कर्मचारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही || विभागीय जाँच || सेवामुक्ति एवं निष्कासन || निलम्बन, इस अवधि में वेतन एवं निलम्बन से बहाली
शासकीय सेवक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही
शासकीय सेवक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रायः उनके द्वारा -
(1) शासकीय सेवा के आचरण नियमों का पालन न करने पर।
(2) शासन के आदेशों की अवहेलना करने पर।
(3) उदासीनता की स्थिति में।
(4) लापरवाही एवं उनका पालन न करने पर।
उक्त आचरण के आधार शासन, संस्था, कार्यालय प्रमुख नियुक्ति अधिकारी अथवा शासन द्वारा घोषित सक्षम अधिकारी द्वारा कार्यवाही की जाती है।
ऐसे आचरण की स्थिति में -
(1) विभागीय जाँच
(2) कारण बताओ सूचना पत्र
(3) निलम्बन
आदि स्थापित नियमों के अन्तर्गत कार्यवाही कर दण्ड के प्रावधान किये जाते हैं।
विभागीय जाँच
म.प्र. सिविल सेवा वर्गीकरण (नियन्त्रण व अपील) नियम 1966 के अनुसार विभागीय जाँच न्यायालीयन प्रक्रिया की तरह है। अतः जाँच अधिकारी को शासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का यथावत् पालन कर ही जाँच करना चाहिए। शिक्षा विभाग के अधिकारियों को प्रायः विभागीय जाँच करनी ही पड़ती है अतः जाँच प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
किसी भी शासकीय सेवक के खिलाफ शिकायती पत्र प्राप्त होने के पश्चात् आनुशासिक अधिकारी द्वारा प्रारम्भिक जाँच कराई जा सकती है। प्रारम्भिक जाँच में जाँच अधिकारी नियुक्त किया जाकर उसे शिकायती पत्र समेत अन्य दस्तावेज सौंपकर तय समय-सीमा में जाँच कर अनुशासिक अधिकारी को प्रतिवेदन सौपना होता है। जाँच अधिकारी शिकायती पत्र का अध्ययन कर शासकीय सेवक को समय-सीमा देकर स्पष्टीकरण माँगता है। शिकायती पत्र में उल्लेखित स्थान, तथ्य और साक्ष्य को एकत्रित कर दोनों ही पक्षों के लिखित अभ्यावेदन, उपलब्ध तथ्यों के आधार पर जाँच अधिकारी अपना प्रतिवेदन अनुशासिक अधिकारी को प्रस्तुत करता है। अनुशासिक अधिकारी प्रतिवेदन के आधार पर विभागीय जाँच कराने के आदेश भी दे सकते हैं। यदि अनुशासिक अधिकारी चाहें तो शिकायती पत्र की गंभीरता को देखते हुए प्रारंभिक जाँच कराए बिना ही विभागीय जाँच कराने के आदेश प्रसारित कर सकता है।
सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 22 के उपनियम 3 लागू होता है, वहाँ प्रत्येक अगर यौन उत्पीड़न की शिकायत का मामला आता है तो म.प्र. सिविल विभाग अथवा कार्यालय में ऐसी शिकायतों की जाँच करने के लिए गठित की गई समिति को, ऐसे नियमों के प्रायोजन के लिए अनुशासिक अधिकारी द्वारा नियुक्त जाँच अधिकारी समझा जाएगा।
विभागीय जाँच (Departmental Enquiries) प्रक्रिया
म.प्र.सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियन्त्रण व अपील) नियम 1966 की धारा 14 (1) व 15 के अनुसार अनुशासिक अधिकारी द्वारा जाँच अधिकारी व प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी को जाँच करने के लिए आदेशित कर सकता है। आनुशासिक अधिकारी द्वारा जाँच अधिकारी व प्रस्तुतकर्त्ता अधिकारी को नियुक्त किया जाता है। जाँच अधिकारी को नियुक्ति पत्र, आरोप पत्र, दस्तावेज व साक्ष्य सूची भी सौंप दी जाती है। जाँच अधिकारी शासकीय सेवक को उस पर लगाए गए आरोपों के प्रतिवाद करने के लिए लिखित कथन देने के लिए उल्लेखित करेगा। इसके लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा। आवश्यक होने पर शासकीय सेवक को व्यक्तिशः सुनवाई के लिए बुलाया जा सकता है।
प्रतिवाद का लिखित कथन प्राप्त होने के पश्चात् जाँच अधिकारी शिकायतकर्त्ता का पक्ष जानने के लिए उसको भी लिखित कथन प्रस्तुत करने के लिए आदेशित करेगा। दोनों ही पक्षों के लिखित बयानों व व्यक्तिशः सुनवाई के समक्ष हुई प्रक्रिया को लिपिबद्ध किया जाएगा।
जिन आरोपों को शासकीय सेवक स्वीकार कर लेता है उसके सम्बन्ध में नियम 15 के अधीन अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया जाएगा तथा जिन आरोपों का शासकीय सेवक प्रतिवाद करता है उन पर उपलब्ध साक्ष्य की मदद से जाँच अधिकारी अपने निष्कर्ष निकालेगा।
जाँच अधिकारी के समक्ष शासकीय सेवक व शिकायतकर्त्ता सुनवाई के लिए उल्लेखित किए गए दिनांक पर उपस्थित नहीं होते हैं या अपने आरोप या प्रतिवाद पर अपने लिखित कथन प्रस्तुत नहीं करते या जाँच अधिकारी के सामने व्यक्तिशः उपस्थित नहीं होते है या ऐसा करने से इंकार कर देते है तो जाँच अधिकारी को यह अधिकार होता है कि ऐसे मामलों में एकपक्षीय निर्णय लें।
जाँच समाप्त होने के पश्चात् एक रिपोर्ट तैयार की जाएगी और उसमें -
(क) आरोप पत्रों तथा कदाचार का विवरण होगा।
(ख) प्रत्येक आरोप के सम्बन्ध में शासकीय सेवक का प्रतिवाद होगा।
(ग) प्रत्येक आरोप के सम्बन्ध में साक्ष्य का निर्धारण होगा।
(घ) प्रत्येक आरोप पर निष्कर्ष व उसके कारण जाँच अधिकारी को उपलब्ध दस्तावेजों व प्रपत्रों पर प्रतीकांक अंकित करना होते है, जोकि आर्टीकल पी-1, पी-2. पी-3 व एक्स पी-1, पी-2, एक्स पी-3 के रूप में होते हैं।
जाँच अधिकारी किसी भी स्थिति में अपने प्रतिवेदन में दण्ड प्रस्तावित नहीं करेगा। जाँच अधिकारी प्रतिवेदन के आधार पर किसी प्रकार का निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं है। जाँच अधिकारी के प्रतिवेदन पर अनुशासिक अधिकारी शासकीय सेवक पर म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 की धारा 10 के अनुसार शस्तियाँ अधिरोपित कर सकता है। अधिनियम के अनुसार निम्न प्रकार की शास्तियाँ के द्वारा शासकीय सेवक को दण्ड दिया जा सकता है।
लघु शास्ति
धारा 10 खण्ड (1) परनिंदा।
धारा 10 खण्ड (2) उसकी पदोन्नति रोकना।
धारा 10 खण्ड ( 3 ) शासन को पहुॅचाई गई हानि की पूर्णतया / आंशिक वसूली।
धारा 10 खण्ड (4) वेतनवृद्धि रोकना।
दीर्घशास्ति
धारा 10 खण्ड (6) अवनत करके वेतनमान निम्नतर ग्रेड में निम्नतर पद पर निम्नतर सेवा में लाया जाना।
धारा 10 खण्ड (7) अनिवार्य सेवानिवृत्ति।
धारा 10 खण्ड (8) सेवा से हटाया जाना
रोकी गई वेतनवृद्धियाँ खोलना संचयी असंचयी प्रभावी
(1) शासकीय सेवकों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही तथा विभागीय जाँच आदि के फलस्वरूप दोषी पाये जाने पर सक्षम अधिकारी द्वारा दिए जाने वाले दण्ड के कारण शासकीय सेवकों की आगामी वेतनवृद्धियाँ संचयी या असंचयी प्रभाव से रोकी जाती है।
(2) ऐसी रोकी गई वेतनवृद्धियाँ आदेशों के अनुसार बाद में खोली जा सकती है।
(3) यदि शासकीय सेवक की एक या दो वेतनवृद्धियाँ संचयी प्रभाव से रोकी गई हो तो शासकीय सेवक को अगली वार्षिक वेतनवद्धि हमेशा के लिए देय नहीं होगी। उसी प्रकार असंचयी प्रभाव से वेतनवृद्धि रोकने पर उसे अगली वेतनवृद्धि देय नहीं होगी। किन्तु वेतनवृद्धि खोलने पर उसकी रोकी गई वेतनवृद्धि निरन्तर होगी तथा रोकी गई वेतनवृद्धि का कोई एरियर प्राप्त नहीं होगा।
निलम्बन
म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 की धारा 9 के अनुसार किसी शासकीय सेवक को नियन्त्रण अधिकारी द्वारा निलम्बित किया जा सकता है। अगर शासकीय सेवक के विरूद्ध आरोप हो या आपराधिक कृत्य के फलस्वरूप दोषोरोपण या अन्य किसी कारण से उसे 48 घण्टे से अधिक पुलिस हिरासत में रखा गया हो तो उसे निलम्बित किया जाता है। निलम्बन का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि दोषी शिक्षक/कर्मचारी/अधिकारी अपने कार्यालय के कर्मचारियों को प्रभावित नहीं कर सके, आरोपों से संबंधित साक्ष्य नष्ट न कर सके। निलम्बन के प्रभाव स्वरूप शासकीय सेवक / कर्मचारी को उसके कार्यभार से मुक्त कर दिया जाता है। जहाँ किसी शासकीय सेवक को उक्त नियम की धारा 9(1) के खण्ड (क) के अधीन निलंबित किया गया वहाऋ निलंबन आदेश पर अनुशासिक अधिकारी द्वारा नियम 14 के अधीन जाँच किया जाना प्रस्तावित है।
निलम्बन अवधि में शासकीय सेवक को वेतन के स्थान पर जीवन निर्वाह भत्ता पाने की पात्रता होती है। प्रथम तीन माह तक मूल वेतन+ ग्रेड पे का 50 प्रतिशत तथा उस पर प्रचलित दर से मँहगाई भत्ते की गणना कर जीवन निर्वाह भत्ता दिया जाता है। तीन माह तक निलम्बन की अवधि समाप्त नहीं होने पर जीवन निर्वाह भत्ता 75 प्रतिशत तक किया जाता है। निलम्बन अवधि में जीआईएस का कटौत्रा किया जाता है। शेष कटौतियों को स्थगित किया जाता है।
निलम्बन में चिकित्सा प्रतिपूर्ति के लाभ की पात्रता होती है। निलम्बित व्यक्ति को आदेश में उल्लेखित अपने मुख्यालय पर कार्यभार ग्रहण की उपस्थिति देनी चाहिए। पदस्थापना के आदेशों का भी निलम्बन समाप्ति पर पालन करना चाहिए।
निलम्बन काल में शासकीय सेवक को कार्यालय में उपस्थित होने या उपस्थित पंजी में हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं होकर मुख्यालय पर मौजूदगी ही आवश्यक है।
निलम्बन काल में मुख्यालय परिवर्तन किया जा सकता है। लोकहित में होने पर स्थानान्तर यात्रा भते की पात्रता होगी।
निलम्बन में जारी आरोप पत्र के तामिल न होने या टालमटोल करने पर भी अनुशासनात्मक कार्यवाही अवैध नहीं होती व निलम्बन कायम रहता है। 90 दिन में आरोप पत्र जारी न होने पर निलम्बन आदेश प्रतिसंहत हो जायेगा एवं निलम्बन अवधि सभी प्रयोजन हेतु कर्तव्य मानी जायेगी। अगर शासकीय सेवक भ्रष्टाचार या अन्य नैतिक पतन में निहित दाण्डिक अपराध में संलग्न होना साबित होता है तो सरकार द्वारा अभियोजन स्वीकृति के पश्चात् उसके विरूद्ध चालान प्रस्तुत किया जाता है।
निलम्बन में वेतनवृद्धि देय नहीं होती है यह वृद्धि ड्युटी मानी जाने पर ही देय होगी।
निलम्बन अवधि में कोई अवकाश देय नहीं है। निलम्बित रहते हुए सेवानिवृत्ति पर प्रकरण के निराकरण उपरान्त ही पेंशन आदि व अन्य लाभ देय होंगे। नियमों में अनन्तिम पेंशन का प्रावधान है।
निलम्बन में मृत्यु पर अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त होकर वह अवधि समस्त प्रयोजन के लिये कर्तव्य मानी जाती है।
निलम्बन से बहाली
जिन शासकीय सेवकों के निलम्बन को एक वर्ष से अधिक का समय हो गया है उन प्रकरणों पर विचार करने के लिए राज्य स्तर संभाग स्तर व जिला स्तर पर समितियों का गठन किया गया है। यह समिति निलम्बित शासकीय सेवकों के प्रकरणों पर विचार करेगी कि सम्बन्धित शासकीय सेवक का निलम्बन पर बने रहना आवश्यक है या नहीं?
यदि निलम्बन पर बना रहना आवश्यक नहीं पाया जाता तो सम्बन्धित का निलम्बन समाप्त करने के आधार को बताते हुए अनुशंसा समिति द्वारा की जा सकेगी। यदि शासकीय सेवक का निलम्बन आगे भी निरन्तर रखा जाना आवश्यक है तो समिति द्वारा निलम्बन निरन्तर रखे जाने का आधार बताते हुए अनुशंसा की जाएगी। यद्यपि आपराधिक मामलों में म.प्र. सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण व अपील) नियम 1966 की धारा 9 के उपनियम 1 के अधीन किए गए निलम्बन से बहाली के सम्बन्ध में निर्णय राज्य शासन द्वारा लिया जाएगा। ऐसे शासकीय सेवक जिन्हें लोकायुक्त / राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो एवं अन्य एजेंसियों द्वारा आपराधिक प्रकरणों में न्यायालय में चालान प्रस्तुत किए जाने से निलम्बित किया गया है उन पर उक्त निर्देश लागू नहीं होंगे।"
म.प्र. सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्रमांक सी 6-2/2013/3/एक दिनांक 28 जनवरी 2013
सेवामुक्ति
शासकीय सेवक / कर्मचारी को अगर उसके विरूद्ध लगाए गए गम्भीर आरोपों के सिद्ध होने पर शासन द्वारा सेवामुक्ति दी जाती है। सेवा मुक्ति के पश्चात् साधारणतः भविष्य में वह शासकीय सेवा में प्रवेश नहीं कर सकता। इस प्रकार वह शासन के अन्तर्गत नौकरी पाने के योग्य नहीं रहता। सेवा मुक्ति की तिथि से शासकीय सेवक / कर्मचारी को किसी प्रकार के वेतन या भत्ता पाने की पात्रता नहीं रहती है।
निष्कासन
अगर आरोप सिद्ध होता है तो शासकीय सेवक को निष्कासन का दण्ड दिया जाता है तो उसकी सेवा समाप्त हो जाती है। निष्कासन की तिथि से शासकीय सेवक को किसी वेतन या भत्ता पाने की पात्रता नहीं रहती है।
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