निबंध का अर्थ, परिभाषाएँ एवं वर्गीकरण || निबंध का विकासक्रम || Nibandh vidha
निबंध गद्य लेखन को एक उत्कृष्ट विधा है। आचार्य शुक्ल के अनुसार - "यदि गद्य कवियों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।" भाषा की पूर्ण शक्ति का विकास निबंध में ही सबसे अधिक संभव होता है। वस्तुतः भाषा शक्ति का विकास और वैयक्तिकता का गांभीर्य निबंध में ही प्राप्त होता है। यही कारण है कि शैली को ही व्यक्तित्व माना जाता है। वैयक्तिकता ही निबंध का प्रधान गुण है जो व्यक्ति सापेक्ष्य होती है। निबंध के क्षेत्र का विस्तार अनंत है। उसमें दर्शन के तत्वों से लेकर नाक, कान आदि जैसे सामान्य विषय समाहित हैं ।
गद्य का विकास आधुनिक युग में ही हुआ है। अतः निबंध साहित्य का प्रारंभ भी भारतेंदु युग से ही माना जाता है। संस्कृत साहित्य में निबंध लेखन नहीं किया गया। जो गद्य लिखा गया उसे निबंध की श्रेणी में मानना उचित नहीं है। अतः कहना यही चाहिए कि निबंध विद्या आधुनिक गद्य साहित्य का नया रूप है जो अब प्रौढ़ता प्राप्त कर सम्पूर्ण गद्य साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका है।
निबंध का अर्थ - निबंध का अर्थ है - बंधनयुक्त या बाँधना। इसमें भावों विचारों के विविध मतों और व्याख्याओं को सुव्यवस्थित, संगठित रूप में बाँधा जाता है। वास्तव में निबन्ध ही प्रबंध है क्योंकि दोनों में ही तारतम्य, संगठन और प्रकृष्ट बंधन की व्यवस्था रहती है। आजकल निबंध को अंग्रेजों के Essay शब्द का पर्यायवाची माना जाने लगा है, जिसे निबंध साहित्य के जनक माने जाने वाले फ्रांसीसी विद्वान मोनटेन द्वारा प्रयोग में लाया गया था। Essay शब्द का अर्थ प्रयत्न या प्रयास होता है। किन्तु अब निबंध केवल प्रयास हो नहीं वरन् विषय के गंभीर विवेचन और नवीन तथ्यों के अन्वेषण का रूप प्रत्यक्ष करता है।
निबंध के स्वरूप का विवेचन करते हुए बाबू गुलाब राय जी कहते हैं कि "निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं जिसमें सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और संबद्धता के साथ किया गया हो।"
डॉ. भगीरथ मिश्र के अनुसार "निबंध वह गद्य रचना है जिसके लेखक किसी भी विषय पर स्वच्छन्दतापूर्वक, परन्तु एक विशेष सौष्ठव, संहिति, सजीवता और वैयक्तिकता के साथ अपने भावों, विचारों और अनुभवों को व्यक्त करता है।"
तात्पर्य यह है कि निबंध में लेखक अपेक्षित निवृत्ति के साथ शून्य से अनंत तक विविध विषयों के प्रति स्वाभाविक सहज उद्गार सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करता है।
अतः निबंध के विषय में विभिन्न परिभाषाओं को दृष्टिगत रखते हुए हम निम्नलिखित आधार स्वीकार कर सकते हैं -
1. निबंध में आकृति एवं बुद्धि का उचित सामंजस्य होना चाहिए।
2. निबंध के विषयों की कोई सीमा नहीं है।
3. लेखक पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपने भावों, विचारों और अनुभूतियों को व्यक्त कर सकता है।
4. वह अपनी वैयक्तिक प्रतिभा का प्रकाशन कर सकता है। निबंधकार को सदैव सतर्क रहना चाहिए, जिससे शैथिल्य न आने पाये तथा उसके लेखन में भाषा की सक्रियता, तेजकता, और व्यंग वैविध्य उत्तरोत्तर निखार पाती रहे।
निबंध का वर्गीकरण
विषयों में विविधता के आधार पर निबंध साहित्य को निम्न विभागों मे विभक्त किया जा सकता है।
1. वास्तविक।
2. कथात्मक या विवरणात्मक।
3. विचारात्मक तथा भावात्मक।
इन सभी के विषय में छात्रगण प्रारंभ से पढ़ते आते हैं, अतः यहाँ विषय विस्तार करना उपयुक्त नहीं। फिर भी एक बात समझ लेना आवश्यक है कि हृदय के विभिन्न रूपों को भाँति हो निबंध के भो विभिन्न रूप प्राप्त होते हैं। अर्थात् निबंध विद्या की भी अनेक उप-विधाएँ हैं जो आजकल स्वतन्त्र रूप से समाज के सम्मुख प्रस्तुत को जा रही हैं। उनका अध्ययन उनको विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए अलग किया जाने लगा है।
निबंध के रूप - आलोचना, समालोचना, जीवनी, आत्मकथा, रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा वृत्त, रिपोर्ताज, पत्र तथा भेंटवार्ता आदि हैं।
निबंध साहित्य का विकास क्रम
1. भारतेंदु युग
2. रामचंद्र शुक्ल युग
3. महावीर प्रसाद द्विवेदी युग
4. शुक्लोत्तर युग
निबंध साहित्य का श्रीगणेशकर्ता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को ही मानना समीचीन है। उस समय का निबंध साहित्य रोचक ही नही वरन् प्रेरक भी था। लेखक के व्यक्तित्व को छाप इस युग के निबंधों से हो देखी जा सकती है। इस युग में भारतेन्दु जी के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, बद्रीनारायण चौधरी, ठाकुर जगमोहनसिंह और बालमुकुन्द गुप्त आदि अनेक लेखकों ने निबंध साहित्य को समृधि में योगदान किया और खड़ी बोली में इतिहास, भूगोल, विश्व-दर्शन, समाज आदि विषयों को अपनाया। भट्ट जी ने मुहावरे को भाषा में रोचक निबंध लिखे। पं. प्रताप नारायण मित्र द्वारा भी लच्छेदार भाषा में सामान्य एवं गूढ़ सभी प्रकार के विषयों का बंधन किया गया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का निबंध साहित्य में एक क्रांतिकारी के रूप में आगमन हुआ। उनको सशक्त लेखनी ने भाषा, विषय, भाव सभी क्षेत्रों में विस्तार के स्थान पर परिष्कार करने को ठान ली।
उस युग के अन्य निबंधकार हैं - बालमुकुन्द गुप्त, सरदार पूर्णसिंह, बाबू श्यामसुन्दर दास।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी निबंध साहित्य के "बेकन" कहलाते हैं। वह एक ऐसे प्रकाश स्तंभ थे, जितने भूत पर दृष्टिपात कर वर्तमान को संभाला और विश्व का मार्गदर्शन किया। उन्होंने निबंध साहित्य को नई दिशा एवं नए क्षेत्र दिए। विचारात्मक भावात्मक, समीक्षात्मक, साहित्यिक तथा मनोवैज्ञानिक निबंधों को रचनाओं से हिन्दी साहित्य के कलेवर को ही विस्तृत नहीं किया वस्तु गुणात्मक अभिव्यक्ति भी प्रदान की। "चिन्तामणि" उनका निबंध संग्रह अत्यधिक लोकप्रिय एवं प्रेरक रहा है।
इस युग के अन्य लेखक है - रामकृष्णदास, माखनलाल चतुर्वेदी, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, श्री रामशरण गुप्त, श्री शिवपूजन सहाय आदि।
शुक्लोत्तर युग वस्तुतः शुक्ल युग का ही विस्तार है क्योंकि जो क्षितिज शुक्ल जी ने दिखाया था उसी का दिग्दर्शन कराया जाता रहा। साथ ही नए-नए लेखक भी अपनी लेखनी का प्रयोग करते हुए उसी श्रृंखला में सम्मिलित होते रहे। यथा - राहुल सांकृत्यायन, वियोगो हरि, रामकृष्ण शर्मा 'बेनीपुरी', महादेवी वर्मा, शांति प्रिय द्विवेदी, नन्द दुलारे वाजपेयी, सद्गुरु शरण अवस्थी, हजारी प्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, डॉ. भगवानदास, रामविलास शर्मा, अज्ञेय, नगेन्द्र, देवराज, प्रभाकर माचवे, विद्या निवास मिश्र, कुबेरनाथ राय।
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