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'दो बैलों की कथा' - पाठ/कहानी का सारांश, अभ्यास एवं व्याकरण (कक्षा- 9) || मुंशी प्रेमचंद जी का कृतित्व/ रचनाएँ

पाठ का सारांश - 'दो बैलों की कथा'

मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा रचित 'दो बैलों की कथा' ग्रामीण परिवेश, किसान के पशु-प्रेंम एवं मनुष्य के स्वार्थ को दर्शाती एक जीवंत कहानी है।

झूरी काछी नामक कृषक के पास हीरा मोती नाम के बैलों की जोड़ी होती है। ये दोनों बैल अपने मालिक को प्रेंम करने के साथ-साथ एक दूसरे से बेहद प्रेंम करते हैं। दोनों बैलों के बीच अगाध मित्रता होती है। बैलों का मालिक भी अपने इन हीरा मोती से प्रेंम करता है, उनके खाने-पीने का ख्याल रखता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जैसा कि होता है रिश्ते नातेदार एक दूसरे के बैलों को ले जाकर अपनी खेती का काम निपटाते हैं। उसी तरह झूरी का साला जिसका नाम गया था, वह इन बैलों को अपने साथ ले जाता है। गया की आत्मीयताहीनता और देखभाल के अभाव में दोनों बैल गले की रस्सी तोड़कर अपने मालिक झूरी के पास आ जाते हैं। मालकिन अर्थात जूरी की पत्नी बैलों पर क्रोध करती है किन्तु झूरी अपने बैलों को पुनः देखकर प्रसन्न होता है।

झूरी का साला गया दूसरे दिन पुनः बैलों को लेने आता है और उन्हें इसबार बैलगाड़ी में फाँदकर पुनः ले जाता है। कहानी में गया के रूप में इंसान के स्वार्थ का चित्रण गया है। अबकी बार गया दोनों बैलों को मोटे-मोटे रस्से से बाँध देता है और उन्हें खाने के लिए सूखा भूसा ही देता है जिससे बैल काफी अप्रसन्न और मायूस होते हैं। दूसरी ओर पशु प्रेंम का मानवीय चित्रण भी यहाँ किया गया है। गया के घर पर बैलों के लिए अपनेपन की बात यह होती है कि भैरों की छोटी सी लड़की उन्हें रोज रोटियाँ लाकर खिलाती है। इन सब परिस्थितियों पर हीरा मोती मूक-भाषा में वार्तालाप करते हैं। यहाँ प्रेमचंद जी ने परतन्त्रता का जीवंत चित्रण किया है।

बैलों की व्यथा एवं मन के संताप को भाँपते हुए छोटी लड़की एक दिन उन बैलों को मोटे रस्सों से मुक्त कर देती है। दोनों बैल कुलांचे मारते हुए वहाँ से भाग खड़े होते हैं, किन्तु वे अपने मालिक के घर का रास्ता भटक जाते हैं। वे अपने अनजान रास्ते के आजू-बाजू खेतों में लगे मटर से अपना पेट भरते हैं। यहीं पर एक कट्टे-कट्टे साँड़ से उनकी लड़ाई भी होती है। दोनों बैल एक दूसरे के सहयोग, समन्वय और फुर्ती से उस साँड़ को धूल चटा देते हैं। इस तरह एकता की शक्ति के भाव का वर्णन कहानी में हुआ है।

साँड़ से लड़ाई के पश्चात उन्हें भूख भी लगती है और वे कुछ खाना चाहते हैं। सामने मटर के खेत को देखकर मोती बैल मटर के खेत में घुस जाता है। किंतु खेत मालिक के द्वारा उसे पकड़ लेता है। हीरा बैल भी अपने साथी के पकड़े जाने पर स्वयं को उस किसान के हवाले कर देता है। यहाँ प्रेमचंद जी ने मित्रता और प्रेंम में समर्पण भाव को दर्शाया है। बैलों के पकड़े जाने के पश्चात उन्हें कांजीहौस में डाल दिया जाता है जहाँ चारे-भूसे आदि की कोई व्यवस्था नहीं होती। कांजीहौस में अन्य पशु घोड़े, भैसे, बकरियाँ, गधे होते हैं। दोनों बैल मुक्त होने के लिए कांजीहौस की दीवार को तोड़ देते हैं और अन्य पशुओं को वहाँ से भगा देते हैं। किन्तु हीरा बैल के गले में मोटी रस्सी होने के कारण वह नहीं भाग पाता इस कारण मोती बैल भी नहीं भागता। यहाँ गहरी मित्रता की छाप दिखाई देती है। दोनों खानपान के अभाव में बहुत दुर्बल हो जाते हैं। यहाँ पशुओं के प्रति मानव की क्रूरता एवं निर्ममता के भाव का चित्रण किया गया है। फिर एक दिन कांजीहौस से उन दोनों बैलों को नीलाम कर दिया जाता है, जिन्हें एक दढ़ियल व्यक्ति खरीदता है।

वह दढ़ियल उन्हें जिस मार्ग से ले जाता है वह मार्ग उन बैलों का जाना पहचाना अर्थात अपने मालिक के घर का रास्ता होता है। दोनों बैल बहुत खुश होते हैं और उनके अंदर पुनः फुर्ती व जोश आ जाता है। दौड़कर वे अपने मालिक के घर पहुँच जाते हैं। उनका मालिक झूरी बैलों को देखकर बहुत प्रसन्न होता है। उन्हें अपने गले लगाता है। दढ़ियल व्यक्ति बैलों को खरीद लेने की बात करते हुए झूरी से बहस करता है। जूरी भी अपने बैल होने का दावा करता है। दोनों बैल दढ़ियल को मारने के लिए दौड़ते हैं। इस तरह दढ़ियल वहाँ से भाग जाता है। झूरी की पत्नी भी दोनों बैलों को देखकर उन्हें चूम लेती है। इस तरह इस मार्मिक कथा समापन होता है।

मुंशी प्रेमचंद
[लेखक परिचय एवं उनका कृतित्व (रचनाएँ)]

प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय था। प्रेंमचंद का बचपन अभावों में बीता और शिक्षा बी. ए. तक ही हो पाई। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की परन्तु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। सन् 1936 में इस महान कथाकार का देहांत हो गया।

प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उन्होंने हंस, जागरण, माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया। कथा साहित्य के अतिरिक्त प्रेमचंद ने निबंध एवं अन्य प्रकार का गद्य लेखन भी प्रचुर मात्रा में किया। प्रेमचंद साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते थे। उन्होंने जिस गाँव और शहर के परिवेश को देखा और जिया उसकी अभिव्यक्ति उनके कथा साहित्य में मिलती है। किसानों और मज़दूरों की दयनीय स्थिति, दलितों का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आन्दोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं।

प्रेंमचंद के कथा साहित्य का संसार बहुत व्यापक है। उसमें मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों को भी अद्भुत आत्मीयता मिली है। बड़ी से बड़ी बात को सरल भाषा में सीधे और संक्षेप में कहना प्रेंमचंद के लेखन की प्रमुख विशेषता है। उनकी भाषा सरल, सजीव एवं मुहावरेदार है तथा उन्होंने लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है।

'दो बैलों की कथा' के माध्यम से प्रेंमचंद ने कृषक समाज और पशुओं के भावात्मक संबंध का वर्णन किया है। इस कहानी में उन्होंने यह भी बताया है कि स्वतन्त्रता सहज में नहीं मिलती, उसके लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से यह कहानी आज़ादी के आंदोलन की भावना से जुड़ी है। इसके साथ ही इस कहानी में प्रेंमचंद ने पंचतंत्र और हितोपदेश की कथा-परंपरा का उपयोग और विकास किया है।

प्रश्न - अभ्यास

1. कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर - कांजीहौस में कैद पशु कहीं भाग न गए हों इस हेतु उनकी हाजिरी ली जाती होगी।

2. छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेंम क्यों उमड़ आया?
उत्तर - छोटी बच्ची से घर में सौतेला व्यवहार होने एवं प्रेंम न मिलने के कारण उसका बैलों के प्रति प्रेंम उमड़ आया।

3. कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं?
उत्तर - कहानी में बैलों के माध्यम से -
(i) भाईचारा एवं मित्रता निभाना।
(ii) स्वामी प्रेंम।
(iii) स्व-जाति धर्म निभाना।
(iv) साहस एवं सहनशीलता।
(v) सहानुभूति।
(vi) परमार्थ।
आदि नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं।

4. प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे को किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की और संकेत किया है?
उत्तर - प्रेंमचंद ने गधे के सीधेपन एवं निरापद सहिष्णुता की स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर नए अर्थ 'सहनशीलता' की ओर संकेत किया है।

5. किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी?
उत्तर - हीरा और मोती में गहरी दोस्ती का पता -
(1) उनका एक दूसरे को चाटकर एवं सूँघकर प्रेंम प्रकट करना।
(2) स्वयं की गर्दन पर ज्यादा बोझ रखने का भाव।
(3) दोनों का साथ-साथ रहना।
(4) मिलकर सांड से लड़ना।
(5) एक का दूसरे के लिए रुक जाना।
आदि से चलता है।

6. 'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।' - हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - हीरा बैल के कथन - "लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।" के माध्यम से प्रेमचंद जी ने दर्शाया है कि स्त्री का समाज में क्या स्थान है। स्त्री के व्यवहार जैसे भी हों वह हर परिस्थिति में सर्वथा सम्माननीय है।

7. 'किसान जीवन' वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
उत्तर - 'किसान जीवन' वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों का कहानी में बड़ा ही मार्मिक चित्रण है। झूरी काछी का अपने बैल हीरा मोती के प्रति प्रेंम, उनकी देखभाल और दूसरी ओर बैलों का स्वामी के कृषि कार्यों मैं जी जान से कार्य करना एक दूसरे की पूरकता को दर्शाता है। यदि स्वामी अपने पशुओं के प्रति प्रेंम एवं उनके खिलाने पिलाने को ध्यान में रखता है तो निश्चित ही पशु भी अपने स्वामी के कार्य को पूर्ण करने में जी-जान लगा देते हैं। दूसरी ओर झूरी के साले स्वार्थी गया के समान यदि पशुओं से केवल काम निकालने के भाव रखे जाते हैं तो निश्चित तौर से पशु भी इस बात को भांपते हुए अलगाव को प्रदर्शित करते हैं।

8. "इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगें" -मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर - मोती के कथन - "इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगें।" के आलोक (प्रदर्शन) से परोपकार, परसेवा, पुण्य कार्य करना जैसी विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं।

9. आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
उत्तर - उक्त कथन से आशय है कि पृथ्वी पर प्रत्येक जीवधारी में प्रेंम एवं सद्भाव के गुण अवश्य ही होते हैं। मनुष्य केवल यह सोचता है कि प्रेंम करना, सदाचार, आदर आदि जैसे गुण केवल उसमें ही हैं। जबकि कहानी में बैलों का आपसी प्रेंम, मित्रता, स्वामी भक्ति आदि के भाव को देखकर स्पष्ट होता है कि प्रेंम एवं सद्भाव का दावा करने वाला मनुष्य निश्चित तौर से इनसे काफी दूर है। मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते कितने जीवों पर हावी है एवं उसकी दयाहीनता चरम पर है। झूरी के साले गया की स्वार्थपरता इस बात को स्पष्ट करती है।

(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
उत्तर - भैरो की बेटी के द्वारा हीरा मोती को प्रेंम के साथ रोटी खिलाने पर उनका प्रेंम का भूखा मन शांत हो जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पशुओं के रखरखाव में उनके साथ प्रेंम का व्यवहार बहुत आवश्यक है। गया एवं उसकी पत्नी की स्वार्थपरता के चलते के बैलों से दुर्व्यवहार उन्हें अशांत कर देता है। जबकि नन्ही सी बच्ची के द्वारा प्रेंम से खिलाई गई रोटी उनके हृदय शांत कर देती है।

10. गया ने हीरा मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि
(क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था। (√)
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
(सही उत्तर के आगे (√) का निशान लगाइए।)

रचना और अभिव्यक्ति

11. हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की इस प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर - इस बात में पूर्णतः सत्यता है कि जब भी समाज में एक पक्ष के द्वारा दूसरे पक्ष का शोषण किया जाता है और शोषित पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा शोषण के खिलाफ आवाज उठाई जाती है तो उन्हें कई तरह की यातनाओं को भी झेलना, कष्टों को सहना पड़ता है। यही बात 'दो बैलों की कथा' कहानी के माध्यम से चित्रित किया गया है कि- 'हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही।'

12. क्या आपको लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है?
उत्तर - 'दो बैलों की कथा' कहानी को पढ़कर सचमुच ऐसा लगता है कि यह आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है। क्योंकि हमारा देश विदेशी आततायियों के हाथों सैकड़ों वर्षो तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। कई तरह की यातनाओं को हमारे पूर्वजों ने झेला है। कहानी में हीरा मोती बैल अपनी स्वतन्त्रता के लिए कई तरह से जूझते हैं। वे झूरी के साले गया के चंगुल से छूटते हैं तो उन्हें सांड से लड़ना पड़ता है। आगे उन्हें कांजीहौस में रहना पड़ता है। ये सब बातें भी हमारे स्वतन्त्रता की लड़ाई में देखने को मिलती हैं। कई बार हमारे क्रान्तिकारियों को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। इस तरह लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर एक इशारा है।

भाषा-अध्ययन

13. बस इतना ही काफ़ी है।
फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।
'ही' 'भी' वाक्य में किसी बात पर जोर देने का काम कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को निपात कहते हैं। कहानी में से पाँच ऐसे वाक्य छाँटिए जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर - (1) गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी।
(2) यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।
(3) बस इतना ही काफ़ी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया गया।
(4) कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे।
(5) बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे।

14. रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए-
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
वाक्य का प्रकार - मिश्र वाक्य
उपवाक्य - (i) संज्ञा उपवाक्य - दीवार का गिरना था।
(ii) प्रधान उपवाक्य - अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।

(ख) सहसा एक दढियल आदमी, जिसकी आँखे लाल थी और मुद्रा अत्यंत कठोर आया।
वाक्य का प्रकार - मिश्र वाक्य
उपवाक्य - (i) विशेषण उपवाक्य - आँखे लाल थी और मुद्रा अत्यंत कठोर।
(ii) प्रधान उपवाक्य - सहसा एक दढियल आदमी आया।

(ग) हीरा ने कहा- गया के घर से नाहक भागे।
वाक्य का प्रकार - मिश्र वाक्य
उपवाक्य - (i) संज्ञा उपवाक्य - हीरा ने कहा
(ii) प्रधान उपवाक्य - गया के घर से नाहक भागे।

(घ) मैं बेचूँगा तो बिकेंगे।
वाक्य का प्रकार - मिश्र वाक्य
उपवाक्य - (i) क्रियाविशेषण उपवाक्य - मैं बेचूँगा
(ii) प्रधान उपवाक्य - बिकेंगे।

(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे न छोड़ता।
वाक्य का प्रकार - मिश्र वाक्य
उपवाक्य - (i) संज्ञा उपवाक्य - अगर वह मुझे पकड़ता।
(ii) प्रधान उपवाक्य - मैं बे-मारे न छोड़ता।

15. कहानी में जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर - (1) आँखें तक न उठाना = अनदेखा करना।
वाक्य - शीला काम में इतनी व्यस्त थी शोरगुल होने पर भी अपनी आँखें तक न उठाई
(2) जान हथेली पर लेना = विकट परिस्थिति में कार्य करना।
वाक्य - बाढ़ के समय सेना के वीर अपनी जान हथेली पर लेकर कार्य करते हैं।
(3) बोटी-बोटी कांपना = अत्यधिक घबरा जाना।
वाक्य - सामने शेर को देखकर उसकी बोटी-बोटी कांपने लगी।
(4) दिल कांप उठना = मन में अत्यधिक घबरा जाना।
वाक्य - युद्ध की बात सुनकर ही दिल कांप उठता है।
(5) टाल जाना = कार्य को आगे के लिए छोड़ देना।
वाक्य - बुरे वक्त पर कुछ कामों को टाल जाना ही श्रेयस्कर होता है।

पाठेतर सक्रियता

पशु-पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढ़कर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर - विद्यार्थीगण पशु पक्षियों से संबंधित कविता कहानी एकांकी इत्यादि एकत्रित कर उस बारे में चर्चा करें और अपनी कक्षा में इस बारे में बताएँ।

शब्द संपदा

निरापद = सुरक्षित, निःसंदेह।
सहिष्णुता = सहनशीलता।
पछाई = पालतू पशुओं की एक नस्ल।
गोईं = जोड़ीदार, मित्र।
कुलेल (कल्लोल) = क्रीड़ा।
विषाद = उदासी।
पराकाष्ठा = अंतिम सीमा।
गण्य = गणनीय, सम्मानित।
विग्रह = अलगाव।
पगहिया = पशु बाँधने की रस्सी।
गराँव = फुन्देदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई जाती है।
प्रतिवाद = विरोध।
टिटकार = मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द जिसे सुनकर बैल निर्देशों का पालन करते हैं।
मसलहत = हितकर।
रगेदना = खदेड़ना, भगाना।
मल्लयुद्ध = कुश्ती।
साबिका = वास्ता, सरोकार।
कांजीहौस (काइन हाउस) = मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए जाते हैं और कुछ दण्ड लेकर छोड़े या नीलाम किए जाते हैं।
रेवड़ = पशुओं का झुण्ड।
उन्मत = मतवाला।
थान = पशुओं के बाँधे जाने की जगह। या वह स्थान जहाँ पशुओं को खाने के लिए भूसा, खली-चूनी, चोकर इत्यादि दिया जाता है।
उछाह = उत्सव आनंद।


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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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