साक्षरता क्या है? इसके सही मायने || बच्चों में पठन कुशलता कब आती है? || What is literacy?
आमतौर पर माना जाता रहा है कि जिसे पढ़ना-लिखना आता है वह साक्षर है। परन्तु यह सही नहीं है। नीचे वार्तालाप के कुछ उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें पढ़ें-
स्थिति 1 एक व्यक्ति कपने मजदूर से - "सूची में अपना नाम देख लिया? अब करो हस्ताक्षर"।
मजदूर - "जी मालिक"।
स्थिति 2 महाजन (साहूकार) व्यक्ति से - "देख ले भाई, सब ठीक से लिखा है न?"
व्यक्ति - "सेठ जी, आपने 50,000 रुपया तो ठीक लिखा है, पर मैंने अपना खेत आपको कब गिरवी रखा?
स्थिति 3 एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से - "गरीबों को कोरोना नहीं होता यह बीमारी तो अमीरों की है।"
दूसरा व्यक्ति - "पढ़े-लिखे होकर कैसी बात कर रहे हो। कोरोना गरीब-अमीर में भेदभाव नहीं"।
यहाँ सोचने वाली बात है कि उक्त स्थितियों में एक व्यक्ति अपने पढ़ने-लिखने की क्षमता का इस्तेमाल किस तरह से कर रहा है। साक्षरता का मतलब पढ़कर अर्थ समझ लेना या अपने विचारों को लिखे हुए शब्दों में बदल देना भर नहीं है। साक्षरता के मायने हैं, अपने आस-पास की दुनिया को समझने के लिए पढ़ने-लिखने-समझने की क्षमता का लगातार इस्तेमाल करना और चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करना ताकि हम एक नागरिक के तौर पर समाज में अपनी सकारात्मक भूमिका निभा सकें।
पढ़ना क्या है - पढ़ना किसे कहते हैं, नीचे उदाहरण के माध्यम से समझाया गया है।
क्या आप नीचे दिए गए वाक्य को पढ़ सकते हैं?
我不喜欢种田 我要读出
शायद नहीं! हो सकता है कि आप वाक्य के लिपि-चिन्हों को नहीं जानते हैं। क्योंकि यह हिन्दी भाषा में नहीं लिखा हैं, यह चाइनीस भाषा के शब्द हैं। जबकि इसका हिन्दी में अनुवाद करने पर अर्थ होगा - "खेती पसंद नहीं है, मैं पढ़ना चाहता हूँ।"
पढ़ना केवल लिखित सामग्री का उच्चारण भर करना नहीं होता। पढ़ना तब तक पढ़ना नहीं है जब तक पढ़े हुए का अर्थ समझ न आए। उदाहरण के लिए आप नीचे दिया गया वाक्य पढ़िए -
"अद्गल ताल मयी रातमारी क्रेतमस"
उक्त लिखे हुए वाक्य का अर्थ क्या आपकी समझ में आया? हो सकता है आपको उच्चारण में भी थोड़ी कठिनाई अवश्य आई होगी और आपने धीरे-धीरे उच्चारण किया होगा लेकिन शायद ही आप कुछ समझ पाए होंगे। पढ़कर समझने के लिए वर्ण-ज्ञान यानी डिकोडिंग के अलावा भाषा की मौखिक समझ भी जरूरी है।
पढ़ने का हुनर - पढ़ने का हुनर लगातार पढ़ने के अभ्यास से निखरता जाता है और एक पाठक धीरे-धीरे कुशल पाठक बनता जाता है। ऐसा तब ही संभव है जब एक बच्चे को स्वतन्त्र रूप से पढ़ने के लगातार अवसर प्राप्त हो। इस तरह एक पाठक इन तीन पहलुओं -
1. मौखिक भाषा विकास
2. लिपिगत/ऑर्थोग्राफिक
3. विविध प्रकार की पठन सामग्रियों का एक्सपोजर (संसर्ग)
में सामन्जस्य बनाते हुए धीरे-धीरे एक स्वतन्त्र पाठक बनता है।
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(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
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