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सौन्दर्य विकास (aesthetic development) क्या है? | सौन्दर्य विकास के सिद्धांत, लक्ष्य, विषय क्षेत्र, पाठ्यचर्या एवं गतिविधियाँ | सौन्दर्य विकास को प्रभावित करने वाले कारक

सौन्दर्य विकास क्या है?

'सौन्दर्य विकास' का तात्पर्य एक बच्चे अर्थात व्यक्ति की आंतरिक भावनाएँ, समझ के साथ अच्छी चीजों के अनुभव से है जो सक्रिय रूप से निर्मित होती है। सौंदर्य संबंधी विषय क्षेत्र का उद्देश्य छोटे बच्चों को पर्यावरण में सुंदरता का अनुभव कराने में मदद करना है। उनकी सौंदर्य संबंधी संवेदनशीलता और प्राथमिकताओं को विकसित करते हुए, उनकी कल्पना शक्ति को विकसित करना है। इसु के साथ उन्हें कलात्मक सृजन में संलग्न करना है।

बालक में सौन्दर्य दर्शन के पहलू―

यह ज्ञातव्य है कि एक बालक के व्यक्तित्व, उसका दूसरों से तादाम्य स्थापित करने की कला, हर क्षेत्र में सकारात्मकता के साथ अच्छाई देखने व उसे उभारने की क्षमता सौंदर्य विकास कहलाती है। सौन्दर्य विकास से केवल शारीरिक सुन्दरता का ही विकास नहीं अपितु बालक के क्रियाकलापों एवं व्यवहार की सुन्दरता भी शामिल है। जब बालक में आकर्षण करने के गुण उत्पन्न हो जाते हैं तो निश्चित सौन्दर्य विकास होने लगता है। यदि एक चेहरे से सुन्दर बालक का व्यक्तित्व अपने व्यवहार एवं भाषा से कुटिल है तो हम उसका सौन्दर्य विकास हुआ है ऐसा नहीं मान सकते। सौन्दर्य विकास में व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवन शैली बड़ी आकर्षक होती है। उसके रहन-सहन का ढंग, खान-पान, वस्त्र धारण के तौर तरीके इत्यादि में आकर्षण रहता है। सौन्दर्य विकास प्राप्त बालक अपने व्यक्तित्व से दूसरे लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। सौन्दर्य विकास को हम एक प्रकार से व्यक्तित्व विकास भी मान सकते हैं। एक व्यक्ति का व्यक्तित्व त‌भी निखर सकता है जब उसके व्यवहार में लोच तथा वाणी में मधुरता हो। सुन्दर व्यक्तित्व वाले व्यक्ति या बालक समाज में सभी के चहेते होते हैं, उनका सभी जगह मान-सम्मान होता है।

सौन्दर्य विकास एवं बचपन

बहुत से देशों में आरंभिक शिक्षा में सौन्दर्य विकास को बढ़ावा दिया जाता है। प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में सौंदर्य शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया गया है। प्रारंभिक शिक्षा बचपन की नींव है। शिक्षा शास्त्रियों ने बच्चों के पाठ्यक्रम में सौंदर्य संबंधी विषय क्षेत्र को शामिल करने का पुरजोर समर्थन किया है। बचपन में सौंदर्य विकास बच्चों को उनके आसपास की दुनिया को समझने में काफी मदद करता है। बचपन के प्रारंभिक विकास में इस विकास की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों को न केवल मुख्य विषयों को पढ़ाने की जरूरत है, बल्कि उन्हें कला के प्रति सराहना करना भी सीखने की जरूरत है।

शिक्षा शास्त्री जॉन डेवी का मत― शिक्षा शास्त्री जॉन डेवी का मानना ​​था कि बच्चे अपने स्वयं के विचार बनाकर सबसे अच्छा सीखते हैं और अपने अनुभवों और बातचीत के माध्यम से अपनी शिक्षा को बढ़ा सकते हैं। सकारात्मक अनुभवों से उनके परिवेश के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा होता है। जैसे-जैसे बच्चे नए अनुभव प्राप्त करते हैं, जानकारी को अपने पिछले ज्ञान से जोड़ते हैं। इसी के साथ सुंदरता पर अपने विचार बनाते हैं जिससे उनका विकास जारी रहता है। डेवी का यह भी मानना ​​था कि बालकों के बचपन के शिक्षकों को बच्चों को संज्ञानात्मक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक विकास के लिए सौंदर्य का बोध कराना चाहिए।

सौंदर्य विकास पर रुडोल्फ स्टीनर के विचार― सौंदर्य विकास पर रुडोल्फ स्टीनर ने कहा है कि बच्चों को बौद्धिक, रचनात्मक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास की आवश्यकता है। यह परिप्रेक्ष्य इस तथ्य पर केंद्रित है कि 0-7 वर्ष की आयु के बच्चे अपनी इंद्रियों के माध्यम से अपने पर्यावरण के बारे में सीखते हैं। संगीत, कला और नाटक को शामिल करने से छात्रों में नकल या छापों के माध्यम से जानकारी बनाए रखने की क्षमता विकसित होती है। सौंदर्य विकास को शामिल करके, शिक्षक ऐसे दृष्टिकोण प्रदान करते हैं जो बच्चों को एक सफल भविष्य के लिए तैयार करने में सहायता प्रदान करते हैं और कल्पनाशीलता को प्रोत्साहित करते हैं।

लेव वायगोत्स्की का मत― लेव वायगोत्स्की सौन्दर्य विकास को बालक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन के लिए आवश्यक मानते हैं वे इसे बच्चे के विकास की कुंजी कहते हैं।

सौन्दर्य बोध और इसके विषय क्षेत्र

सौन्दर्य बोध की क्षमता आमतौर पर व्यक्तिगत कल्पना या अनुभव और गहरी इंद्रियों के माध्यम से होती है। जब शिक्षा या सीखने के संदर्भ में उपयोग किया जाता है, तो यह 'सौंदर्य का विषय क्षेत्र' आंतरिक भावनाओं और आनंद की ओर ले जाने में हमारी मदद करता है। किशोर चीजों की सुंदरता को समझते हैं और समृद्ध सौंदर्य अनुभव का आनंद भी लेते हैं। उनके ऐसा करने से छोटे बच्चों को भी प्रेरणा मिलती है। हम जानते हैं कि छोटे बच्चों में जिज्ञासाएँ कूट-कूट कर भरी हुई होती हैं। वे हर तरह की चीजों को लेकर जिज्ञासा से भरे रहते हैं। बाल्यावस्था में सौंदर्य संबंधी अनुभव मुख्य रूप से अन्वेषण और जागरूकता की क्षमता पर आधारित होते हैं। बच्चे अपने आस-पास का वातावरण और अलग-अलग चीजों की खोज और अनुभव करना पसंद करते हैं। जब छोटे बच्चे होते हैं तो वे दृश्य छवियों, ध्वनि लय, अभिनय और नाटक, कलात्मक क्षेत्र का उपयोग करने में रुचि रखते हैं। छोटे बच्चे जब किसी क्षेत्र में रूबरू होते हैं तब अपनी कल्पना, रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं।

पाठ्यक्रम में सौन्दर्य विकास

प्रारंभिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शारीरिक पुष्टता, मानसिक स्वास्थ्य, अच्छी आदतें विकसित करना, जीवन अनुभव को समृद्ध करना, नैतिक अवधारणाओं को बढ़ावा देना, सामूह कार्य करना, सौंदर्य अनुभव का विस्तार करना, रचनात्मक सोच विकसित करना, प्रारंभिक बचपन के सांस्कृतिक निर्माण में मदद करना पहचान, और पर्यावरण की देखभाल के लिए प्रेरित करना। सौन्दर्य विकास के क्षेत्रों में छोटे बच्चों का फूल, पत्ती, पौधे, घास, मछली, जानवर, बरसात, इंद्रधनुष आदि जैसी प्राकृतिक घटनाओं का अन्वेषण करना शामिल होता है। जबकि किशोरों का अपने दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुओं, बर्तनों, उनके द्वारा देखे जाने वाले उपकरणों और यहाॅं तक ​​कि वास्तुशिल्प तत्वों में रुचि के क्षेत्र शामिल होते हैं।

बच्चों के सौंदर्य विकास के सिद्धांत

सौन्दर्य विकास में निम्नलिखित सिद्धांत शामिल हो सकते हैं—
1. अन्वेषण और जागरूकता
2. प्रदर्शन और निर्माण
3. प्रतिक्रिया और प्रशंसा
उक्त प्रक्रियाओं के माध्यम से छोटे बच्चे अपनी दृष्टि, श्रवण, स्वाद, घ्राण और स्पर्श शक्ति में तीव्रता ला सकते हैं।

1. अन्वेषण और जागरूकता― 'अन्वेषण और जागरूकता' का अर्थ है कि छोटे बच्चे इंद्रियों और सूझ के साथ अन्वेषण करें, अपने आस-पास की चीज़ों की सुंदरता को समझे। छोटे बच्चे अपने आस-पास के परिवेश की चीज़ों का उपयोग करते हैं और जीवन का आनंद लेते हैं। बच्चे अपनी आंतरिक भावनाओं और कल्पना को व्यक्त करने के लिए वे अपनी आवाज, शरीर या बोली जाने वाली भाषा का उपयोग करते हैं।

2. प्रदर्शन और निर्माण― बच्चे अपने व्यक्तिगत या समूह प्रदर्शन के माध्यम से अपनी रचनात्मकता प्रदर्शित कर सकते हैं अर्थात प्रदर्शन और सृजन की ओर इंगित करते हैं। छोटे बच्चे अपनी कल्पना को बढ़ाने हेतु कलात्मक क्षेत्र के विभिन्न रूपों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं।

3. प्रतिक्रिया और प्रशंसा― सौंदर्य क्षेत्र में तीसरे सिद्धांत अन्तर्गत छोटे बच्चों की उनके परिवेश में विविध कलात्मक रचनाएँ या अभिव्यक्तियाँ, और उनकी भावनाएँ व्यक्त करना पसंद होता है। हमारे दैनिक जीवन में या खेलों की दुनिया में, छोटे बच्चों के लिए कलात्मक सृजन या प्रदर्शन के कई अवसर होते हैं। आम तौर पर छोटे बच्चे इन रचनाओं पर शारीरिक गतिविधियों या मुखर अभिव्यक्तियों के साथ सहजता से प्रतिक्रिया करते हैं जैसे देखना, ताली बजाना और मुस्कुराना आदि। इस तरह बड़े होकर बच्चे धीरे-धीरे अपनी भावनाओं का वर्णन करना या व्यक्त करना सीख जाते हैं।

सौन्दर्य विकास के लक्ष्य

(1) भौतिक संसार की सुंदरता का अन्वेषण करना।
(2) सौंदर्य अनुभव और कलात्मक सृजन का आनंद लेना।
(3) समृद्ध कल्पना का विकास करना।
(4) कलात्मक सृजन के लिए भावनाओं और प्राथमिकताओं पर प्रतिक्रिया देना।

सौन्दर्य विकास हेतु सीखने का पहलू

सौंदर्य क्षेत्र के सीखने के पहलुओं को दो भागों में विभाजित किया गया है— 1. स्नेह 2. कलात्मक क्षेत्र।
1. स्नेह― 'स्नेह' का अर्थ है कि छोटे बच्चों को विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक स्नेह और आनंद महसूस करने तथा अनुभवों के साथ-साथ उनकी रचनात्मक गतिविधियों में पूर्ण प्रेंम के साथ जानने के अवसर मिले।
2. कलात्मक क्षेत्र― दूसरा कलात्मक क्षेत्र तो इसमें बच्चों को कलात्मक क्षेत्रों जैसे संगीत और नाटक, चित्र, कल्पना के आधार पर अपनी व्यक्तिगत भावनाओं के आधार पर रचना करना शामिल होता है। बच्चों के सौंदर्य बोध को उभारने के लिए शिल्प उपकरणों और सामग्रियों जैसे पेन, कैंची, गोंद, प्लास्टिक टेबल, स्टेपलर आदि काफी महत्व रखती है।
दृश्य कलात्मकता में प्रशंसा का स्रोत मुख्य रूप से छोटे बच्चों या उनके साथियों के निर्माण में पाया जाता है। चित्र पुस्तकें, ऑनलाइन सामग्री, या प्रदर्शनियाँ बच्चों की दृश्य कला की सराहना को बढ़ाने में मदद कर सकती हैं। शिक्षकों द्वारा छोटे बच्चों को द्वारा रूप, रंग, आकार, रेखा, सामग्री और अभिव्यक्ति के अन्य रूपों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

सौन्दर्य विकास और पाठ्यचर्या

बच्चों में सौन्दर्य विकास हेतु निम्न बातों का समावेशन आवश्यक है।
1. जीवंत वातावरण में सुखद सौंदर्य अनुभव प्राप्त करना।
2. जीवंत वातावरण में सौंदर्य के विभिन्न रूपों को महसूस करने हेतु अपनी इंद्रियों का उपयोग करना।
3. कल्पनाशीलता के साथ व्यक्तिगत रचनाएँ करना।
4. सृजनशीलता के लिए कलात्मक क्षेत्रों के विभिन्न रूपों का उपयोग करना।
5. विविध कलात्मक कृतियों से जुड़ना और व्यक्तिगत भावनाओं को व्यक्त करना।
6. कलात्मक कृतियों या प्रदर्शनों की सराहना करना और व्यक्तिगत विचार व्यक्त करना।

बच्चों के सौन्दर्य विकास हेतु कार्य एवं गतिविधियाँ

निम्न बिन्दुओं के आधार पर एक बच्चे में होने वाले सौन्दर्य विकास की गणना की जा सकती है।
1. बच्चों के मन में चीजों को देखकर उत्सुकता जागृत होना।
2. बच्चों का अपने आसपास के वातावरण की जानकारी को प्राप्त करने हेतु प्रश्न करना एवं अन्वेषण करने में रुचि रखना।
3. प्रकृति उसके जीवन और विभिन्न चीजों के बदलावों को देखने सुनने और महसूस करने हेतु अपनी इंद्रियों का उपयोग करना।
4. नई ध्वनि को सुनने पर जिज्ञासा जागृत करना जैसे हवाई जहाज की ध्वनि को सुनकर आसमान की ओर देखना।
5. बच्चों का पौधों की पत्तियों, पंखुड़ियों, शाखाओं आदि के गिरने पर उन्हें उठाना और उनके साथ खेलना।
6. बच्चों के परिवेश में होने वाले कार्यों जैसे भोजन पकाना, पढ़ाना, दुकानदारी करना इत्यादि की नकल करना या उसका अभिनय करना।
7. छोटे बच्चे का रचनात्मक, संगीतमय या संगीत संबंधी गतिविधियों के दौरान आनंद और प्रसन्नता से भर जाना।
8. बच्चों का भित्तिचित्र, स्क्रैपबुकिंग, आरा, बुनाई, स्टैकिंग ब्लॉक पसंद करना।
9. बच्चों का द्वि-आयामी या त्रि-आयामी वस्तुओं में विभिन्न सामग्रियाँ या पैटर्न बनाना पसंद करते हुए काम करना।
10. बच्चों का दृश्य कला उपकरण या सामग्री का उपयोग करना।
11. बच्चों का अपने अनुभवों, कल्पनाओं, चीज़ों को व्यक्त करने के लिए चित्रों या प्रतीकों का उपयोग कर सकना।
12. छोटे बच्चों का गाना, खटखटाना और संगीत पर ताल मिलाना।
13. बच्चों का किसी निश्चित क्रम का पालन करने के साथ टेबल या लकड़ी पर लय या धुन के साथ संगीत वाद्ययंत्र जैसे प्रहार कर सकना।
14. बच्चों परिचित कहानियों या कार्टून फिल्मों के पात्रों या ध्वनियों की नकल करना।
15. बच्चों का अकेले या अपने साथियों के साथ खेल खेलना के परिप्रेक्ष्य में प्रतिक्रिया देना।
16. बच्चों का अपने कपड़ों या कुछ रंगों के प्रति विशेष प्राथमिकता होना।
17. बच्चों का गतिविधियों के बारे में मौखिक या अन्य तरीकों से अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकना।
18. बच्चों का समुदाय में कला या सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना पसंद करना।
19. बच्चों का चित्र पुस्तकों में पात्रों या पैटर्न का आनंद लेने में रुचि रखना।
20. कार्टून फिल्म, नाटक या नृत्य प्रदर्शन का आनंद लेने के बाद, छोटे बच्चे उनमें से कुछ को पसंद करना।
21. बच्चों का नाटक, एकांकी आदि में आनंद लेने के बाद पात्रों से जुड़ना। पात्रों की वेशभूषा आदि में अपनी पसंद-नापसंद बताना।

बच्चों के सौन्दर्य विकास क्या करें?

बच्चों को सौन्दर्य विकास हेतु आवश्यक है कि छोटे बच्चों को अन्वेषण के लिए प्रोत्साहित करना और मार्गदर्शन करना आवश्यक है। छोटे बच्चों में स्वाभाविक रूप से गहन इंद्रिय संवेदनशीलता और धारणाएँ होती हैं। वे अपने आसपास कई चीजों को देखते हैं। जैसे वे बादलों में होने वाले बदलावों को देखते हैं, बूंदों को सुनते हैं, बारिश में या हवा चलने पर हाथ फैलाने की क्रिया दर्शाते हैं। धीरे-धीरे भावनाओं, अनुभव और सुंदरता के ज्ञान को एकत्रित करते हैं।

'खोज' बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने का सबसे अच्छा तरीका है। छोटे बच्चों को विभिन्न प्रकार के कमरों, स्थितियों आदि के साथ अन्वेषण के लिए एक सौंदर्यपूर्ण वातावरण प्रदान करना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं को पढ़ाने वाले शिक्षक अपने आस-पास की चीज़ों का पता लगाने के लिए अपनी इंद्रिय शक्तियों का उपयोग करने के लिए मार्गदर्शन कर सकते हैं, जैसे― बुलबुले उड़ाना, पानी का रंग बदलना, स्टेथोस्कोप से दिल की धड़कन सुनना, दर्पण देखना या ध्वनियाँ बदलना आदि। दृश्य कला, संगीत, नाटक, शारीरिक लय की योजना बना सकते हैं और विभिन्न प्रकार के कला उपकरण प्रदान कर सकते हैं।

बच्चों के गतिविधि कक्ष में सीखने का क्षेत्र, अलमारियाँ, दीवारें, दरवाजे और खिड़कियाँ, गलियारे या बुलेटिन बोर्ड, सीडी संगीत, और छोटे बच्चों के गाने शामिल हो सकते हैं। बच्चे रंगों, पौधों, पत्तियों से कार्यों या सजावट का उपयोग करके विभिन्न मौसमों पर प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

शिक्षक एवं माता-पिता की भूमिका

एक शिक्षक एवं माता-पिता को अपने बालक के सौन्दर्य विकास पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। उसे उचित मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण से अपने व्यक्तित्व में निखार लाना चाहिए। व्यक्ति शारीरिक, मानसिक या संवेगात्मक रुप से कितना भी सक्षम क्यों न हो यदि उसका सौंदर्य विकास पिछड़ा है तो उसका व्यक्तित्व कभी भी उत्कृष्ट कोटि का नहीं हो सकता।
निष्कर्षतः कहा जाये तो सौन्दर्य का विकास बालक की आत्म-अभिव्यक्ति का आनंद और उनके सौंदर्य संबंधी अनुभवों का प्रकटीकरण है जो बालक के सुन्दर भविष्य निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाता है। प्राथमिक शिक्षकों या आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को यह समझना होगा कि वे बच्चों के लिए उन युक्तियों का प्रयोग करे जिससे बच्चे अपने जीवन की सुंदरता का आनंद ले सकें एवं सुंदर भविष्य का निर्माण कर सके।
बच्चों का सौंदर्यबोध उन्हें कलात्मक रचनाएँ खोजने और बनाने में सक्षम बनाता है तो है ही उन्हें ऐसा करने से आनंद और सौंदर्य अनुभव का खजाना मिल सकता है।

सौन्दर्य विकास को प्रभावित करने वाले कारक

निम्नलिखित कारक एक बालक के सौन्दर्य विकास को प्रभावित करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
(i) अनुवांशिकी
(ii) परिवार
(iii) आर्थिक वा सामाजिक परिस्थितियाँ
(iv) मित्र-मण्डली
(v) साहित्य
(vi) दूरदर्शन व सिनेमा
(vii) संचार के अन्य साधन जैसे समाचार पत्र-पत्रिकाएँ इंटरनेट
(ix) धार्मिक व साँस्कृतिक संस्थाएँ
(x) संवेगात्म‌कता
(xi) विद्यालय व शिक्षक
(xii) शिक्षा के अवसर
उक्त कारक सौंदर्य विकास को प्रभावित करने में उसी तरह अपनी भूमिका निभाते हैं जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि अन्य विकास। नीचे दी गई लिंक्स के माध्यम से कारकों का विवरण पढ़ सकते हैं।

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I hope the above information will be useful and important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
Thank you.
R F Temre
infosrf.com

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