पाठ 15 - दस्तक | कक्षा 6 हिन्दी विशिष्ट | प्रमुख गद्यांशों का संदर्भ व सप्रसंग व्याख्या | सम्पूर्ण प्रश्नोत्तर व व्याकरण | Path 15 Dastak Abhyas
केन्द्रीय भाव— प्रस्तुत कहानी में लेखक ने परस्पर सहानुभूति, सहयोग व सद्भभाव का संदेश दिया है। लेखक की रूचि समाज सेवा मे थी। यह बात उनकी पत्नी को पसंद नहीं थी। लेखक की अनुपस्थिति में उनका पुत्र दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो अपरिचित लोग उसकी मदद करते है। इस बात से लेखक की पत्नी का हृदय-परिवर्तन हो जाता है। उसे समझ में आ जाता है कि भलाई का फल भलाई होता है।—डॉ शिवभूषण त्रिपाठी
संपूर्ण पाठ परिचय
सरेआम वे चिल्ला रहे थे। कभी किसी को देखकर मारने दौड़ते तो कभी खिलखिलाकर हँसने लगते। कभी रोते-रोते किसी फिल्मी गाने की पंक्ति गुनगुना कर नाचने लगते।आने-जाने वाले लोग सहज ही चौराहे पर कुछ देर खड़े होकर, अपना मनोरंजन करते; और चले जाते। फिर भी बहाँ एक अच्छी खासी भीड़ लग गई थी। सहसा किसी को विश्वास नहीं होता था। कि ये ही हरी बाबू हैं जो कभी किसी ऊँचे पद पर सुशोभित थे। उनके संकेत मात्र से ही तिल को ताड़ और ताड़ को तिल बना दिया जाता था। वे जहाँ भी जाते, हजारों की भीड़ उनका स्वागत करती। स्वप्न में भी उनकी इस स्थिति की कल्पना किसी को नहीं थी। चौक पर उनकी उस दशा को देखकर शीला गम्भीर हो गई थी, विचारों में खो गई थी और मैं 'गरीबा' से मिलने उसके घर चला गया।
गरीबा बीमार था। दो दिन हो गए थे। उससे मुलाकात नहीं हुई थी। वहाँ से लौटकर भी उस दिन में बहुत देर से घर पहुँचा था। घर में पैर रखते ही पत्नी की बड़बड़ाहट शुरू हो गई "हमें यहाँ शहर में नहीं रहना है। चलिए हम सब को देहात में छोड़ दीजिए। वहाँ मैं आराम से रह लूँगी। छुट्टी के दिन भी आप कभी कहीं, कभी कहीं घूमते रहते हैं। और लोग भी तो नौकरी करते हैं। आराम से हैं और आप दूसरों के काम के पीछे दीवाने रहते हैं। न कोई खाने का समय, न कोई सोने का। समाज सेवा ही करनी थी तो शादी न करते। अचानक कभी कुछ हो जाय तो अकेली क्या कर लूँगी !
कुछ देर बाद भोजन की थाली सामने रखते हुए उसने मेरा मनुहार किया। मैं चुपचाप भोजन करता रहा। इसी बीच शीला ने इंस्पेक्टर साहब के बच्चे की बात बताई। वह छत से गिर पड़ा था। दाहिने हाथ की हड्डी टूट गई थी। कोई कह रहा था कि प्लास्टर आदि में हजारों रुपये एक ही दिन में खर्च हो गए थे। अपना सोनू भी बड़ा चंचल है। दिन भर छत पर खेलता रहता है। भगवान न करें कि कभी ऐसा हो, पर कभी कुछ हो जाये तो में अकेली क्या कर सकुंगी। घर में रुपए भी नहीं होते। मै घबरा जाती। हूँ। पड़ोस की औरतों ने तो और भी नाक में दम कर रखा है। जैसे उनके घरों में कोई काम ही नहीं होता, यहाँ आकर घण्टों बैठी रहती है। कभी किसी की बुराई करती तो कभी किसी की। अमुक के पापा ऐसे हैं। उनके घर कार क्या आ गई कि वे सीधे मुँह बात नहीं करती। आप के विषय में भी तमाम बातें करती हैं। कई बार पूछ चुकी हैं कि क्यों इधर-उधर के कामों में लगे रहते हैं? सुना किसी दिन गरीबों और अपाहिजों की बस्ती में भी गए थे। इतने बड़े पूजा-पाठी होकर गन्दी बस्ती में जाने में इन्हें जरा भी विचार नहीं....। इस तरह सुनते-सुनते मेरे कान पक गए थे। इसलिए आज मैंने आपको बहुत कुछ कह दिया। मुझे माफ करो.....। कहते हुए शीला, मेरी पत्नी अपने हृदय-सागर के निर्मल आँसुओं को रोक न सकी। तब तक मेरी मनः स्थिति भी सामान्य हो गई थी।
"शीला! इस समय तो मुझे बस इतना ही कहना है कि यदि कभी कुछ होता है तो उस समय धैर्य रखो ।" इन बातों को सुनकर शीला ने दुबारा मेरा कोई विरोध नहीं किया। उसने मेरे स्वभाव अनुसार अपने को ढाल लिया था किन्तु उसके विचारों में कोई परिवर्तन नहीं हो सका था। उसका अन्तर्द्वन्द्व बराबर चलता रहा। वह औरों की भाँति ही मुझे भी अपने परिवार की प्रगति और खुशहाली में सन्तुष्टि के लिए सीमित रखना चाहती थी। इसलिए मन ही मन उसके विचारों की संकीर्णता और द्वन्द्व समाप्त करने के लिए मै चिन्तित रहने लगा था। कुछ दिनों बाद मुझे अपने एक मित्र के काम से दस दिनों के लिए त्रिवेन्द्रम जाना पड़ गया। इधर होनी होकर रही। एक दिन शीला रसोई में व्यस्त थी। सोनू छत से गिर पड़ा। अचेत हो गया। मिनटों में यह घटना मोहल्ले से मोहल्ले होते हुए पूरे नगर में फैल गई। सहानुभूति में दर्शकों की भीड़ लग गई। जो जिस लायक थे, सहायता के लिए टूट पड़े। उपचार के लिए रुपए कहाँ से आए? किसने दिए ? यह कोई जानकारी शीला को नहीं थी। घंटों बाद अस्पताल में रोगी शैय्या पर अपने को देखकर वह चकित रह गई। उसे पता चला कि सोनू को मूर्छित देखकर उपचार तो दूर रहा, वह स्वयं सदमे से मूर्छित हो गई थी। अस्पताल में अमीर-गरीब सभी स्तर के सहयोगियों की एकत्रित भीड़ को देखकर वह दंग रह गई। उसे मेरी अनुपस्थिति की अनुभूति भी नहीं हो सकी थी। शायद मैं उपस्थित रहकर भी उतना धन नहीं जुटा सकता था। उस दिन जिस समाज के पीछे मैं दीवाना रहता था, उसका दर्शन करते वह नहीं अघाती थी।
एक्सरे की रिपोर्ट के अनुसार तीसरी मंजिल से गिरने पर भी सोनू को कोई फ्रैक्चर नहीं हुआ था। कुछ समय बाद सोनू स्वस्थ हो गया था। उस घटना के बाद शीला का मन बदल गया था। वह मन ही मन समाज के प्रति मेरे कार्यों की सराहना कर रही थी; और बेताब हो रही थी।अपनी बात शीघ्रातिशीघ्र मुझे सुनाने के लिए। तिवेन्द्रम से लौटकर ग्यारहवे दिन मेरे घर पहुंचने पर शीला ने अपना टेप रिकॉर्ड खोल दिया और मैं अक्षरशः उसकी बात सुनता रहा। इसी बीच धूल धुसरित सोनू अपना खेल समाप्त कर चुपके से आया और मेरी पीठ पर सवार हो गया। मुझे दक्षिण की वह घटना याद आ गई। अब गणेशन स्वस्थ हो गया होगा।
सूर्यास्त का समय था। त्रिवेंद्रम के प्रसिद्ध सागर तट, कोवलम बीच पर हजारों की भीड़ मचल रही थी।बच्चे कभी सागर के जल को एक दूसरे पर उछलते तो कभी बालुका में तट पर दौड़ते वह दृश्य बहुत ही रोचक एवं आकर्षक था।अचानक एक चीख सुनाई पड़ी। पीछे मुड़कर देखा तो एक आठ वर्ष का बालक चीख रहा था। उसके पैर के तलवे से खून बह रहा था। मौखिक सहानुभूति के अतिरिक्त दर्शकों की उस भीड़ में कोई संवेदना थी। केवल एक महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी वह परेशान हो रही थी। गोद में एक बच्चे के कारण शायद वह लाचार थी। ऑटो स्टैंड तक पहुंचाने के लिए आधा किलोमीटर दूर तक पैदल वह बच्चे को कैसे ले जाए? एक क्षण भर उन दोनों को देखने के बाद मैं बच्चों के पैर में चुभी कल को निकाल दिया गांव पर रुमाल बांधने से रक्त बहन बंद हो गया था। अपनी पीठ पर लादकर मैंने गणेशन को ऑटो स्टैण्ड पर पहुँचा दिया था। बालक की माँ पढ़ी लिखी थी। उसे अस्पताल जाने में कोई कठिनाई नहीं थी। इसलिए में निश्चिन्त होकर समय से अपने मित्र के घर लौट गया। इस घटना को सुनकर मेरे सिद्धान्तों के प्रति शीला की आस्था और विश्वास अधिक दृढ़ हो गया था। उसे आश्चर्य हो रहा था कि जब मेरा सोनू छत से गिरा था, ठीक उसी दिन उसी समय मैं आठ वर्षीय गणेशन को पीठ पर लादकर ऑटो स्टैण्ड पर जा रहा था। उस समय मेरी अनुपस्थिति में सोनू की सहायता के लिए लोग व्याकुल हो उठे थे।
कुछ दिनों बाद मुझे यह जानकर सन्तोष हुआ कि शीला अवकाश के क्षणों में मुहल्ले-मुहल्ले में जाकर महिलाओं के बीच समाज सेवा के कार्य करने में लगी थी। एक दिन वह कह रही थी कि जो समाज की उपेक्षा कर मात्र अपनी ही उन्नति में संतुष्ट रहता है, प्रकृति उसका नियंत्रण स्वयं करती है, समय आने पर उन्हें दण्ड भी देती है।
तभी मुझे हरीबाबू की याद आई। इतने ऊँचे पद पर काम करते हुए उन्होंने अपने लिए क्या-क्या नहीं किया? पर आज उनकी सम्पत्ति और वैभव कोई साथ नहीं दे रहे थे। वे कभी किसी के दुःख-सुख में शरीक नहीं रहे। रिटायरमेंट के बाद एक मात्र पुत्र शोक के अवसर पर उनके पूर्व कथित आत्मीयजनों के भी दर्शन नहीं हुए। समाज के अन्य लोगों से तो वे सम्पर्क पहले ही तोड़ चुके थे। इसलिए समाज ने भी उनके साथ वही व्यवहार किया जैसा उन्होंने किया था। इस कठोर सत्य को वे समझ न सके और पागल हो गए। समाज को समझने का जब समन , शक्ति थी, तब समझ न सके और जब समाज को समझने की समझ आई तो बहुत देर हो चुकी थी कल उनकी दिल्ली पर खड़ा दस्तक दे रहा था।
शब्दार्थ
देहात = गाँव।
मनुहार = आग्रह।
तमाम् = बहुत।
सागर = समुद्र।
निर्मल = स्वच्छ।
अंतरद्वंद्व = मन की हलचल।
संकीर्ण = छोटा।
अघाना = तृप्त होना।
बेताब = व्याकुल।
शीघ्रतिशीघ = जल्द से जल्द।
बालुकामय = रेत से भरा हुआ।
तट = किनारा।
रिटायरमेंट = सेवा-निवृत्ति।
महत्वपूर्ण गद्यांश
गद्यांश (1) उसका अंतरद्वंद्व बराबर चलता रहा। वह औरों की भांति ही मुझे भी अपने परिवार की प्रगति और खुशहाली में संतुष्टि के लिए सीमित रखना चाहती थी। इसलिए संकीर्णता और द्वन्द समाप्त करने के लिए मैं चिन्तित रहने लगा था।
सन्दर्भ— प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'भाषा-भारती' के पाठ दस्तक से ली गई है। इस कहानी के लेखक डॉ. शिवभूषण त्रिपाठी हैं।
प्रसंग— कहानीकार ने स्पष्ट किया है कि मन के अन्दर उठने वाले संकुचित विचार मनुष्य को स्वार्थी बना देते हैं।
व्याख्या— लेखक की पत्नी शीला नहीं चाहती, कि सामाजिक कार्यों में ही लगे रहें। उनके बाहर रहने की वे सदा घर पर कोई घटना घटती है, तो कौन सहायक होगा, स्थिति में पर लेखक ने शीला को कहा कि उसे केवल धैर्य रखना चाहिए। परन्तु उसके मन में उत्पन्न विचारों की हलचल मचती रही। पह चाहती थी कि वह (लेखक) भी सदा अपनी और अपने परिवार की उन्नति, बढ़ोत्तरी और सम्पन्नता के लिए कार्य करने तक ही सीमित रहें। लेखक सोचता था कि उनकी पत्नी की यह संकुचित विचारधारा और उसके मन में उठने वाले विचारों की हलचल समाप्त हो जाय। यही लेखक की चिन्ता का कारण था।
गद्यांश (2) अस्पताल में अमीर-गरीब सभी स्तर के सहयोगियों की एकत्रित भीड़ को देखकर वह दंग रह गई। उसे मेरी अनुपस्थिति की अनुभूति भी नहीं हो सकी थी। शायद मैं उपस्थित रहकर भी उतना धन नहीं जुटा सकता था। उस दिन जिस समाज के पीछे मैं दिवाना रहता था, उसका दर्शन करते वह नहीं अघाती थी।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— लेखक का पुत्र सोनू छत से गिर गया। लेखक किसी के काम से त्रिवेन्द्रम गया हुआ था। बालक गिरने से अचेत हो गया। दर्शक और सहयोगी जन उसे अस्पताल ले गए। पत्नी पुत्र की दशा पर स्वयं मूर्च्छित हो गई।
व्याख्या— अस्पताल में भर्ती किए गए लेखक के अचेत पुत्र के इलाज के लिए धनवान और गरीब सभी स्तर के लोग वहां पहुँच गए। इन सहयोगियों की भीड़ को देखकर वह (लेखक की पत्नी) भी अचम्भे में पड़ गई। उसे लेखक का गैर-हाजिर होना भी मालूम न हुआ क्योंकि रुपये पैसे का प्रबन्ध किसने किया, यह भी पता नहीं चला। लेखक कहता है, जो भी धन सोनू के लिए खर्च किया गया, उतना वह स्वयं भी एकत्र नहीं कर पाता। पूरा समाज उस दिन अस्पताल में इकट्ठा था। लेखक ने सदा ही समाज की चिन्ता की। उस समाज की सेवा में वह सदा तत्पर रहता था। उस समाज के लोगों की भीड़ देखकर वह अघाती नहीं थी। अर्थात् समाज का हर व्यक्ति उसकी सेवा के लिए तत्पर था।
गद्यांश (3) सूर्यास्त का समय था। त्रिवेन्द्रम के प्रसिद्ध सागर तट, कोवलम बीच पर हजारों की भीड़ मचल रही थी। बच्चे कभी सागर के जल को एक-दूसरे पर उछालते तो कभी बालुकामय तट पर दौड़ते। वह दृश्य बहुत ही रोचक एवं आकर्षक था।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— सूर्य के छिपने के समय पर समुद्र के किनारे का वर्णन है।
व्याख्या— लेखक अपने मित्र के किसी काम से त्रिवेन्द्रम गया हुआ है। सूर्य के छिपने का समय हो चुका था, त्रिवेन्द्रम का समुद्री किनारा अपने सायंकालीन सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है। कोवलम नाम से प्रसिद्ध समुद्री किनारे पर हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे घूम-फिर रहे थे। बच्चे समुद्र के पानी को एक-दूसरे पर उछालते तो कभी बालू भरे समुद्री किनारे पर इधर से उधर दौड़ रहे थे। यह दृश्य बहुत ही अच्छा लग रहा था तथा सब को अपनी ओर खींच रहा था।
गद्यांश (4) इस घटना को सुनकर मेरे सिद्धान्तों के प्रति शीला की आस्था और विश्वास अधिक दृढ़ हो गया था। उसे आश्चर्य हो रहा था कि जब मेरा सोनू छत से गिरा था, ठीक उसी दिन उसी समय मैं आठ वर्षीय गणेशन को पीठ पर लादकर ऑटो स्टैण्ड पर जा रहा था। उसी समय मेरी अनुपस्थिति में सोनू की सहायता के लिए लोग व्याकुल हो उठे थे।
सन्दर्भ—पूर्व की तरह।
प्रसंग— पैर में कील चुभ जाने से कष्ट पाते गणेशन को ऑटो स्टेण्ड तक लेकर लेखक पहुँचाता है। तो उधर लेखक के पुत्र सोनू की सहायता के लिए भी लोग हड़बड़ाये जा रहे थे। यद्यपि लेखक वहाँ नहीं था।
व्याख्या— लेखक ने जब पैर में कील के चुभने से घायल आठ वर्षीय गणेशन को ऑटो स्टेण्ड तक, अपनी पीठ पर लाद कर पहुँचाया ठीक उसी समय इधर छत से गिरे लेखक के पुत्र सोनू को अस्पताल पहुँचाने में सहायता करने के लिए जुटे लोगों की भीड़ को देखकर लेखक की पत्नी शीला को यह विश्वास हो गया कि लेखक द्वारा समाज के लोगों की सहायता करने के सिद्धान्त का, नियम का ही यह प्रभाव है, जिससे लोग सोनू की सहायता धन और बल दोनों से करने के लिए जुटे हुए थे। समाज सेवा के नियम में शीला की आस्था पक्की होती जा रही थी। लोग लेखक के पुत्र के कष्ट से व्याकुल थे लेकिन वे सभी उसकी गैर-मौजूदगी में भी सोनू की सहायता को अड़े हुए थे। सेवा का फल मीठा होता है।
गद्यांश (5) समाज को समझने का जब समय था, शक्ति थी, तब समझ न सके और जब समाज को समझने की समझ आई तो बहुत देर हो चुकी थी, काल उनकी देहली पर खड़ा दस्तक दे रहा था।
सन्दर्भ— पूर्व की तरह।
प्रसंग— जब लेखक त्रिवेन्द्रम से लौटकर अपने घर आए, घटना को जाना-समझा तो उसी समय ऊँचे पद पर आसीन हरीबाबू की याद आई और वह कहने लगे कि—
व्याख्या— हरीबाबू ने अच्छे और ऊँचे पद पर रहकर नौकरी की, लेकिन उस नौकरी के मध्य केवल अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया। समाज के लोगों की सहायता की बात तो दूर, उनके विषय में सोचा भी नहीं। अपने ही कष्टों से वैभवपूर्ण होने पर भी, पागल की स्थिति में आ गए, कोई भी उनकी सहायता के लिए नहीं आया। जब वे सामर्थ्यवान थे, तो समाज की सेवा कर सकते थे, उस समय उन्होंने समाज को न तो समझा और न उसे समझने की बुद्धि (सूझ-बूझ) आई। अब समाज को समझने लगे, तो समय निकल चुका था। समाज की सेवा करने की समय सीमा से बाहर हो चुके वे रिटायर हो चुके थे क्योंकि अब तो वे अपने जीवन की अन्तिम सीढ़ी पर थे। काल किसी भी समय आकर दस्तक देने वाला था। उस अवस्था में (चौथेपन में) मनुष्य किसी की भी सहायता करने की सामर्थ्य से रहित हो जाता है।
प्रश्न 1 सही विकल्प चुनकर लिखिए—
(क) लेखक के बेटे का नाम था—
(i) गणेशन
(ii) सोनू
(iii) गरीबा
(iv) हरी बाबू
उत्तर—(ii) सोनू
(ख) त्रिवेन्द्रम का प्रसिद्ध सागर तट है—
(i) कोलकाता
(ii) कोवलम
(iii) मुम्बई
(iv) गोआ
उत्तर—(ii) कोवलम।
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—
(क)हरीबाबू ऊँचे पद पर कार्यरत थे।
(ख) शीला अवकाश के क्षणों में समाजसेवा का कार्य करने लगी।
प्रश्न 3. एक या दो वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) सोनू अचेत कैसे हो गया था?
उत्तर— सोनू छत से गिर पड़ा और उसके सदमे से वह अचेत हो गया।
(ख) लेखक गरीबा के घर क्यों गया था ?
उत्तर— गरीबा बीमार हो गया था इसलिए मुलाकात न होने कारण लेखक उससे मिलने के लिए उसके घर चला गया था।
(ग) शीला मूर्छित क्यों हो गई थी?
उत्तर— शीला अपने पुत्र सोनू को छत से गिरने पर मूर्छित देखकर स्वयं मूर्छित हो गई।
(घ) लेखक ने गणेशन की मदद कैसे की ?
उत्तर— लेखक ने आठ वर्षीय गणेशन के पैर में आर-पार चुभी कील को खींचकर निकाला और पट्टी बाँध दी। उसे अपनी पीठ पर लादकर ऑटो स्टैण्ड तक पहुँचाया।
प्रश्न 4. तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए—
(क) शीला अपने पति से नाराज क्यों रहती थी ?
उत्तर— शीला अपने पति से नाराज इसलिए रहती थी कि वह (पति) समाज के काम के लिए, अपनी चिन्ता छोड़कर भी लगे रहते थे। लोगों की सेवा करने, उनकी समस्याओं को दूर कराने में सहायता करने में वे (लेखक महोदय) लगे रहते थे। अपने घर और गृहस्थी के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। अतः शीला अपने पति से नाराज रहती थी।
(ख) शीला के व्यवहार में परिवर्तन का क्या कारण था ?
उत्तर— सोनू छत से गिर पड़ा, मूर्च्छित हो गया। जिस किसी ने भी यह समाचार सुना, वही सहायता के लिए दौड़ पड़ा। शीला पुत्र को अस्पताल में मूर्च्छित दशा में देखकर मूर्छित हो गई।एकत्र हुए समाज के लोग किसी भी तरह की सहायता, चाहे वह धन को हो या बल की, तैयार थे। इतनी संख्या में सहायकों और सहयोगियों को देखकर शीला के व्यवहार में परिवर्तन आया। लेखक द्वारा की गई समाज सेवा में शीला की आस्था और विश्वास बढ़ गया और वह स्वयं समाज की सहायता में मुहल्लों और पड़ौस की महिला-मण्डलों में जाकर उपस्थित होने लगी।
(ग) समाज ने भी उनके साथ वही व्यवहार किया जैसा उन्होंने किया था ? इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— लेखक समाज सेवा में हर समय तत्पर रहते थे ।वे अपनी गृहस्थी और घर की समस्याओं के समाधान के लिए समय नहीं दे पाते थे। वे समाज सेवा में सब कुछ भूले हुए थे। एक दिन जब उनका सोनू छत से गिर पड़ा, अचेत हो गया, तो समाज के लोग ही उसे अस्पताल ले गए। लेखक तो उस समय त्रिवेन्द्रम में अपने किसी मित्र के कार्य से गए हुए थे। उनकी गैर-मौजूदगी में भी समाज के लोगों ने उनके पुत्र सोनू के लिए जो सहयोग दिया, वैसा तो स्वयं लेखक भी नहीं कर पाते। क्योंकि लेखक चौबीस घण्टे समाज की सेवा में लगे रहते थे, तो उस दिन समाज ने भी अपनी कृतज्ञता का परिचय दिया। समाज ने वही किया, जैसा उन्होंने समाज के लिए किया था।
(घ) शीला ने समाज की उपेक्षा करने वालों के विषय मे क्या कहा ?
उत्तर— शीला और लेखक के पुत्र सोनू को अस्पताल में सहायता के लिए तत्पर लोगों की भीड़ देखकर तथा सोनू के स्वस्थ हो जाने पर शीला भी समाज के द्वारा दिए गए सहयोग से प्रभावित होकर अपने अवकाश के समय में प्रत्येक मुहल्ले में जाकर महिलाओं के बीच समाज सेवा करने लगी। वह कहने लगी कि
समाज की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। यदि ऐसा कोई करता भी है तो वह व्यक्ति अपनी ही उन्नति से सन्तुष्ट होता रहता है। उसे समाज के कल्याण की चिन्ता नहीं होती। परन्तु अनुभव से देखा गया है कि ऐसे व्यक्तियों का प्रकृति स्वयं नियन्त्रण करती है। समय आने पर उसे दण्ड भी देती है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित गद्यांश की व्याख्या कीजिए—
'जो समाज की उपेक्षा कर मात्र अपनी ही उन्नति में संतुष्ट रहता है, प्रकृति उसका नियन्त्रण स्वयं करती है। समय आने पर उन्हें दण्ड भी देती है।'
उत्तर— समाज की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। यदि ऐसा कोई करता भी है तो वह व्यक्ति अपनी ही उन्नति से सन्तुष्ट होता रहता है। उसे समाज के कल्याण की चिन्ता नहीं होती। परन्तु अनुभव से देखा गया है कि ऐसे व्यक्तियों का प्रकृति स्वयं नियन्त्रण करती है। समय आने पर उसे दण्ड भी देती है।
प्रश्न 6. सोचिए और बताइए—
(क) शीला मुहल्ले-मुहल्ले जाकर समाज-सेवा क्यों करने लगी ?
उत्तर— शीला अपने पुत्र सोनू के साथ छत से गिरकर हुई दुर्घटना के समय समाज के लोगों ने जो सहयोग दिया, उसे देखकर उसके मन के विचारों में परिवर्तन हुआ। उसे समझ में आने लगा कि लेखक के द्वारा की गई समाज सेवा का प्रतिफल- समाज के लोगों का सहयोग मिला और सोनू को स्वास्थ्य लाभ मिला। इस सब के पीछे लेखक की समाज सेवा की भूमिका की प्रधानता है। सेवा का बदला सेवा के रूप में ही प्राप्त होता है। यह समझकर शीला मुहल्ले-मुहल्ले जाकर समाज-सेवा करने लगी।
(ख) छत से गिरने की दुर्घटना से कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर— मकान की छत की मुंडेर की ऊँचाई अधिक होनी चाहिए। छत पर बच्चों या युवकों को खेलते समय बार-बार ध्यान दिलाते रहना चाहिए कि छत पर सावधानी बरतें, खेलते हुए बच्चे या युवक आपस में धक्का-मुक्की न करें। छत की मुंडेर की तरफ पीठ करके चलना अथवा दौड़ना नहीं चाहिए।
अनुमान और कल्पना
(क) यदि आप त्रिवेन्द्रम में लेखक की जगह आप होते तो क्या करते ?
उत्तर— त्रिवेन्द्रम में लेखक की जगह होने पर मैं स्वयं गणेशन को ऑटो स्टैण्ड पर लाकर ऑटो से अस्पताल पहुँचाता और उसकी उचित मरहम-पट्टी करता। उसके थोड़ा सम्हलने पर उसके घर पहुँचा कर ही, अपने काम को पूरा करता।
(ख) यदि हरीबाबू की तरह आप ऊँचे पद पर होते तो क्या-क्या करते ?
उत्तर—ऊँचे पद पर होने का तात्पर्य यह नहीं है कि मनुष्य मानवता को भुला दे और अपने स्वार्थों की पूर्ति भर ही करता रहे। सरकारी अधिकारी भी जनता का सेवक होता है। जनता की किसी भी असुविधा का निवारण करना, उसकी सेवा करना ही उसका धर्म है। इस दृष्टि से सेवा-धर्म का निर्वाह ही करता।
भाषा की बात
प्रश्न 1. शुद्ध उच्चारण कीजिए— बड़बड़ाहट, प्लास्टर, स्वभाव, अनुपस्थिति, स्वस्थ, नियंत्रण। उत्तर— अपने अध्यापक महोदय के सहयोग से उच्चारण कीजिए और अभ्यास कीजिए।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए—
(i) मनोरञ्जन, (ii) अन्तरद्वन्द, (iii) हिरदय (iv) चनचल (v) दरशन।
उत्तर— (i) मनोरंजन
(ii) अंतरद्वंद्व
(iii) हृदय
(iv) चंचल
(v) दर्शन।
प्रश्न 3. नीचे लिखे शब्दों के विलोम शब्द लिखिए—
(i) आशा, (ii) उपस्थित, (iii) कठिन, (iv) अमीर, (v) उन्नति
(vi) कठोर।
उत्तर— (i) निराशा
(ii) अनुपस्थित
(iii) सरल
(iv) गरीब
(v) अवनति
(vi) कोमल।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों में संज्ञा, सर्वनाम व क्रिया छाँटकर लिखिए—
(i) चिल्लाना, (ii) वे, (iii) शीला, (iv) बोलना, (v) बड़बड़ाना, (vi) वह, (vii) हरीबाबू, (viii) अघाना, (ix) मैं, (x) सोनू, (xi) उसने, (xii) गरीबा।
उत्तर—(1)संज्ञा— शीला, हरीबाबू, सोनू, गरीबा।
(2) सर्वनाम— वे, वह, मैं, उसने।
(3) क्रिया— चिल्लाना, बोलना, बडबड़ाना, अघाना।
प्रश्न 5. इस पाठ में अन्य भाषा के शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर— प्लास्टर, लाचार, सरेआम, फिल्मी, खासी, देहात, आरामखाना, मनुहार, दम, अमुक, कार, तमाम, गन्दी, माफ, मोहल्ला, लायक, बेताव, टेपरिकार्ड, हवाइयाँ, ऑटो स्टैण्ड, किलोमीटर, रूमाल, अस्पताल।
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों में 'आई' या 'आहट' प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए—
(i) बुरा, (ii) लड़खड़ाना, (iii) चतुर, (iv) गुनगुनाना,(v) भला, (vi) लड़ना, (vii) गुदगुदाना, (viii) चहचहाना।
उत्तर— (i)बुरा + आई = बुराई
(ii)लड़खड़ाना + आहट = लड़खड़ाहट
(iii)चतुर + आई = चतुराई
(iv)गुनगुनाना + आहट = गुनगुनाहट
(v)भला + आई = भलाई
(vi)लड़ना + आई = लड़ाई
(vii)गुदगुदाना + आहट= गुदगुदाहट
(viii)चहचहाना + आहट = चहचहाहट।
प्रश्न 7. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग कीजिए—
(i) तिल का ताड़ बनाना, (ii) नाक में दम करना, (iii) सीधे मुँह बात न करना, (iv) कान भरना।
उत्तर—(i) तिल का ताड़ बनाना— छोटी बात को बढ़ा- चढ़ाकर कहना।
प्रयोग— गिरीश बाबू अपने साथियों की थोड़ी भी गलती को अपने साहब से तिल का ताड़ बना कर कहते हैं।
(ii) नाक में दम करना— परेशान कर देना।
प्रयोग— राघव ने अपनी जिद्द पूरा करने के लिए अपने माँ-बाप की नाक में दम कर दिया।
(iii) सीधे मुँह बात न करना— घमण्ड करना।
प्रयोग— राधे की अभी-अभी फूड कार्पोरेशन में नियुक्ति क्या हुई है, वह तो किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करता है।
(iv) कान भरना— चुगली मारना।
प्रयोग— प्राय: देखा गया है कि मेरे दफ्तर के एक-दो बाबू दूसरे कर्मचारियों के खिलाफ अपने अधिकारी के कान भरते रहते हैं।
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4. पाठ 11 झाँसी की रानी सप्रसंग व्याख्या एवं संपूर्ण प्रश्न उत्तर
5. पाठ 12 डॉ. होमी जहाँगीर भाभा प्रश्नोत्तर व सम्पूर्ण अभ्यास
6. पाठ 13 बसंत पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या सम्पूर्ण प्रश्नोत्तर
7. विविध प्रश्नावली कक्षा छठवीं विषय हिंदी संपूर्ण प्रश्नों के सटीक उत्तर
8. पाठ 14 नारियल का बगीचा - केरल गद्यांशो की सप्रसंग व्याख्या प्रश्नोत्तर भाषा अध्ययन
कक्षा 6 के इन सभी विषयों के पाठों की 👇 जानकारियों को भी पढ़ें।
पाठ 1 विजयी विश्व तिरंगा प्यारा से प्रतियोगिता परीक्षा हेतु जानकारियाँ
मॉडल प्रश्न पत्र कक्षा 6 सत्र 2022-23 (हल सहित)
1. [1] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
2. [2] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
3. [3] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
4. [4] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
5. [5] मॉडल प्रश्नपत्र विषय विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
6. [1] मॉडल प्रश्नपत्र विषय सामाजिक विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
7. [2] मॉडल प्रश्नपत्र विषय सामाजिक विज्ञान (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
8. मॉडल प्रश्नपत्र विषय गणित (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
9. मॉडल प्रश्नपत्र विषय संस्कृत (हल सहित) कक्षा 6 वार्षिक परीक्षा 2023
एटग्रेड अभ्यासिका कक्षा 6 हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, विज्ञान, सा. विज्ञान के पाठों को पढ़ें।
1. विज्ञान - पाठ 2 'भोजन के घटक' एटग्रेड अभ्यासिका के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
2. विज्ञान - पाठ 2 'सूक्ष्मजीव - मित्र एवं शत्रु' एटग्रेड अभ्यासिका के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
3. विज्ञान - पाठ 3 'तन्तु से वस्त्र तक' एटग्रेड अभ्यासिका के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
4. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका कक्षा 06 सामाजिक विज्ञान हमारे अतीत अध्याय 01 और 02
5. एटग्रेड अभ्यास पुस्तिका कक्षा 06 सामाजिक विज्ञान ग्लोब और मानचित्र
I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
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