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ब्लूप्रिंट बेस्ड सम्पूर्ण हल सहित मॉडल अभ्यास प्रश्न पत्र 2024 हिन्दी विशिष्ट कक्षा 10 | Model Test Paper 10th Hindi

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर लिखिए-
(i) परशुराम ने किसकी भुजाएँ काटी थीं?
(क) सहस्रबाहु की।
(ख) रावण की।
(ग) मेघनाद की।
(घ) खर दूषण की।
उत्तर- (क) सहस्रबाहु की।

(ii) फाल्गुन माह में कौन-सी ऋतु आती है?
(क) वर्षा
(ख) बसंत
(ग) शरद
(घ) सर्दी
उत्तर- (ख) बसंत

(iii) चौपाई में कितनी मात्राएँ होती हैं?
(क) 14
(ख) 24
(ग) 20
(घ) 16
उत्तर- (घ) 16

(iv) बालगोबिन भगत गाते समय क्या बजाते थे?
(क) ढपली
(ख) ढोलक
(ग) सारंगी
(घ) खंजड़ी
उत्तर- (घ) खंजड़ी

(v) दशानन में कौन-सा समास है?
(क) द्वन्द्व समास
(ख) बहुब्रीहि समास
(ग) तत्पुरुष समास
(घ) कर्मधारय समास
उत्तर- (ख) बहुब्रीहि समास

(vi) भारत का स्विट्जरलैण्ड किसे कहा जाता है?
(क) कटाओ को
(ख) खेटुम को
(ग) यूमथांग को
(घ) लायुंग को
उत्तर- (क) कटाओ को

प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) प्रयोगवादी कविता के प्रवर्तक अज्ञेय हैं।
(ii) छंद दो प्रकार के होते हैं।
(iii) वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।
(iv) सभ्यता संस्कृति का परिणाम है।
(v) अकर्मक क्रिया का सीधा सम्बन्ध कर्ता से होता है।
(vi) अज्ञेय ने हिरोशिमा कविता रेलगाड़ी में बैठे-बैठे लिखी।

प्रश्न 3. सत्य/असत्य लिखिए-
(i) जयशंकर प्रसाद ने जो मधुर स्वप्न देखे वे पूरे हो गए थे। [असत्य]
(ii) चौपाई छंद में 24 मात्राएँ होती हैं।[असत्य]
(iii) बालगोबिन भगत अपनी खेती की पैदावार पहले कबीर मठ लेकर जाते थे।[सत्य]
(iv) जिस क्रिया का प्रभाव कर्म पर पड़ता है वह सकर्मक क्रिया होती है।[सत्य]
(v) सारे देश में आस्थाएँ, अंधविश्वास एक से नहीं हैं।[असत्य]
(vi) 'मैं क्यों लिखता हूँ' अज्ञेय की रचना है।[सत्य]

प्रश्न 4. सही जोड़ी मिलाकर लिखिए-
'अ' ―――――――― 'ब'
(i) योग का संदेश - (क) रति स्थायी भाव
(ii) श्रृंगार रस - (ख) उद्धव
(iii) नवाब साहब ने - (ग) कस्बे के चौराहे पर
(iv) नेताजी की प्रतिमा - (घ) दो खीरे खरीदे
(v) परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण - (ङ) कड़वा तेल लगाती थी
(vi) मईया – (च) क्रिया के परिमाण का बोध
उत्तर-
'अ' ―――――――― 'ब'

(i) योग का संदेश - (ख) उद्धव
(ii) श्रृंगार रस - (क) रति स्थायी भाव
(iii) नवाब साहब ने - (घ) दो खीरे खरीदे
(iv) नेताजी की प्रतिमा - (ग) कस्बे के चौराहे पर
(v) परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण (च) क्रिया के परिमाण का बोध
(vi) मईया – (ङ) कड़वा तेल लगाती थी

प्रश्न 5. एक शब्द/वाक्य में उत्तर लिखिए -
(i) शिव का धनुष किसने तोड़ा था?
उत्तर- शिव का धनुष राम ने तोड़ा था।
(ii) किस छंद में 24 मात्राएँ होती हैं?
उत्तर- दोहा छंद में 24 मात्राएँ होती हैं।
(iii) बालगोबिन भगत क्या काम करते थे?
उत्तर- बालगोबिन भगत खेती बाड़ी का काम करते थे।
(iv) जिन शब्दों से करने या होने का बोध होता है, वे शब्द क्या कहलाते हैं?
उत्तर- जिन शब्दों से करने या होने का बोध होता है, वे शब्द क्रिया शब्द कहलाते हैं।
(v) 'राम क्या कर रहा है ?' किस प्रकार का वाक्य है?
उत्तर- प्रश्नवाचक
(vi) गंतोक का अर्थ क्या है?
उत्तर- गंतोक का अर्थ पहाड़ है।

प्रश्न 6. गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
उत्तर- उद्धव श्रीकृष्ण के पास रहते हुए भी उनसे प्रेम नहीं कर सके हैं इसलिए गोपियों को वे भाग्यहीन लगते हैं। यही व्यंग्य भाग्यवान कहने में व्यक्त है। विपरीत लक्षण से भाग्यवान का अर्थ भाग्यहीन है।

अथवा

कवि की आँख फाल्गुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर- फाल्गुन मास में प्रकृति का सौन्दर्य अपने चरम पर है। पेड़-पौधे पत्तों से लदे हैं। चारों तरफ रंग-बिरंगे फूलों की शोभा बिखरी है। भीनी-भीनी सुगन्ध सभी ओर से आ रही है। प्रकृति की सुन्दरता इतनी मनोरम है कि उससे कवि की आँख हटना नहीं चाहती है।

प्रश्न 7. 'आत्मकथ्य' कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- कवि प्रसाद जी ने जो सुख के स्वप्न संजोए थे वे उन्हें प्राप्त नहीं हो सके। इस तरह वे स्वप्न अधूरे ही रह गए। फिर भी उन सुख के स्वप्नों की स्मृति उनके हृदय में आज भी मौजूद है। कवि उन्हें भूल नहीं पा रहे हैं वे सुख के स्वप्न देख रहे थे किन्तु जब उन्होंने उन्हें पाने को बाँहें फैलाईं तो नींद टूट गई और स्वप्न चूर-चूर हो गए। इस कविता में सुख के स्वप्न की मधुर स्मृतियों को अंकित किया गया है।

अथवा

परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष टूट जाने के लिए कौन-कौन से तर्क दिए?
उत्तर- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष टूट जाने के लिए निम्नांकित तर्क दिए-
(1) राम का धनुष के टूटने में कोई दोष नहीं है। उन्होंने जैसे ही इसे छुआ वैसे ही टूट गया।
(2) राम ने इस धनुष को नया समझा था किन्तु यह पुराना तथा जर्जर था इसलिए टूट गया।
(3) लक्ष्मण ने कहा कि बचपन - में हमने ऐसी अनेक धनुहियाँ तोड़ी थीं तब तो आप नाराज नहीं हुए थे।
(4) इस धनुष के टूटने से कोई लाभ या हानि नहीं है इसलिए इस पर नाराज होने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8. रीतिकाल के दो कवियों के नाम तथा उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर- कवि ―― रचना
(1) केशवदास ― 'कविप्रिया', 'रामचन्द्रिका'।
(2) पद्माकर ― 'गंगालहरी', 'जगदविनोद'।
अथवा
दो प्रगतिवादी कवियों के नाम तथा उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर-
कवि का नाम ― रचना

(1) नागार्जुन ― 'युगधारा'।
(2) केदारनाथ अग्रवाल ― 'युग की गंगा'।

प्रश्न 9. तुलसीदास अथवा मंगलेश डबराल की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित बिन्दुओं पर लिखिए-
(i) दो रचनाएँ, (ii) काव्यगत विशेषता।
उत्तर- तुलसीदास
(i) दो रचनाएँ ― ' रामचरितमानस', 'विनयपत्रिका'
(ii) काव्यगत विशेषता ― तुलसीदास सगुण ईश्वर को मानते थे। उनकी भक्ति में असीम दैन्य, अनन्य आत्म समर्पण है। राम ही एकमात्र भरोसा है।
अथवा
मंगलेश डबराल
(i) दो रचनाएँ ―
(1) 'पहाड़ पर लालटेन' (2) 'घर का रास्ता'
(ii) काव्यगत विशेषता ― मंगलेश डबराल के काव्य में भाव एवं कला का अनूठा सामंजस्य दिखाई देता है।

प्रश्न 10. खण्डकाव्य की परिभाषा लिखते हुए एक खण्डकाव्य का नाम लिखिए।
उत्तर- खण्डकाव्य में जीवन के किसी एक पक्ष का अंकन होता है। एक घटना अथवा व्यवहार का ही चित्रण किया जाता है। खण्डकाव्य का एक उदाहरण― 'जानकी मंगल' - तुलसीदास

अथवा

स्थायी भाव एवं संचारी भाव में अन्तर लिखिए।
उत्तर- स्थायी भाव एवं संचारी भाव में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
(1) मानव हृदय में सुषुप्त रूप में रहने वाले मनोभाव स्थायी भाव कहलाते हैं जबकि हृदय में अन्य अनन्त भाव जाग्रत तथा विलीन होते रहते हैं, उनको संचारी भाव कहा जाता है।
(2) स्थायी भाव स्थायी रूप से हृदय में विद्यमान रहते हैं जबकि संचारी भाव कुछ समय रहकर समाप्त हो जाते हैं।
(3) स्थायी भाव उद्दीपन के प्रभाव से उद्दीप्त होते हैं जबकि संचारी भाव स्थायी भाव के विकास में सहायक होते हैं।
(4) स्थायी भावों की कुल संख्या 10 है जबकि संचारी भाव 33 माने गये हैं।

प्रश्न 11. छंद किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर-vछंद-जिस रचना में अक्षरों एवं मात्राओं की संख्या निश्चित हो तथा यति, गति एवं तुक आदि का ख्याल रखा जाये, उसे छंद कहा जाता है।
छंद के प्रकार - छंद दो प्रकार के होते हैं-
(क) मात्रिक छंद
(ख) वर्णिक छंद।
(क) मात्रिक छंद- जिन छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है, उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। दोहा तथा चौपाई मात्रिक छंद हैं।
(ख) वर्णिक छंद - जिन छंदों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।

अथवा

पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर- जहाँ एक ही शब्द का समान अर्थ में एक से अधिक बार प्रयोग होता है। वहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है।
उदाहरण -"पुनि पुनि मुनि उकसहिं अकुलाहीं।"
यहाँ पुनि' शब्द की समान अर्थ में आवृत्ति हुई है। इसलिए यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

प्रश्न 12. नाटक और एकांकी में कोई दो अंतर लिखिए।
उत्तर- नाटक और एकांकी में प्रमुख अन्तर निम्न प्रकार हैं-
नाटक ― 1. नाटक में अनेक अंक हो सकते हैं।
2. नाटक में अधिकारिक के साथ सहायक और गौण कथाएँ भी होती हैं।
एकांकी ― 1. एकांकी में एक अंक होता है।
2. एकांकी में एक ही कथा या घटना रहती है।

अथवा

कहानी किसे कहते हैं? दो कहानीकारों के नाम लिखिए।
उत्तर- कहानी एक कलात्मक छोटी रचना है जो किसी घटना, भाव, संवेदना आदि की मार्मिक व्यंजना करती है। इसका आरम्भ और अन्त बहुत कलात्मक तथा प्रभावपूर्ण होता है। घटनाएँ परस्पर सम्बद्ध होती हैं। हर घटना लक्ष्य की ओर उन्मुख होती है। लक्ष्य पर पहुँचकर कहानी अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ती हुई समाप्त हो जाती है।
दो प्रसिद्ध कहानीकार एवं उनकी रचनाएँ हैं-
(1) मुंशी प्रेमचंद की 'कफन'
(2) जयशंकर प्रसाद की'आकाशदीप'

प्रश्न 13. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधू कहलाते थे?
उत्तर- खेतीबारी तथा गृहस्थ से जुड़े होते हुए भी भगत का आचरण साधु-सन्तों जैसा था। वे सदैव सत्य बोलते थे। सभी से दो टूक बात करते थे। उनके व्यवहार में छल-कपट नहीं था। वे दूसरे की वस्तु को छूते तक न थे। बिना पूछे दूसरे की वस्तु का उपयोग भी नहीं करते थे। बिना बात किसी से झगड़ने का उनका स्वभाव न था। उनकी वेशभूषा साधारण थी। लंगोटी लगाते थे तथा सिर पर कनफटी कबीर पंथियों की सी टोपी पहनते थे। इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।

अथवा

आग की खोज एक बहुत बड़ी चीज क्यों मानी जाती है? इस खोज के पीछे रही प्रेरणा के मुख्य स्रोत क्या रहे होंगे?
उत्तर - आग की खोज सभ्यता की प्रारम्भिक खोजों में से एक है। जब रात में अंधेरा रहता था, जानवरों का खतरा बना रहता था। प्रकाश नहीं था। भूख मिटाने के साधन बहुत कम थे उस समय के मानव कच्चा खाना ही खाते होंगे। इन्हीं कारणों ने आग की खोज की प्रेरणा दी होगी। आग की खोज से प्रकाश मिल गया। जानवरों का भय मिट गया। खाना पकाकर खाया जाने लगा।

प्रश्न 14. लेखिका मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?
उत्तर- लेखिका को दो व्यक्तियों ने विशेष रूप से प्रभावित किया। एक उनके पिता ने तथा दूसरी शिक्षिका शीला अग्रवाल ने। पिता गोरे रंग को महत्व देते थे जबकि लेखिका श्याम वर्ण की थीं। वे गोरे रंग की बड़ी बहिन से उनकी तुलना कर नीचा दिखाते थे इससे उनमें हीनता का भाव आ गया। पिताजी की इच्छा के कारण लोगों से विचार-विमर्श तथा देशभक्ति का भाव उनमें आया। शीला अग्रवाल ने साहित्यिक रुचि पैदा की तथा खुलकर अपनी बात कहने का साहस पैदा किया।

अथवा

किन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सुई-धागे का आविष्कार हुआ होगा?
उत्तर- प्रारम्भ में मनुष्य नंगा रहता था। उस समय तन ढकने के साधनों का कोई रूप नहीं था। इसलिए सर्दी-गर्मी आदि से बचने के लिए तन ढकने का उपाय करने की भावना ने सुई-धागे के आविष्कार के लिए प्रेरित किया होगा। धूप, कोहरे, ठण्ड आदि से बचने के लिए चमड़े, पत्तों या कपड़े से तन ढकने के लिए वस्त्र सिलने के लिए सुई-धागे की खोज की होगी।

प्रश्न 15. यशपाल अथवा मन्नू भंडारी का साहित्यिक परिचय निम्नांकित बिन्दुओं पर लिखिए-
(1) दो रचनाएँ, (ii) भाषा-शैली।
उत्तर- यशपाल
(i) दो रचनाएँ―
1. 'ज्ञान दान' 2. 'तर्क का तूफान'
(ii) भाषा-शैली― यशपाल ने व्यावहारिक भाषा में साहित्य रचना की है। इन्होंने तद्भव, तत्सम, देशज तथा विदेशी शब्दों को आवश्यकता के अनुसार अपना लिया है। मुहावरे एवं लोकोक्तियों से उनकी भाषा में चमत्कार आ गया है। सीधी-सादी भाषा में सरसता, मधुरता तथा लालित्य का सौन्दर्य भी विद्यमान है।

अथवा

मन्नू भंडारी
(1) दो रचनाएँ―
1. 'मैं हार चुकी' 2. 'एक प्लेट सैलाब'
(ii) भाषा-शैली― भावात्मक स्थलों पर यह शैली अपनाई गई जिससे भाषा सरस, सरल तथा आलंकारिक हो गई है।

प्रश्न 16. अकर्मक क्रिया तथा सकर्मक क्रिया में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अकर्मक क्रिया को वाक्य में कर्म की आवश्यकता नहीं होती है जबकि वाक्य में कर्म के बिना सकर्मक क्रिया का अर्थ पूरा नहीं होता है।

अथवा

शब्दशक्ति के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर - शब्दशक्ति के तीन प्रकार होते हैं-
(1) अभिधा
(2) लक्षणा
(3) व्यंजना।

प्रश्न 17. 'माता का अँचल' शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।
उत्तर- इस पाठ का शीर्षक 'माता का अँचल' उपयुक्त है। अच्छे शीर्षक में होने वाली सभी विशेषताएँ इसमें हैं। यह शीर्षक छोटा है, विषय का संकेत देता है, आकर्षक है, कौतूहल जगाता है। इसलिए यह उपयुक्त शीर्षक है। यदि इसका अन्य शीर्षक देना ही हो तो 'माँ की ममता' दिया जाना चाहिए।

अथवा

प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर- प्रकृति मानव के लिए वरदान है। वह अनूठे ढंग से उसके लिए विविध व्यवस्थाएँ करती है। जल संचय का प्रकृति का अनुपम तरीका है। वह सदर्दी में बर्फ के हिमखंडों में जल संचय कर लेती है और गर्मी के समय प्यासे जन-जन के लिए ये बर्फ शिलाएँ पिघलकर जलधारा बनती हैं और उनकी प्यास दूर करती है। जल संचय और जल वितरण का प्रकृति का यह अद्भुत तरीका है।

प्रश्न 18. निम्नलिखित का संदर्भ, प्रसंग सहित भावार्थ लिखिए-
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहि सब राजा॥
सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परसु धरहि अवमाने॥
बहु धनुही तोरी लरिकाई। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाई॥

संदर्भ- यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' नामक पाठ से लिया गया है। इसके कवि तुलसीदास हैं।

प्रसंग- सीता के स्वयंवर के समय शिव-धनुष के टूटने की सूचना पाते ही परशुराम क्रोध से भर उठे। उन्हें उग्र देखकर राम ने सादर निवेदन किया किन्तु लक्ष्मण ने व्यंग्य प्रहार किया।

भावार्थ- परशुराम को क्रोधित देखकर राम बोले, हे नाथ। इस शिव-धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई सेवक ही है, आप आज्ञा दीजिए। यह सुनते ही क्रोधी परशुराम ने कहा कि जो सेवक होता है वह तो सेवा का कार्य करता है। यह तो शत्रु का कार्य किया है इसलिए लड़ने को तैयार हो जाओ। हे राम। जिसने इस शिव-धनुष को तोड़ा है वह मेरा सहस्त्रबाहु की तरह शत्रु है। उसको इस समाज से चला जाना चाहिए नहीं तो उसके कारण ये सभी राजा मारे जायेंगे। मुनि परशुराम की यह बात सुनकर लक्ष्मण मुस्कराये और उन्हें अपमानित करते हुए बोले कि हमने बचपन में ऐसे अनेक छोटे-छोटे धनुष तोड़े हैं लेकिन हे स्वामी। आपने कभी ऐसा क्रोध नहीं किया। इस धनुष पर आपकी क्या ममता है, इसका कारण बताएँ। यह सुनते ही परशुराम और क्रोधित हो उठे और बोले हे राजपुत्र ! तुम मृत्यु के वशीभूत हो इसलिए सँभलकर नहीं बोल रहे हो। सारी दुनिया जानती है कि शिवजी का यह धनुष कोई छोटा धनुष नहीं है।

काव्य सौन्दर्य - (1) क्रोधित परशुराम के प्रति राम का विनम्र उत्तर है किन्तु लक्ष्मण तीखे प्रहार करते है।
(2) अनुप्रास, उपमा अलंकार तथा अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।

अथवा

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन?
तप्त घरा, जल से फिर
शीतल कर दो
बादल गरजो।

संदर्भ- यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक की 'उत्साह' कविता से लिया गया है। इसके कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हैं।

प्रसंग- यहाँ कवि ने गर्मी से व्याकुल संसार को शीतलता प्रदान करने का आग्रह किया है।

भावार्थ- तीव्र गर्मी के कारण संसार के सभी प्राणी बहुत बैचेन तथा परेशान हैं। ऐसी हालत में बादल आ जाओ और तेज ताप से तपती हुई धरती को ठण्डी कर दो। तुम घनघोर गर्जना करते हुए तेज वर्षा करो।

काव्य सौन्दर्य- (1) भीषण ताप से व्याकुल संसार को शीतल करने के लिए बादलों से बरसने का आग्रह किया गया है।
(2) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार और शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 19. निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-
बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं। हाँ, गाते गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा-परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली. भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता यह पागल तो नहीं हो गए। किन्तु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था- वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।

संदर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'बालगोबिन भगत' पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी हैं।

प्रसंग - यहाँ बालगोबिन भगत की मान्यताओं में पक्का विश्वास प्रकट हुआ है।

व्याख्या- बालगोबिन भगत अपने बेटे के शव के पास आसन जमाकर बैठे हैं और कबीर के पद तन्मय होकर गाए जा रहे हैं। गाते-गाते वे अपनी पुत्र-वधू के पास भी पहुँच जाते हैं और उसे समझाते हैं कि यह रोने का समय नहीं है। इस समय तो उत्सव मनाना चाहिए क्योंकि परमात्मा के वियोग में दुःखी रहने वाली जीवात्मा अपने प्रेमी परमात्मा से जा मिली है। इस मिलन से अधिक प्रसन्नता का अवसर और क्या हो सकता है। लेखक कहते हैं कि बेटे की मृत्यु के समय उनकी ऐसी बातें सुनकर मेरे मन में आता है कि कहीं इनका दिमाग खराब तो नहीं हो गया है, ये पागल तो नहीं हो गए हैं जो ऐसी बातें कह रहे हैं। परन्तु जिस विश्वास के साथ वे ये बातें कह रहे हैं उसमें उनकी आस्था प्रकट हो रही है। यह वह आस्था है जिसने सदैव मृत्यु को पराजित किया है। इससे स्पष्ट है कि वे जो कह रहे हैं, वह सत्य है।

विशेष (1) कबीर की जीवात्मा परमात्मा के प्रेम की मान्यता के प्रति बालगोबिन भगत का दृढ़ विश्वास व्यक्त है।
(2) विचारात्मक शैली तथा सरल भाषा को अपनाया है।

अथवा

काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनन्द कानन के नाम से प्रतिष्ठित काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधारी हैं, बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन रसिकों से उपकृत होने वाला जन समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं।

संदर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के 'नौबतखाने में इबादत' नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक यतींद्र मिश्र हैं।

प्रसंग- इसमें काशी की कला साधना के विषय में बताया गया है जिसके कारण उसकी खास पहचान है।

व्याख्या- लेखक कहते हैं कि काशी वह स्थान है जहाँ संस्कृति की शिक्षा मिलती है। यहाँ विभिन्न विषयों की शिक्षा विविध प्रकार के लोग प्राप्त करते हैं। यहाँ अन्यान्य धर्मों, वर्गों, समुदायों के व्यक्ति विभिन्न प्रकार की मान्यताओं, आदर्शों को मानते हुए सहज भाव से मिल-जुलकर रहते हैं। इसलिए इसे संस्कृति की पाठशाला कह सकते हैं। पुराने ग्रन्थों में काशी को आनन्द कानन का नाम दिया गया है। काशी में कलाधर हनुमान जी हैं, नृत्य कलाधर विश्वनाथ जी हैं। उसी काशी में शहनाई के सरताज बिस्मिल्ला खाँ हैं। इस काशी में कला संस्कृति का हजारों वर्षों का इतिहास समाहित है। इसमें अनेक विभूतियाँ हैं, रसिक पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधारी हैं, बड़े रामदास जी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं। इन रसिकों के साथ ही उनसे उपकृत होने वाला बहुत बड़ा समुदाय है। साधना में संलग्न रहने वाले और उनकी कला का आनन्द उठाने वालों की यह एक अलग ही काशी है। इस काशी की सभ्यता, बोली, भाषा अलग है और यहाँ निवास करने वाले लोग भी अलग तरह के हैं।

विशेष (1) कला साधकों तथा सहदयों की विशिष्ट काशी का वर्णन हुआ है।
(2) काशी संस्कृति को शिक्षा देने वाली पाठशाला है।
(3) विवरणात्मक शैली तथा सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग हुआ है।

प्रश्न 20. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संवाद लिखिए-
(लगभग 75 शब्दों में)
(क) दीपावली (बेटे तथा माँ का संवाद)
(ख) मेरा प्रिय खेल (दो मित्रों का संवाद)
(ग) कम्प्यूटर का उपयोग (शिक्षक एवं विद्यार्थी का संवाद)

उत्तर-
(क) दीपावली (बेटे तथा माँ का संवाद)

बेटा- माँ, दीपावली कब आएगी?
माँ- बेटे, दीपावली कार्तिक माह में आएगी।
बेटा- यह कितने दिन का त्यौहार होता है?
माँ- बेटा, यह पाँच दिन का त्यौहार होता है।
बेटा- पहले दिन क्या होता है?
माँ- पहले दिन त्रयोदशी को वैद्यराज धनवंतरि की पूजा होती है।
बेटा- दूसरे दिन क्या करते हैं?
माँ- दूसरे दिन चतुर्दशी को छोटी दीपावली मनाते हैं।
बेटा - और तीसरे दिन क्या किया जाता है?
माँ- तीसरे दिन दीपावली होती है। इस दिन सरस्वती जी तथा लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं।
बेटा-दीपावली पर तो मिठाई बाँटी जाती है?
माँ - हाँ बेटा, दीपावली के दिन पकवान, मिठाई आदि बनते हैं और घर-परिवार में मिठाई बाँटी जाती है।
बेटा- चौथे दिन किसकी पूजा की जाती है?
माँ- चौथे दिन गोवर्धन जी का पूजन होता है और पाँचवें दिन भैया दूज मनाई जाती है।
बेटा- माँ, यह त्यौहार तो बहुत अच्छा है। कई पकवान, मिठाई आदि खाने को मिलते हैं।

(ख) मेरा प्रिय खेल (दो मित्रों का संवाद)
सोहन- भाई, आज तो क्रिकेट खेलेंगे।
प्रताप- हाँ, भाई, मन तो मेरा भी क्रिकेट खेलने का है, पर खेलेंगे कहाँ?
सोहन - हमारे विद्यालय के मैदान में खेलेंगे।
प्रताप - वहाँ खेलने देंगे ? कोई रोकेगा तो नहीं।
सोहन - मैंने प्रधानाचार्य जी से अनुमति ले ली है।
प्रताप- तो तुम अपने छः साथियों को बुला लो बाकी तो यहाँ के हमारे साथी होंगे।
सोहन- शाम को चार बजे सभी इकट्ठे होकर चलेंगे।
प्रताप- क्रिकेट मेरा प्रिय खेल है।
सोहन- मैं भी अपने विद्यालय की क्रिकेट टीम का कप्तान हूँ। मुझे क्रिकेट से बहुत प्रेम है।
प्रताप- हमारे विद्यालय की क्रिकेट की टीम भी कम नहीं है। मेरी कप्तानी में शिक्षा निकेतन की टीम को हरा चुके हैं।
सोहन- शिक्षा निकेतन के कई विद्यार्थी क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी हैं।
प्रताप - अच्छा भाई, शाम को चार बजे मैदान पर मिलते हैं।
सोहन- हाँ भाई, आज मजा आ जाएगा।

(ग) कम्प्यूटर का उपयोग (शिक्षक एवं विद्यार्थी का संवाद)
विद्यार्थी - गुरुजी, आपने कल कम्प्यूटर के आविष्कार की जानकारी दी थी। ये तो बताइए कि इसका उपयोग क्या है?
शिक्षक- बेटे, आज कम्प्यूटर हर क्षेत्र में बहुत उपयोगी है।
विद्यार्थी- क्या यह उद्योगों और कारखानों में काम आता है?
शिक्षक - औद्योगिक क्षेत्र में मशीनों तथा कारखानों का संचालन करने के लिए कम्प्यूटर को प्रयोग में लाया जा रहा है। इससे विविध प्रकार के कार्य किये जा रहे हैं।
विद्यार्थी - गुरुजी, सूचनाओं में इसका क्या उपयोग है?
शिक्षक - सूचना एवं समाचार प्रेषण के संदर्भ में भी कम्प्यूटर महती सेवा प्रदान कर रहा है। 'कम्प्यूटर नेटवर्क' के द्वारा विश्व भर के नगर एक-दूसरे से एक परिवार की भाँति जुड़ गये हैं।
विद्यार्थी- हम देखते हैं कि बैंकों में भी कम्प्यूटर काम कर रहे हैं।
शिक्षक- बैंकों में हिसाब-किताब रखने के लिए कम्प्यूटर का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग हो रहा है। यही , घर के कम्प्यूटरों को बैंकों के कम्प्यूटरों से सम्बद्ध कर दिया जाता है।
विद्यार्थी - क्या कम्प्यूटर अन्तरिक्ष विज्ञान में भी उपयोगी है?
शिक्षक- हाँ, अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कम्प्यूटर बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। विभिन्न स्थितियों के चिन्न एकत्र करने में यह सफल रहा है।
विद्यार्थी- इसका मतलब है कि कम्प्यूटर जीवन के सभी क्षेत्रों में आवश्यक हो गया है। शिक्षक- तुम ठीक कह रहे हो। आज जिन्दगी का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जहाँ कम्प्यूटर का प्रयोग न हो रहा हो। शिक्षा, चिकित्सा, युद्ध, मौसम चुनाव आदि सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर आवश्यक हो गया है।
विद्यार्थी - धन्यवाद गुरुजी, आज आपने हमें कम्प्यूटर के महत्व को बता दिया। अभी तक तो हम इसे खेलने, सिनेमा देखने तथा गाने सुनने का ही साधन मानते थे।
शिक्षक- अब तुम इससे संसार भर का ज्ञान प्राप्त करना प्रारम्भ कर दो। यह भविष्य में और भी उपयोगी होगा।

प्रश्न 21. निम्नलिखित अपठित गद्यांश या काव्यांश को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
क्षमा पृथ्वी का गुणधर्म है। क्षमा वीरों का भूषण है। मनुष्य से स्वाभाविक रूप से अपराध होते रहते हैं, गलतियाँ होती रहती हैं। हमारी दृष्टि में कोई अपराधी है तो हम किसी की दृष्टि में अपराधी है। यहाँ निर्दोष कोई भी नहीं है. इसलिए परस्पर क्षमा-भावना की अति आवश्यकता है। क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा, संघर्ष का साम्राज्य च्छा जायेगा जिसे कोई भी स्वीकार नहीं करता है। माता-पिता, गुरु सभी क्षमाशील होते हैं। मानव जीवन में क्षमा के अवसर आते रहते हैं। क्षमा के अभाव में मानव जीवन चलना दूभर हो जाता है। अहिंसा. करुणा, दया, मैत्री, क्षमा आदि दैवीय गुण हैं। ये गुण मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न (i) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक दीजिए।
उत्तर- 'क्षमा-भावना'
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर- क्षमा पृथ्वी का गुण-धर्म और वीरों का भूषण है। मानव स्वभाव से अपराधी होता है। यदि क्षमा-भावना न होगी तो क्रोध, हिंसा एवं संघर्ष का बोलबाला होगा जो मनुष्य को स्वीकार्य न होगा। माता-पिता, गुरु आदि क्षमाशील होते हैं। बिना क्षमा के मानव जीवन बहुत कठिन हो जाता है अतः यह गुण मानव के लिए आवश्यक है।
(iii) क्षमा के अभाव में किसका साम्राज्य छा जाता है।
उत्तर- क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा, संघर्ष आदि का साम्राज्य छा जायेगा।

अथवा

प्रेम स्वर्ग है, स्वर्ग प्रेम अशक अशोक,
ईश्वर का प्रतिबिम्ब प्रेम है, प्रेम हृदय आलोक।
जग की सब पीड़ाओं से है, होता हृदय अधीर, पर मीठी लगती है उर में सत्य प्रेम को पीर।
व्याकुल हुआ प्रेम पीड़ा से, जिसका कभी न प्राण,
भाग्यहीन उस निष्ठुर का है उर सचमुच पाषाण।
प्रश्न- (i) उपर्युक्त काव्यांश का सारांश लिखिए।
(ii) व्यक्ति को प्रेम की पीड़ा कैसी लगती है?
(iii) इस काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
उत्तर- (i) सारांश- इस काव्यांश में बताया गया है कि प्रेम पीड़ा, शंका आदि से मुक्त परमात्मा का प्रतिरूप है। हृदय को भाने वाले प्रेम का अनुभव जिसने नहीं किया है वह अभागा पत्थर के समान है।
(ii) व्यक्ति को प्रेम की पीड़ा कैसी लगती है?
उत्तर- प्रेम की पीड़ा हृदय को बड़ी मधुर लगती है।
(iii) इस काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
उत्तर- शीर्षक - 'प्रेम' या 'प्रेम की महिमा'।

प्रश्न 22. अपने जन्मदिन पर आयोजन में सम्मिलित होने हेतु मित्र को आमंत्रण-पत्र लिखिए।
उत्तर-
नीम टोला
बाजार चौक
मेहरा पिपरिया, सिवनी
दिनांक : 15-2-2024
प्रिय मित्र राजेश,
सप्रेम हृदय स्पर्श।
तुम्हें सूचित करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है कि पिताजी ने इस बार जन्मदिन उल्लास के साथ मनाने का निश्चय किया। तुम्हारे बिना यह उत्सव अधूरा ही रहेगा। अतः तुम्हें 1 अप्रैल को इस समारोह में सम्मिलित होने के लिए अवश्य आना है। एक दिन पहले आ जाओगे तो मुझे अच्छा लगेगा।
पिताजी एवं माताजी को चरण स्पर्श, छुटकी को स्नेह।
तुम्हारा मित्र
काव्य प्रवाह

अथवा

अपने प्राचार्य को शाला छोड़ने पर स्थानांतरण प्रमाण-पत्र (T.C.) देने हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।
उत्तर-
सेवा में,
श्रीमान् प्राचार्य महोदय,
शासकीय उच्चतर मा. वि., मेहरा पिपरिया।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि प्रार्थी ने आपके विद्यालय से कक्षा 10 की परीक्षा उत्तम अंक लेकर उत्तीर्ण की है। संयोगवश मेरे पिताजी का स्थानान्तरण सिवनी हो गया है। इस हेतु मैं आपके आदर्श विद्यालय में आगे अध्ययन करने में असमर्थ हूँ।
अतः मुझे अन्यत्र पढ़ने हेतु शाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
काव्य प्रवाह
कक्षा 10 ब
दिनांक-25-2-2024

प्रश्न 23. निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 120 शब्दों में निबंध लिखिए -
दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या
अथवा
विज्ञान की देन

उत्तर― दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या
रूपरेखा -
(1) प्रस्तावना
(2) प्राचीनकाल में दहेज का स्वरूप
(3) मध्यकाल में नारी की दयनीय स्थिति
(4) आधुनिक काल में दहेज का स्वरूप
(5) निराकरण के उपाय
(6) उपसंहार।

प्रस्तावना ― आज भारतीय समाज में दहेज एक अभिशाप के रूप में व्याप्त है। दहेज के अभाव में निर्धन माता-पिता अपनी बेटी के हाथ पीले करने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं। दहेज उन्मूलन के जितने प्रयास किये जाते हैं, इतना ही वह सुरसा के मुँह की तरह बढ़ता जा रहा है।

प्राचीन काल में दहेज का स्वरूप ― प्राचीन काल में कन्या को ही सबसे बड़ा दान समझा जाता था। माता-पिता वर पक्ष को अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो कुछ देते थे, उसे वे सहर्ष स्वीकार कर लेते थे और जो धन कन्या को दिया जाता था, वह स्त्री धन समझा जाता था।

मध्यकाल में नारी की दयनीय स्थिति ― मध्य काल में नारी के प्राचीन आदर्श' यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते' को झुठलाकर उसे भोग एवं विलासिता का साधन बना दिया गया। उसका स्वयं का अस्तित्व घर की चारदीवारी में सन्तानोत्पत्ति करने में ही सिमट कर रह गया। इस समय पुरुष समाज द्वारा उसे धन के समान भोग्य वस्तु समझा जाता था। उसके धन को और माता-पिता द्वारा दिये गये धन को वह अपनी वस्तु समझने लगा।

आधुनिक काल में दहेज का स्वरूप ― आधुनिक काल में दहेज अपने सबसे विकृत स्वरूप में सामने है। अब तो ऐसा लगता है कि मानो दहेज लेना वर पक्ष का जन्मसिद्ध अधिकार हो। दहेज के बिना सद्‌गुणी कन्या का विवाह होना भी एक जटिल समस्या बन गया है। इस दहेज की बलिवेदी पर न जाने कितनी कन्याएँ आत्महत्या करने के लिए विवश हो रही हैं और कितनी ही दहेज के लालची लोगों के द्वारा जला अथवा मार दी जाती हैं। इतने पर भी दहेज लोभियों का हृदय तनिक भी द्रवीभूत नहीं होता।

निराकरण के उपाय ― वैसे तो यह बीमारी वर्तमान भारतीय समाज की जड़ों तक पहुँच चुकी है। मगर अब भी यदि हम निम्नलिखित उपायों को अपनाएँ तो इस समस्या को नेस्तनाबूत किया जा सकता है-
(1) युवक और युवतियाँ दहेज रहित विवाह के लिए कृत संकल्प हों।
(2) अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया जाये।
(3) दहेज लोलुपों का सामाजिक बहिष्कार हो।
(4) सरकार को इस विषय में सक्रिय एवं कठोर कदम उठाने चाहिए।
(5) सामूहिक विवाहों का प्रचलन हो।
(6) दहेज रहित विवाह करने वालों को सामाजिक संगठनों द्वारा पुरस्कृत किया जाय।

उपसंहार ― दहेज का उन्मूलन अकेले सरकार के द्वारा नहीं किया जा सकता। इसके लिए देश के कर्णधारों, मनीषियों एवं समाज सुधारकों को भगीरथ प्रयास करना होगा। प्राचीन भारतीय आदर्शों की पुनः प्रतिष्ठा करनी होगी जिसमें नारी को गृहस्थी रूपी रथ का एक पहिया समझा जाता था। वह गृहलक्ष्मी को गरिमा से मंडित थी। उसकी छाया में घर-घर स्वर्ग बना हुआ था तथा घर-आँगन फुलवारी के रूप में सुवासित था और यदि हम ऐसा कर पायें तो वास्तव में नारी की गोद से बड़ा स्वर्ग पृथ्वी पर दूसरा नहीं होगा।

अथवा

विज्ञान की देन
रूपरेखा ―

(1) प्रस्तावना
(2) विज्ञान वरदान के रूप में
(3) विज्ञान अभिशाप के रूप में
(4) उपसंहार।

प्रस्तावना ― आज हम विज्ञान के युग में साँस ले रहे हैं। आज विज्ञान ने मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित किया है। यदि हमारे पूर्वज अपनी कब्रों से उठकर आज की दुनिया को देखें तो उन्हें अपनी आँखों पर यह विश्वास नहीं होगा कि हम कभी इस दुनिया में निवास करते थे।

विज्ञान वरदान के रूप में ― विज्ञान ने मनुष्य का जीवन सुख, वैभव तथा समृद्धि से सम्पन्न बना दिया है। आज विज्ञान ने अनेक क्षेत्रों में आशातीत उन्नति की है; जैसे-

(1) खाद्यान्न के क्षेत्र में खाद्यान्न के क्षेत्र में ― विज्ञान ने क्रान्ति मचा दी है। वर्तमान युग में किसान वर्षा ऋतु पर आश्रित नहीं रहता अपितु ट्यूब वैलों से खेतों को सींच रहा है। बैलों की जगह ट्रैक्टर के माध्यम से खेत की जुताई की जाती है। रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है तथा कीटनाशक दवाओं के द्वारा फसलों की सुरक्षा की जाती है।

(2) उद्योग एवं विज्ञान के क्षेत्र में ― मशीनों के द्वारा आज औद्योगिक क्षमता का विकास तीव्र गति से हो रहा है। जो कार्य पहले सौ व्यक्तियों द्वारा पूरा होता था आज मशीनों के द्वारा कम समय में एक ही व्यक्ति पूरा कर लेता है।

(3) शिक्षा के क्षेत्र में ― वर्तमान समय में टी. वी., रेडियो तथा कम्प्यूटरों के माध्यम से शिक्षा दी जा रही है। चित्रपट पर प्रदर्शित राजनीतिक वार्ता, प्राकृतिक दृश्य तथा शैक्षिक कार्यक्रम शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं।

(4) आवागमन के क्षेत्र में ― प्राचीन समय में यात्रा करना बहुत ही कष्टप्रद तथा भययुक्त होता था, लेकिन वैज्ञानिक आविष्कार के द्वारा आज रेल, मोटर तथा वायुयानों के माध्यम से मानव सम्पूर्ण विश्व की यात्रा कुछ घण्टों में ही पूरा कर लेता है।

(5) चिकित्सा के क्षेत्र में ― आज विज्ञान के माध्यम से अनेक घातक बीमारियों का एक्स-रे द्वारा आन्तरिक फोटो लेकर सरलता से पता लगा लिया जाता है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का इलाज भी सम्भव हो गया है। ऑपरेशन के द्वारा न जाने कितने इंसानों को नया जीवन मिलता है।

(6) संचार के क्षेत्र में ― संचार के क्षेत्र में भी विज्ञान ने अभूतपूर्व उन्नति की है। टेलीफोन, टेलीग्राम तथा टेलीविजन के द्वारा हम घर बैठे ही सम्पूर्ण देश के लोगों का हाल जान सकते हैं।

(7) वस्त्र निर्माण के क्षेत्र में ― आज वस्त्र निर्माण के लिए आधुनिक तकनीकों से युक्त नयी-नयी मिलें स्थापित हो गयी हैं। सिलाई के लिए नयी-नयी मशीनें आविष्कृत है।

विज्ञान अभिशाप के रूप में ― विज्ञान ने जहाँ मनुष्य को सुख-सुविधा एवं स्वास्थ्य दिया है वहीं दूसरी ओर वह एक विशालकाय दानव की तरह भयानक मुँह खोले हुए उसे मृत्यु की नींद सुलाने को बेचैन है। हाइड्रोजन बम और जहरीली गैसें उसके लिए मृत्यु से भी भयंकर साबित हो रही हैं। विज्ञान द्वारा प्रदत्त भौतिक साधनों से मनुष्य आलसी हो गया है और शरीर से कमजोर हो गया है। विज्ञान ने वातावरण को अति दूषित कर दिया है और प्रकृति की संरचना से खिलवाड़ किया है।

उपसंहार ― विज्ञान स्वयं में शक्ति नहीं है। वह मनुष्यों के हाथों में आकर ही शक्तिशाली बना है। उसका शुभ और अशुभ प्रयोग मनुष्य के हाथ में ही है। ईश्वर मनुष्य को ऐसी बुद्धि दे कि वह मनुष्य के संहार के लिए इसका प्रयोग न करे।

I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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