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मौखिक भाषा विकास क्या है? (साक्षरता घटक) || मौखिक भाषा विकास हेतु गतिविधियाँ || Oral language development

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कक्षा 1 व 2 में बच्चे बेहतर ढंग से तथा समग्रता में पढ़ना लिखना सीख सकें इस हेतु साक्षरता विकास को निम्न घटकों में विभाजित किया गया है।
1. मौखिक भाषा विकास
2. ध्वनि जागरूकता
3. वर्ण ज्ञान
4. शब्द भण्डार
5. धाराप्रवाह पठन
6. समझ लेखन
7. स्वतन्त्र पठन।

साक्षरता विकास के प्रमुख घटकों में 'मौखिक भाषा विकास' का महत्वपूर्ण स्थान है। बगैर मौखिक भाषा विकास के अन्य भाषाई कौशलों में बच्चे का विकास सम्भव नहीं है। बच्चे में अपनी भाषा में सुनने और बोलने के कौशलों का विकास करके ही ध्वनि जागरूकता, वर्ण ज्ञान, शब्द भंडार, धाराप्रवाह पठन, समझ, लेखन एवं स्वतन्त्र पठन के कौशलों का विकास किया जा सकता है।

मौखिक चर्चाओं द्वारा बच्चों के सोचने समझने एवं अभिव्यक्त करने की क्षमता बेहतर होती है। वे सुनी गई बात को अपने अनुभवों से जोड़ते हैं। विश्लेषण और तर्क-वितर्क करते हैं। नए शब्द सीखते, कल्पना को शब्दों में ढालते हैं जिससे बच्चे अपनी सोच को और विस्तारित रूप देते हैं। विभिन्न शोध हमें बताते हैं कि जिन बच्चों के साथ उच्च स्तरीय मौखिक चर्चाएँ होती हैं उनमें पढ़कर समझने और लेखन द्वारा बेहतर अभिव्यक्त कर पाने की क्षमता भी बेहतर होती है। भाषा के यही कौशल पढ़कर समझने की भी बुनियाद हैं। यदि बच्चे की घर की भाषा विद्यालय की भाषा से अलग होती है तब बच्चे को विद्यालय की भाषा में सहज करने के लिए मौखिक भाषा विकास की गतिविधियाँ करनी और भी ज़रूरी हो जाती हैं। विद्यालय की औपचारिक भाषा का मौखिक अभ्यास उसे शिक्षक व अन्य बच्चों के साथ सहज होने में मदद करता हैं। बच्चों के साथ मौखिक चर्चा के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ हैं।

1. वार्तालाप - चित्र या चित्र कथा (Picture Story) पर मौखिक चर्चा -
बच्चों को चित्र दिखाकर अनुमान लगाने के लिए कहा जाता है कि चित्र में क्या-क्या है और क्या हो रहा है? चित्रों में से चीजें ढूँढने के लिए कहा जाता है। यदि एक से अधिक घटना वाले चित्र हैं तो बच्चों से चर्चा कर घटना के क्रम को समझकर और कहानी बनवाना होता है। अन्त में बच्चों से चर्चा की जाती है कि इन चित्रों से क्या कहानी बन पा रही है।

2. अनुभव या विषय पर चर्चा -
किसी विषय पर बातचीत करते समय बच्चों को प्रश्नों के माध्यम से अलग-अलग तरह से सोचने और अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके लिए आवश्यक है कि बच्चों से खुले छोर वाले प्रश्न पूछे जाते हैं। जैसे उस विषय के बारे में क्या जानकारी है? उसका उपयोग, फायदे और नुकसान क्या हैं आदि। बच्चों के द्वारा दिए गए उत्तर पर चर्चा की जाती है और ज़रूरी प्रश्न पूछे जाते हैं।

3. खेल के माध्यम से चर्चा -
बच्चों के साथ जिस दिवस को जो खेल करना हो उससे संबंधित यदि कोई सामग्री की ज़रुरत हो तो उसे पहले ही बना लिया जाता है। खेल में दिए गए निर्देश के अनुसार खेल को प्रारंभ करते हैं। यदि खेल से संबंधित कोई चर्चा की आवश्यकता हो तो उस पर चर्चा की जाती है। विशेष तौर से भाग-दौड़ वाले खेलों में बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है।

4. कहानी सुनाना और मौखिक चर्चा -
कहानी सुनाना और उस पर चर्चा करने से बच्चों के शब्द भण्डार में वृद्धि होती है। बच्चों में सुनकर समझने का कौशल और उच्च स्तरीय चिन्तन कौशल बढ़ता है। इसके अलावा बच्चे कहानी सुनकर अपने अनुभवों के बारे में बातचीत कर पाते हैं। कहानी के घटना, पात्रों से स्वयं को जोड़ पाते हैं और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर पाते हैं।

5. कविता के माध्यम से मौखिक चर्चा -
कविता कराने से पहले उससे सम्बन्धित चर्चा कर उन्हें बच्चों के पूर्व अनुभवों से जोड़ें। गतिविधि के दौरान कविता को हावभाव और रोचक तरीके से बच्चों को सुनाया जाता है। कविता की एक पंक्ति पढ़कर बच्चों को दोहराने के लिए कहा जाता है। इसके बाद कविता को बच्चों के जीवन से, उनके आसपास घटित घटनाओं के अनुभवों से जोड़ते हुए चर्चा की जाती है।

6. कल्पनात्मक चर्चा -
बच्चों से कल्पनात्मक विषय पर चर्चा करने से बच्चों में कल्पना करने की क्षमता का विकास होता है। बच्चे अपनी दुनिया से हट कर दूसरी काल्पनिक दुनिया का सफ़र करते हैं, आनन्द लेते हैं आदि। विभिन्न विषयों जैसे- अगर पेड़ भी चलते होते? अगर हमारे पंख होते आदि विषयों पर बातचीत कर सकते हैं।

उपरोक्त गतिविधियों के अलावा बच्चों के साथ अन्य खेल एवं गतिविधियाँ की जा सकती है जिससे उनकी मौखिक भाषा का विकास होता है।

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आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
infosrf.com

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