मानसिक विकास एवं मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक || mental development and affecting factors of mental development
मानसिक विकास - मानसिक विकास से तात्पर्य शक्तियों तथा संवेदनशीलता, अवलोकन, प्रत्ययीकरण, स्मृति, ध्यान, कल्पना, चिन्तन, वृद्धि, तर्क आदि में वृद्धि से होता है। मानसिक शक्तियों का उदय तथा वातावरण के प्रति समायोजन की क्षमता का नाम मानसिक विकास है।
मानसिक विकास की प्रक्रिया जटिल होती है। इस जटिल प्रक्रियाओं के आधार पर में मानसिक किसी संकल्पना का निर्माण करना सम्भव नहीं है। शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है जबकि किशोरावस्था में मानसिक शक्तियों में गुणात्मक उन्नयन अधिक होता है।
मानसिक विकास को लेकर जीन पियाजे एवं ब्रूनर नामक विद्वानों ने संज्ञानात्मक विकास के अपने-अपने सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं। पियाजे के अनुसार — "संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाएं क्रमश: संवेदनात्मक गमक अवस्था, पूर्व संक्रियात्मक अवस्था, मूर्त संक्रियात्मक अवस्था एवं औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था हैं।" पियाजे ने संज्ञानात्मक कार्य विधि की दो प्रमुख विशेषताएँ बताया है।
(i) संगठन की योग्यता।
(2) अनुकूलन की योग्यता।
जबकि ब्रूनर नामक विद्वान में संज्ञानात्मक विकास को क्रियात्मक, प्रतिविम्बात्मक एवं संकेतात्मक नामक तीन अवस्थाओं में विभाजित किया है।
(i) मानसिक विकास के मानदण्ड― मानसिक विकास प्रक्रिया को समझना बहुत ही मुश्किल कार्य है। मानसिक विकास को समझने हेतु इसके कुछ मानदण्डों पर चर्चा करना आवश्यक है।
(i) बुद्धि में वृद्धि― बुद्धि के दो रूप होते हैं—
(i) आनुवंशिक संभाव्य योग्यता।
(ii) अर्जित बुद्धि योग्यता।
टर्मन नामक विद्वान ने "अमूर्त चिन्तन की योग्यता" को बुद्धि कहा है। बुद्धि का विकास कितने अंशों तक हुआ है यह जानने के लिए चार बातों पर विचार किया जाता है—
(क) बच्चों के विकास का ढंग
(ख) परिवेश तथा परिस्थितियाँ
(ग) परिवेश में मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक परिस्थितियाँ
(घ) मानसिक विकास का मूल्यांकन करने के लिए प्रयुक्त परिणाम का रूप।
(ii) मानसिक क्रियाओं में वृद्धि— मानसिक क्रियाओं में वृद्धि होने से ही मानसिक विकास का अनुमान लगाया जाता है। पन्द्रह वर्ष को आयु को मानसिक परिपक्वता का आधार मानकर शेष वर्षों के मानसिक स्तर को पहिचाना जाता है। प्रत्येक इंसान की मानसिक वृद्धि में रुकावट भिन्न-भिन्न आयु स्तर में होने लगती है। मानसिक क्रियाओं की वृद्धि के मूल्यांकन के लिए― शब्द ज्ञान, उपमायें, रिक्तपूर्ती, विपरित शब्दों के परीक्षण का प्रयोग अधिक से अधिक किया जाता है।
(iii) भाषा विकास— किसी भी बालक के मानसिक विकास का पता उसके भाषा विकास से भी चलता है। भाषा के द्वारा अर्जित ग्राह्य शक्ति तथा नवीन क्रियाओं को सीखने की क्षमता विकसित होती है। प्रारंभिक वर्षों की अपेक्षा बाद के वर्षो में बालक जरिए वाक्य रचना तथा अधिक शब्दों को सीखने में समर्थ होता है।
(v) संकल्पनात्मक विकास— संकल्पना के निर्माण
का महत्व मानसिक विकास प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है। बाल्यावस्था तक बालक मांसपेशियों पर नियंत्रण तथा पदार्थों को देखने में स्थिरता को विकसित करता है। बालक जो कुछ भी चिन्तन करता है, उसका आधार प्रत्यय है। वह जो देखता है, उसी पर विश्वास करता है। बुद्धि के विकास का आभास इस बात पर चलता है कि बालक में किस प्रकार की संकल्पनाएँ विकसित होती है। इसी प्रकार दैनिक व्यवहार की संकल्पनाएं बालक के मानसिक विकास की द्योतक हैं।
(अ) स्थान व दिशा का ज्ञान
(ब) समय स संख्या
(स) संकल्पना।
इन बातों से बालक के मानसिक विकास का पता चलता है।
मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
एक बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते वाले कारक निम्न लिखित हैं—
[1] वंशानुक्रम— बालक, वंशानुक्रम से कुछ मानसिक गुण एवं योग्यताएँ प्राप्त करता है जिसमें वातावरण किसी प्रकार का अन्तर पैदा नहीं कर सकता है। कोई व्यक्ति उससे अधिक विकास नहीं कर सकता, जिला कि उसके वंशानुक्रम से सम्भव बनता है।
[2] पारिवारिक वातावरण— परिवार के वातावरण का बालक के मानसिक विकास से घनिष्ठ संबंध है। एक अच्छा परिवार जिसमें माता-पिता में अच्छे सबंध होते हैं, जिसमें वे अपने बच्चों की रुचियों और आवश्यकताओं को समझते हैं एवं जिसमें आनंद एवं स्वतंत्रता का वातावरण होता है, प्रत्येक सदस्य के मानसिक विकास में अत्यधिक योगदान देता है।
[3] परिवार की आर्थिक स्थिति— प्रतिभाशाली बालक दरिद्र परिवारों से आने की बजाय अच्छी आर्थिक स्थिति वाले परिवारों से अधिक आते हैं। इसका कारण यह है कि इन बालकों को कुछ विशेष सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं, जैसे– उचित भोजन, उपचार के पर्याप्त साधन, उत्तम शैक्षिक अक्सर, आर्थिक कष्टों से सुरक्षा आदि।
[4] परिवार की सामाजिक स्थिति― उच्च सामाजिक स्थिति के परिवार के बालक का मानसिक विकास अधिक होता है। इसका कारण यह है कि उनके मानसिक विकास के जो साधन उपलब्ध होते हैं वे निम्न सामाजिक स्थिति के परिवार के बालक के लिए दुर्लभ होते हैं।
[5] के माता-पिता का शैक्षिक स्तर— किसी बालक मानसिक विकास पर प्रभाव डालने वाला यह महत्वपूर्ण तत्व है। अशिक्षित माता-पिता की अपेक्षा शिक्षित माता-पिता का बालक के मानसिक विकास पर कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है। माता-पिता की शिक्षा, बच्चों की मानसिक योग्यता से निश्चित रूप से संबंधित है।
[6] उचित प्रकार की शिक्षा— बालक के मानसिक विकास के लिए उचित प्रकार की शिक्षा अति आवश्यक है। ऐसी शिक्षा ही उसके मानसिक गुणों और शक्तियों का विकास करती है। शिक्षा मनुष्य की शक्ति का विशेष रूप से उसकी मानसिक शक्ति का विकास करती है।
[7] विद्यालय— अच्छा विद्यालय बालक के मानसिक विकास का वास्तविक और महत्वपूर्ण कारक है। अच्छा विद्यालय ऐसा पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है, जो क्षेत्रों की रुचियों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न क्रियाओं से परिपूर्ण रहता है। ऐसा विद्यालय बालक के मानसिक विकास का महत्वपूर्ण कारक है।
[8] शिक्षक— बालक के मानसिक विकास में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यदि शिक्षक का मानसिक विकास अच्छा है, यदि वह बालक के प्रति प्रेंम और सहानुभूति का व्यवहार करता है और वह शिक्षण विधियों एवं उचित शिक्षण सामग्रियों का प्रयोग करता है तो बालक का मानसिक विकास स्वाभाविक रूप से होता है।
[9] शारीरिक स्वास्थ्य— बालक का शारीरिक स्वास्थ्य बालक के मानसिक विकास का मुख्य आधार है। निर्बल और अस्वस्थ बालक की अपेक्षा सबल एवं स्वस्थ बालक अधिक परिश्रम करके अपने मानसिक विकास की गति और सीमा में वृद्धि कर सकता है। इसलिए स्वास्थ्य पर अति प्राचीन काल से ही बल दिया जा रहा है। महान दार्शनिक अरस्तू सन्दर्भ में ने इस सन्दर्भ कहा है— "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।"
[10] समाज— प्रत्येक बालक का जन्म किसी किसी समाज में होता है। वही समाज उसके मानसिक विकास की गति और सीमा को निर्धारित करता है। यदि समाज में अच्छे विद्यालयों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, बालभवन, मनोरंजन के साधनों आदि की उत्तम व्यवस्था है तो बालक का मतिष्क अविराम गति से विकसित होता चला जाता है।
[11] जन्म-क्रम— बालक के विकास पर परिवार में जन्म क्रम का प्रभाव भी पड़ता है। अध्ययतनों से पता चलता है कि परिवार में जन्म लेने वाले प्रथम बालक की अपेक्षा दूसरे, तीसरे बालक का मानसिक विकास तेज गति से होता है। इसका कारण यह है कि बाद में बालक अपने से पूर्व जन्मे बालकों से अनुकरण द्वारा अनेक बातें शीघ्र सीख लेते हैं।
उपरोक्त बिंदुओं के अलावा अन्य कारक जैसे― खानपान व पोषण आहार, जलवायु, रोग-चोट, प्रजाति, मित्रमण्डली, बौद्धिक उपलब्धि आदि अनेक ऐसे कारक हैं जो बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं।
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R F Temre
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