शाकंभरी का चौहान वंश- अजयराज, विग्रहराज चतुर्थ (वीसलदेव), पृथ्वीराज || Chauhan Dynasty Of Shakambhari - Ajayraj, Vigraharaj (Visaldev), Prithviraj
7वीं शताब्दी के दौरान वासुदेव ने शाकंभरी में चौहान वंश की स्थापना की थी। शाकंभरी नगर सांभर और अजमेर के निकट अवस्थित है। चौहान शासकों का प्राचीन भारत के इतिहास में विशेष महत्व है। इन शासकों के प्रारंभिक इतिहास और वंशावली की जानकारी हमें विग्रहराज-II के हर्ष प्रस्तर अभिलेख से मिलती है। इसके अलावा सोमेश्वर के बिजौलिया प्रस्तर लेख से भी चौहानों के इतिहास को जाना जा सकता है। चौहान शासक, प्रतिहार शासकों के सामंत थे। 10वीं शताब्दी की शुरूआत में वाक्पतिराज प्रथम ने प्रतिहारों से अपने को स्वतंत्र कर लिया। इसके बाद चौहानों ने अपनी स्वयं की सत्ता स्थापित कर ली।
During the 7th century, Vasudev established the Chauhan dynasty at Shakambhari. Shakambhari Nagar is located near Sambhar and Ajmer. Chauhan rulers have special importance in the history of ancient India. We get information about the early history and genealogy of these rulers from the Harsha stone inscription of Vigraharaj-II. Apart from this, the history of Chauhans can also be known from the Bijolia stone inscription of Someshwar. The Chauhan rulers were feudatories of the Pratihara rulers. In the beginning of the 10th century, Vakpatiraja I freed himself from the Pratiharas. After this the Chauhans established their own power.
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चौहान वंश के प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं–
1. अजयराज
2. विग्रहराज चतुर्थ (वीसलदेव)
3. पृथ्वीराज तृतीय।
The following are the main rulers of Chauhan dynasty–
1. Ajayraj
2. Vigraharaj IV (Visaldev)
3. Prithviraj III.
अजयराज (Ajayraj)
अजयराज चौहान वंश के प्रमुख शासक थे। उन्होंने 12वीं शताब्दी से शासन करना प्रारम्भ किया था। उनके पिता का नाम पृथ्वीराज प्रथम था। अजयराज ने अजमेर नामक नगर की स्थापना की थी। उन्होंने अजमेर को ही अपने राज्य की राजधानी बनाया था। अजयराज के बाद उनके पुत्र अर्णोराज ने शासन किया। अर्णोराज चौहान वंश का महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अजमेर के पास सुल्तान महमूद की सेना को युद्ध में पराजित किया था।
Ajayraj was the chief ruler of Chauhan dynasty. They started ruling from the 12th century. His father's name was Prithviraj I. Ajairaj founded a city named Ajmer. He made Ajmer the capital of his kingdom. Ajayraj was followed by his son Arnoraj. Arnoraj was an important ruler of the Chauhan dynasty. He defeated Sultan Mahmud's army in a battle near Ajmer.
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विग्रहराज चतुर्थ (वीसलदेव) [Vigraharaj IV (Visaldev)]
विग्रहराज चतुर्थ ने 1153 ई. से 1163 ई. तक शासन किया था। उन्होंने तोमर शासकों को युद्ध में पराजित कर उनकी स्वाधीनता समाप्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने तोमरों को अपना सामंत बना लिया। वीसलदेव एक बहुत बड़े विजेता थे। इसके साथ ही वे यशस्वी कवि और लेखक भी थे। उन्होंने 'हरिकेल' नामक एक संस्कृत नाटक की रचना की थी। इस नाटक के कुछ अंश 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' मस्जिद की दीवारों पर उत्कीर्ण किये गये हैं। वीसलदेव ने अजमेर में देवी सरस्वती के मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्होंने सोमदेव को संरक्षण प्रदान किया था। सोमदेव ने कथासरित्सागर की रचना की थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने वीसलदेव के सम्मान में 'ललितविग्रहराज' नामक ग्रंथ की रचना भी की थी।
Vigraharaj IV ruled from 1153 AD to 1163 AD. He defeated the Tomar rulers in the war and ended their independence. After this he made the Tomars his feudatories. Visaldev was a huge conqueror. Along with this, he was also a successful poet and writer. He composed a Sanskrit play called 'Harikel'. Some excerpts of this play 'Adhai din ka Jhonpra' have been engraved on the walls of the mosque. Visaldev got the temple of Goddess Saraswati built in Ajmer. He had given protection to Somdev. Somdev composed Kathasaritsagara. Apart from this, he also composed a treatise named 'Lalitvigraharaj' in honor of Visaldev.
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पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान) [Prithviraj III (Prithviraj Chauhan)]
पृथ्वीराज तृतीय, चौहान वंश के सबसे प्रसिद्ध थे। उन्होंने 1178 ई. से 1192 ई. तक शासन किया था। इन्हें 'रायपिथौरा' के नाम से जाना जाता है। उनके अधिकार में दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भू-भाग था। उन्होंने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया थी। 1186 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने गुजरात के चालुक्य शासक भीम द्वितीय पर आक्रमण किया। संभवतः यह युद्ध कुछ व्यक्तिगत कारणों से हुआ था। 1191 ई. में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य 'तराइन का प्रथम युद्ध' हुआ था। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की जीत और मुहम्मद गौरी की पराजय हुई थी। 1192 ई. में मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के मध्य 'तराइन का द्वितीय युद्ध' हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज को पराजय का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में पृथ्वीराज को बंदी बना लिया गया। कुछ समय के बाद उनकी हत्या कर दी गई। पृथ्वीराज चौहान के राजकवि चंदबरदाई थे। उन्होंने 'पृथ्वीराज रासो' नामक अपभ्रंश महाकाव्य की रचना की थी। जयानक ने 'पृथ्वीराज विजय' नामक संस्कृत काव्य की रचना की थी। आगे चलकर मुहम्मद गौरी के एक गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली और अजमेर पर आक्रमण किया। ऐबक और चौहानों के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध में ऐबक की जीत हुई। इस प्रकार ने ऐबक ने चौहानों की सत्ता को समाप्त कर दिया।
Prithviraj III was the most famous of the Chauhan dynasty. He ruled from 1178 AD to 1192 AD. These are known as 'Raipithora'. In his right was a wide area from Delhi to Ajmer. He made Delhi his capital. In 1186 AD, Prithviraj Chauhan attacked Bhima II, the Chalukya ruler of Gujarat. Probably this war happened due to some personal reasons. In 1191 AD, 'First Battle of Tarain' took place between Muhammad Ghori and Prithviraj Chauhan. In this war Prithviraj Chauhan was victorious and Muhammad Ghori was defeated. In 1192 AD, 'Second Battle of Tarain' took place between Muhammad Ghori and Prithviraj Chauhan. Prithviraj had to face defeat in this war. Prithviraj was taken prisoner in this war. After some time he was murdered. The Raj poet of Prithviraj Chauhan was Chandbardai. He composed the epic Apabhramsa named 'Prithviraj Raso'. Jayanak composed a Sanskrit poem called 'Prithviraj Vijay'. Later, Qutubuddin Aibak, a slave of Muhammad Ghori, attacked Delhi and Ajmer. There was a war between Aibak and Chauhan. Aibak won this war. In this way Aibak ended the power of Chauhans.
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
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