भाषा सीखना और ग्रहणशीलता || भाषा और मातृभाषा क्या हैं? परिभाषाएँ || हिन्दी भाषा का शिक्षा शास्त्र
भाषा क्या है?
सामान्य रूप से हम कहें तो 'भाषा' हमारे मुँह से निकलने वाले शब्द और वाक्यों का समूह है। 'भाषा' मानव का अपने विचारों की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है, जो मानव के आरंभ से अंत तक उसका साथ निभाते हुए जीवन के समस्त क्षेत्रों से अवगत कराने का कार्य करती है।
'भाष' शब्द से 'भाषा' शब्द बना है, जिसका अर्थ है 'बोलना'। जीवन का कोई भी पल ऐसा नहीं है जब हम भाषा-हीन रूप से जी पाते हों। चाहे हम अकेले हो या किसी के साथ। हम दूसरों के साथ बात करने के अलावा अपने आप से भी बात करते हैं। वास्तव में भाषा मानव से मानव को जोड़ने का साधन है। एक प्रकार से यह मानवीय संबंधों की निर्धारिका है। यहीं से यह 'सामाजिक सरोकार की वस्तु' बन जाती है। व्यक्ति जन्म से लेकर वर्तमान तक जैसे-जैसे व्यक्ति की सोच आचार व्यवहार में परिवर्तन होता गया, वैसे-वैसे भाषा में भी परिवर्तन होता जा रहा है। जैसे कि प्राचीन काल में मानव इशारों व संकेतों के आदान-प्रदान से अपने विचार व्यक्त करता था, व्यापक दृष्टि से देखने पर ये माध्यम भी भाषा कहताते हैं।
बालविकास एवं शिक्षा शास्त्र के इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. बाल विकास क्या है इसकी अवधारणा एवं परिभाषाएंँ
2. बाल विकास की विशेषताएंँ
3. विकास के अध्ययन की उपयोगिता- बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र
4. बाल विकास के अध्ययन में ध्यान रखे जाने वाली प्रमुख बातें
5. गर्भावस्था एवं माता की देखभाल
6. शैशवावस्था- स्वरूप, महत्वव विशेषताएँ
भाषा की परिभाषाएँ
भाषा के संदर्भ में परिभाषाएँ भारतीय एवं पाश्चात्य देशों के विद्वानों ने दी हैं। जो इस प्रकार हैं-
(1) डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार- " भाषा निश्चित प्रयत्न के फलस्वरूप मनुष्य के मुख से निःसृत वह सार्थक ध्वनि-समष्टि है, जिसका विश्लेषण व अध्ययन हो सके।"
(2) 'महर्षि पतंजलि के अनुसार- "जो वाणी वर्णों से व्यक्त होती है उसे भाषा कहते हैं।"
(3) डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार- "मनुष्य एवं मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते हैं।"
(4) कामता प्रसाद गुरु के अनुसार- "भाषा वह माध्यम है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली-प्रकार प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकते हैं।"
(5) बाबूराम सक्सैना के अनुसार- "जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है, उसको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।"
पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार
(6) 'स्वीट' के अनुसार- "ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति का नाम भाषा है।"
(7) 'प्लेटो' के अनुसार- "विचार आत्मा की मूक अथवा अध्वन्यात्मक बातचीत हैं, जो ध्वन्यात्मक बनकर ओठों पर प्रकट होते ही भाषा कहलाती है।"
(8) इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटोनिका डिक्सनरी के अनुसार- "व्यक्त ध्वनि चिन्हों की इस पद्धति को भाषा कहते हैं, जिसके माध्यम से समाज विशेष के सदस्य पारस्परिक विचार-विनिमय करते हैं।"
(9) ब्लाख तथा ट्रेगर के अनुसार- "भाषा व्यक्ति की ध्ववि संकेतों की वह पद्धति है, जिसके माध्यम से समाज के व्यक्ति परस्पर व्यवहार करते हैं।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर भाषा के संदर्भ में निम्न तथ्य उभरकर सामने आते हैं–
(1) भाषा मानव मुख से निसृत सार्थक ध्वनि को कहते हैं।
(2) भाषा विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम है अत: इसे सामाजिक मान्यता होता अनिवार्य है।
(3) समाज द्वारा निरन्तर प्रयुक्त होने से ही भाषा का विकास सम्भव है।
(4) भाषा यादृच्छिक (स्वैच्छिक) ध्वनि प्रतिकों का समूह है।
(5) भिन्न-भिन्न समूह, क्षेत्र व स्थानों में भिन्न-भिन्न भाषाओं की प्रयोग होता है इसलिए भाषाओं में अन्तर होता है।
पर्यावरण का शिक्षाशास्त्र के इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
1. पर्यावरण की अवधारणा
2. पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य
3. पर्यावरण शिक्षा का महत्व
मात्रभाषा क्या है?
प्रत्येक परिवार की अपनी बोली होती की होती है। कोई मालवी तो कोई बुंदेली, बघेली, पंवारी, गोंडी, निमाड़ी बोलने वाले हैं। परिवार में बोली जाने वाली बोली, बोली या उपबोली भी हो सकती है। एक बालक सर्वप्रथम इन्हीं के सम्पर्क में आता है। परिणाम स्वरूप वह परिवार में बोली जाने वाली बोली को ही सीखता है। जिसे (उस बोली को) हम बालक को 'मातृभाषा' कहते हैं। संक्षेप में कहें तो एक बालक द्वारा जन्म के बाद अपनी माँ से सीखी गई भाषा या बोली बच्चे की 'मातृभाषा' कहलाती है।
भाषा सीखना
भाषा एवं मातृभाषा क्या है यह जान लेने के पश्चात् मूल बात यह आती है कि बच्चों को भाषा की ज्ञान कैसे कराया जाये? एक शिक्षक क्या करे, जिससे बच्चों में भाषा का ज्ञान हो जाये। विद्यालय में जब बालक अपने घरों से आते हैं तब केवल वे अपनी मातृभाषा का ज्ञान या जानकारी ज्यादा रखते हैं। हमारे सामने प्रश्न रहता है कि उन बालकों को हम 'मानक भाषा' का ज्ञान कैसे करायें। क्योंकि मानक भाषा जो किसी राज्य या प्रदेश/देश की राजकाज की भाषा होती है जिसमें समस्त जानकारियाँ एवं क्रियाकलाप किये जाते हैं उसका ज्ञान बच्चों की नहीं होता है या थोड़ी बहुत ही जानकारी वे रख पाते हैं।
भाषा मानव जीवन की एक सामान्य व सतत् प्रक्रिया है, जिसे मानव को ईश्वर द्वारा दिया गया अमूल्य उपहार कहा जाता है। भाषा का आरंभ मानव के जन्म के साथ ही हो जाता है। विभिन्न कौशल जैसे- बोलना, सुनना, पढ़ना, लिखना, समझना को पूरा करते हुए व्यक्ति भाषा में निपुणता प्राप्त करता है। आरंभ में बालक भूख लगने पर रोता है तो माँ समझ जाती है कि बालक को भूख लगी है। फिर धीरे-धीरे परिवार के सम्पर्क में रहकर, आपसी संवादों को सुनकर बालक उनका अनुकरण करता है और इस तरह वह भाषा क्षेत्र में पारङ्गत हो जाता है। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं। कि भाषा अनुकरण की वस्तु है तथा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
इन सब बातों को दृष्टिगत रखते हुए हमें बालक को किसी विषयगत या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का ज्ञान कराने के लिए सर्वप्रथम कार्य भाषा सिखाना होता है।
इन 👇 प्रकरणों के बारे में भी जानें।
गणित शिक्षण से चिंतन एवं तर्कशक्ति का विकास करना
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com
other resources Click for related information
(संबंधित जानकारी के लिए नीचे दिये गए विडियो को देखें।)
Comments