भाषा शिक्षा शास्त्र || बालकों को भाषा सिखाने हेतु महत्वपूर्ण तथ्य || भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(1) भाषा सीखने की प्रवृत्तियाँ- भाषा सीखने की कुछ प्रवृतियाँ होती है जैसे-
(i) जिज्ञासा
(ii) अनुकरण और
(iii) अभ्यास
एक शिक्षक को यह जानना आवश्यक है कि एक बच्चे में उपरोक्त बातें अर्थात जिज्ञासा, अनुकरण क्षमता और अभ्यास करने का गुण निहित है या नहीं। यदि किसी बालक में जिज्ञासा नहीं है तो उस बालक में शिक्षक को जिज्ञासा जागृत करनी होगी। अर्थात् शिक्षक को ऐसे साधन जैसे कि खेल, गतिविधियाँ आदि के माध्यम से सीखने के लिए तैयार करना होगा।
(2) बालक के पूर्व भाषा ज्ञान का आंकलन - बालक को भाषा सिखाने के पहले उसमें देखना होगा कि उसे 'मानक भाषा' का पूर्व ज्ञान कितना है। जब शिक्षक देख ले कि बालक में ज्ञान कितना है, उसी आधार पर उसे आगे का ज्ञान कराये।
(3) विद्यालय के प्रति लगाव पैदा करना- एक बालक में विद्यालय के प्रति लगाव के बगैर भाषा ज्ञान कराना असंभव है। अतः शिक्षक कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे बालक का मन विद्यालय में लग जाये। एक बालक का मन विद्यालय में तभी लग सकता है जब शिक्षक बालक से आत्मीय एवं प्रेंम का सम्बंध बना ले।
(4) बालक को प्रोत्साहित करना - बालक को भाषा ज्ञान कराने के लिए प्रोत्साहित करना अति आवश्यक है। बालक जब कोई बात कहे या कुछ बोलने का प्रयास करे तो उसे प्रोत्साहित किया जाना अति आवश्यक है।
(5) आनन्ददायक खेल एवं गतिविधियाँ - एक बालक को भाषा सिखाने के लिए शिक्षक को आनन्ददायक गतिविधियों एवं खेलों का आयोजन करना चाहिए। बच्चे खेल खेलना अधिक पसंद करते हैं। खेलों या गतिविधियों के माध्यम से शिक्षक भाषा के अनेक शब्द बच्चों को सिखा सकते हैं। गतिविधियों के माध्यम से शिक्षक सबसे पहले अक्षर, शब्द फिर वाक्य की सिखाना चाहिए।
(6) शिक्षक का प्रस्तुतीकरण एवं अभिव्यक्ति- बालकों को भाषा सिखाना शिक्षक की अभिव्यक्ति एवं उसके प्रस्तुतिकरण पर निर्भर करता है। यदि शिक्षक स्पष्ट, सरल, बोधगम्य एवं सरस ढंग से यदि बच्चों को सिखाने में असमर्थ रहता है के बच्चों के भाषा सिखाने में गति प्रदान नहीं की जा सकती। अतः शिक्षक की अभिव्यक्ति एवं प्रस्तुतीकरण उत्कृष्ट होना चाहिए।
बालक के भाषा विकास को प्रभावित करने वाले तत्व (कारक) -
(1) बालक का परिवार
(2) बालक का परिवेश
(3) बालक का वाणीदोष जैसे कि हल्लाना, तुतलाना
(4) बालक की मनोवृति एवं आदतें - जैसे कि कम बोलना
(5) बालक का -स्वास्थ्य
(6) बालक की सांवेगिकता
(7) बालक की बुद्धिलब्धि एवं मानसिक श्रेष्ठता
(8) विद्यालय एवं शिक्षक
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एक शिक्षक द्वारा भाषा सिखाने हेतु अपनाई जा सकने वाली क्रियाविधि या पद्धतियाँ-
वैसे तो बालक भाषा का ज्ञान अनुकरण करके ही प्राप्त करते हैं परन्तु प्रत्येक भाषा का ज्ञान अनुकरण करके नहीं सीखा जा सकता है क्योंकि बालक के परिवार में या परिवेश में प्रत्येक भाषा नहीं बोली जाती। प्राय: परिवार में बालक की मातृभाषा बोली जाती है एवं विद्यालय में मानक भाषा जैसे हिन्दी, मराठी, उर्दू या अंग्रेजी कोई एक बोली जाती है। ऐसी परिस्थिति में बालक केवल अनुकरण करके उन भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर पाता है जो उसे उसके परिवेश में बोली जाती है।
देश के अधिकांशतः प्रदेशों के विद्यालयों में मानक भाषा हिन्दी द्वारा ही अध्यापन कार्य या अपने मनो-भावों का सम्प्रेषण में किया जाता है। अतः बालक को एक शिक्षक द्वारा हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी, उर्दू या संस्कृत का ज्ञान कराना आवश्यक होता है। चूँकि बालक प्रारंभ में विद्यालय आता है तो केवल वह अपनी मातृभाषा से परिचित होता है। अत: शिक्षक को उसे हिन्दी भाषा का ज्ञान कराना भी आवश्यक है।
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भाषा सिखाने हेतु खेल एवं गतिविधियों का प्रयोग
(1) खेल कराना - प्रारम्भ में शिक्षक को कोई खेल खिलाना चाहिए। खेल ऐसा होना जिसमें बालक को बोलने की आवश्यकता पड़े। अत: ऐसे खेलों से बच्चों को शब्दों व वाक्यों की जानकारी होगी। उदाहरण के लिए 'नदी व पहाड़' का खेल जिसमें बच्चों को बोलकर खेलने की आवश्यकता पड़ती है। जैसे कि बच्चे बोलते हैं "तेरी नदी में कपड़ा धोऊ" या तेरे "पहाड़ की लकड़ी काटू" इन वाक्यों से बालक कितने सारे शब्द सीख सकते हैं। इसी तरह के अन्य 'खेल' है जिसके माध्यम से बच्चों को भाषा ज्ञान कराया जा सकता है।
(2) गतिविधियाँ - बालकों को भाषा ज्ञान कराये जाने का सबसे सशक्त माध्यम हैं गतिविधियाँ। भाषा सिखाने के लिए कई तरह की गतिविधियाँ हैं। जैसे - बताओ मैं कौन हूँ? (पहेली), चित्र देखो और नाम बोलो, सुनो और दोहराओ, परिचय, विविध खेल, कहानी, कविता या गीत, नाटक, वर्णन (घटना / वस्तु / परिस्थिति) सहचिंतन चर्चा या बहस, चित्र कार्ड आदि कक्षा एक व दो के लिए उपयोगी होती हैं। इसी तरह कक्षा 3,4,5 में उपरोक्त गतिविधियों के अलावा समानार्थी, विपरितार्थी, पर्यायवाची आदि में गतिविधियाँ कराकर भाषा सिखाना आसान होता है।
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R F Temre
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