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सृजनात्मक विकास (Srijnatmak Vikas) क्या है? | सृजनात्मकता (Rachanashilta) का महत्व | बच्चों की रचनाशीलता को प्रभावित करने वाले कारक

सृजन शब्द का अर्थ निर्माण या रचना करने से है। इस तरह बालक के संदर्भ में सृजनात्मक विकास से आशय उसमें विविध प्रकार की सृजनशीलता का उद्भव होना है। व्यक्ति अपने जीवन को सुखमय व समृद्ध बनाने के लिए अनेकानेक कार्य करता है। कुछ लोग समाज में कारीगर तो कुछ लोग इंजीनियर बन जाते हैं इसका कारण उनका सृजनात्मक विकास अधिकाधिक रूप से होना है। सृजनशील बच्चे में भी शिक्षक की अनुमति से तरह तरह की चीजों या चित्रों का निर्माण करते है। सृजनशीलता मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। सृजनात्मक लोगों की जीवन शैली बड़ी आकर्षक रहती है, वे दूसरे लोगों के बीच अप‌नी जीवन शैली के कारण आसानी से पहचाना जा सकते हैं।

वैसे तो प्रत्येक बालक सृजनशील होता ही है। वह कुछ न कुछ रचना करने में समर्थ होता है। किंतु उसकी सृजनशीलता के निखार होने पर गुणों में वृद्धि होती है। शैशवास्था में शिशु में यह गुण दिखाई नहीं देता केवल वह खिलोनों आदि से खेलता रहता है। किंतु जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती है वह खिलोनों के माध्यम से ही अपनी सृजनात्मकता की प्रवृति का अहसास कर देता है वह खिलौनों को तरह-तरह से सजाता है। उन्हें क्रम में रखता है इत्यादि। बाल्यावस्था मे वह तरह-तरह के खिलौने की रचना करने लगता है।कागज के नाव, गेंद, फिरकी, सजावटी कटिंग आदि का निर्माण करने लगता है है। लडकियाँ घर को सजाने के लिए कागज या कपड़ों से तरह-तरह की चीजें बनाने लगती है। आगे चलकर किशोरअवस्था में बालकों में सृजनात्मक का गुण पूर्णतः विकसित हो जाते हैं। विज्ञान प्रदर्शनी और तरह- तरह की मशीनरी का प्रदर्शन करते हैं। भविष्य में विज्ञान में रूचि रखने वाले बालक वैज्ञानिक तक बन जाते हैं।

सृजनात्मकता (रचनाशीलता) का महत्व ― प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में रचनाशीलता का एक अपना महत्व होता है। जीवन को बेहतर ढंग से जीने के लिए कई तरह की भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है। यदि एक बालक स्वयं चीजों का निर्माण करने में समर्थ होता है तो वह स्वयं के लिए साधनों का निर्माण कर उपभोग करता ही है इसके अलावा समाज को भी बहुत कुछ देने में समर्थ होता है। बालकों के सृजनशील होने पर उनकी दूसरों पर निर्भरता भी कम होती है क्योंकि वह स्वयं कार्य करने में समर्थ होते हैं। इसी तरह सृजनशील व्यक्ति कई तरह से वस्तुओं की खराबी पर उन्हें सुधार भी लेते हैं, इस तरह उनके धन की बचत भी होती है। बहुत सारे विद्यार्थी सृजनशील होने की स्थिति में इंजीनियर बनकर समाज के भौतिक ढांचा में सुधार हेतु अपना योगदान देते हैं। रचनाशीलता एवं खोजी प्रवृत्ति से बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है जिससे वे वैज्ञानिक बनाकर नए-नए अविष्कार करते हैं, जिससे समाज को कई तरह से लाभ प्राप्त होता है। इस तरह सृजनशीलता का व्यक्ति अर्थात एक बालक के जीवन में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान होता है।

उपरोक्त बातों को देखते हुए यह कहना उचित है कि माता-पिता एवं शिक्षक को बालको की सृजनात्मक के विकास के लिए उचित कदम उठाने चाहिए एवं उन्हें प्रोत्साहन के साथ हर कदम सहयोग करना चाहिए। वैसे तो हर विकास के बाधक तत्व है या विकास को नकारात्मक व सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।

सृजनात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

(ⅰ) अनुवांशिकता ― एक विद्यार्थी की सृजनात्मकता पर अनुवांशिकी का काफी प्रभाव देखा जाता है। अक्सर देखने में आता है कि बालक के माता-पिता किसी क्षेत्र में दक्ष एवं कुशल हैं तो बालक भी इस क्षेत्र में दक्ष और कुशल देखा गया है। उदाहरणार्थ यदि कोई बालक गायन में श्रेष्ठ है तो निश्चित ही उसके माता-पिता में से कोई अवश्य ही गायन में श्रेष्ठ होगा। इस तरह से बालक में रचना अभिव्यक्ति पर प्रभाव उसकी अनुवांशिकता का प्रभाव देखा जाता है।

(ⅱ) परिवार ― एक बालक के जीवन में रचनात्मकता की बहुत बड़ी महत्व होती है। जीवन को कलात्मक ढंग से जीने के लिए बालक का सृजनात्मक होना अति आवश्यक है। बालक के अंदर इस कौशल के विकास में परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि परिवार के लोग स्वयं सृजनात्मक (सृजनशील) होते हैं तो बालक उनका अनुसरण करके सृजन के क्षेत्र में अग्रसर होता है। इसके अलावा परिवार के लोग यदि बालक को किसी रचना क्षेत्र में प्रोत्साहित करते हैं तो बालक निश्चित ही उस क्षेत्र में उन्नति करता है। इसके विपरीत जिस परिवार में बालक की रचना अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता या उसके कार्यों की प्रशंसा नहीं की जाती है तो बालक है इस क्षेत्र में पीछे रह जाता है। उदाहरण के लिए एक बालक ने पेपर व रंगों से कोई पैंटिंग बनाता है और अपने परिवार के सदस्यों को दिखाता है तब यदि परिवार के सदस्य उसकी प्रशंसा करते हैं तो बालक इस क्रियाशीलता में आगे चलकर निखार आएगा। इसके विपरीत यदि परिवार के सदस्य उसे दुत्कार दें या इस बात के लिए डाँट दे तो बालक उस कार्य को बंद तो करेगा ही साथ में उसकी इस रचनात्मकता पर विराम भी लग जायेगा। अतः परिवार की भूमिका एक बालक की रचनात्मकता पर पड़ता है।

(iii) विद्यालय-शिक्षक ― विद्यालय एवं शिक्षक का प्रभाव निश्चित रूप से एक बालक के सृजनात्मक विकास पर पड़ता ही है। विद्यालय का माहौल, वहाँ पर किए जाने वाले क्रियाकलाप, गतिविधियाँ, बालक के सृजनात्मक विकास को बढ़ावा देने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाती हैं। विद्यालयों में सहशैक्षिक गतिविधियों का आयोजन होता ही है। इन गतिविधियों में यदि रचना से संबंधित क्रियाकलापों का आयोजन होता है तो बच्चों में रचनात्मक विकास तीव्र गति से होता है। इसी तरह शिक्षक के द्वारा बच्चों को नवीन रचनाशीलता को प्रोत्साहन देने से उनकी सृजनात्मक गतिविधियों में उत्तरोत्तर विकास होता है। इसके विपरीत जिस विद्यालय में इस तरह की गतिविधियाँ अर्थात रचनात्मकता को बढ़ावा नहीं दिया जाता है तो वहाँ के बच्चों का सृजनात्मक विकास कमजोर हो जाता है।

(iv) सामाजिक-आर्थिक प्रभाव ― बालकों के सृजनात्मक विकास में समाज के साथ-साथ बच्चों की आर्थिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है। आर्थिक स्थिति अच्छी होने पर बच्चों को कई तरह की सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं जिससे उनकी सृजनशीलता में वृद्धि होती है। इसके विपरीत कमजोर आर्थिक स्थिति वाले बच्चों को पर्याप्त सामग्रियाँ एवं सुविधाएं न मिलने के कारण उनका सृजनात्मक विकास पिछड़ जाता है। इसी तरह समाज में परंपराएँ, रीति रिवाज एवं प्रथाओं का प्रभाव बच्चों के सृजनशीलता पर पड़ता है। जिस समाज में रचनात्मक लोग संख्या में पाए जाते हैं तो वहाँ के बच्चे अधिक सृजनशील देखे जाते हैं। इसके विपरीत जिस समाज में रचनाशील लोगों की संख्या कम होती है वहाँ के बच्चों का सृजनात्मक विकास उतना विकसित नहीं दिखाई देता है।

(v) शारीरिक एवं मानसिक योग्यता ― शारीरिक और मानसिक योग्यता निश्चित ही बालक के रचनात्मक विकास पर प्रभाव डालती है। जो बालक शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं और उनके अंदर कुछ करने की योग्यता होती है तो ऐसे बच्चे सृजनशील होते हैं। इसके विपरीत जो बच्चे शारीरक रूप से अस्वस्थ अर्थात बीमार रहते हैं तो उन बच्चों कु सृजनात्मकता विकास उतनी विकसित नहीं हो पाती है।
इसी तरह मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे अर्थात जिनकी सोच बहुत परिपक्व होती है ऐसे बच्चे काफी सृजनशील होते हैं। जबकि मानसिक रूप से रुग्ण बच्चों बच्चों की रचनाशीलता में न्यूनता होती है।

(vi) वातावरण एवं परिस्थितियाँ ― वातावरण एवं परिस्थितियों दोनों बालकों के हर विकास पर प्रभाव डालते हैं। इसी तरह से एक बालक की सृजनशीलता पर इनका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही होता है। यदि बालक को बेहतर व सकारात्मक वातावरण प्राप्त होता है तो ऐसे बच्चे काफी सृजनशील होते हैं। इसके विपरीत जहाँ के वातावरण में दुष्प्रभाव देखे जाते हैं तो वहाँ के बच्चों में रचनात्मकता की कमी होती है।
इसी तरह से बालकों की परिस्थितियों भी उनके रचनात्मक विकास पर काफी गहरा प्रभाव डालती हैं। यदि बच्चों को बेहतर परिस्थितियों मुहैया कराई जाती हैं तो उनका सृजनात्मक विकास बेहतर होता है। इसके विपरीत यदि ऐसा माहौल या परिस्थितियों ही बच्चों को प्राप्त न हो तो उन बच्चों में रचनात्मकता का अभाव ही होता है।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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