'संस्कृत' एवं 'हिन्दी'- 'स्वर के प्रकार' Sanskrit and Hindi-Swar ke Prakar
'संस्कृत' एवं 'हिन्दी'
(1) कंठ्य - 'अ', 'आ'
(2) तालव्य- 'इ', 'ई'
(3) ओष्ठव्य - 'उ', 'ऊ'
(4) कंठ-तालव्य- 'ए', 'ऐ'
(5) कंठोष्ठय - 'ओ', 'औ'
(6) मूर्धन्य- 'ऋ', 'ऋ'
(7) दंत्य - 'लृ', 'लृ'
[ब] जिह्वा के व्यवहृत भाग के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-
(1) अग्र स्वर- 'इ', 'ई', 'ए', 'ऐ'
(2) मध्य स्वर- 'अ', 'आ'
(3) पश्च स्वर- 'उ', 'ऊ', 'ओ', 'औ'
[[स] जिह्वा के व्यवहृत भाग की ऊंचाई के आधार पर वर्गीकरण -
(1) संवृत (बिल्कुल सकरा)- 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ'
(2) अर्द्धसंवृत (कम सकरा) - 'ए', 'ओ'
(3) विवृत (बिल्कुल खुला)- 'आ'
(4) अर्द्धविवृत (कम खुला)- 'अ', 'ऐ', 'औ'
[[द] ओठों की स्थिति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-
(1) वृत्ताकार -'ओ', 'औ', 'उ', 'ऊ'
(2) अवृत्ताकार- 'अ', 'आ', 'इ', 'ई', 'ए', 'ऐ', 'ऋ'
[[इ] कोमल तालु के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-
(1) अनुनासिक- चंद्रबिंदु लगे स्वर जैसे-'अँ', 'आँ'
(2) निरनुनासिक- बिना चंद्रबिंदु वाले समस्त स्वर
[[फ] स्वर तंत्रीय या मांसपेशियों की स्थिति के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण-
(1) शिथिल स्वर- 'अ', 'इ', 'उ'
(2) दृढ़ स्वर - 'ई', 'ऊ'
टीप:- हिंदी में 'अ' की कोई मात्रा नहीं होती है। संस्कृत में भी 'अ' एवं 'लृ' की मात्रा नहीं होती है। 'अ' सभी व्यंजनों में संयुक्त रहता है जबकि 'लृ' स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त होता है।
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