पाठ 10 'क्या ऐसा नहीं हो सकता'? Class 6th Hindi Imp Gadyansh ki sandarbh prasang sahit vyakhya || Path 10 'Kya Esa Nahi Ho Sakta
केन्द्रीय भाव— विशुद्ध प्रेम ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है।आत्मीय संबंधों का अपना महत्व है। इसी में सच्चा सुख निहित है। हम भ्रमवश आत्मप्रदर्शन में, बाह्य आडम्बरों में उलझकर सहज प्रेम की महत्ता समझ नहीं पाते हैं। किसी के मिलने पर हम अपने स्वाभाविक स्नेह मिलन के निर्मल भावों को परे रखकर औपचारिकता में लग जाते हैं और सच्चाई को छिपाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार मिलन के सच्चे सुख से हम बंचित रह जाते हैं । लेखक ने प्रस्तुत पत्र में इन्हीं भावों को व्यक्त किया है।राम नारायण उपाध्याय
संपूर्ण पाठ परिचय
मित्र,
मैं जब भी तुम्हारे यहाँ आता हूँ, तुम मेरा एक मेहमान की तरह स्वागत करते हो।यदि उस दिन तुम्हारे यहाँ शक्कर या घी नहीं होता तो तुम उसे मुझसे छिपाकर लाते हो। यदि उस दिन तुम्हारे बजट में गुंजाइश नहीं होती तो तुम किसी से माँगकर या उधार लेकर सारी व्यवस्था जुटाते हो।
तुम जब मुझसे बात भी करते हो तब भी इस चिन्ता से मुक्त नहीं होते कि नहाने के बाद मुझे टॉवेल देना होगा तेल के बाद कंघा और आईना देना होगा, और मैं जब तक भोजन कर रहा होऊँगा तब तक किसी बच्चे को भेजकर पान मँगाकर रखना होगा।
मैं जब तक स्नान करता हूँ तब तक तुम अपने फटे बिस्तर को, नई चादर से ढक देते हो, धुँधले आईने की जगह पड़ोसी से माँगा हुआ साफ आईना सजा देते हो और खूँटियों पर लटकते बेतरतीब से कपड़ों तथा बिखरी हुई पुस्तकों को करीने से लगा देते हो।
इस सारी व्यवस्था के चलते जब भी दो घड़ी साथ बैठने का अवकाश आता है, तुम बजाय घर-गिरस्ती के, देश-विदेश की, राजनीति और पत्र-पत्रिकाओं के साहित्य की बात छेड़ देते हो।
मैं जब तक तुम्हारे साथ रहता हूँ तुम्हारे चेहरे पर एक क्षण भी निश्चिन्तता खोज नहीं पाता और जब मैं विदा होने लगता हूँ तो तुम कहते हो, "कल चले जाना, कितने दिन के बाद तो आए हो।"
और मैं जब सचमुच रवाना होता हूँ, तो तुम कहते हो, "पत्र देते रहना और जब कभी अवकाश पाओ तो इधर आने की बात भूल मत जाना।"
तुम जब मुझे विदा करते हो तब भी हमारा ध्यान मेरे रवाना होने के बाद किये जाने वाले कामों में लगा रहता है लेकिन मै जब तक तुम्हारी दृष्टि से ओझल नहीं हो जाता, तुम जाने आने और निनिमेष दृष्टि से निहारते हो, मानो अपनी पलकों पर बिठाकर तुम मुझे विदाई देते हो।
मैं जानता हूं तुम्हारी उस दृष्टि में कितना दर्द, कितनी लाचारी, कितना स्नेह समाया हुआ है।
मित्र मेरे,
जिस तरह के साधारण आदमी तुम हो, उसी तरह का साधारण आदमी मै भी हूँ।
मेरे आने पर जो-जो तुम्हें करना पड़ता है, तुम्हारे आने पर बही-वही मुझे भी करना पड़ता है।
जिस तरह तुम्हारे यहाँ कभी आटा होता है तो दाल नहीं होली, उसी तरह मेरे यहाँ कभी दाल होती है तो आटा नहीं होता।
तुम्हारे बिस्तरे की चादर जितनी फटी हुई है, मेरे विस्तरे की चादर भी उससे कम फटी हुई नहीं है।
तुम्मारी कुर्सी का दायां हत्था टूटा हुआ है और मेरी कुर्सी का बायाँ।
मेरे आने पर तुम जिस धुंधली काँच को छिपाते हो, तुम्हारे आने पर मैं भी उसी घुँचले काँच को छिपाता हूँ लेकिन उस धुँधले काँच में ही हमारी वास्तविक तस्वीर छिपी है।हम सबके चेहरे पर अभावों की धुंध छाई हुई है।
मित्र मेरे,
क्या यह नहीं हो सकता कि हम जैसे हैं, ठीक वैसे ही मिलें और जो हम नहीं हैं, वैसा दिखने का प्रयत्न बन्द कर दें?जैसी सूखी रोटी तुम खाते हो, वैसी ही मुझे खिलाओ। जिस फटे टावेल से तुम अपना शरीर पोंछते हो, उसी से मुझे भी अपना शरीर पोंछने दो। चाय पीते समय जिस टूटे हुए कप को तुम मुझसे बदल लेते हो, उसे मेरे ही पास रहने दो।
अपने फटे हुए बिस्तरे को तुम उजली चादर से मत ढँको और कुर्सी के टूटे हुए हत्थों को बीच में आने दो ताकि वे हमारे बीच दीवार न बन सकें और इन सबसे बचे हुए समय में तुम जब भी मेरे पास बैठो, बजाय राजनीति और साहित्य के, अपनी घर-गिरस्ती की, बाल-बच्चों की, सुख दुःख की बातें करो।
विश्वास रखो, सुखःदुख के इस समन्दर में से ही हमारे अभावों की किश्ती के पार होने का मार्ग गया है।
तुम्हारा वही मैं जो तुम हो।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की व्याख्या
(1) मैं जब तक स्नान करता हूँ तब तक तुम अपने फटे।बिस्तर को, नई चादर से ढक देते हो, धुँधले आईने की जगह पड़ोसी से माँगा हुआ साफ आईना सजा देते हो और खूंटियों पर लटकते बेतरतीब से कपड़ों तथा बिखरी हुई पुस्तकों को करीने से लगा देते हो।
सन्दर्भ— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक 'भाषा भारती' के 'क्या ऐसा नहीं हो सकता ?'नामक पाठ से ली गई हैं। इस पाठ के लेखक 'रामनारायण उपाध्याय' हैं।
प्रसंग— लेखक ने इन पंक्तियों के माध्यम से स्पष्ट किया है कि लोग सच्चाई को छिपाने का प्रयत्न करते हैं, बाहरी आडम्बरों में उलझकर सहज प्रेम की महत्ता को समझ नहीं पाते हैं।
व्याख्या— एक मित्र अपने मित्र को पत्र लिखता है; लेखक उस पत्र लेखक मित्र के भावों को स्पष्टता देता है कि जब मैं तुम्हारे घर जाता हूँ तब तक वहाँ स्नान करता हूँ, तब उसी मध्य तुम अपने फटे बिस्तर को किसी नई चादर से ढक देते हो जो दर्पण तुम्हारे घर में है वह धुँधला हो गया है, उसके स्थान पर अपने पड़ोसी के साफ उजले दर्पण को ले आते हो और सजा देते हो। यह दर्पण माँगा हुआ होता है। कमरे में इधर-उधर बिना तरतीब ही खूँटी पर लटकते कपड़ों को ठीक तरह लगा देते हो, साथ ही इधर-उधर पड़ी हुई, बिखेर दी गई पुस्तकों को उसी दरम्यान ठीक क्रम से लगा देते हो। यह तुम्हारा बनावटीपन और दिखावा है जो प्रेम की सहज भूमि पर औपचारिकता मात्र है। हम मिलन के वास्तविक दुःख से रहित हो जाते हैं।
(2) तुम जब मुझे विदा करते हो, तब भी तुम्हारा ध्यान मेरे रवाना होने के बाद किये जाने वाले कामों में लगा रहता है लेकिन मैं जब तक तुम्हारी दृष्टि से ओझल नहीं हो जाता, तुम तब तक मेरी ओर निर्निमेष दृष्टि से निहारते हो, मानो अपनी पलकों पर बिठाकर तुम मुझे विदाई देते हो। मैं जानता हूँ, तुम्हारी उस दृष्टि में कितना दर्द, कितनी लाचारी, कितना स्नेह समाया हुआ है।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— लोगों के आम व्यवहार में भी सच्चाई छिपी होती है। स्नेह भरे दिलों में दर्द की टीसन और दिखावे की लाचारी भर दी है।
व्याख्या— लेखक कहता है कि वह जब अपने मित्र से विदा लेता है, तो उस मित्र का ध्यान उसके प्रस्थान करने के बाद किये जाने योग्य सभी कामों में उलझा रहता है। वह जब तक उसकी आँखों से पूर्णतः ओझल नहीं हो जाता, तब तक अपनी एकटक निगाहों से उसे देखता रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह उसे (लेखक को) अत्यन्त आदर भाव के साथ प्रेमपूर्वक विदा कर रहा है। लेखक अपने उस मित्र की निगाहों में समाये हुए दर्द को, उसकी लाचारी को प्रदर्शित कर रहा था। लेकिन उसके हृदय में गहरा स्नेह समाया हुआ था।
(3) क्या यह नहीं हो सकता कि हम जैसे हैं, ठीक वैसे ही मिलें और जो हम नहीं हैं, वैसा दिखने का प्रयत्न बन्द कर दें ? जैसी सूखी रोटी तुम खाते हो, वैसी ही मुझे खिलाओ। जिस फटे टॉवेल से तुम अपना शरीर पोंछते हो, उसी से मुझे भी अपना शरीर पोंछने दो। चाय पीते समय जिस टूटे हुए कप को तुम मुझसे बदल लेते हो, उसे मेरे ही पास रहने दो।
सन्दर्भ—पूर्व की तरह।
प्रसंग— लेखक अपने मित्र के दिखावेपूर्ण व्यवहार पर अपने हृदय की वेदना को व्यक्त करता है।
व्याख्या— लेखक स्पष्ट करता है कि हम सभी दिखावे के व्यवहार को छोड़ कर सच्चाई के आधार पर अपने व्यवहार को विकसित करें। क्या यह सम्भव नहीं है ? निश्चय ही, यह हो सकता है। जैसे हम नहीं हैं, उस स्थिति में अपने आपको दिखाने का जो प्रयत्न है, उसे छोड़ दें। अर्थात् आडम्बरपूर्ण व्यवहार का रूप समाप्त कर देना चाहिए। अपनी स्वाभाविक स्थिति में हमारा वह साधारण रूप में खिलाया गया भोजन वस्तुतः असली प्रेम को प्रदर्शित करने वाला होगा। भोज्य वस्तुओं में दिखावट पसन्द नही है। तुम जिस फटे अंगोछे से स्नान के बाद अपने अंग पोंछते हो, वही अंगोछा अपने मित्र को दीजिए, व्यर्थ के दिखावे में जीवन की मौलिकता नष्ट होती है।टूटे कप (प्याले) में दी गई चाय को तुरन्त हटा देते हो और स्वयं उस टूटे कप की चाय पीने लगते हो और मुझे अपना वाला अन्य कप देकर हृदय की सरलता भरे प्रेम को बनावटी प्यार के आवरण से ढकने की कोशिश करते हो। ऐसा व्यवहार प्रेम के सात्विक स्वरूप को समाप्त कर देता है।
(4) अपने फटे हुए बिस्तर को तुम उजली चादर से मत ढको और कुर्सी के टूटे हुए हत्थों को बीच में आने दो ताकि वे हमारे बीच दीवार न बन सकें और इन सबसे बचे हुए समय में तुम जब भी मेरे पास बैठो, बजाय राजनीति और साहित्य के, अपनी घर-गिरस्ती की, बाल-बच्चों की, सुख-दुःख की बातें करो। विश्वास रखो, सुख-दुःख के इस समन्दर में से ही हमारे अभावों की किश्ती के पार होने का मार्ग गया है।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— लेखक अपने मित्र को दिखावेपूर्ण व्यवहार को बन्द करने और सच्चाईपूर्ण,आडम्बररहित व्यवहार को अपनाने का अच्छा परामर्श देता है।
व्याख्या— अपने मित्र को लिखे अपने पत्र के अन्त में लेखक लिखता है कि हे मेरे मित्र ! फटे हुए अपने बिस्तर को तुम साफ चादर से ढकने की कोशिश मत करो। टूटे हुए हत्थे वाली कुर्सी पर ही मुझे बैठने दो। मेरे और तुम्हारे बीच जो मित्रता का पवित्र भाव है, उसे बनावट के व्यवहार की चादर से मत ढको। मैं चाहता हूँ कि इस बनावट के रिश्ते चलाने में जो समय नष्ट होता है, उस समय को बचाकर तुम मेरे समीप बैठो। राजनीति और साहित्य की बातें मत करो। घर और परिवार की समस्याओं सम्बन्धी बातें करो। अपनी आने वाली पीढ़ी - बाल-बच्चों से सम्बन्धित बातें करो। इस तरह अपने अन्त:करण में व्याप्त सुख और दुःख से प्राप्त होने और उसके निवारण सम्बन्धी उपायों की बातें ही सच्चे व्यवहार से सम्बन्धित हैं। तुम्हें यह विश्वास रखना होगा कि हमारी कमियों की नौका ही सुख-दुःख के महासागर को पार कर हमारी सहायक हो सकती है। अर्थात् अभावों को दूर करो और दुःख अपने आप मिट जायेंगे।
अभ्यास
प्रश्न 1 सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) नहाने के बाद मुझे देना होगा—
(i)नाश्ता
(ii)आराम
(iii)टॉवेल
(iv)पुस्तक
उत्तर—(iii) टॉवेल
(ख)चादर के अनुसार पसारना चाहिए—
(i) बाहें
(ii) पैर
(iii) मुँह
(iv)जीभ।
उत्तर—(ii) पैर
प्रश्न 2 रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क) तुम अपने फटे बिस्तर को चादर से ढक देते हो।
(ख) बिखरी हुई पुस्तकों को करीने से लगा देते हो।
(ग) हम सबके चेहरे पर अभावों कीधुंधछाई हुई है।
(घ) सुख-दुःख के इस समंदर कश्ती के पार होने का मार्ग गया है।
प्रश्न 3 एक या दो वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) धुंध से लेखक का क्या अभिप्राय है?
उत्तर— धुँध से लेखक का यह अभिप्राय है कि अपनी कमियों के अन्धकार की छाया प्रत्येक मनुष्य के चेहरे पर छाई हुई है। अर्थात् उन कमियों को किसी भी व्यक्ति के बाहरी चेहरे के हाव-भाव से पहचाना जा सकता है।
(ख) मित्र अपने फटे बिस्तर को कैसे छिपाता है ?
उत्तर— मित्र अपने फटे बिस्तर को उजली चादर को बिछाकर छिपाता है।
(ग) अव्यवस्थाओं के होते हुए भी मित्र लेखक से रुकने का आग्रह क्यों करता है?
उत्तर—अव्यवस्थाओं के होते हुए भी मित्र लेखक से रुकने का आग्रह इसलिए करता है कि इन अभावों को दिखावे की चादर से न ढकते हुए, हे मेरे मित्र ! तू मेरे पास बैठ। प्रेमपूर्वक अपने परिवार से सम्बन्धित दुःख-सुख की बातें कर, जिससे मन का बोझ कुछ हल्का हो सके और आडम्बर के बोझ के नीचे अपनी आत्मा को कुचलने से बचा ले।
(घ) लेखक ने मित्र को राजनीति और साहित्य के बदले कौन-सी बात करने की सलाह दी ?
उत्तर— लेखक अपने मित्र को सलाह देता है कि वह राजनीति और साहित्य की बातें न करे। उसे तो अपने बाल-बच्चों से सम्बन्धित, घर और गृहस्थी की बातें करनी चाहिए जिससे जीवन के सुख और दुःख के महासागर को पार करने का उपाय निकल सके।
प्रश्न 4 चार-पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) लेखक के लिए मित्र किस तरह सुविधाएँ जुटाता?लिखिए।
उत्तर— लेखक के लिए मित्र घर में घी और शक्कर के न होने पर घी-शक्कर छिपाकर लेकर आता है। इन चीजों को किसी से उधार भी लेकर आता है। फटे बिस्तर को नई चादर से ढक देता है। पड़ौसी के स्वच्छ दर्पण को माँग लाता है। भोजन कर लेने पर बच्चे से पान मँगाकर रख देता है। बाल-बच्चों और गृहस्थी की बातें न करते हुए राजनीति और पत्र-पत्रिकाओं के साहित्य की बातों में उलझा देता है। टूटे कप की चाय को स्वयं उठा लेता है। सही नए कप में लेखक को चाय देता है। इस तरह की अनेक सुविधाओं को जुटाता है।
(ख) लेखक को मित्र के चेहरे पर निश्चिन्तता का भाव दिखाई क्यों नहीं दिया?
उत्तर— लेखक को मित्र के चेहरे पर निश्चिन्तता का भाव इसलिए दिखाई नहीं दिया क्योंकि उसके घर में गृहस्थी की चीजों का अभाव था।घी-शक्कर का इन्तजाम लेखक से छिपकर करता है, पड़ौस से दर्पण और तौलिया लाकर रखता है। फटे बिस्तर को नई चादर से छिपाता है। बच्चे को भेजकर लेखक के लिए पान मँगाकर रखता है। खूँटी पर बेतरतीब रखे कपड़ों को और बिखरी पुस्तकों को करीने से लगा देता है। घर-गृहस्थी की बातें न करके राजनीति और साहित्य की बातें करने लग जाता है।
(ग) लेखक की अपने मित्र से क्या अपेक्षाएँ हैं ?
उत्तर—लेखक अपने मित्र से अपेक्षा करता है कि वह अपने फटे बिस्तर को वैसे ही बने रहने देता।टूटे हत्थे वाली कुर्सी पर ही लेखक को बैठने देता।धुँधले दर्पण और फटे गन्दे तौलिए को ही लेखक को नहाने के बाद बदन पोंछने के लिए देता। बाल-बच्चों और गृहस्थी की बातें खुलकर करता। उजली चादर से बिस्तर को ढकने को तथा टूटे हत्थे वाली कुर्सी को बीच की दीवार न बनने देता। हृदय में बसे सच्चे प्रेम को इस बनावटी व्यवहार से ढकने न देता।
(घ) लेखक मित्र को किस तरह के व्यवहार की सलाह देता है ?कोई तीन बिन्दु लिखिए।
उत्तर— लेखक निम्नलिखित रूप के व्यवहार की सलाह देता है—
(1) हम दोनों मित्र ठीक वैसे ही मिलें जैसे हम हैं। बनावटी दिखने का प्रयत्न बन्द करें।
(2) जैसी सूखी रोटी तुम खाते हो, वैसी ही मुझे खिलाओ। राजनीति और साहित्य में मत उलझाओ।
(3) जिस फटे तौलिए से अपना शरीर पोंछते हो, उसी से मुझे भी अपना शरीर पोंछने दो। साथ ही चाय पीते समय जिस टूटे हुए कप को तुम मुझसे बदल देते हो, उसे मेरे ही पास रहने दो।
प्रश्न 5. सोचिए और बताइए—
(क) अपने लिए कष्ट उठाकर व्यवस्था जुटाते अपने मित्र को देखकर आपके मन में कैसे विचार उत्पन्न होंगे, बताइए।
उत्तर— अपने लिए कष्ट उठाते हुए व्यवस्था जुटाने में लगे मित्र को देखकर मेरे मन में यह विचार आता है कि मेरा मित्र सामान्य रूप से वही रूखी-सूखी रोटी खिलाता, जो वह स्वयं खाता है।उजले चादर से फटे बिस्तर को ढकने के लिए, टूटे हत्थे काली कुर्सी को हटाते हुए, गन्दे फटे तौलिए का प्रयोग कर लेने देने के लिए, उजले साफ दर्पण का पड़ौस से इन्तजाम न करने की बात कहता। सच्चे प्रेम भरे व्यवहार को आडम्बर से छिपाने की बात न करने की सोचता।
(ख) मित्र अपने फटे बिस्तर को चादर से क्यों छिपाने का प्रयास करता है ?
उत्तर— मित्र अपने फटे बिस्तर को चादर से छिपाने का प्रयास करता है ताकि उसकी असल स्थिति का आभास लेखक को न हो सके। मित्र की अभावों भरी गृहस्थी का आभास लेखक को होगा, तो उसे कष्ट होगा। अपनी वस्तुस्थिति से लेखक को परिचित न होने देने का मित्र प्रयास करता है।
प्रश्न 6अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए—
(क) मान लीजिए आपके घर अचानक मेहमान आ जाते हैं और आपके माता-पिता घर पर नहीं हैं। घर में अनेक अव्यवस्थाएँ हैं। ऐसी स्थिति में आप अतिथि का स्वागत कैसे करेंगे?
उत्तर— घर में अव्यवस्थाओं के चलते, माता-पिता के घर पर न होने की दशा में जो भी कुछ सरलता से कर सकता हूँ, करूँगा।बैठने के लिए कहूँगा। शुद्ध ताजा पानी पीने को दूँगा और फिर प्रयास करूँगा कि मैं अपने माता-पिता को उनके आगमन की सूचना दूँ। सम्भवतः आगन्तुक मेहमान उस स्थिति में मेरी प्रार्थना के अनुसार रुकें और माता-पिता के आगमन तक प्रतीक्षा करें। उनके लिए घर में जो भी कुछ वस्तु होगी, मैं उनके लिए प्रस्तुत करके उनका आतिथ्य करूँगा।
(ख) आपकी दृष्टि में उधार लेकर अथवा माँगकर व्यवस्था जुटाना कहाँ तक उचित है?
उत्तर— मेरी दृष्टि में उधार लेकर या माँगकर व्यवस्था जुटाना बिल्कुल भी उचित नहीं है।अपनी परिस्थिति के अनुसार जो भी सम्भव हो सके, उसी से अतिथि सत्कार की व्यवस्था करना उचित है। किसी भी तरह के आडम्बर का व्यवहार सच्चे प्रेम को छिपादेता है। जिसकी चिन्ता चेहरे पर झलक उठती है।
(ग) किसी के घर जाने पर आप फटे बिस्तर पर ध्यान देंगे या उनके स्नेह को प्राथमिकता देंगे?
उत्तर— फटे बिस्तर पर ध्यान देने का कोई अर्थ नहीं है। स्नेह की पवित्रता महत्वपूर्ण है और उसी का प्राथमिकता से ध्यान रखना आनन्ददायी है।
भाषा की बात
प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और लिखिए—
स्वागत, व्यवस्था, दर्शन, क्षणहीनता, शांति।
उत्तर— कक्षा में अपने अध्यापक महोदय की सहायता से शुद्ध उच्चारण करें और अभ्यास करें।
प्रश्न 2 निम्नलिखित शब्दों का सही वर्तनी लिखिए—
राज्यनीती, आवकाश ,बिशबास, दृश्टी।
उत्तर— राजनीति, अवकाश, विश्वास, दृष्टि।
प्रश्न 3निम्नलिखित वाक्यों को बहुवचन में बदलिए—
(क) बालक स्कूल जा रहा है।
(ख) गाय चर रही है।
(ग) नदी में बाढ़ आई है।
(घ) वह पुस्तक पढ़ रहा है।
उत्तर—(क) बालक स्कूल जा रहे हैं।
(ख) गायें चर रही हैं।
(ग) नदियों में बाढ़ आई है।
(घ) वे पुस्तक पढ़ रहे हैं।
प्रश्न 4 निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
उत्तर—(क) पलकों पर बैठाना — रवि अपने मेहमानों को पलकों पर बैठाता फिरता है।
(ख) कलेजे पर साँप लोटना — मेरे पुत्र के द्वारा परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने पर, मेरे पड़ौसी के कलेजे पर साँप लोट गया।
(ग) आम के आम गुठलियों के दाम— मैं गया तो था इन्दौर एक उत्सव में, लेकिन पास में ही ओउम्कारेश्वर के दर्शन भी करके आम के आम गुठलियों के दाम भी प्राप्त कर लिए।
(घ) कंगाली में आटा गीला— मैंने सोचा था कि अपने पुराने इंजन की मरम्मत कराके पानी की समस्या हल हो जाएगी, लेकिन साथ में पाइप लाइन का टूट जाना मेरे लिए कंगाली में आटा गीला हो जाना है।
प्रश्न 5 निम्नलिखित वाक्यों में से अकर्मक और सकर्मक क्रियाएँ छाँटिए—
(क)तुम धुँधले काँच को छिपाते हो।
(ख) मैं तुम्हारे साथ रहता हूँ।
(ग)तुम क्यों रो रहे हो ?
(घ)कोयल आकाश में उड़ रही है।
उत्तर—(क) छिपाते हो—सकर्मक।
(ख) रहता हूँ—अकर्मक।
(ग) रो रहे हो —अकर्मक।
(घ) उड़ रही है—अकर्मक।
प्रश्न 6 अपने मित्र को पत्र लिखकर गणतन्त्र दिवस की बधाई दीजिए।
उत्तर— 17/29, महाकालेश्वर मार्ग
उज्जैन (म. प्र.)
दिनांक: 16 मार्च,
प्रिय मित्र सोहनजी मोहनकुमार
नमस्ते।
तुम्हारा पत्र प्राप्त हुआ, पढ़कर अति प्रसन्नता हुई। तुम अपने सहपाठियों सहित प्रसन्न हो, यह जानकर मुझे भी हर्ष हुआ। अर्द्धवार्षिक परीक्षा में तुमने अच्छे अंक पाए, इसके लिए तुम्हें साधुवाद। साथ ही, तुम्हारे विद्यालय में इस वर्ष जनवरी माह में 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस मनाया गया। तुमने कार्यक्रम में भाग लिया और अच्छे पुरस्कार लिए, इसके लिए भी तुम्हें भूरि-भूरि साधुवाद। साथ ही गणतन्त्र दिवस के पूरे उत्सव के लिए तुम्हें बधाई है। आशा करता हूँ कि आगे आने वाले गणतन्त्र दिवस समारोह पर मैं भी आकर दर्शक बनूँ।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में।
तुम्हारा शुभेच्छु
मोहन स्वरूप गर्ग
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4. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 06 || सामाजिक विज्ञान || हमारे अतीत | अध्याय 01 और 02
5. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका | कक्षा 06 || सामाजिक विज्ञान | ग्लोब और मानचित्र
इन 👇 इतिहास के प्रकरणों के बारे में भी जानें।
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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
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