भाषा शिक्षण के सिद्धांत || Principles of Language Teaching || CTET and TET Exams
बालक पाँच या छः वर्ष की आयु में अपने घर से सीधे विद्यालय आता है। इस समय बालक केवल अपनी मातृभाषा जानता है जो कि एक बोली भी हो सकती है। अतः शिक्षक का दायित्व बनता है कि वह बालक को मानक भाषा सिखाये। बालक को हिन्दी भाषा के अतिरिक्त संस्कृत एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी कराना आवश्यक है। शिक्षक को भाषा के अध्यापन कराने हेतु भाषा शिक्षण के सिद्धांत (Principles of Language teaching) का पालन करते हुए इनका प्रयोग करना चाहिए।
भाषा शिक्षा के सिद्धांत-
(Principles of Language teaching)
भाषा शिक्षण के सिद्धांत निम्न लिखित हैं-
(1) इन्द्रियों द्वारा सिखाने का सिद्धांत।
(2) क्रिया- द्वारा सिखाने का सिद्धांत।
(3) मूर्त से अमूर्त की ओर लेकर सिखाने का सिध्दांत।
(4) आगमन विधि से सिखाने का सिद्धांत।
(5) विषय वस्तु के आकर्षण पैदा करके सिखाने का सिद्धांत।
(6) प्रकृति अनुसरण का सिद्धांत।
(7) अभिप्रेरणा का सिद्धांत।
(8) अनुकरण का सिद्धांत।
(9) अवसर देकर सिखाने का सिद्धांत।
(10) परिस्थिति निर्मित कर सिखाने का सिद्धांत।
(11) अभ्यास का सिद्धांत।
(12) व्यक्तिगत तौर पर सिखाने का सिद्धांत।
(13) स्वाभाविकता का सिद्धांत।
(14) उत्प्रेरणम या रूचि का सिद्धांत।
(15) उपयुक्त क्रम का सिद्धांत।
(1) इन्द्रियों द्वारा सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of learning by senses)
इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षक द्वारा सबसे पहले जिह्वा अर्थात मुख एवं कान का प्रयोग सुनना एवं बोलना के द्वारा भाषा का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात आंँखें एवं हाथों का प्रयोग देखकर लिखने के लिए बालक को प्रेरित किया जाता है।
(2) क्रिया (क्रिया-कलाप) से सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of learning by doing)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक को भाषा चाहे अंग्रेजी हो, हिन्दी हो या संस्कृत को सिखाने के लिए उसे स्वयं बोलकर सीखने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस विधि में शिक्षक जिस प्रकार बोलता है उसी तरह स्वयं बोलने का अभ्यास करके बालक सीखता है।
(3) मूर्त से अमूर्त की ओर सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of proceed from the concreat to abstract)
इस सिध्दांत के अनुसार बालक को भाषा ज्ञान कराने के लिए पहले मूर्त अर्थात जिन वस्तुओं की आकृति (आकार प्रकार) होती है उनके बारे में अभिव्यक्ति करना सिखाया जाता है। इस तरह बालक का शब्द भंडार बढ़ता जाता है। बाद में बालक के शब्द भण्डार बढ़ाने हेतु भाव प्रधान अर्थात अमूर्त बातों की अभिव्यक्ति का अवसर दिये जाते हैं।
(4) आगमन विधि से सिखाने का सिध्दांत-
Principle of inductive method)
इस सिद्धांतानुसार बालकों को व्याकरण आदि के नियम व बताकर ऐसे बहुत सारे उदाहरण उसके सामने रखे जाते हैं जिससे बालकों के समक्ष उदाहरणों से नियम अपने आप बन जाते हैं।
(5) विषय-वस्तु में आकर्षण पैदा कर सिखाने का सिध्दांत-
(Principle of making a subject matter interesting and atbrctive)
इस सिध्दांत के अनुसार बालकों को भाषा का अध्यापन कराने हेतु किसी भी भाषा की विषय वस्तु चाहे लोकोक्ति-मुहावरे हों चाहे प्रत्यय-उपसर्ग लगाकर नये शब्द निर्माण की बात हो, विषयवस्तु में आकर्षण पैदा कर उसे रुचिकर बनाकर पढ़ाया जाता है तो बालक शीघ्र सीखने लगता है।
(6) प्रकृति अनुशरण का सिध्दांत-
(Principle of follow the nature)
हम देखते हैं कि बालक अपनी मातृभाषा स्वतः ही सीख जाता है अर्थात उसके घर का वातावरण प्राकृतिक रूप से उसी प्रकार होता है एवं घर के सभी सदस्य एक ही भाषा का प्रयोग करते हैं इसलिए बालक अनुकरण के माध्यम से शीघ्र ही वह भाषा सीख जाता है। यदि हम बालक को जिस किसी भी भाषा को सिखाना चाहते हों उस भाषा के वातावरण का निर्माण घर या विद्यालय में प्राकृतिक रूप से होना चाहिए। उस भाषा का प्रयोग सामान्यतः बोलने में होना चाहिए जिससे बालक स्वतः प्राकृतिक रूप से अनुसरण करके सीख जायेगा।
(7) अभिप्रेरणा का सिद्धांत-
(Principle of motivation)
किसी भी बालक को किसी भी कार्य में दक्ष किया जा सकता है यदि उसे किसी के द्वारा अभिप्रेरित या उत्प्रेरित किया जाये। यही बात भाषा सीखने पर भी लागू होती है। यदि आप बालक को संस्कृत, अंग्रेजी या हिन्दी आदि में से किसी भी भाषा सिखाना चाहते हैं तो आप विषय की किसी भी विषय वस्तु को सिखाने के लिए बालक को प्रेरित करें, बालक अवश्य ही सीख जाता है।
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1. What are language and mother tongue? Definitions
2. Language learning tendencies - Curiosity, Simulation and Practice, Pedagogy of Language
3. Language skills - Basis of writing and communication Required competencies for language knowledge
(8) अनुकरण का सिद्धांत-
(Principle of imitation)
"A child learns his mother-tongue easily by way of imitation. So the Hindi, English or Sanskrit languages should be taught to boy on the same principle."
(एक बालक सामान्य रूप से अनुकरण करके अपनी मातृभाषा सरलता से सीखता है। इस तरह हिन्दी, अंग्रेजी या संस्कृत भाषा को इस सिद्धांत के द्वारा सिखाया जाना चाहिए।)
अनुकरण करके बच्चा सबसे ज्यादा सीखता है शर्त यह है कि शिक्षक स्वयं उस भाषा में दक्ष हो एवं वह स्वयं भाषा का प्रयोग सदैव करता हो।
(9) अवसर प्रदान कर सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of giving opportunities)
बालक भाषा या भाषा की किसी विषयवस्तु को शीघ्र सीखने का प्रयत्न करता है यदि उसे पर्याप्त अवसर (opportunities) दिये जाते हैं। शिक्षक को अपनी कक्षा में अपनी मातृभाषा मे बोलने का पूरा अवसर प्रदान करना चाहिए एवं उस भाषा से अंग्रेजी या संस्कृत के शब्दों को कि वह सीख रहा है उनको बोलने का अवसर देना चाहिए।
(10) परिस्थिति निर्मित कर सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of making situation for learning)
इस सिद्धांत के अनुसार यदि शिक्षक किसी भाषा को सिखाना चाहता है तो उसे अपने विद्यालय में भाषा ग्रहण करने से सम्बंधित परिस्थितियाँ निर्मित करना होगा ताकि बालक भाषा को सीख सके। मातृभाषा बालक आसानी से सीख लेता है क्योंकि घर में इस तरह की परिस्थितियाँ होती हैं। घर की अनेक वस्तुओं के बारे में सभी सदस्य अपने भाव व्यक्त करते हैं, बालक भी उनका अनुकरण करके अपना सम्प्रेषण करना शुरू कर देता है। उदाहरण के लिए यदि हम अंग्रेजी भाषा सिखाना चाहते हैं तो हमें अंग्रेजी बोलने के लिए परिस्थिति का निर्माण करना होगा।
(11) अभ्यास का सिध्दांत-
(Principle of Exercise)
बालक किसी भी भाषा को अभ्यास के द्वारा बड़ी आसानी से सीख सकता है। यदि शिक्षक भाषा की अलग-अलग विषय वस्तु हेतु अभ्यास के लिए बालकों को कार्य दे। यदि अंग्रेजी या संस्कृत भाषा सिखाना हो तो बालक को अपने दैनिक जीवन में इन भाषाओं के वाक्यों को बोलकर अभ्यास कार्य कर भाषा आसानी से सिखाया जा सकता है।
(12) व्यक्तिगत तौर पर सिखाने का सिद्धांत-
(Principle of personally Teaching)
यह बात सर्वमान्य है कि प्रत्येक व्यक्ति में सीखने का स्तर अलग-अलग होता है। अत: बालकों में ये भिन्नताओं के कारण शिक्षक बालकों को व्यक्तिगत तौर पर सिखाने का कार्य करता है जिससे बालक भाषा की विविध विषय वस्तु जैसे लोकोक्ति, मुहावरे, विराम चिह्न प्रयोग, वर्तनी शुद्धता आदि का आसानी से व्यक्तिगत त्रुटि को दूर करते हुए सीख सकते हैं।
(13) स्वाभाविकता का सिद्धांत-
(Naturality principle)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक स्वाभाविक रूप से सीखता है उसे सिखाने में शिक्षक मदद अवश्य करता है। जैसे घर में बालक पहले 'रोटी' को 'लोती' या पानी को 'मम' कहता है परन्तु धीरे-धीरे परिवार के बीच स्वाभाविक रूप से वह शुद्ध शब्द बोलना सीख जाता है। विद्यालय में शिक्षक द्वारा बालकों को स्वाभाविक रूप से सीखने का अवसर देना चाहिए। बालक की मातृभाषा में सबसे पहले वह वाक्यों के माध्यम से अपने भावों को व्यक्त करता है फिर शब्दों को जानता है। उसी तरह जब बालक प्रारम्भ में विद्यालय आता है तो उसे भाषा के वाक्यों को सिखाया जाना चाहिए फिर शब्द व अन्त में वर्ण आदि। यही क्रम सिखाने के लिए उपयोगी है।
(14) उत्प्रेरणा या रूचि का सिद्धांत-
(Principle of Stimnlas)
इस सिद्धांत के अनुसार बालक को किसी कार्य को करने लिए अभिप्रेरित या उत्प्रेरित किया जाता है। यदि बालक को सामान्य रूप से कोई कार्य करने को कहें तो वह करने में रूचि नहीं लेता परन्तु जब उसे उत्प्रेरित किया जाता है तो वह कार्य रूचि के साथ करने लगता है। उदाहरण के तौर पर जब हम बच्चों को ग्राउन्ड का कचरा फेंकने के कहते हैं तो वह रूचि के साथ नहीं फेंकता परन्तु जब यह कहा जाता है कि देखते हैं कौन सबसे ज्यादा कचरा फेंकता तो सभी बालक शीघ्र काम में जुट जाते हैं।इसी तरह भाषा सिखाने हेतु बालकों को उत्प्रेरित किया जाना चाहिए।
(15) उपयुक्त क्रम का सिद्धांत-
(Principle of serial)
उपयुक्त क्रम के सिद्धांतानुसार बालक को भाषा की अर्थ ग्राहता कराते हैं तब बालक भाव प्रकाशन या अभिव्यक्ति करता है। यदि हम भाषा सिखाने के उपयुक्त क्रम का ध्यान रखकर अध्यापन कराते हैं तो बालक की पकड़ शीघ्र ही भाषा के उपर हो जाती है।
इस तरह से उपर्युक्त भाषा शिक्षण के सिद्धांतों का पालन करके एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों में भाषा शिक्षण में चार चाँद लगा सकता है।
हिन्दी भाषा एवं इसका शिक्षा शास्त्र के इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
1. भाषा सीखना और ग्रहणशीलता - भाषा और मातृभाषा क्या हैं? परिभाषाएँ
2. भाषा शिक्षा शास्त्र, बालकों को भाषा सिखाने हेतु महत्वपूर्ण तथ्य
3. भाषा की दक्षताएँ, लेखन एवं भाव संप्रेषण के आधार, भाषा सीखना एवं सुधार
4. भाषा ग्रहणशीलता एवं भाषा ग्रहणशीलता के तत्व- भाषा ग्रहणशीलता को प्रभावित करने वाले कारक
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R F Temre
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