अष्टमः पाठः - यक्षप्रश्नाः (पाठ 8 यक्ष के प्रश्न) | 'Yaksha-prashnah' Sanskrit 8th
(महाभारतस्य यक्षप्रश्नाः अत्यन्त प्रसिद्धाः सन्ति। वनपर्वकथानुसार वनवासकाले एकदा पाण्डवाः वने विचरन्तः आसन्। मार्गे ब्रौपदी जलम् अयाचत प्रथम सहदेवः पात्र नीत्वा जलम् आनेतुं समीपवर्तिनम् एकं तडागम् अगच्छत् । परं न प्रत्यागच्छत् । एवं क्रमेण नकुलार्जुनभीमाः अगच्छन् परं तेऽपि न प्रत्यागच्छन् । अन्ते स्वयं युधिष्ठिरः तत्रागल्य अपश्यत् यत् मे चत्यादः अनुजाः भूमौ निष्प्राणाः पतिताः । सः तत्कारणं ज्ञातुम् ऐच्छत् सहसा एकः विशालकायः यक्षः आगच्छत् । लेनोक्तं यत् “मम प्रश्नोत्तर विना यदि त्वं जलं गृहणासि तर्हि त्वमपि एवमेव निष्प्राणत प्राप्स्यसि । अनन्तरं यक्षः प्रश्नान् अकरोत् । युधिष्ठिरस्य उत्तरैः सन्तुष्टः अनुजेभ्यः जीवनदान सहैव जलम् अपि अददात् ।)
हिन्दी अनुवाद-
(महाभारत के यक्ष प्रश्न अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। वनपर्व की कथा के अनुसार, वनवास के समय एक बार पाण्डव वन में घूम रहे थे। मार्ग में द्रोपदी ने पानी माँगा। सबसे पहले सहदेव बर्तन लेकर पानी लेने पास के एक तालाब पर गया परन्तु नहीं लौटा। इसी प्रकार क्रम से नकुल, अर्जुन और भीम गये, परन्तु वे भी नहीं लौटे। अन्त में स्वयं युधिष्ठिर ने वहाँ आकर देखा कि मेरे चार छोटे भाई भूमि पर प्राणहीन गिरे हुए हैं। उन्होंने उसके कारण को जानना चाहा, अचानक एक विशालकाय यक्ष आया। उसने कहा कि “मेरे प्रश्नों के उत्तर दिये बिना यदि तुमने पानी लिया तो तुम भी ऐसे ही निष्पाणता को प्राप्त करोगे।" इसके बाद यक्ष प्रश्न करता है। युधिष्ठिर के उत्तरों से सन्तुष्ट होकर छोटे भाइयों को जीवन दान के साथ ही पानी भी दिया।)
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यक्ष उवाच–
केनस्विच्छ्रोत्रियो भवति केनस्विद्विन्दते महत्
केन द्वितीयवान्भवति राजन् ! केन च बुद्धिमान् ?
हिन्दी अनुवाद—
यक्ष बोला— हे राजन् ! (मनुष्य) श्रोत्रिय (वेद में प्रवीण) किससे होता है ? महत्पद (बड़ा स्थान) किससे प्राप्त है ? द्वितीयवान् (दूसरे साथी से युक्त) किससे होता है और करता बुद्धिमान् किससे होता है ?
युधिष्ठिर उवाच–
श्रुतेन श्रोत्रियो भवति, तपसा विन्दते महत् ।
धृत्या द्वितीयवान्भवति, बुद्धिमान्वृद्धसेवया ॥
हिन्दी अनुवाद –
युधिष्ठिर बोला - (मनुष्य) वेदाध्ययन से श्रोत्रिय होता है, तपस्या से महत्पद (बड़ा स्थान प्राप्त करता है; धैर्य से द्वितीयवान् (दूसरे साथी से युक्त) होता है और वृद्धों की सेवा से बुद्धिमान होता है ।
यक्ष उवाच–
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ।
किंस्विच्छीघ्रतरं वायोः किंस्विद् बहुतरं तृणात् ॥
हिन्दी अनुवाद–
यक्ष बोला— पृथ्वी से भारी क्या है? आकाश से अधिक ऊँचा क्या है ? वायु से तेज क्या है ? तिनकों से भी अधिक (असंख्य) क्या है?
युधिष्ठिर उवाच–
माता गुरुतरा भूमेः खात्पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वाताच्चिन्ता बहुतरी तृणात् ॥
हिन्दी अनुवाद –
युधिष्ठिर बोला – माता पृथ्वी से भारी है (अर्थात् माता का गौरव पृथ्वी से ज्यादा है)। पिता आकाश से अधिक ऊँचे हैं, मन वायु से तेज चलने वाला है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक (असंख्य या अनन्त) है।
यक्ष उवाच-
किंस्वित्प्रवसतो मित्रं मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य च किं मित्रं किंस्विन्मित्रं मरिष्यतः ।।
हिन्दी अनुवाद -
यक्ष बोला – विदेश में रहने वाले का मित्र क्या है ? घर में रहने वाले (गृहस्थ) का मित्र क्या है ? रोगी का मित्र क्या है और मरने वाले का मित्र क्या है ?
युधिष्ठिर उवाच–
सार्थ: प्रवासतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः।
आतुरस्य भिषङि्मत्रं दानं मित्रं मरियतः।।
हिन्दी अनुवाद -
युधिष्ठिर बोला– धन से युक्त होना विदेश में रहने वाले का मित्र है। घर में रहने वाले (गृहस्थ) का मित्र पत्नी है। रोगी का मित्र वैद्य है और मरने वाले का मित्र दान है।
(युधिष्ठिरस्य उत्तरेण सन्तुष्टः यक्षः अवदत्) (युधिष्ठिर के उत्तरों से संतुष्ट होकर यक्ष बोला)
यक्ष उवाच–
भो राजन्! त्वं भ्रातृषु यम् एकम् इच्छसि सः जीवेत् ।
हिन्दी अनुवाद–
यक्ष ने कहा— हे राजन् ! भाइयों में तुम जिस एक को चाहो वह जीवित हो जाये।
युधिष्ठिर उवाच–
नकुलो जीवेत् इति ममेच्छा अस्ति ।
हिन्दी अनुवाद–
युधिष्ठिर ने कहा— 'नकुल जीवित हो जाये' यह मेरी इच्छा है।
यक्ष उवाच–
प्रियस्ते भीमसेनोऽयमर्जुनो वः परायणम्।
तत् कस्मान्नकुलं राजन् सापत्नं जीवमिच्छसि ॥
हिन्दी अनुवाद–
यक्ष ने कहा- हे राजन् ! तुम्हारा प्रिय भीमसेन है और अर्जुन तुम सबका अनन्य भक्त है, तो फिर किसलिए सौतेले भाई (नकुल) को जिलाना चाहते हो ?
युधिष्ठिर उवाच–
यथा कुन्ती तथा माद्री विशेषो नास्ति मे तयोः ।
मातृभ्यां सममिच्छामि नकुलो यक्ष जीवतु ॥
हिन्दी अनुवाद–
युधिष्ठिर ने कहा- हे यक्ष । जैसे मेरे लिए माता कुन्ती हैं, वैसे ही माद्री हैं, दोनों में अन्तर नहीं है। दोनों के प्रति समान भाव रखना चाहता हूँ, इसलिए नकुल जीवित हो।
युधिष्ठिरस्य निष्पक्षतया धर्मनिष्ठया च प्रसन्नः यक्षः सर्वेभ्यः जीवनं दत्तवान् ।
हिन्दी अनुवाद–
युधिष्ठिर की निष्पक्षता और धर्मनिष्ठा से प्रसन्न यक्ष ने सभी को जीवन प्रदान कर दिया।
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शब्दार्थाः
विन्दते = लाभ प्राप्त करता है।
गृहे सतः = घर में रहने वाले का।
किंस्विद् = क्या ।
आतुरस्य = बीमार का।
उच्चतरम् = अधिक ऊँचा।
मरिष्यतः = मरने वाले का।
खात् = आकाश से।
सार्थ: = धनयुक्त, अर्थसहित।
शीघ्रतरम् = अधिक गतिशील, तेज ।
भिषग् = वैद्य।
वातात् = वायु से।
वः = तुम सब का।
बहुतरम् = बहुत फैलने वाली ।
परायणम् = अनन्य भक्त ।
तृणात् = तिनके से।
सापत्नम् = सौतेले भाई (नकुल) को ।
प्रवसतः = विदेश में रहने वाले का ।
साम्प्रतम् = इस समय।
अभ्यासः
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत्–
(एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) भूमेः गुरुतरा का ?
(पृथ्वी से भारी क्या है ? )
उत्तर- माता । (माता)
(ख) खात् उच्चतरः कः ?
(आकाश से अधिक ऊँचा क्या है ?)
उत्तर – पिता। (पिता)
(ग) वातात् शीघ्रतरं किम् ?
(वायु से तेज क्या है ? )
उत्तर- मनः । (मन)
(घ) प्रवसतः किं मित्रम् ?
(विदेश में रहने वाले का मित्र कौन है?
उत्तर - सार्थः । (धनयुक्त होना)
(ङ) आतुरस्य मित्रं किम् ?
(रोगी का मित्र क्या है ? )
उत्तर – भिषग् । (वैद्य)
प्रश्न 2. एकवाक्येन उत्तरं लिखत–
(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) का तृणात् बहुतरी ?
(तिनके से अधिक क्या है ?)
उत्तर – चिन्ता तृणात् बहुतरी ।
(चिन्ता तिनके से अधिक है।)
(ख) गृहे सतः किं मित्रम् ?
(घर में रहने वाले का मित्र क्या है ?)
उत्तर - गृहे सतः भार्या मित्रम् ।
(घर में रहने वाले का मित्र पत्नी है।)
(ग) युधिष्ठिरस्य मातुः नाम किम् ?
(युधिष्ठिर की माता का नाम क्या था ?)
उत्तर- युधिष्ठिरस्य मातुः नाम कुन्ती ।
(युधिष्ठिर की माता का नाम कुन्ती था।)
(घ) मरिष्यतः मित्रं किम ?
( मरने वाले का मित्र क्या है ?)
उत्तर- मरिष्यतः मित्रं दानम।
(मरने वाले का मित्र दान है।)
(ङ) नकुलस्य मातुः नाम किम् ?
(नकुल की माता का नाम क्या था ?)
उत्तर- नकुलस्य मातुः नाम माद्री।
(नकुल की माता का नाम माद्री था ।)
(च) प्रसन्नो भूत्वा यक्षः किम् अकरोत् ?
(प्रसन्न होकर यक्ष ने क्या किया ?)
उत्तर– प्रसन्नो भूत्वा यक्षः सर्वेभ्यः जीवनं दत्तवान् ।
(प्रसन्न होकर यक्ष ने सभी को जीवन दे दिया।)
प्रश्न 3. कोष्ठकप्रदत्तैः शब्दैः सह उचित विभक्ति प्रयुज्य रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत–
(कोष्ठक में दिये गये शब्दों के साथ उचित विभक्ति
लगाकर रिक्त स्थान भरो–)
(क) चिन्ता तृणात् बहुतरी भवति ।
(ख) माता: भूमेः गुरुतरा अस्ति।
(ग) वायोः मनः शीघ्रतरं भवति ।
(घ) भार्या मम गृहे सतः मित्रम् भवति ।
(ङ) आतुरस्य भिषग् मित्रं भवति।
प्रश्न 4. युग्पनिर्माणं कुरुत–
(जोड़े बनाओ )
'(अ)' ........................ '(ब)'
(क) माता गुरुतरा – (i) भार्या
(ख) वातात् शीघ्रतरम् – (ii) चिन्ता
(ग) गृहे मित्रम् – (iii) भूमेः
(घ) तृणात् बहुतरी – (iv) मनः
(ङ) मरिष्यतः मित्रम् – (v) सार्थः
(च) प्रवसतो मित्रम् – (vi) दानम्
उत्तरम्–
(क) माता गुरुतरा – (iii) भूमेः
(ख) वातात् शीघ्रतरम् – (iv) मनः
(ग) गृहे मित्रम् – (i) भार्या
(घ) तृणात् बहुतरी – (ii) चिन्ता
(ङ) मरिष्यतः मित्रम् – (vi) दानम्
(च) प्रवसतो मित्रम् – (v) सार्थः
प्रश्न 5. उदाहरणानुसारं निम्नलिखितपदानां समानार्थकपदानि–
(उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित पदों के समानार्थक शब्द लिखो )
यथा– खात् – आकाशात्
भूमे – पृथ्वियाः
वातात् – पवनात् ।
तृणात् – बुसात्।
भ्रातृणाम् – सहोदराणाम्।
मातृभ्याम् – जननीभ्याम् ।
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