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गामक विकास (Dynamical Development) परिभाषा एवं विशेषताएँ || गामक विकास को प्रभावित करने वाले कारक || Child Development and Pedagogy

गामक विकास

गामक विकास शारीरिक विकास से ही जुड़ा एक प्रत्यय है। इसके अन्तर्गत मांस-पेशियों एवं हड्डियों की सक्षमता के साथ-साथ उनपर नियन्त्रण शामिल है। गामक विकास का तात्पर्य बालकों की मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओं के समन्वित (मिलजुलकर) कार्य द्वारा अपनी शारीरिक क्रियाओं पर पूर्ण नियन्त्रण प्राप्त करना है। बच्चा जन्म के बाद अपने हाथ-पैर हिलाने-डुलाने लगता है। अवस्था बढ़ने के साथ-साथ शरीर तथा अन्य अंगों को गतिमान करने के साथ विभिन्न क्रियाओं को करने के कौशलों को प्राप्त करता है। जैसे - चलना, कूदना, सीढ़ी चढ़ना, भोजन करना, कपड़े पहनना इत्यादि। इस तरह आयु बढ़ने के साथ-साथ बच्चों द्वारा अपने अंगों के संचालन की क्रिया और उसमें होने वाले प्रगतिशील एवं अपेक्षित परिवर्तन को गामक विकास कहते है।

गामक विकास में शरीर के अंगों, मांसपेशियों तथा स्नायुमंडल की शक्तियों एवं क्रियाशीलता अथवा क्षमता की समन्वित व्याख्या की जाती है। इस विकास में गामक तथा क्रियात्मक योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास सम्मिलित होता है। बच्चों के शाला पूर्व गति, बल और समन्वय में वृद्धि के कारण विशिष्ट होते हैं। इस समय बच्चों की हड्डियाँ मुलायम और शरीर लचीला होता है, जिससे वे अधिक से अधिक कौशल सीखने में समर्थ होते हैं। बच्चे कई तरह के शारीरिक अभ्यासों में भाग लेते हैं और अन्य बच्चों के साथ अधिकतम अन्तःक्रियाएँ करते हैं। उनके शारीरिक और क्रियात्मक कौशल उन्हें अधिक स्वतन्त्र बनाते हैं और इन कौशलों के प्रयोग से बच्चे अपने वातावरण को समझ पाते हैं। गामक विकास कौशलों के विकास से पूर्ण होता है और यह शारीरिक विकास के अच्छी तरह से होने पर ही सही सम्भव हो पाता है।

परिभाषाएँ

क्रो एवं क्रो
"स्नायुमंडल तथा मांस पेशियों की क्रियाओं के समीकरण द्वारा जो शारीरिक क्रियाकलाप संभव हो सकता है उन्हें गामक क्रियाएँ कहते हैं। गामक क्रियाओं में गतिशीलता एवं उसका ठीक-ठीक होना भी सम्मिलित है।"

ई. बी. हरलाक
"गामक विकास से अभिप्राय है मांसपेशियों की उन गतिविधियों का नियन्त्रण, जो जन्म के समय के पश्चात् निरर्थक एवं अनिश्चित होती है।"

जेम्स ड्रेवर
"क्रियात्मक विकास का सम्बन्ध उन सरंचना और कार्यों से है जो मांसपेशियों की क्रियाओं से सम्बन्धित है अथवा इसका सम्बन्ध जीव की उस प्रतिक्रिया से है जो वह किसी परिस्थिति के प्रति करता है।"

गैरिसन
"शक्ति, अंग-सामंजस्य तथा गति का और हाँथ,पैर एवं शरीर की अन्य मांसपेशियों के ठीक-ठाक उपयोग का विकास बालक के, सम्पूर्ण विकास की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।"

डॉ . वर्मा एवं उपाध्याय
"बालक की क्रियाएँ करने की क्षमता के विकास को ही क्रियात्मक विकास कहते हैं।"

कार्ल सी. गेरिसन
"शक्ति, अंग-सामंजस्य तथा गति और हाथ पैर तथा शरीर की अन्य मांसपेशिष्यों के ठीक-ठाक उपयोग का विकास उसके पूरे विकास की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।"

गामक विकास की विशेषताएँ

थॉमसन के अनुसार-
विशिष्ट प्रवृतियाँ -
आरंभ में सम्पूर्ण शरीर गति करता है। लेकिन धीरे-धीरे विशेष पेशी व पेशीय-समूह ही सही समय पर गति करता है। दूसरे शब्दों में बच्चे की पेशी प्रतिक्रिया कम से कम अनुकूलित होती जाती है।

बड़ी से छोटी पेशी की ओर - आयु बढ़ने के साथ बालक का सबसे पहले संभावित समन्वित नियन्त्रण बड़े पेशीय समूह पर स्थापित होता है।

शरीर से नीचे की ओर - गामक विकास में विकास की दिशा का एक नियम है। सबसे पहले सिर के भाग में नियन्त्रण दिखाई पड़ता है तथा क्रमशः धड़ में नीचे की ओर अवनत होता हुआ पैरों तक पहुँचता है। उदाहरण के लिए जन्म के एक सप्ताह बाद बच्चा अपना सिर उठाने लगता है लेकिन एक वर्ष पूरा होने के बाद ही अपने पैरों पर खड़ा हो पाता है। गामक विकास इससे पहले उन ढाँचो में होता है जो प्रमुख दूरी के अति निकट है और इसके बाद ही दूरस्थ अंगों में होता है। उदाहरण के लिए पेशीय नियन्त्रण सबसे पहले भुजाओं में और उसके बाद उंगलियों में होता है।

द्विपक्षीय से एक पक्षीय प्रवृत्ति - चाल शक्ति समन्वयन के निबन्धन में बच्चा परिपक्व बनता है तथा व्यक्तित्व रुचि क्रमशः गामक कौशल में एकपक्षीय कार्यकारिणी का मार्ग बनाता है। हाथ को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति से इसको समझा जा सकता है। आयु बढ़ने के साथ बच्चा अपने एक हाथ का लगातार प्रयोग करता है।

पेशियों के अधिकतम कार्य की न्यूनतम कार्य की ओर बढ़ने की प्रवृत्ति - परिपक्व होने के साथ ही बच्चा पेशी से कार्य अधिक करने लगता है। बड़ी मात्रा में पेशी का प्रयोजन निश्प्रयोजन कार्य आरंभ होता है और बाद में पेशीय शक्ति को वह अधिक से अधिक खर्च करने लगता है। जब बच्चा चलना सीखता है तो पेशी की गति बहुत तीव्र होती है। नए गामक कौशल में प्रवीण बनने का प्रयास करते समय बच्चों में आतुरता और जल्दबाजी प्रत्यक्ष देखी जा सकती हैं।

सामान्य क्रमिकता - बच्चों में गामक के विकास में एक क्रमिक व्यवस्था दिखाई पड़ती है। सबसे पहले आँखों का संतुलन बनता है, इसके पश्चात सिर भाग की मुद्रा में नियन्त्रण और बाद में क्रमशः भाग में नियन्त्रण स्थापित होता है। इसके पश्चात टाँगो की गति में अंतिम नियन्त्रण स्थापित होने पर बच्चा सरकना, कोहनी के बल चलना, खड़ा होना और चलना सीखता है। इस कथन की पुष्टि हरलॉक ने इस तरह की है कि सिर भाग में गामक विकास सबसे पहले होता है, इसके पश्चात भुजाओं और हाथों तथा अन्त में टाँगों की गामक शक्ति का विकास होता है।

इस तरह कई पहलुओं में गामक विकास सुनिश्चित क्रम को अपनाता है, किन्तु कुछ व्यक्तिगत भिन्नता इस बात का सच है कि कुछ बच्चे इसके श्रेणी क्रम में कुछ सोपानो को छलांग मारकर पार कर जाते हैं और कुछ अन्य पेशियों के गति करने के अवसर कम मिलने कारण अपने हाथों पर नियन्त्रण बहुत समय बाद प्राप्त कर पाते हैं। कुछ ऐसे ही होता है जो प्रेरित और उत्साहित किए जाने पर समय से भी पहले पेशी नियन्त्रण की क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। स्वास्थ्य, आहार आदि कुछ ऐसे कारक है जो बालकों के गामक विकास में अंतर कर देता है।

गामक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

गामक विकास को प्रभावित करने वाले वे ही कारक हैं जो शारीरिक विकास को प्रभावित करते हैं।
जैसे - वंशानुक्रम, वातावरण, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, पौष्टिक भोजन, अनियमित दिनचर्या, निद्रा एवं विश्राम, प्रेंम सहानुभूति एवं सुरक्षा, खेल तथा व्यायाम, रोग एवं दुर्घटनाएँ, जलवायु, कुरितियाँ एवं परम्पराएँ, अंतःस्रावी ग्रंथियां, लिंग, प्रजाति आदि।
इसके अतिरिक्त देखें तो विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, रचनात्मक कार्य, बालक की सहभागिता, उपयुक्त माहौल, अवसरों की प्राप्ति आदि अनेक ऐसे तत्व है जो बालक के गामक विकास को प्रभावित करते हैं।
नीचे महत्वपूर्ण कारकों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।

वंशानुक्रम - बालक के गामक विकास पर उसके माता-पिता तथा पूर्वजों की शारीरिक बनावट एवं उनके स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है।

गर्भावस्था की दशाएँ - बालक के गामक शक्तियों का विकास गर्भावस्था की दशाओं पर निर्भर करता है। गर्भावस्था भ्रूण में विकार आने से उसकी गामक शक्तियों में क्षीणता आ जाती है। माता-पिता के खान-पान, स्वास्थ्य तथा शारीरिक दशाओं का भ्रूण के विकास पर प्रभाव पड़ सकता है जो उसके गामक विकास को प्रभावित करता है।

शारीरिक विकास की दशाएँ - बालक की हड्डियों, मांसपेशियों तथा स्नायु-तंत्र का सामान्य रूप से विकास होता है तो उसका गामक विकास सामान्य रूप से संभव होगा। क्योंकि इन्हीं कारकों पर गामक विकास निर्भर करता है।

खान-पान एवं आहार - बालक का खान-पान तथा आहार उसके गामक विकास को प्रभावित करते हैं। खान-पान अथवा आहार वह ऊर्जा प्रदान करती है, जिससे उसके अंगों तथा मांस-पेशियों में गति तथा वेग उत्पन्न हो सके। गामक विकास हेतु पौष्टिक एवं संतुलित आहार आवश्यक है, जिससे उसके शरीर के अंग तथा मांसपेशियों हृष्ट पुष्ट हो सके।

व्यायाम - बालक के गामक विकास पर व्यायाम एवं खेलकूद तथा मालिश आदि का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे प्रत्येक आयु में उसके अंग-प्रत्यंग, मांसपेशियों तथा स्नायु-तंत्र स्फूर्तिवान तथा संचालित रहते हैं तथा दृढ़ता प्रदान करते हैं। इसलिए जन्म के उपरान्त से ही शिशु को तेल मालिश और व्यायाम कराया जाता है। खेल कूद और शारीरिक कार्य भी व्यायाम का ही रूप है।

स्वास्थ्य - बालक के स्वास्थ्य का उसके गामक विकास पर प्रभाव पड़ता है। अस्वस्थ अथवा रोगी बालक कार्य करने में सक्षम नहीं होता, जिससे उसके अंग माँसपेशियाँ तथा स्नायु-तंत्र शिथिल हो जाते हैं। अतः उसका गामक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

परिपक्वता - बालक की विभिन्न गुणों के विकास की परिपक्वता का उसके गामक विकास पर प्रभाव पड़ता है। यदि किसी गामक क्रिया हेतु, उसके शारीरिक या मानसिक गुण एक विशेष स्थिति में परिपक्व नहीं हो जाते तो वह काम क्रिया को नहीं करसकते। जैसे - चलने के लिए आवश्यक है कि शिशु के पैर की हड्डियाँ इतनी परिपक्व एवं मजबूत हों कि वह शरीर का भार संभाल सके।

अधिगम - अधिगम का भी प्रभाव बालक के गामक विकास पर पड़ता है। बालक विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के प्रति समायोजन स्थापित करने का प्रयास करता है। और सफलता प्राप्त करने हेतु गामक कुशलता अर्जित करता है। बालक प्रायः सभी क्रियात्मक कार्यों को करना सीखता है, इसके लिए वह किसी कार्य को करने का अभ्यास करता है तथा त्रुटियों को सुधारता है। गामक कौशल के विकास में अनुदेश, प्रदर्शन तथा शिक्षण आदि का प्रभाव पड़ता है। जिनका संबंध अधिगम से ही होता है।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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