गणित अध्यापन के प्रमुख उद्देश्य || चिंतन शक्ति का विकास || गणित का शिक्षाशास्त्र || CTET and TET || Maths Pedagogy
हमारे व्यवहारिक जीवन में गणित का महत्वपूर्ण स्थान है। गणित के बगैर जीवन में परस्पर व्यवहार संभव ही नहीं है। गणित एक ऐसा विषय है जिसके अध्ययन से विद्यार्थियों में विविध योग्यताओं का आविर्भाव होता है। गणित अध्यापन की निम्नलिखित उद्देश्य हैं।
(1) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना- किसी भी क्षेत्र में क्या, क्यों और कैसे का दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष पर पहुँचना वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहलाता है। गणित में अक्सर क्या, क्यों व कैसे की प्रक्रिया के माध्यम से ही इसे हल किया जाता है। गणितीय आँकड़ों के साथ विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप या गतिविधियों के माध्यम से ऐसी सोच विकसित की जा सकती है कि यदि ऐसा हुआ है तो क्यों और ऐसा नहीं है तो क्यों? विद्यार्थियों को गणित के अध्यापन कराने से उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण व कौशल का विकास हो होता है।
(2) व्यवहारगत योग्यता हासिल करना- मानव के दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार की गणनाएँ जैसे नापना, तौलना, गिनना, बेचना, लाभ, हानि आदि की गणना की जाती है। इस तरह की गणनाओं के कौशल का विकास गणित के अध्यापन से ही संभव है। छात्र अपने व्यवहारिक क्षेत्र में कार्यकुशल बन सके इस हेतु गणित का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
(3) सांँस्कृतिक उद्देश्य- बालकों को अपनी संस्कृति एवं सभ्यता को अच्छी तरह समझने के लिए एवं कलात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए गणित अध्यापन आवश्यक है।
(4) अनुशासनात्मक उद्देश्य- गणित के अध्ययन से छात्र में तर्क शक्ति का विकास एवं योजनाबद्ध व क्रमबद्ध रूप से कार्य करने के गुण का विकसित होता है तथा इन्हीं गुणों के आधार पर अनुशासन उत्पन्न होता है। इसके साथ गणित में कुशाग्रता लगातार एकाग्रचित होकर अभ्यास कार्य करते रहने से बढ़ती है।
(5) अवकाश के समय का सदुपयोग - बालकों को रचनात्मक कार्यों के माध्यम से अपना समय व्यतीत करने में गणित बड़ी अग्रणी है। गणित के रोचक प्रयोग इस हेतु सहायक सिद्ध होते हैं।
(6) मानसिक शक्ति का विकास करना- गणित अध्ययन व अध्यापन से मानसिक शक्तियों का विकास हो होता है। इससे विद्यार्थियों में तर्क, चिन्तन, निरिक्षण, विश्लेषण व सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
(7) चारित्रिक मूल्यों का विकास- गणित के अध्ययन से बालक सत्य-असत्य में अन्तर करना सीखता है, गणित के द्वारा बालक शुद्धता व नियमितता सीखता है। इस तरह गणित का पाठक विभिन्न गुणों का विकास करते हुए अपने चारित्रिक मूल्यों में श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है।
(8) सामाजिक एवं भौतिक समृद्धि का विकास- गणित विषय का ज्ञान उन्नति एवं विकास की आधारशिला है। भौतिक, रसायन, भूगर्भ विज्ञान, इंजीनियरिंग, खगोलशास्त्र एवं जीवविज्ञान आदि गणित की सहायता के बिना समझ में नहीं आते।इस तरह व्यक्ति की सामाजिक उन्नति भी भौतिक समृद्धि से जुड़ी हुई है।
(9) भावों को भलीप्रकार प्रकट करना- मनोभावों एवं विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम है। छोटे बच्चों की गणितीय शिक्षा घर पर ही प्रारंभ हो जाती है बच्चे कम, ज्यादा, बहुत, गिनती करना आदि बातें प्रारंभ से ही करता है इससे उनमें दृढ़ता आ जाती है एवं विद्यालय पर बालक अपने मनोभावों व विचारों को स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकता है।
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गणित शिक्षण से चिंतन एवं तर्कशक्ति का विकास करना
गणित के अध्ययन से चिंतन शक्ति का विकास
गणित ही एक ऐसा क्षेत्र है जिससे बालक में चिन्तन शक्ति का विकास होता है। हमारे दैनिक जीवन में छोटा बड़ा, कम-ज्यादा, लाभ-हानि, हल्का-भारी जाने कितने ऐसे व्यवहारिक क्षेत्र हैं जिसमें व्यक्ति को चिंतन करने (सोचने) की जरूरत पड़ती है। यदि एक बालक इस तरह की बातों या क्षेत्रों में अपना ध्यान ज्यादा लगाता है तो यह निश्चित है कि उसमें चिंतन शक्ति का विकास होगा। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों, दार्शनिकों एवं खगोल शास्त्रियों ने विभिन्न शोध, तर्क एवं ब्रम्हाण्ड के संदर्भ में बहुत सी बातें निश्चित की हैं, उन्हें ये सब निश्चित करने में गणितीय ज्ञान ने ही साथ दिया है। एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र की दूरी, पृथ्वी की सूर्य से दूरी आदि बातें गणितीय ज्ञान से प्राप्त की गई हैं।
गणित अध्ययन में जब एक बालक किसी दिये गये प्रश्न को हल करता है तब उसे आगे क्रिया विधि बढ़ाने के लिए चिन्तन की आवश्यकता पड़ती है। बालक प्रश्न को बिना सोचे समझे हल नहीं कर पाता शिक्षक उसे विभिन्न बातें (नियम) समझाता है, तब बालक किसी भी प्रश्न को हल करने हेतु चिन्तन करके उसको हल कर लेता है, साथ ही उसी तरह के अन्य प्रश्नों को भी हल करता है। प्राथमिक स्तर पर यदि बच्चों को शिक्षक द्वारा कुशलता पूर्वक एवं बोधगम्य शैली में अध्यापन कार्य कराया गया है तो निश्चित ही बच्चों में गणितीय ज्ञान प्रखर होकर उनमें चिन्तन शक्ति का विकास होता है और वे आगे चलकर उच्च कक्षाओं में गणित विषय लेकर अध्ययन करते हैं और गणित उनके लिए एक रूचि का विषय हो जाता है।
बालकों में चिन्तन शैली का विकास हेतु आवश्यक क्रियाकलाप- (चिंतन शक्ति के विकास के महत्वपूर्ण पहलू)
(1) विविध गतिविधियों का उपयोग - बच्चों के पास शाला आने से पूर्व गणित संबंधित अनुभव होते हैं - वे घर में चीजों को जमाते हैं, आस पास के रास्तों पर चलते हैं, खाने की मात्रा देखते हैं, पानी भरते हैं, सफाई करते हैं इत्यादि। इस तरह की दैनिक क्रियाओं में न जाने कितना गणितीय अनुभव उनमें छिपा होता है, फिर भी हम पाते हैं कि गणित सीखना बड़ा मुश्किल ही रहता है। इस स्थिति से निबटने के लिए उपयुक्त गतिविधियों का उपयोग जरूरी है क्योंकि गतिविधियों को करने में बच्चे अपना दिमाग लगाते हैं जिससे उनमें चिन्तन शक्ति का विकास होता है।गतिविधियों में एक खास बात यह भी होती है कि वे बच्चों को आकर्षित करती है।
(2) स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलना- गणित में बालकों के अन्दर चिन्तन विकास के लिए यह बात आवश्यक है कि हम स्थूल (कोई ठोस आकृति) से सूक्ष्म (अर्थात उस आकृति का चित्र है या उसका प्रतीक) की ओर चलना चाहिए ताकि बालकों में चिन्तन शक्ति का विकास क्रमशः बढ़ता चले। ठोस वस्तुएँ बच्चों की समझ एवं चिन्तन को पुख्ता करने हेतु सशक्त माध्यम है।बच्चे स्वाभाविक रूप से तरह-तरह की चीजों से खेलते हैं, उन्हें जमाते हैं बिगाड़ते हैं फिर जमाते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी सारी इंद्रियाँ सचेत रहती हैं जिससे उनका चिन्तन स्तर बढ़ता है।
(3) उदाहरणों से सम्पर्क के बाद अवधारणा विकसित करना- गणित से चिंतन के विकास हेतु एक पहलू जो गणित सिखाने पर असर डालता है वह किसी अवधारणा का विकास कैसे होता है।यदि हम किसी बालक को एक केले का पेड़ व एक आम का पेड़ दोनों अलग-अलग दिखाते हैं बालक दोनों को पेड़ का ही दर्जा देता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन दोनों के बीच कुछ समान गुण हैं। जबकि देखने में दोनों में बड़ा अन्तर है।इन समान गुणों से मिलकर बनने वाली पेड़ की अवधारणा जो कि वास्तव में हमारे मन में होती है और इस कारण अमूर्त कहलाती है। 'पेड़' की अवधारणा हासिल करने के लिए जरूरी है कि हम एक ही पेड़ पर निर्भर न हों। कई तरह के पेड़ों के संपर्क में बालक को लायें एवं पेड़ों के समान गुणों के बारे में बच्चों को बतायें एवं अन्य पेड़, जैसे नारियल का पेड़ बतायें कि इन समान गुणों के कारण यह भी पेड़ है। गणित में बालकों को हर अवधारणा के कई उदाहरणों के संपर्क में आने का मौका देना चाहिए,ताकि इसके सहारे अवधारणा विकसित हो सके।
(4) अनुमान लगाना व सत्यापन करना- चिंतनशक्ति का विकास हेतु किसी क्रियाकलाप में अनुमान लगाने हेतु एवं फिर उसका सत्यापन करने हेतु बालकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर शिक्षक अपनी मुट्ठी में कुछ बीज रख ले व बच्चों से पूछें कि लगभग उसके हाथ में कितने बीज होंगे। बच्चें चिंतन कर सोचेंगे कि मुट्ठी में कितने बीज आ सकते हैं फिर अनुमानत: बतायेंगे, फिर वास्तविक रूप से बीजों को गिनकर इसका सत्यापन करें और देखें कि बालकों का अनुमान वास्तविक संख्या के कितना करीब है। इस तरह से बच्चों में चिन्तन शक्ति का विकास होगा।
(5) गणित की क्रियाओं में अभिव्यक्ति के अवसर- बालकों को गणित की क्रियाविधि में यदि शिक्षक बालकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करे कि उन्होंने गणित की उस क्रिया में क्या किया, किस क्रम में किया और वैसे क्यों किया? तो निश्चित ही उनमें चिन्तन शक्ति का विकास अवश्य होगा।
(6) गणितीय क्रियाकलापों में बालकों की सहभागिता - बालकों में चिन्तन शक्ति का विकास तभी सम्भव है जब प्रत्येक बालक गणितीय क्रियाकलापों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करता है। यदि शिक्षक गणित की कोई क्रियाविधि करा रहा है या सवाल हल करा रहा है तो कुछ बच्चे गणित न बनने की वजह से अपनी सहभागिता नहीं देते अतः शिक्षक को चाहिए की उनकी सहभागिता सुनिश्चित करे।
इस तरह से गणित के अध्ययन से बालक के व्यवहारिक पक्ष मजबूत तो होते ही हैं। साथ ही बालक में चिंतन व तर्क शक्ति का विकास होता है, जिससे आगे चलकर वे अपने जीवन में उन्नति करते हुए समाज के विकास में भी अपना योगदान देते हैं।
शिक्षक चयन परीक्षाओं के प्रश्न पत्रों को यहाँ👇 से डाउनलोड करें।
1. संविदा शाला वर्ग 3 का 2005 प्रश्न पत्र डाउनलोड करें
2. संविदा शाला वर्ग 2 का 2005 का प्रश्न पत्र डाउनलोड करें
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R F Temre
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