अध्याय-2 विकास क्या है? इसकी परिभाषा || विकास के आयाम (पहलू) || शिक्षक चयन परीक्षाओं (CTET / TET) हेतु || What is development?
मनुष्य सजीव प्राणी है। सजीव या जीवित प्राणी अपने जीवन प्रसार में सक्रीय बने रहने के लिए, निरन्तर गतिशील रहता है। जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में नये नये गुणों का आविर्भाव और पुरानी विशेषताओं का लोप होता रहता है। इस प्रक्रिया में निरन्तर परिवर्तन होते रहता है जिसके अन्तर्गत शारीरिक एवं मानसिक गुणों तथा विशेषताओं की नियमित उत्पत्ति देखी जाती है, इसे ही विकास कहा जाता है।
विकास के पक्ष या आयाम
बच्चे के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में हमें निम्न लिखित रूपों या पहलुओं में गति करता हुआ दिखाई देता है। या हम यूँ कहें कि बालक के विकास के निम्नलिखित पक्ष या आयाम हैं -
(१) शारीरिक विकास
(२) गामक विकास
(३) मानसिक विकास
(४) संवेगात्मक विकास
(५) भाषा विकास
(६) नैतिक विकास
(७) सामाजिक विकास
(८) मूल्य परक विकास
(९) सृजनात्मक विकास
(१०) सौन्दर्य विकास
बालक का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक संवेदनात्मक, भाषीय एवं मूल्य परक विकास अलग अलग रूप में प्रस्तुत किया है। बालक की शारीरिक विकास प्रक्रिया में अनेक आन्तरिक या बाह्य अंगों तथा मांस-पेशियों का विकास होता है। मानसिक विकास की प्रक्रिया को जटिल प्रक्रिया माना जाता है। जिसे अलग से सुनिश्चित कर पाना सम्भव नहीं है। अनुसंधानों पर आधारित मानदण्डों के आधार पर मानसिक विकास का पता चलता है। संवेगात्मक विकास के अंतर्गत संवेगों का बालक के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। जो व्यक्ति के अस्तित्व को संतुलित बनाते हैं। संवेगात्मक असंतुलन से बालक में अनेक मानसिक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। सामाजिक विकास वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति बदलती परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है और अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध बनाता है। भाषा बुद्धि के उपयोग और तर्क का एक माध्यम है। मूल्यपरक विकास बालक के सामाजिक नैतिक मूल्यों की विवेचना करता है। विकास का अर्थ विकास एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त अविराम गति से प्रवाहित होती रहती है। विकास मात्र शारीरिक वृद्धि (growth) की ओर संकेत नहीं करता वरन् इसके अन्तरर्गत वे सभी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक परिवर्तन सम्मिलित होते हैं जो गर्भकाल से निरन्तर चलते रहते हैं। मृत्यु तक सफर में निरन्तर चलते रहते हैं।
विकास की परिभाषा
विकास को परिभाषित करते हुए ई.बी. हरलॉक कहते हैं- "विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन 'व्यवस्थित' तथा 'समनुगत' परिवर्तन है जिसमें कि प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगति शील क्रम निहित रहता है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ व योग्यताएँ प्रकट होती हैं।"
हरलॉक की परिभाषा के अनुसार विकास व्यवस्थित तथा समनुगत परिवर्तन है अर्थात् एक पक्ष में न होकर सभी पक्षों में समान व व्यवस्थित परिवर्तन विकास की सहीरूप में व्याख्या करते हैं।
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R. F. Tembhre
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