवाद नहीं करते।अल्लादीन, तानसेन को तानपूरा दो। आज इनकी नई रचना सुनेंगे। राजमहल का गायक आश्रम में भी स्वरों का नया रंग जमाएगा। प्रभु-चरणों में बहुत आनंद आएगा।
(अल्लादीन तानपूरा लाकर तानसेन को देता है। तानसेन मृदंग के साथ तानपूरा मिलाता है और गाता है।)
तानसेन: कहत गुन पर समुझत नाही , राज को परमान। तिरयान कौन-कौन पच जात, चार अंग भेद कहो ऑन।
(बोलों में गलत स्वर लगा देता है।)

स्वामी हरिदास : (खीझकर) तानसेन ! एकदम पंचम ! बेसुरे क्यों हो रहे हो? गलत स्वर लगाते हो? लाओ, इधर लाओ तानपुरा।
(तानसेन तानपूरा देता है। स्वामी जी आँखें बंद करके मधुर लय में वही राग सुनाते हैं। सभी श्रोता-दर्शक झूम उठते हैं। अकबर भी झूम उठता है। मृदंग की थाप के साथ राग सम पर आता है। स्वामीजी आंखें खोलते हैं। तानपुरा तख्त पर रख देते हैं।)
तानसेन, ऐसे गाया जाता है यह राग, समझे।
तानसेन: (अकबर को आँखों से संकेत करते हुए, असावधानी से) जी,जी गुरुदेव !
स्वामी हरिदास: (ध्यान से देखते हैं।) अच्छा! अपने सम्राट को सेवक बनाकर लाए हो। खूब नाटक किया है।
तानसेन : क्षमा करें गुरुदेव! यह अन्यथा संभव नहीं था। परन्तु आपने कैसे जाना?
स्वामी हरिदास : तुम्हारी आँखों के संकेतों से, तुम्हारे संकेत सेवक के लग रहे थे और उनके संकेत स्वामी के! (अकबर उठकर आता है और गुरुजी के चरणों में झुक जाता है। स्वामीजी आशीर्वाद देते हैं।) आयुष्मान होओ! यशस्वी होओ! तुम्हारा कला-प्रेम बना रहे।

अकबर: माफ कीजिए, स्वामीजी ! आपका संगीत सुनने का मौका और किसी तरीके से मिलना मुश्किल था। आपका संगीत सचमुच जन्नत का संगीत है।
स्वामी हरिदास : सम्राट! वह बहुत अच्छी बात है कि आप संगीत का सम्मान करते हैं। यह भी ब्रज-बिहारी की कृपा का प्रसाद है। यह हर किसी को नहीं मिलता।
अकबर: स्वामी जी, हम हिन्दुस्तान के रीति-रिवाज और कलाओं की इज्जत करते हैं। उन्हें ऊँचा दर्जा देते हैं। हमें फख्र है हिन्दुस्तान पर। हम इस पवित्र जमीन को सलाम करते हैं। स्वामी जी! यह मुल्क संगीत, नृत्य और ज्ञान का भरपूर खजाना है।
स्वामी हरिदास: बहुत अच्छी बात है सम्राट! कला तो संस्कृति की पहचान है। (अल्लादीन से)अल्लादीन, मोहन से कहो सम्राट और तानसेन को मिसरी का प्रसाद लाकर दे और उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करे। में थोड़ी देर बाद समाज के लिए आऊँगा।
(स्वामी जी करुवा उठाकर अपनी कुटिया में चले जाते हैं।)

तानसेन: देखा जहाँपनाह! संगीत की मिठास और उसका असर। इन्होंने संगीत को समाज से जोड़ा है।इसीलिए वे संगीत की शिक्षा को "समाज" कहते हैं।
अकबर : सचमुच स्वामी हरिदास "संगीत-शिरोमणि" हैं। हमारा दिल उनका संगीत सुनकर बाग-बाग हो गया। तानसेन, तुम्हारा गायन भी कोई कम नहीं है लेकिन स्वामीजी के गायन का कोई जवाब नहीं।
तानसेन : जहाँपनाह, स्वामीजी का और मेरा क्या मुकाबला?मैं हिंदुस्तान के शहंशाह की खुशी के लिए गाता हूँ परन्तु स्वामीजी संसार के स्वामी को रिझाने के लिए गाते हैं।
अकबर : हूँ (सिर हिलाते हैं) ठीक कहते हो।
(मोहन सम्राट अकबर और तानसेन को पीपल के पत्ते पर तुलसीदल और मिसरी देता है। वे प्रसाद को श्रद्धा से लेते हैं और चले जाते हैं।)

शब्दार्थ

प्रभात = सुबह।
अन्तर्यामी = हृदय की बात जानने वाला, परमेश्वर।
प्राणघातक = जानलेवा।
कामना = मनोरथ, इच्छा।
यशस्वी = जिसका खूब यश हो।
नेपथ्य = पर्दे के पीछे का स्थान।
लिबास = पोषाक, पहनने का वस्त्र।

टिप्पणी—

सम्राट—महाराजाधिराज, जिसके अधीन बहुत से राज्य हों।
मेघ मल्हार—वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला राग जो बादलों को आमंत्रित करता है।
दीपक राग—दीपक को प्रज्ज्वलित करने के लिए गाया जाने वाला राग।

(क) परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या

गद्यांश—(1) राजमहल का सम्मान और नवरत्नों में स्थान मिल जाना हमेशा सुखकारी नहीं होता। कभी-कभी यह संकट भी खड़ा कर देता है। जब तुमने दरबारी जीवन का आनंद लिया है तो प्राणघातक कष्ट भी झेलो।

सन्दर्भ— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'भाषा भारती' के पाठ 'संगीत शिरोमणि स्वामी हरिदास' से ली गई हैं। इस पाठ के लेखक 'जयपाल तरंग' हैं।

प्रसंग— स्वामी हरिदास तानसेन को बताते हैं कि राजदरबारी जीवन सुख और दुःख दोनों को देने वाला है।

व्याख्या— स्वामी हरिदास ने तानसेन को अपनी अनुभूति से बताया कि किसी को यदि राजभवन से सम्मान मिलता है और तुम्हें वहाँ के नवरत्नों में जो स्थान मिला है, वह सदा ही सुख देने वाला नहीं हो सकता। यह दिया गया सम्मान और पद कभी-कभी किसी प्रकार का संकट भी पैदा कर देता है। नतीजा यह होता है कि दरबारी एवं नवरत्नों में स्थान पाने वाले व्यक्ति का जीवन कष्टमय हो जाता है। परन्तु क्योंकि तुमने एक दरबारी का जीवन स्वीकार किया है और उसका आनन्द भी लिया है, तो तुम्हें अवश्य ही प्राणों का नाश करने वाला कष्ट(दुःख)भी भोगना ही चाहिए।

गद्यांश—(2) मैं तुम्हारे यशस्वी होने की कामना करता हूँ। मृत्यु तो विधाता का लेख है। वह अवश्य सम्भव है फिर भी दरबारी जीवन की सत्य कथा तो समझ ही गए हो? राजा,जोगी, अग्नि और जल की प्रीति उलटी होती है। इनसे बचकर रहना ही हितकर है।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— स्वामी हरिदास तानसेन को यशस्वी होने का आशीर्वाद देते हैं। उन्हें राजा, योगी, अग्नि और जल (इन चार वस्तुओं) से सदैव बचकर रहने की सलाह देते हैं।

व्याख्या— स्वामी हरिदास तानसेन को आशीर्वाद देते हैं कि उसका यश बना रहे। साथ ही यह कामना भी करते हैं कि उसका यश भरा जीवन सदा सुरक्षित रहे। लेकिन मृत्यु के विषय में बताते हैं कि यह तो निश्चित है जो विधाता ने अवश्य ही होने वाली बात बतलायी। लेकिन उन्होंने बताया कि राजदरबार का जीवन कैसा होता है, उसकी सच्ची कहानी तो तुम जान गए होगे। तुम्हें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि राजा, जोगी, अग्नि और जल से प्रेम करते हो, तो इनका तुम्हारे प्रति उल्टा (कष्टदायी) व्यवहार भी होगा। अर्थात् जो इनके पास रहेगा, उसे ही ये लोग कष्ट देंगे, जलाएँगे और गलाएँगे। अतः इनसे जितना हो सके दूर ही रहना चाहिए।

गद्यांश—(3) यह हमारी खुशकिस्मती है कि हम इस मुल्क के बादशाह हैं जिसका दुनिया में कोई जवाब नहीं।हम इस मुल्क की कला को,इसके संगीत को,इसकी मीठी-मीठी बोलियों को, इसकी पुरानी किताबों में छिपे ज्ञान को सबको समझना चाहते हैं।

सन्दर्भ—पूर्व की तरह।
प्रसंग— राजा अकबर तानसेन से कहते हैं कि वह स्वयं को बड़ा भाग्यशाली मानते हैं कि संसार के अद्वितीय देश हिन्दुस्तान के राजा हैं।

व्याख्या— राजा अकबर तानसेन को अपने मन की बात स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि वह स्वयं को बहुत बड़ा भाग्यशाली मानते हैं कि वह एक ऐसे देश का राजा है जिस देश के मुकाबले का संसार में कोई भी देश नहीं है। राजा ने अपने हृदय की इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि वह इस देश की कला, संगीत एवं यहाँ की अनेक बोलियों की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। इस देश की बोलियों में अनोखी मिठास है। यहाँ पुराने ग्रन्थों में छिपे ज्ञान की जानकारी लेकर, उस ज्ञान को अच्छी तरह समझना चाहते हैं।

गद्यांश—(4) स्वामी जी,हम हिन्दुस्तान के रीति-रिवाज और कलाओं की इज्जत करते हैं। उन्हें ऊँचा दर्जा देते हैं। हमें फख्र है हिन्दुस्तान पर। हम इस पवित्र जमीन को सलाम करते हैं। स्वामी जी ! यह मुल्क संगीत, नृत्य और ज्ञान का भरपूर खजाना है।

सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— राजा अकबर ने स्वामी हरिदास जी से अपने मन की बात स्पष्ट कह दी कि वह इस देश हिन्दुस्तान पर बहुत गर्व अनुभव करता है।

व्याख्या— स्वामी हरिदास जी से अकबर ने कहा कि यह इस देश के रीति रिवाज,तीज- लोहारों और कलाओं का बड़ा सम्मान करता है। उन्हें उच्च दर्जे पर रखता है। वह इसकी पवित्र भूमि को बार बार प्रणाम करता है। वह चंबा करते हुए कहता है कि इस देश में संगीत नृत्य और उच्च कोटि का ज्ञान वास्तव में अनोखा है इन सभी से भरपूर यह देश विश्व में अकेला है।

अभ्यास

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) सम्राट अकबर के नौ रत्नों में से एक थे—
(i) मोहन
(ii) तानसेन
(iii) रूपा
(iv) अल्लादीन
उत्तर—तानसेन

(ख) दीपक को प्रज्ज्वलित करने वाला राग है—
(i) दीपक राग
(ii) ठुमरी
(iii) राग भैरवी
(iv) मियाँ मल्हार।
उत्तर—(i) दीपक राग

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।—
(क) तानसेन के गुरु का नाम स्वामी हरिदास था।
(ख) अकबर ने स्वामी हरिदास को संगीत शिरोमणि की उपाधि प्रदान की।
(ग) रूपा ने मेघ मल्हार गाकर तानसेन के प्राणों की रक्षा की।
(घ) गुरु जी राजमहल में संगीत कभी नहीं सुना।

प्रश्न 3. बताइए, किसने किससे कहा।—
(क) “तानसेन ! यह हमारी खुशकिस्मती है कि हम इस मुल्क के बादशाह हैं।"
उत्तर— सम्राट अकबर ने तानसेन से।
(ख) "क्या बहन को भाई पर तरस नहीं आता? भाई के प्राणों की रक्षा बहन नहीं करेगी?"
उत्तर— तानसेन ने अपनी गुरु बहन रूपा से।
(ग) “तानसेन ! राजमहल का सम्मान और नवरत्नों में स्थान मिल जाना सदा सुखकारी नहीं होता।"
उत्तर—स्वामी हरिदास ने अपने शिष्य तानसेन से।

प्रश्न 4. चार से पाँच वाक्यों में उत्तर दीजिए—
(क) सम्राट अकबर किस पवित्र जमीन को सलाम करते हैं और क्या और क्यों?
उत्तर— सम्राट अकबर हिन्दुस्तान की पवित्र जमीन को सलाम करते हैं।यह देश संसार के सभी देशों में अनोखा है।यहाँ के रीति-रिवाज, कला, संगीत एवं यहाँ की अनेक बोलियों में मिठास है। यहाँ का संगीत पूर्ण रूप से विकसित है,नृत्य में भी भावों को साकार किया जाता है। साथ ही यहाँ के ग्रन्थों में अद्वितीय ज्ञान भरा पड़ा है। इसलिए यहाँ की यह भूमि पवित्र है। अतः इस पवित्र जमीन को वह सलाम करता है।

(ख) दीपक राग प्राणों को संकट में डाल सकता है, कारण बताइए।
उत्तर— दीपक राग प्राण लेवा राग है। इस राग से गायक के तन में गर्मी बहुत बढ़ जाती है। दीपक राग के गाने का मतलब सीधा मृत्यु को ही निमन्त्रण है। इस दीपक राग के गाने से पहले मेघ मल्हार गीत गाए जाने का प्रबन्ध कर लेना चाहिए। जब दीपक राग गायक के शरीर में आग पैदा करने लगे,तब मेघ मल्हार गाकर, गायक के प्राणों की रक्षा करनी पड़ती है।

(ग) स्वामी हरिदास संगीत की शिक्षा को 'समाज' क्यों कहते थे?
उत्तर— स्वामी हरिदास ने संगीत को समाज से जोड़ दिया है क्योंकि उनके संगीत में जो मिठास है, वह अत्यन्त प्रभावकारी है। सभी लोग इस संगीत शिरोमणि के संगीत से प्रभावित हो उठते हैं, इसका केवल यही कारण है कि उन्होंने संगीत की शिक्षा को समाज से जोड़कर देखा है। संगीत के लाभ स्वयं अपने स्वार्थ के लिए नहीं, अपनी प्रसिद्धि और सम्मान के लिए नहीं-संसार के स्वामी जगन्नियंता को रिझाने के लिए वे गाते हैं। अत: उन्होंने संगीत की शिक्षा को 'समाज' कहा है।

(घ) दीपक राग सुनने के पीछे सम्राट् का क्या भाव था?स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— दीपक राग सुनने के पीछे सम्राट् का भाव यह था कि वह तानसेन के साथ ही उसके गुरु स्वामी हरिदास को भी अपने राज दरबार में सम्मानित 'नवरत्न' के रूप में नियुक्त कर लेगा जिससे दीपक राग को सुनने के लिए मेघ मल्हार के गाने की पूर्ति स्वामी हरिदास से हो जाएगी। परन्तु ऐसा नहीं हो सका क्योंकि स्वामी हरिदास ने तो अपने संगीत को ब्रज विहारी कृष्ण को समर्पित कर दिया था। वे कृष्ण की भक्ति में ही गीत गाते थे। किसी राज दरबार में स्वार्थ या लोभ के कारण नहीं। वास्तविकता तो यह भी थी कि राजा अकबर स्वामी हरिदास की परीक्षा लेना चाहता था कि वे स्वार्थ और लोभ के कारण तो संगीत की शिक्षा नहीं देते।

(ङ) तानसेन और स्वामी हरिदास के गायन में मुख्य अन्तर क्या था?
उत्तर— तानसेन का गायन भी अच्छा था लेकिन स्वामी हरिदास के गायन का कोई जवाब नहीं था।अर्थात् तानसेन और हरिदास के गायन की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि तानसेन को तो अपना गीत हिन्दुस्तान के शहंशाह की खुशी के लिए गाना पड़ता था जिससे उसके संगीत में पराधीनता, परवशता आ जाती ि थी जबकि स्वामी हरिदास जी तो संसार के स्वामी को रिझाने के लिए गाते थे अर्थात् वे अपना गीत गाने के लिए स्वाधीन थे। जब वे चाहते थे, तो गाते थे। किसी के आदेश पर नहीं। यही अन्तर था तानसेन और स्वामी हरिदास के गायन में।

प्रश्न 5. सोचिए और बताइए—

(क) तानसेन ने अपने गुरु को अन्तर्यामी क्यों कहा?
उत्तर— तानसेन को गुरुदेव स्वामी हरिदास ने बहुत उदास देखा, उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा गुरुदेव के द्वारा पूछे जाने पर कि ऐसी क्या बात है जिससे तुम दुःखी प्रतीत हो रहे हो ? इसका उत्तर देते हुए तानसेन ने अपने गुरु को निवेदन किया कि हे गुरुदेव, आप तो अन्तर्यामी हो। ऐसा कहते हुए स्पष्ट किया प्र कि सम्राट् अकबर मुझसे (तानसेन से) दीपक राग सुनना चाहते हैं, वह भी आज ही रात को। मुझे बताइए मेघ मल्हार का प्रबन्ध किए बिना दीपक राग कैसे सुनाया जा सकता है। मेरी इस चिन्ता को आपने समझ लिया है,आप वस्तुतः अन्तर्यामी हैं।

(ख) अकबर ने सम्राट् होते हुए स्वयं को बदकिस्मत क्यों कहा?
उत्तर— अकबर ने तानसेन से कहा कि उसने (राजा अकबर ने) तुमसे (तानसेन से) दीपक राग सुनने की फरमाईश इसलिए की थी कि स्वामी हरिदास जी का मेघ मल्हार सुनने का मौका मिलेगा,पर बीच में रूपा के आ जाने से हम आपके गुरु से मेघ मल्हार सुनने से वंचित रह गए। तुम्हारे गुरु की गायकी सुनने की मन में इच्छा है, लेकिन हमारी बदकिस्मती है कि हमारी प्रार्थना उन्होंने स्वीकार नहीं की क्योंकि वे राज भवन में संगीत नहीं गा सकते।

(ग) अकबर ने स्वामी हरिदास के संगीत को 'जन्नत का संगीत' क्यों कहा है?
उत्तर— स्वामी हरिदास ने अपने आश्रम में संगीत सुनाते हुए सेवक वेषधारी सम्राट् अकबर को और तानसेन को उनके रह हाव-भावों से सही रूप में पहचान लिया। तब स्वामी हरिदास के चरण स्पर्श करते हुए अकबर ने कहा कि आपके संगीत को सुनने का मौका किसी अन्य तरीके से मिलना कठिन था। आज इस अपने नाटक द्वारा तानसेन और उसके सेवक बने अकबर ने उनका संगीत सुन लिया। सचमुच ही गुरुदेव आपका संगीत जन्नत का संगीत है।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न 6. अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए— (क) यदि निपुण गायिका रूपा तानसेन की मदद करती, तो क्या हो सकता था?
उत्तर—(1) तानसेन की मदद रूपा द्वारा न किए जाने वह दीपक राग नहीं गाता तो नवरत्नों में से उसे अपमानित कर निकाला जा सकता था।(2)यदि रूपा मदद नहीं करती, और राजहठ के चलते, तानमेन दीपक राग गाता तो उस राग की सिदि पर तानसेन के शरीर में अग्नि जल उठती और उसके प्राणों पर संकट आ पड़ता।

(ख) तानसेन के स्थान पर यदि आप होते, तो प्राणों पा संकट के बाद भी क्या सम्राट् की आज्ञा का पालन करते?
उत्तर— तानसेन के स्थान पर मेरे होने की स्थिति में तथा प्राणों पर संकट के बाद भी मैं सम्राट् की आज्ञा का पालन करता। क्योंकि मुझे अपने सम्मान का अधिक ख्याल होता। इतने समय तक राजभवन में 'नवरत्न' के पद पर रहते हुए परीक्षा की घड़ा आने पर मैं किस प्रकार पीछे हटता। यह तो मेरे स्वाभिमान का प्रश्न बन गया होता।

भाषा की बात

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और लिखिए—
दर्शनीय, महिमामय, सम्राट, वृन्दावन, भैरवी, सिद्धि।
उत्तर अपने अध्यापक महोदय की सहायता से कक्षा में शुद्ध उच्चारण करने का प्रयास कीजिए और अभ्यास कीजिए।

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए —
(1) अर्न्तयामी (2) निमनत्रण (3) प्रतिक्छा (4) संमान।
उत्तर—(1) अन्तर्यामी (2) निमन्त्रण (3) प्रतीक्षा (4) सम्मान।

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों में विशेषण और विशेष्य बताइए—
शब्द—निपुण राधिका, अच्छा भाग्य, सम्राट अकबर, नवरत्न
उत्तर—विशेष्य— राधिका, भाग्य, अकबर, रत्न।
विशेषण— निपुण, अच्छा, सम्राट, नव।

प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के साथ 'उप' उपसर्ग पाकर नए शब्द बनाइए—
(1) स्थित (2) करण (3) लब्ध (4) न्यास (5) वास।।
उत्तर—(1) उप + स्थित = उपस्थित।
(2) उप + करण = उपकरण।
(3) उप + लब्ध = उपलब्ध।
(4) उप + न्यास = उपन्यास।
(5) उप + वास = उपवास ।

प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
(1) संगीत, (2) विधाता, (3) दीवाना, (4) प्रभात।
उत्तर —(1) संगीत— स्वामी हरिदास का संगीत वास्तव में जन्नत का संगीत था।
(2) विधाता—जन्म और मृत्यु तो विधाताका नियम है
(3)दीवाना— तानसेन के संगीत ने राजदरबार में सभी श्रोताओं को दीवाना बना दिया।
(4)प्रभात—'प्रभात' बेला में आश्रम का वातावरण मन को हरने वाला था।

प्रश्न 6. दिए गए अनुच्छेद में यथास्थान विराम चिन्हों का प्रयोग कीजिए—।
(क) तो इसमें भय कैसा दीपक राग तो तुम्हें आता है सुना देना चिन्ता की क्या बात है।
(ख) दीपक राग तो मुझे आता है गुरुदेव आपने ही मल्हार की छत्रछाया में मुझे इस राग का अभ्यास कराया है अगर मल्हार का प्रबन्ध किए बिना दीपक राग सुनाया तो मैं स्वयं भस्म हो जाऊँगा।
उत्तर—(क) तो इसमें भय कैसा? दीपक राग तो तुम्हें आता है; सुना देना। चिन्ता की क्या बात है?
(ख) दीपक राग तो मुझे आता है। गुरुदेव ! आपने ही मल्हार की छत्रछाया में मुझे इस राग का अभ्यास कराया है। अगर मल्हार का प्रबन्ध किए बिना दीपक राग सुनाया, तो मैं स्वयं ही भस्म हो जाऊँगा।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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