
पाठ-14 'मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।' कविता की व्याख्या - 7 भाषा भारती
कविता- मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
मत ठहरो, तुमको चलना ही चलना है,
चलने के प्रण से, तुमको नहीं टलना है।
केवल गति ही जीवन, विश्रांति पतन है,
तुम ठहरे, तो समझो ठहरा जीवन है।
जब चलने का व्रत लिया, ठहरना कैसा?
अपने हित सुख की खोज बड़ी छलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
तुमको प्रतीक बनना है, विश्व प्रगति का
तुमको जनहित के सांचे में ढलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
बाधाएं और असफलताएं तो आती है,
दृढ़निश्चय लख, वे स्वयं चली जाती हैं।
जितने भी रोड़े मिले, उन्हें ठुकराओ
पथ के काँटों को पौरों से दलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
जितने भी रोड़े मिले, उन्हें ठुकराओ
पथ के कांटों को पैरों से दलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
जो कुछ करना है, उठो ! करो जुट जाओ,
जीवन का कोई क्षण, मत व्यर्थ गवाओ।
कर लिया काम, भज लिया राम यह सच है,
अवसर खोकर तो सदा हाथ मलना है।
मत ठहरो तुमको चलना ही चलना है।
कवि का नाम
श्रीकृष्ण 'सरल'
कविता की व्याख्या
कवि कहते हैं...
हे मनुष्य ! तुम्हें रुकना नहीं है। तुम्हें तो लगातार चलते ही रहना है। तुमने चलने की जो प्रतिज्ञा की है, उसी पर तुम्हें सशक्त होकर बने रहना है। उससे बिल्कुल भी डिगना नहीं है। जीवन में गति होती है। थकान या अवरोध आने पर आदमी को समझ लेना चाहिए कि उसके जीवन में पतन का समय आ गया है। इसलिए तुम्हारी स्थिरता से जीवन भी ठहर जाता है। शायद उसे फिर जीवन नहीं कहते हैं, परन्तु जब हमने चलते रहने का प्रण किया हुआ है, प्रण किया हुआ है तो ठहराव किस बात का, कैसा? अपने कल्याण के लिए यदि हम सुख की खोज करते हैं, तो यही एक धोखा है। तुम्हें बिना रुके ही चलते रहना है।
आगे कवि कहते हैं .... कि तुम्हें सतत रुप से चलते रहता है, साथ ही जमाने को भी अपने साथ साथ चलाना है। प्रगति की दौड़ में जो पीछे रह गए हैं, उन्हें भी आगे बढ़ाने का हमारा कर्तव्य है। इस तरह विश्व की उन्नति का ,उसमें परिवर्तन लाने का, आदर्श बनकर तुम्हें एक प्रतीक बनना है। इस तरह संसार के लोगों की भलाई के लिए कार्य करने के सांचे में तुम्हें ढल जाना चाहिए। इसलिए तुम रुको मत तुम्हे आगे ही आगे बढ़ते जाना है।
आगे कवि कहते हैं.... इंसान के जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और विफलताएँ मनुष्य के दृढ़ इरादों को देखकर अपने आप ही चली जाती है। वे उसके रास्ते में रुकावट बनने से दूर हो जाती है। इसलिए मार्ग के अड़चनों को अपने पैरों से ठोकर मारकर एक तरफ हटा दो। अपने मार्ग के कांँटों (रूकावटों) को अपने पैरों से कुचल डालो और अपने मार्ग पर चलते रहो, तुम्हें रुकना नहीं है।
इसके आगे कवि कहते हैं.... हे मनुष्य ! तुम्हें जो भी कार्य करना है, उसे पूरा करने के लिए तुम्हें जागना चाहिए। कार्य पूरा करो, कार्य में रत होकर जुट जाओ। अपने जीवन के समय का एक भी एक पल व्यर्थ नहीं बिताना चाहिए। यदि तुमने अपने कर्तव्य का पालन किया, तो समझो तुमने श्रीराम का भजन कर लिया है, अतः अपनी कर्तव्यों का निर्वाह करना ही ईश्वर की भक्ति है। यदि कार्य को पूरा करने का समय व्यर्थ कर दिया, तो फिर सदा ही पछतावा होगा।इसलिए तुम्हें रुकना नहीं है, सदैव गतिशील बने रहना है।
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