
संख्या पद्धति- गणितीय शब्दों का अर्थ | प्राकृत, पूर्ण, पूर्णांक एवं परिमेय संख्याएँ | Number System - Natural, Whole, Integer and Rational Numbers
कक्षा 9 की गणित विषय के चैप्टर 1 'संख्या पद्धति' में प्रारंभिक अंश से कठिन शब्दावली के साथ संख्या पद्धति से संबंधित प्रश्नोत्तरी को प्रस्तुत किया गया है।
पद्धति = तरीका / प्रक्रिया या ढंग।
निरूपित करना =दर्शाना या प्रदर्शित करना।
अपरिमित = जिसकी कोई सीमा न हो। (अनन्त)
प्राकृत = प्रकृति प्रदत्त (प्रकृति के द्वारा प्रदान की गई।)
अद्वितीय = दूसरा न हो अर्थात (unique)
तुल्य = समान (बराबर मान)।
उभयनिष्ठ = ऐसा जो सभी में उपस्थित हो, या जो सभी के लिए हो।
प्रश्न 1 - संख्या पद्धति का क्या अर्थ है?
उत्तर - संख्याओं पर भिन्न रूपों में कार्य एवं व्यवहार करने की प्रक्रिया 'संख्या पद्धति' कहलाती है।
प्रश्न 2 - प्राकृत संख्याओं को अंग्रेजी के बड़े अक्षर 'N' के द्वारा क्यों प्रकट करते हैं?
उत्तर - प्राकृत संख्याओं को अंग्रेजी में Natural Numbers कहा जाता है। Natural शब्द की स्पेलिंग N से प्रारंभ होती है इसलिए प्राकृत संख्याओं के संकेत के रूप में 'N' को लिखा जाता है।
प्रश्न 3 - शून्य के शामिल होने पर प्राकृत संख्याएँ पूर्ण संख्याएँ क्यों कहलाती हैं?
उत्तर - गणना करने के लिए केवल प्राकृत संख्याएँ ही पर्याप्त नहीं होती हैं। जब प्राकृत संख्याओं में शून्य को शामिल कर दिया जाता है तो गणन की प्रक्रिया में पूर्णता आ जाती है। इसलिए शून्य के शामिल होने पर प्राकृत संख्याओं का समूह अब पूर्ण संख्याएँ कहलाती हैं। इसे अंग्रेजी के अक्षर 'W' से प्रकट किया जाता है क्योंकि पूर्ण संख्याओं को अंग्रेजी में Whole Numbers कहा जाता है।
प्रश्न 4 - पूर्णांक से क्या आशय है?
उत्तर - पूर्णांक का उन संख्याओं से आशय है जिसमें शून्य, धनात्मक और ऋणात्मक संख्यांक में सम्मिलित हो। पूर्णांक से आशय संपूर्ण अंकों से है, जिसमें धनात्मक और ऋणात्मक संख्यांक में सम्मिलित हों। पूर्णांकों के समूह के लिए संकेत 'Z' का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 5 - पूर्णांकों के प्रतीक चिन्ह 'Z' से क्या आशय है?
उत्तर - पूर्णांक संख्याओं के लिए प्रतीक 'Z' का प्रयोग किया जाता है। 'Z' जर्मन शब्द 'zahlen' (जेहलीन) से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'गिनना' और 'zahl' (जहल) जिसका, अर्थ है "संख्या"।
प्रश्न 6 - परिमेय शब्द से क्या आशय है?
उत्तर - परिमेय का शाब्दिक अर्थ है सीमित होना। किंतु गणित की भाषा में जब हम इसका प्रयोग करते हैं तब परिमेय का अर्थ होता है- जिसका परिणाम जाना जा सके या जिससे हमको परिणाम प्राप्त हो। दूसरी ओर जिन संख्याओं को आनुपातिक रूप में दर्शाया जा सके परिमेय की श्रेणी में आती हैं।
प्रश्न 7 - कौन सी संख्याएँ परिमेय संख्याएँ कहलाती हैं?
उत्तर - ऐसी संख्याएँ जिनको अंश और हर के रूप में लिखा जाता है अर्थात p/q के रूप में लिखा जा सके किंतु किसी भी स्थिति में q अर्थात हर शून्य नहीं होना चाहिए, परिमेय संख्याएँ कहते हैं। अंग्रेजी में परिमेय संख्याओं को rational numbers कहा जाता है। इस प्रकार की संख्याओं का संकेत अंग्रेजी का अक्षर 'Q' का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 8 - परिमेय संख्याओं के लिए संकेत 'Q' का प्रयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर - परिमेय संख्याओं के संग्रह को 'Q' से प्रकट किया जाता है। अंग्रेजी शब्द 'rational' की व्युत्पत्ति अंग्रेजी शब्द 'ratio' (रेशो) से हुई है और अक्षर Q अंग्रेजी शब्द 'quotient' से लिया गया है। 'quotient' का अर्थ अनुपात या भाग/ हिस्से से है।
प्रश्न 9 - असहभाज्य संख्या क्या होती है?
उत्तर - ऐसी संख्याएँ का युग्म (जोड़ा) जिनका 1 के अतिरिक्त कोई भी उभयनिष्ठ गुणनखंड न हो असहभाज्य संख्याएँ (co-prime numbers) कहलाती हैं। जैसे -2 व 3 इनका केवल 1 ही उभयनिष्ठ गुणनखंड है, इसलिए ये दोनों असहभाज्य संख्याएँ हैं।
प्रश्न 10 - किन्हीं 2 दी हुई संख्याओं के बीच में अपरिमित (जिसकी कोई सीमा न हो) रूप से अनेक परिमेय संख्याएँ होती हैं। कैसे?
उत्तर - दी हुई किन्ही 2 संख्याओं के बीच परिमेय संख्या ज्ञात की जाती हैं तो बीच में आने वाली संख्याओं को परिमेय संख्याओं (एक प्रकार से हिस्सों) के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। फिर उन्हीं परिमेय संख्याओं में से किन्हीं दो संख्याओं (हिस्सों) के बीच पुनः और भी छोटे-छोटे हिस्से कर दर्शाया जा सकता है। यही प्रक्रिया सतत् रुप से चलते रहती है। इसलिए दी गई 2 संख्याओं के बीच में अपरिमित परिमेय संख्याएँ दर्शाई जा सकती हैं।
उदाहरण - 2 व 3 के मध्य अपरिमित परिमेय संख्याएँ दर्शायी जा सकती हैं। इन दोनों को 2 = 4⁄2 एवं 3 = 6⁄2 के रूप में दर्शा सकते हैं अब इन दोनों के बीच 5⁄2 , 6⁄2 , 7⁄2 को दर्शाते हैं। अब इसी तरह 4⁄2 एवं 6⁄2 के अंश व हर में समान अंक का गुणा या भाग (p/q के रूप में लिखी संख्या के अंश व हर में समान संख्या का गुणा या भाग करने पर उस संख्या के मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है।) किया जाये तो नई परिमेय संख्याएँ प्राप्त होंगी। यदि 2 का गुणा करें तो 8⁄4 प्राप्त होगी अब 12⁄4 प्राप्त होंगी। अब पुनः 8⁄4 और 12⁄4 के बीच 9⁄4 , 10⁄4 , 11⁄4 प्राप्त हो जाती हैं। यही प्रक्रिया अपनाते हुए नवीन परिमेय संख्याएँ प्राप्त करते जाएँगे।
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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
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